गंगा के पानी में मिला यूरेनियम

22 Aug 2014
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Ganga
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इलाहाबाद। पंजाब में पीने के पानी में यूरेनियम मिलने के बाद अब इसका दायरा उत्तर प्रदेश की तरफ बढ़ने लगा है। नन्द प्रयाग से लेकर नरोरा तक गंगा के पानी पर किए गए शोध में पाया गया है कि गंगा के पानी में यूरेनियम की मात्रा बढ़ने लगी है। इलाहाबाद से बनारस के मध्य कई क्षेत्रों के पीने के पानी में भी यूरेनियम की मात्रा पाई गई है।

1. नन्द प्रयाग से नरोरा तक हुए शोध का निष्कर्ष
2. इलाहाबाद में सबसे अधिक मिला यूरेनियम
बीआरएनएस और डीएई द्वारा कराए गए इस शोध में सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अन्य स्थानों की तुलना में इलाहाबाद में यूरेनियम की मात्रा अधिक पाई गई। प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर रहीं नेहरु ग्राम भारती विश्वविद्यालय के रसायन विभाग की डॉ. दुर्गेश नन्दनी गोस्वामी ने बताया कि नन्द प्रयाग से लेकर नरोरा तक किए गए शोध में सबसे अधिक इलाहाबाद के अलग-अलग क्षेत्रों में यूरेनियम की मात्रा पाई गई। इलाहाबाद के रामचौरा घाट से लिए गए सैंपल में यूरेनियम की मात्रा लगभग 4 पीपीबी (पार्ट पर बिलियम) जबकि रसूलाबाद घाट पर 4.0, शिवकुटी में 3.9, दारागंज में 3.5 पीपीबी पाई गई।

शोध के दौरान संगम से पहले, संगम पर व यमुना के पानी की भी जांच की गई। इसमें क्रमश: 3.9, 3.4 व 3.0 पीपीबी यूरेनियम की मात्रा पाई गई। शोध के विशेषज्ञ वैज्ञानिक व नेहरु ग्राम भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. केपी मिश्र ने बताया कि बनारस से इलाहाबाद के मध्य कई क्षेत्रों में पीने के पानी में भी यूरेनियम की मात्रा पाई गई है। डॉ. दुर्गेश नन्दनी गोस्वामी द्वारा किए गए शोध में इलाहाबाद के शंकरगढ़ इलाकों के पीने के पानी में यूरेनियम की मात्रा पाई गई है। वे बताया कि अभी शंकरगढ़ की स्थिति पर और शोध किया जा रहा है।
 
खतरा बरकरार

इलाहाबाद। पानी में यूरेनियम की मात्रा के लिए डब्ल्यूएचओ ने एक मानक तैयार किया है, जिसके अनुसार पानी में अगर यूरेनियम की मात्रा 15 पीपीबी पाई गई है तो कोई चिंताजनक बात नहीं है, लेकिन अचानक गंगा जल में और पीने के पानी में यूरेनियम की इतनी अधिक मात्रा केवल प्राकृतिक तौर पर नहीं आ सकती है। शोध विशेषज्ञों ने भी इस बात को माना है कि अब लगातार इस पर निगरानी की जरूरत है, स्थिति कभी भी बिगड़ सकती है।

 

 

पंजाब में मचा था हड़कंप

इलाहाबाद। पीने के पानी में डब्ल्यूएचओ मानक से 50 प्रतिशत अधिक मात्रा में यूरेनियम पाए जाने से पंजाब में हड़कंप मच गया था। दरअसल पंजाब के मलावा बेल्ट सहित अन्य कई क्षेत्रों में कैंसर, अप्राकृतिक बच्चों का जन्म, गर्भाशय समाप्त होने जैसी कई बीमारियां तेजी से फैलने लगी थीं। इसके बाद पंजाब सरकार के बीएआरसी की सहायता ली थी। बताया जा रहा है कि पंजाब में 2,462 नलकूपों में से 1,140 नलकूप के नमूनों में यूरेनियम और आर्सेनिक की काफी अधिक मात्रा पाई गई थी।

 

 

 

 

क्षेत्रवार यूरेनियम की मात्रा

क्षेत्र

मात्रा (पीपीबी में)

नन्द प्रयाग

3.48

कर्ण प्रयाग

2.67

रूद्र प्रयाग

2.53

देव प्रयाग

02

ऋषिकेष

01

हरिद्वार

1.9

नरोरा कैनाल

2.58

नरोरा बैराज

2.0

नरोरा घाट

2.5

रामचौरा (इला.)

04

रसूलाबाद (इला.)

4.0

शिवकुटी (इला.)

3.9

दारागंज (इला.)

3.5

 

 

 

 

कैंसर का बढ़ा खतरा

इलाहाबाद। यूरेनियम रेडियम न्यूक्लाइड से सबसे अधिक खतरा कैंसर होने का होता है। यूरेनियम की अधिक मात्रा के संपर्क में आने के बाद कुछ ही वर्षो में यह कैंसर को विकसित करने का कार्य करता है। वैसे तो यूरेनियम प्राकृतिक तौर पर पर्यावरण में मौजूद रहता है लेकिन अधिकता होने के बाद यह शरीर पर खराब प्रभाव डालने लगता है। आंत या फेफड़ों के माध्यम से अवशोषित होकर खून में प्रवेश होने के बाद इसका दुष्प्रभाव शुरू हो जाता है।

 

 

 

 

पानी में यूरेनियम के कारण

1. प्राकृतिक माध्यम द्वारा

2. 1965 में चीन की अवैध गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए भारत द्वारा नन्द देव के ऊंचाई पर रखे न्यूक्लियर यंत्र के रिसाव से

3. पड़ोसी देशों द्वारा एटॉमिक परीक्षण से

 

 

 

 

पूर्व के शोध में मिली थी अधिक मात्रा

इलाहाबाद। इसके पूर्व लगभग 1982 के दौरान भी सीएसआईआर और डीएटी द्वारा गंगा के पानी पर अमृतसर के गुरुनानक देव विवि के भौतिक विज्ञान विभाग के विशेषज्ञों द्वारा शोध करवाया गया था, तब सबसे अधिक भयावह स्थिति गंगाजल की ऋषिकेष में थी। शोध में वहां 8.00 पीपीबी और हरिद्वार में 7.79 पीपीबी यूरेनियम पाया गया था। हालांकि प्रो. केपी मिश्रा का कहना है कि उस दौरान किए गए शोध के बाद से ही भारत सरकार व सीआईएसआर ने इस ओर शोध जारी रखने का निर्णय लिया था, जिसके बाद से लगातार इस पर अध्ययन किए जा रहे हैं।

 

 

 

 

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