गंडक नहर परियोजना पर संकट के बादल


सहायक अभियंता एसपी सिंह का कहना है कि नहरों के गुलों की मरम्मत की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दी गयी है। जिले में कुल 83 माइनर हैं। इसके सफाई के लिये सिंचाई विभाग ने 121 लाख रुपये का प्रस्ताव भेजा था। जिसमें मंजूरी मिली मात्र 58 लाख रुपये की। इससे सभी माइनरों की सफाई सम्भव नहीं है। यही हाल करीब सभी जिलों का है। सरकार की उदासीनता के कारण गंडक नहर प्रणाली का अस्तित्व खतरे में है।

गोरखपुर/ महाराजगंज। खेती किसानी के काम में सबसे ज्यादा जरूरी पानी है। जिसकी जरूरत किसानों को सबसे ज्यादा है। ऐसे में देश में कई नहर परियोजनाएँ चल रही हैं, इन परियोजनाओं को अगर सही से अमलीजामा पहना दिया जाये, तो बहुत से जगहों के किसानों के लिये पानी की समस्या ही खत्म हो जाये। ‘गंडक नहर परियोजना’ ऐसी ही परियोजनाओं का हिस्सा है। जिसके प्रति सरकार की लापरवाही बढ़ती जा रही है।

महाराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गोरखपुर और बिहार के सारन आदि जिलों की सिंचाई का मुख्य स्रोत गंडक नहर है। विशेष रूप से महाराजगंज जिले के किसान खेतों की सिंचाई के लिये नहरों पर ही आश्रित हैं। सिंचाई की अच्छी सुविधा होने से पिछले सालों में किसानों को कभी भी सूखे का सामना नहीं करना पड़ा। फसल उत्पादन के मामले में जिला महाराजगंज को मिनी पंजाब कहा जाता है। माइनर की सफाई नहीं होने से सिंचाई के लिये नहरों से खेतों में पानी नहीं पहुँच पा रहा है।

इस साल पानी के अभाव में अधिकांश किसानों की धान की खेती पर असर पड़ा है। भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के पूर्वोत्तर क्षेत्र और बिहार के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों की सिंचाई के लिये नहर प्रणाली विकसित करने के उद्देश्य से नेपाल के तत्कालिक शासक राजा महेन्द्र विक्रम शाह से 1959 में समझौता किया था। नारायणी नदी नेपाल की पहाड़ियों से करीब 80 कि.मी. की यात्रा कर नेपाल के जिले नवलपरासी और बिहार के बगहा के सीमावर्ती गाँव झुलनीपुर क्षेत्र से मैदानी भाग में आती है। यहाँ से इसका नाम बड़ी गंडक हो जाता है।

समझौते के तहत पश्चिमी मुख्य गंडक नहर और वाल्मीकि नगर बैराज का निर्माण नेपाल के भूक्षेत्र से होना था। भौगोलिक और तकनीकी वजहों से नेपाल राष्ट्र की जमीन लेना गंडक नहर प्रणाली के निर्माण के लिये ज्यादा उचित साबित हुआ। इस जमीन के बदले गंडक नदी नदी के दायें तट पर नेपाल सीमा तक के भूभाग को बाढ़ और कटाव से बचाने की जिम्मेदारी भारत के समझौते में समावेशित है। इसके तहत ‘ए गैप’ बाँध की लम्बाई 2.5 कि.मी. और ‘बी गैप’ बाँध की लम्बाई 7.23 कि.मी है। नेपाल बाँध की लम्बाई 12 कि.मी और लिंक बाँध की लम्बाई 2.5 कि.मी है जिसका निर्माण उत्तर प्रदेश सिंचाई और जल संसाधन विभाग खंड-2 महाराजगंज ने कराया है। उत्तर प्रदेश में पश्चिमी गंडक नहर करीब 3207 कि.मी के भूभाग में निर्मित है। जिससे सिंचाई होती है। इस नहर की शीर्ष प्रवाह क्षमता 18800 क्यूसेक है। मुख्य नहर से बिहार प्रदेश भी 2500 क्यूसेक पानी लिया करता है। नहरों में सिल्ट जमा होने और बाढ़ क्षेत्रों में नहरों के क्षतिग्रस्त होने से, नहरें अपनी निर्धारित क्षमता का पानी नहीं ला पा रही हैं। नहरों के रख-रखाव के लिये बजट की कमी से इसकी सही रूप से देखभाल नहीं हो पा रही है। इसलिए अधिकांश नहरें जर्जर अवस्था में हैं।

फलस्वरूप नहरों से सिंचाई में कमी आयी है। नहरों में पानी तो छोड़ा जाता है। लेकिन पानी को खेतों तक पहुँचाना आसान नहीं है। सिर्फ जिला महाराजगंज में 2220 गुलों का अस्तित्व मिट गया है। नहरों के कुलावे ने भी काम करना बन्द कर दिया है। ऐसी स्थिति में जिन किसानों के खेत नहरों के किनारे हैं। वह भी अपने खेत की सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। सहायक अभियंता एसपी सिंह का कहना है कि नहरों के गुलों की मरम्मत की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को दी गयी है। जिले में कुल 83 माइनर हैं। इसके सफाई के लिये सिंचाई विभाग ने 121 लाख रुपये का प्रस्ताव भेजा था। जिसमें मंजूरी मिली मात्र 58 लाख रुपये की। इससे सभी माइनरों की सफाई सम्भव नहीं है। यही हाल करीब सभी जिलों का है। सरकार की उदासीनता के कारण गंडक नहर प्रणाली का अस्तित्व खतरे में है।

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