गंगा की सफाई - लीक से हटकर (Cleaning of Ganga)


‘गंगा’ शब्द सुनते ही पवित्रता की अनुभूति होती है क्या ये गंगा अब उतनी ही पवित्र है, जितनी की पूर्व में थी? हम भारतीयों के लिये गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है, ये हमारी सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़ी है, हमेशा से सुनते आये हैं कि गंगा मेें डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं लेकिन हमने अपने पापों के अलावा सब कुछ (मैल, गन्दगी) इस गंगा में प्रवाहित करना प्रारम्भ कर दिया ऐसा करते-करते आज गंगा इतनी मैली हो गई है कि इसका गंगा होने का अस्तित्व ही समाप्त होता जा रहा है। आज गंगा सिर्फ कूड़ा-कचरा बहाकर ले जाने वाली नाला बन के रह गई है जो हमारे पापों को धुलने की क्षमता रखती थी, आज वो हमारे कारण खुद ही मैली हो गई है जिस गंगा पर हमें गर्व होता था, आज उसी गंगा को हमारी वजह से लज्जित होना पड़ रहा है। चूँकि गंगा का ये हाल हमारी वजह से हुआ इसलिये हमें स्वयं गंगा के शुद्धिकरण के विषय में तुरन्त महत्त्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। ये बहुत ही चिन्ताजनक विषय है। इसलिये इसको प्राथमिकता देना चाहिए।

गंगा का उद्गम हिमालय की चोटियों से हुआ है और ये हमारे पूरे उत्तर भारत को जल उपलब्ध कराते हुए बंगाल की खाड़ी में समुद्र में जा मिलती है ऐसा कहा जाता है कि गंगा अपने जल को खुद ही स्वच्छ करती थी, जिसका कारण है गंगा के जल में उपलब्ध ‘विषाणु-जीवाणु’ जो कि गंगा के जल को शुद्ध बनाए रखते थे, जिसकी वजह से गंगा के जल को चाहे कितने ही दिनों तक संचित करके रखो वह कभी खराब नहीं होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। गंगा में उपस्थित विषाणु-जीवाणु गंगा में मिलने वाले हानिकारक रसायनों की वजह से नष्ट होते जा रहे हैं। गंगा के अशुद्ध होने के पीछे बहुत से कारण हैं, इसलिये गंगा एक दिन में शुद्ध नहीं हो सकती। हमारी सरकारों ने जरूर गंगा शुद्धिकरण के लिये प्रयास किये, कई कदम उठाए लेकिन इन प्रयासों में कुछ कमियाँ रहीं, वास्तव में किसी पर भी उचित तरीके से कार्य नहीं किया गया। इस कार्य को एक सुनियोजित एवं व्यवस्थित ढंग से करना होगा। पहले समस्या की जड़ को समझना होगा फिर उसे कैसे ठीक किया जाये। उस विषय में सोचना होगा। पहले अत्यन्त आवश्यक समस्याओं का निवारण करना होगा- जैसे कि कारखानों से आने वाला व्यर्थ पदार्थ एवं दूषित जल प्रवाह जो गंगा में मिलते हैं उसको कैसे कम किया जा सकता है? प्लास्टिक कचरे को पुनः प्रयोग में लाना होगा, न कि गंगा में बहाना। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले अपशिष्ट को अलग-अलग बाँटा जाये जैसे कि केमिकल अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट को अलग-अलग तरीकों एवं तकनीकों से अपघटन किया जाये। मानवीय अपशिष्ट को खाद में परिवर्तित किया जाये। न कि गंगा में बहाया जाये।

‘गंगा जी’ पूरे भारतवर्ष की आस्था का प्रतीक हैं। गंगा ने अपने अन्दर स्वर्णकालीन इतिहास को संजोकर रखा है ‘गंगा’ शब्द का पहला वर्णन हजारों वर्ष पूर्व लिखित ऋग्वेद में मिलता है।

जब हम अपनी धार्मिक पुस्तकों पर नजर डालते हैं तो पता चलता है कि जिस गंगा की आज हम अवहेलना कर रहे हैं उसे धरती पर लाने के लिये भगीरथ ने वर्षों तपस्या की थी। भगवान विष्णु के चरणों से निकलकर भगवान शिव की जटाओं में बहने वाली गंगा अति पवित्र ही नहीं, जीवनदायिनी भी हैं पवित्र जल की धाराएँ गंगोत्री से निकलकर ‘भगीरथी’ और ‘अलकनंदा’ के नाम से जानी जाती हैं तथा आगे प्रवाहित होते हुए इसका नाम गंगा हो जाता है लगभग पूरे उत्तर-पूर्व भारत से होते हुए यह अन्ततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है, गंगा को सिर्फ गंगा के नाम से ही नहीं पुकारा जाता, सामान्य जन के मुख से भी ‘गंगा जी या गंगा मैया’ का उच्चारण ही निकलता है। इसी से इसकी पवित्रता, पुण्यता व महानता का पता चलता है।

हमारे देश में गंगा स्नान का महत्त्व कितना है यह जगजाहिर है। आज लोग गंगा स्नान तो करते हैं पर शैम्पू, साबुन के रूप में कई तरह के हानिकारक रसायन इसमें प्रवाहित भी करते हैं जिससे हमारी गंगा प्रदूषित होती जा रही है। हमारे यहाँ प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं- चाहे गणेश उत्सव हो या दुर्गापूजा इन उत्सवों में स्थापित की गई सारी मूर्तियों को अन्ततः गंगा या निकट की नदियों में ही विसर्जित किया जाता है। इन सारी चीजों को देखकर लगता है कि जैसे गंगा का अस्तित्व ही खत्म होता जा रहा है वह गंगाजल जिसके बारे में सिद्ध था कि इसे कई दिनों/महीनों तक रखने पर भी इसके जल में कीड़ा आदि नहीं उत्पन्न होता, यह तथ्य आज झुठला गया है।

गंगा व अन्य नदियों की सफाई की विभिन्न योजनाएँ जैसे कि गंगा एक्शन प्लान, यमुना एक्शन प्लान और अन्य कई योजनाएँ विभिन्न समयों पर कार्यान्वित होती रही हैं लेकिन इन सब योजनाओं का कोई विशेष प्रभाव गंगा की सफाई या अन्य नदियों की सफाई पर परिलक्षित होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है ऐसा क्यों हुआ? और अभी क्या किया जा सकता है? इसके बारे में गहराई से विचार करने की आवश्यकता है।

गंगा दिन-प्रतिदिन किसलिये इतनी मैली होती जा रही है? इसके लिये हमें इसके कारणों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना होगा, तभी हम गंगा की वर्तमान स्थिति में कुछ सुधार की अपेक्षा कर सकते हैं। अगर ध्यानपूर्वक देखा जाये तो गंगा के प्रदूषण के दो ही मुख्य कारण हैं-

1. पहला कारण- गंगा में प्रदूषित पानी का छोड़े जाना- किसी भी बेसिन में नदी उस बेसिन के ड्रेनेज का भी काम करती है जिसकी वजह से उस बेसिन के जितने भी नाले व छोटी नदियाँ अन्ततः मुख्य नदी में जा कर मिलती हैं। इस प्रकार गंगा बेसिन के जितने भी नाले हैं वे अन्ततः गंगा में ही मिलते हैं। इन नालों में शहर के घरों के सीवर का निष्कासित द्रव्य, कल-कारखानों से निकलने वाले हानिकारक रासायनिक पदार्थ, बरसात के दिनों में पानी के साथ बहने वाली गन्दगी जैसे कि पालिथीन, कागज, लकड़ी, प्लास्टिक व अन्य प्रकार का कूड़ा-करकट सभी कुछ बहता हुआ गंगा में समा जाता है और जल प्रदूषण का कारण बनता है।

2. दूसरा कारण- गंगा में पानी की कमी होना। किसी भी नदी में जल के प्रवाह के दो मुख्य स्रोत हैं। पहला बरसात का पानी व दूसरा पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने से आने वाला जल बरसात के दिनों में गंगा में प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध रहता है। लेकिन गर्मियों के दिनों में गंगा में जल सिर्फ ग्लेशियरों की बर्फ के पिघलने से ही आता है। इस पानी का उपयोग गंगा बेसिन में विभिन्न प्रयोजनों- जैसे पीने के लिये, सिंचाई के लिये, कारखानों के लिये, तापीय विद्युत संयंत्र आदि में होता है। पानी की कुछ मात्रा वाष्पीकरण से वायुमण्डल में भी चली जाती है और कुछ मात्रा भूजल के रूप में संचित हो जाती है। नदियों में जल की कुछ मात्रा दूषित जल के रूप में विभिन्न नालों के रास्ते पहुँचती है। जो पानी इस्तेमाल के बाद बचता है एवं विभिन्न नालों का पानी Lean Season में गंगा में प्रवाहित होता रहता है और वह ही गंगा में जल की मात्रा के रूप में रह जाता है, चूँकि गंगा के ऊपर कोई भी स्टोरेज (संचायक) बाँध नहीं है (सिवाय टिहरी को छोड़कर), अतः बारिश के दिनों के अलावा गंगा में पानी की उपलब्धता काफी कम हो जाती है और गंगा में हरिद्वार से लेकर पटना व उसके आगे भी केवल नालों का गन्दा पानी ही प्रवाहित होता है।

परिणामस्वरूप पवित्र पावनी गंगा में शुद्ध जल की अपेक्षा अपवित्र द्रव्यों की अधिकता हो जाती है।

गंगा की सफाई के लिये किये गए प्रयास एवं उनके परिणाम


प्रदूषित गंगाविभिन्न परियोजनाओं एवं रेग्यूलेशंस (अधिनियमों) के द्वारा गंगा की सफाई की कोशिशें की गई, जिनमें प्रमुख हैं-क. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना: सरकार की तरफ से यह एक सबसे बड़ी कोशिश है जिस पर काफी बजट भी खर्च किया गया परन्तु परिणाम आशा के अनुसार नहीं निकल सका इसके कई कारण हैं- जिनमें से मुख्य है सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में आने वाले पानी का प्रदूषण का स्तर डिजाइन किये गए पानी के स्तर के अनुरूप नहीं है। जिसके कारण या तो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम नहीं कर रहे हैं या अगर कर भी रहे हैं तो अपनी कार्यक्षमता से काफी कम पर कार्य कर रहे हैं। इस कारण से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से गंगा की सफाई में ज्यादा प्रगति नहीं हुई और व्यय किये गए धन का सदुपयोग नहीं हो पाया है।

ख. नदी में कचरा फेंकने पर रोक: कई मुख्य पुलों पर जहाँ से लोग अपनी धार्मिक भावनाओं के कारण विभिन्न प्रकार के फूल, पत्ती, पॉलिथीन, मूर्तियाँ, अस्थियाँ, राख इत्यादि नदी जल में प्रवाहित करते हैं, को रोकने के लिये लोहे की जाली आदि लगाने का कार्य किया गया है, लेकिन यह भी अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं हुआ है। इस प्रथा को रोकने के लिये लोगों में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। इसमें भी कुछ हद तक सफलता प्राप्त हुई है, किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सके एवं गंगा में प्रदूषण कम नहीं हुआ।

ग. नदियों के किनारे पर कंस्ट्रक्शन मेटीरियल फेंकने पर रोक: इसके तहत भी कुछ जगहों पर कार्यवाही की गई किन्तु अपेक्षित परिणाम नहीं निकल सका।

घ. तालाबों का विकास: बाढ़ के पानी को छोटे-छोटे तालाबों में भरने के लिये प्रयास भविष्य में एक बड़ा कदम साबित हो सकते हैं तालाब गाँव की पारिस्थितिकी सन्तुलन का आवश्यक अंग है अतः तालाबों को विकसित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार जल संरक्षण का दायित्व भी पूरा हो सकेगा। स्थानीय गन्दगी तालाब में एकत्र होकर स्थानीय रूप से सुरक्षित तरीके से विघटित हो जाएगी तथा नालों के माध्यम से नदी में अपेक्षाकृत कम गन्दगी जाएगी। तालाबों का प्रबन्धन स्थानीय रूप से आसानी से किया जा सकता है। तालाबों को व्यावसायिक उपयोग में भी लाया जा सकता है, बस एक अनुकरणीय पहल की जरूरत है। तालाब भूजल के गिरते स्तर को नियंत्रित करने में भी सहायक होंगे जिससे कि नदी जल पर निर्भरता कम होगी तथा नदी मेें जल का स्तर बनाए रखा जा सकेगा। इस ओर बहुत सा कार्य करना बाकी है।

ङ. जीरो डिस्चार्ज - अन्य उद्योगों से व पॉवर प्लांट से जीरो डिस्चार्ज में कुछ सफलता मिली है किन्तु ज्यादातर उद्योगों से कुछ-न-कुछ रसायन नालों के जरिए नदी में फेंका जाता रहा है जिसके कारण नदी में प्रदूषण बढ़ता है।

गंगा की सफाई के लिये नई कोशिशें


2014 में नई सरकार के आने के बाद गंगा सफाई की नई पहल हुई है। जिसमें नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने से लेकर घाटों की सफाई तथा जीर्णोंद्धार आदि प्रमुख हैं। लेकिन क्या ये कार्य गंगा सफाई के लिये पर्याप्त होंगे? इसमें सन्देह है। इसके अलावा नदियों में पर्यावरणीय प्रवाह को बढ़ाना भी है जिसके लिये प्रदेशों की सरकारें राजी नहीं हैं। जिसका कारण पानी की बढ़ती माँग एवं घटती आपूर्ति है।

गंगा की सफाई के लिये नई सोच


अपने स्कूली जीवन के दौरान हम लोग पढ़ा करते थे कि नदी की स्वतः साफ (Self Cleaning) करने की प्रवृत्ति होती है, यानि की यदि नदी में कुछ डाला जाये तो पानी कुछ दूरी के बाद स्वतः ही साफ हो जाता है, जैसा कि हम जानते हैं कि अब से लगभग 30 साल पहले तक गंगा जल कभी खराब नहीं होता था, हालांकि गंगा में कचरा व नाले आदि पहले भी मिलते थे, फिर आज क्या हुआ कि नदी एक बार गन्दी होती है तो समुद्र में मिलने तक साफ नहीं हो पाती? कहाँ गई गंगा की वह स्वतः साफ होने वाली प्रवृत्ति? हम लोगों को इस ओर ध्यान आकृष्ट करना होगा तभी हम गंगा को साफ कर पाएँगे।

पहले और आज में गंगा में पानी की मात्रा में इतना मात्रात्मक परिवर्तन तो नहीं हुआ कि जिसकी वजह से नदी की स्वतः साफ होने वाली प्रवृत्ति ही नष्ट हो जाये। बरसात के दिनों में तो कभी-कभी गंगा में पानी पहले से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं बह रहा है। इस विषम परिस्थिति का कारण आखिर क्या है? कहीं इसका कारण गंगा में डालने वाले या बहकर जाने वाले हानिकारक केमिकल्स (रसायन) तो नहीं जिसके कारण नदी में उपस्थित जीव-जन्तु एवं सूक्ष्म प्राणियों की मृृत्यु के कारण नदी की ‘स्वतः साफ’ होने वाली प्रवृत्ति का विनाश हो गया है, या इसका कारण वह पॉलिथीन या प्लास्टिक कचरा है जो इन जीव-जन्तुओं के अस्तित्व के लिये घातक है।

अगर ऐसा है तो समस्या का समाधान सीधा सा है, इन हानिकारक रासायनिक पदार्थों व प्लास्टिक तथा पॉलिथीन को नदी में जाने से रोक लीजिए गंगा स्वतः ही साफ हो जाएगी। क्यों स्वार्थवश कुछ गिने चुने तत्वों को संरक्षण देने के लिये प्लास्टिक व पॉलिथीन के व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है?

लेकिन यह कार्य समझने में जितना आसान लगात है, करने में उतना आसान नहीं है क्योंकि नाले जो पानी बहता है और जो गंगा में प्रदूषित करता है उसमें सब प्रकार की गन्दगी मिली होती है। उसको अलग करना उतना आसान नहीं है। लेकिन इसके लिये हम एक योजना के तहत कार्यवाही करें तो सफलता अवश्य मिल सकती है।

प्लास्टिक पॉलिथीन इत्यादि के कचरे को रोकने के लिये क्या करें?


इस कार्य के लिये सरकार निम्नलिखित कदम तुरन्त उठा सकती है:

1. पॉलिथीन के इस्तेमाल पर रोक- माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि सरकार गंगा सफाई के लिये क्या कर रही है? सुप्रीम कोर्ट चाहे तो गंगा बेसिन में पॉलिथीन व प्लास्टिक थैलियों के प्रवाह पर तुरन्त रोक लगा सकती है। करना यह होगा कि पॉलिथीन की थैलियाँ बनाने पर रोक लगानी होगी। कार्य कठिन है लेकिन गंगा सफाई का महत्त्वपूर्ण अवयव है न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। अतः सार्थक रूप से तत्काल प्रभाव से पॉलिथीन की थैलियों का उत्पादन व अन्य देशों से इसके भारत में आने पर स्पष्टतः पूर्ण रोक ही समस्या के समाधान का रास्ता है। पॉलिथीन उद्योग से विमुक्त कर्मचारियों का समायोजन वैकल्पिक क्षेत्रों में जैसे कि अन्य कल-कारखानों, निर्माण कार्यों वृक्षारोपण व वन संरक्षण, स्वच्छता अभियान आदि से उपयुक्त रोजगार प्रदान कर किया जा सकता है।

2. पॉलिथीन प्लास्टिक का एक बार प्रयोग करने के बाद पुनः प्रयोग किया जाये- सरकार चाहे तो पॉलिथीन व प्लास्टिक को खरीद कर पुनर्पयोग (Re-use) करा सकती है या सही तरीके से विसर्जित करा सकती है। जैसे कि पुरानी रद्दी आदि लोग सम्भाल कर रखते हैं और कबाड़ी वाले को बेचते हैं अगर प्लास्टिक पॉलिथीन को भी खरीदा जाये तो यह नालों व नदियों में जाने से रुकेगा। इसके लिये प्रयोग की गई पॉलिथीन को उचित दाम पर सरकारी माध्यमों से खरीदा जाये व सुरक्षित निस्तारण किया जाये। व्यर्थ पॉलिथीन से उपयोगी ईंधन तेल विकसित करने की विधि भारतीय पेट्रोलियम संस्थान ने विकसित की है जिसका लाभ उठाया जाना चाहिए। इस प्रकार वर्तमान में भण्डार की गई प्लास्टिक को प्रयोग में लाने के बाद सुरक्षित रूप से निपटान किया जा सकता है।

3. ट्रेश स्क्रीन लगाकर- यह एक कारगर तरीका साबित हो सकता है। यह कार्य दो साल में पूरा किया जा सकता है जिसके द्वारा सभी बड़े नालों में ट्रेश स्क्रीन लगाई जा सकती है। एक अनुमान के द्वारा इस कार्य से दो साल में एक तिहाई तक गंगा का प्रदूषण रोका जा सकता है।

हानिकारक रासायनिक कचरे (केमिकल्स) को रोकने के लिये क्या करें?


यह कार्य थोड़ा मुश्किल है किन्तु असम्भव भी नहीं है इसके लिये निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

1. औद्योगिक क्षेत्र एवं आवासीय क्षेत्र को अलग करना- हमारे देश में इस दिशा में थोड़ी प्रगति जरूर हुई है लेकिन अभी भी बहुत सारी इंडस्ट्रीज (औद्योगिक इकाइयाँ) आवासीय क्षेत्र में ही हैं। इनमें से केमिकल डिस्चार्ज निष्काषित) करने वाली इंडस्ट्रीज (उद्योगों) को औद्योगिक क्षेत्रों (इंडस्ट्रियल एरिया) में प्रतिस्थापित (शिफ्ट) किया जा सकता है तथा उनके अपशिष्ट पदार्थों के निस्तारण की समग्र सामूहिक व्यवस्था की जा सकती है। इस प्रकार के विशिष्ट औद्योगिक क्षेत्र आवासीय व नदी प्रवाह के क्षेत्रों से समुचित दूरी पर स्थापित किये जा सकते हैं।

2. औद्योगिक क्षेत्र एवं आवासीय परिसर को अलग-अलग सीवन लाइनों से जोड़ना- ऐसा इसलिये जरूरी है कि आवासीय परिसर के सीवर को सामान्य विधि से शुद्ध किया जा सकता है किन्तु औद्योगिक एरिया के सीवन को इलेक्ट्रोलाइटिक सीवेज संयंत्र के द्वारा ही शुद्ध किया जा सकता है। बहुत से सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के फेल होने का यह एक मुख्य कारण है।

3. बड़ी औद्योगिक इकाइयों व छोटी औद्योगिक इकाइयों को अलग करना- बड़ी औद्योगिक इकाइयाँ अपना खुद का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा सकती हैं लेकिन छोटी औद्योगिक इकाइयों के लिये अपना खुद का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अधिक लागत के कारण लगभग अव्यावहारिक हो जाता है, इससे इन इकाइयों का अपना रासायनिक अपशिष्ट बेसिन तो साफ होगा ही तथा गंगा अपने आप साफ हो सकेगी।

अन्य उपाय


1. नदी में व नालों में कचरा डालने पर रोक।
2. मृत पशुओं को नदी मेें प्रवाहित करने पर रोक।
3. गंगा के किनारे शवों को लकड़ी से जलाने के स्थान पर विद्युत शवदाह गृहों को स्थापित करना।
4. नदियों में जमा गाद को (जब जल प्रवाह की मात्रा सीमित हो) प्रभावी रूप से हटाना तथा प्रवाह क्षेत्र को नियमित करना।
5. नदियों को प्रभावित करने वाले क्षेत्र में निर्माण की उन्नत विधियों का प्रयोग।
6. निर्माण के बाद कचरे को समुचित प्रबन्धन जिससे कि इस कचरे से नदियों पर दुष्प्रभाव न पड़े।
7. पूर्व निर्मित कंक्रीट ब्लॉक्स आदि का प्रयोग करके निर्माण क्षेत्र के कचरे को नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसी पद्धतियों के प्रयोग को बढ़ावा देना।
8. नदियों में प्राकृतिक रूप से जलीय जीवों का सन्तुलन बनाना जिससे कि पारिस्थितिकी के अनुसार प्राकृतिक सन्तुलन कायम रह सके। जैविक एवं पारिस्थितिक सन्तुलन बनाने की जरूरत है।
9. नदियों में प्राकृतिक प्रवाह क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों से होने वाली रुकावटों को दूर करना।
10. बरसात के दिनों में नदियों की ओर आने वाले जल प्रवाह क्षेत्र में उस स्थल के उपयुक्त वृक्षों व वनस्पतियों का उचित रोपण व प्रसार करना जिससे कि भूमि का कटाव कम-से-कम हो। भूमि का कटाव अपने साथ बहुत अधिक मिट्टी प्रवाहित करके लाता है व नदियों को एक प्रकार से चोक कर देता है। प्रवाह अवरुद्ध कर देता है। भूमि कटाव को रोकने से भू-संरक्षण के साथ ही जल संरक्षण भी निहित है, अतः ऐसा प्रयास बाढ़ से होने वाली विपदा का भी समाधान करेगा।

11. नदी प्रवाह के क्षेत्र में स्थानीय रूप से उचित पाये गए प्राकृतिक वृक्षों व वनस्पतियों का प्रसार व संरक्षण करना होगा।
12. नदी एवं जल संरक्षण की शिक्षा व सामाजिक चेतना जागृत करना हम सभी का कर्तव्य हो।
13. युकेलिप्टस श्रेणी के वृक्ष जो कि भूजल का अत्यधिक उपभोग करते हैं, उनको ऐसे क्षेत्रों में न लगाया जाये, जहाँ पर भूजल स्तर के नीचे जाने का खतरा है।
14. मुख्य रूप से प्रदूषण के मानकों का अनुपालन न करने वाली इकाइयों पर प्रभावी कार्यवाही त्वरित रूप से करना।
15. नहरों के माध्यम से नदियों के जल प्रवाह को सन्तुलित करने के लिये अध्ययन व इस पर एक दीर्घकालीन परियोजना बनाकर कार्य करना, यह कार्य पहले छोटे स्तर पर किया जाये।
16. बड़े बाँधों के साथ छोटे बाँधों का विकास किया जाये। लघु व सूक्ष्म जल परियोजनाओं के विकास से दूर-दराज के स्थानों पर भी बिजली उपलब्ध हो सकेगी तथा स्थानीय जनता की जंगल से ईंधन की लकड़ी लेने की मजबूरी दूर होगी, इससे वन संरक्षित रहेंगे तथा पारिस्थितिकी सन्तुलन बने रहने से वर्षा नियमित होगी व जल संरक्षण का यह दूरगामी प्रयास होगा, जोकि एक सार्थक कदम साबित होगा।

रासायनिक खादों का कम उपयोग करना


खेतों में धीरे-धीरे रासायनिक खादों का उपयोग कम करके जैव आधारित उर्वरकों के प्रयोग पर जोर दिया जाये जिससे ये लाभ होंगे-

1. स्थानीय स्तर पर उत्पन्न ठोस व्यर्थ सामग्री (Solid Waste) के सुरक्षित निपटान में सहायता मिलेगी- उदाहरण के तौर पर, घरेलू व्यर्थ पदार्थ, स्थानीय ठोस व्यर्थ सामग्री जैव घटकीय है तथा पशुओं के पालन से उत्पन्न व्यर्थ सामग्री का कम्पोस्ट खाद बनाकर निस्तारण करना पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होगा।
2. खेतों में रासायनिक उर्वरकों के अन्धाधुन्ध प्रयोग से तथा कीटनाशकों के प्रयोग से जहरीले पदार्थों का पानी के साथ बहकर नदी जल में मिलना बड़ा घातक है, इससे जल प्रदूषण तो होता ही है हानिकारक पदार्थों का नदी जल में प्रवाह बढ़ता है जिससे नदी जल में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में जल की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिये हमें प्रकृति के इन प्राकृतिक सफाई कर्मियों (सूक्ष्म जीवाणुओं) का संरक्षण करना अति आवश्यक है। अतः इस बारे में एक नई सोच की जरूरत है।

गंगा सफाई अभियान एक राष्ट्रीय महत्त्व का विषय है। प्रत्येक मनुष्य को अपने स्तर पर गंगा को साफ-सुथरा रखने के प्रयास में अपना योगदान देना चाहिए जैसे कि गंगा में पूजा-पाठ का सामान, फूल-पत्ते आदि न बहाएँ, ऐसे प्रयास करने होंगे। गंगा में नहाते समय या कपड़े धोते समय साबुन-शैम्पू का उपयोग न करें। गंगा में मूर्तियों को प्रवाहित न किया जाये।

कुम्भ मेले के समय गंगा तट के किनारे बनाए गए अस्थायी निवासों एवं अपशिष्ट पदार्थ को गंगा में न डाला जाये। उसको नष्ट करने के कुछ दूसरे उपाय किये जाएँ।

ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी गंगा का जल कम हो रहा है जिससे उसमें गंगा का शुद्ध जल कम, परन्तु नालों का गन्दा पानी ज्यादा बहता है। सोचो अगर गंगा ही नहीं रहेगी तो कितने ही लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पाएगा और न ही खेतों की ठीक प्रकार से सिंचाई हो पाएगी। बिना अन्न-जल के व्यक्ति के जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अतः गंगा का संरक्षण व इसकी पवित्रता बनाए रखना सरकार व समाज सभी का उत्तरदायित्व है।

हम कई वर्षों से गंगा को अशुद्ध करते आ रहे हैं, यदि गंगा की दयनीय स्थिति को इसी तरह नजरअन्दाज किया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गंगा नदी, जिसके अन्दर इतिहास छिपा है, वह स्वयं एक इतिहास बनकर रह जाएगी। जिसके बारे में हमारी आने वाली पीढ़ियाँ केवल किताबों में ही पढ़ा करेंगी।

आज हमारे समाज में इस ओर ध्यान देना चाहिए। इसके लिये शिक्षित वर्ग हो या अशिक्षित वर्ग, गाँव के लोग हों या शहर के, सबको जागरुक होना चाहिए व गंगा सफाई के महाअभियान में योगदान देना चाहिए।

आज पूरे समाज को यह प्रण लेना चाहिए कि जिस तरह कई वर्षों की तपस्या के बाद यह गंगा पृथ्वी पर आई थी ठीक उसी तरह यह पावन और निर्मल रूप में अनन्तकाल तक बहती रहे और हमारी आने वाली पीढ़ी इससे पोषित होती रहें। यही हम सबके हित में है, व समय की माँग है। गंगा की स्वच्छता व संरक्षण की समस्या किसी एक वर्ग या एक व्यक्ति की समस्या नहीं है, सवाल राष्ट्रीय धरोहर, आस्था की प्रतीक, हमारी अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करने वाली सम्पत्ति की सुरक्षा का है, इस तथ्य को ध्यान में रखा जाये तो सभी का हित है।

गंगा स्वच्छ और निर्मल है, इसमें स्वयं को प्रत्येक मानसून में स्वच्छ करने की अद्भुत क्षमता है। हमें सिर्फ इसे गन्दा होने से बचाना है। इसके लिये कठोर कानून बनाए जाने की आवश्यकता है। आईटीबीपी, सीआरपीएफ, आईपीकेएफ, आरपीएफ बलों की भाँति गंगा संरक्षण के लिये भी एक बल ‘‘नदी सुरक्षा बल’’ बनाया जाना चाहिए। ये विभिन्न सुरक्षा बल जो प्रायः रिजर्व (Reserve) में रहते हैं, अन्य कोई विकल्प न बचे होने की दशा में, गंगा और अन्य नदियों की सुरक्षा हेतु तैनात किये जाने चाहिए। स्थिति अब नियंत्रण से बाहर हो रही है। समय आ गया है कि अब सुरक्षा बल बुला लिये जाएँ, योग्य व्यक्तियों को गंगा नदी को गन्दा न किये जाने को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी जाये। (Ganga is clean. It cleanses itself in every monsoon season. We only have to prevent it from getting dirty. We need tough stringent laws and very urgently require establishment of a 'RIVER PROTECTION FORCE' like that of Railway Protection Force, BSF, ITBP, SSB, IPKF etc- Part of CRPF, that remains idle for most of the time should be given the responsibility to protect Ganga and all rivers (if everything fails) The situation is going out of control and as in other cases we need to call in Army, call them once! then fix up the responsibility on appropriate persons to maintain the Ganga clean and sustain it.)प्रदूषण आज एक विश्वव्यापी समस्या है। संसार का कोई ऐसा देश नहीं है जो इससे अछूता रह गया हो। प्लास्टिक ने आज विश्व की जल निकासी व्यवस्था को बिगाड़ दिया है। जल निकासी व्यवस्था के खराब होने में प्लाटिस्क सबसे बड़ा कारण है। अतः हमें इस ओर ध्यान देना चाहिए और प्लास्टिक के इस्तेमाल को खत्म कर कपड़े, जूट व कागज से बने थैलों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। भारत की हमारी पुरानी संस्कृति जिसे सबसे ज्यादा गाँधीजी ने बढ़ावा दिया था अर्थात खादी ग्रामोद्योग को और विकसित करना होगा। खादी ग्रामोद्योग को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जाना चाहिए। इसे अधिक-से-अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि इससे कुटीर एवं लघु उद्योगों को भी बढ़ावा मिल सके और साथ-ही-साथ बहुत सारे लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया जा सकेगा। लोगों को जूट, कपड़े और कागज से बने थैले के इस्तेमाल करने के लिये जागरुक किया जाये। बहुत सारी गैर-सरकारी संस्थाएँ भी देश में विद्यमान हैं, उनको इस कार्य से जोड़ा जाये। इन संस्थाओं द्वारा कपड़ा मिलों के बचे कपड़े से थैलों का निर्माण किया जाये। कपड़े, जूट व कागज से बने थैले के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिये इन संस्थाओं द्वारा छोटे-छोटे गाँवों और शहरों में कैम्प लगाकर विभिन्न प्रकार के व आकर्षक थैलों का मुफ्त वितरण किया जाये ताकि आम जनता इस ओर जागरुक हो सके। आज केवल सरकार को ही नहीं बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए स्वयं पहल करनी चाहिए। हम जब भी अपने घर से सामान लेने, खरीददारी करने के लिये जाएँ तो अपने साथ कपड़े, जूट व कागज आदि के थैले लेकर जाएँ। कपड़े, जूट, नारियल रेशे, कागज के थैले के इस्तेमाल से हमारे देश की जल निकासी व्यवस्था भी अच्छी हो जाएगी और गंगा को भी प्रदूषण रहित बनाया जा सकेगा।

निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility) के अन्तर्गत हमारे Corporate Houses के यह जिम्मेदारी वहन करने का निर्देश करें कि वह एक निश्चित राशि कागज, कपड़े, जूट, नारियल रेशे से बने दिन-प्रतिदिन उपयोग के विभिन्न आकारों के थैले मुफ्त वितरण करें। कपड़े के बने चुनावी पोस्टरों को पुनर्उपयोग (Re-use) करके भी थैलियाँ बनाई जा सकती हैं, इस ओर भी ध्यान आकर्षित करें।

शहरीकरण के कारण वनों को काटा जा रहा है, अतः इससे भी जल व वातावरण को काफी हानि पहुँच रही है। पावर प्रोजेक्ट लगाने के कारण वन-जंगल डूब रहे हैं। इसके लिये वैकल्पिक वृक्षारोपण का प्रावधान तो है, लेकिन इसका किस हद तक परिपालन हो रहा है, यह प्रश्न बड़ा गम्भीर है? पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये छात्रों को ग्रीष्म अवकाश-शीतकालीन अवकाश में राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) के तहत वृृक्षारोपण जैसी रचनात्मक गतिविधियों में लगाया जाये तथा वन, जल व वातावरण संरक्षण की शिक्षा भी दी जाये। इसके रचनात्मक व दूरगामी परिणाम होंगे। स्कूली शिक्षा में जल, पर्यावरण सुरक्षा व स्वच्छता को अनिवार्य किया जाये। इस प्रकार की शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित न रहकर व्यावहारिक व प्रायोगिक भी हो।

समग्र प्रयास से गंगा सफाई का महान लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। इसमें दो राय नहीं है। धार्मिक आस्था पर नियंत्रण के साथ सतकर्म की महत्ता पर जोर दिये जाने की आवश्यकता है।

मुख्य अभियंता
केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण
-निदेशक
केन्द्रीय विद्युत प्राधिकरण

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