गंगा रक्षा के लिए अकेला पड़ा ‘गंगापुत्र’

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था। अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं।

गंगा की अविरलता के लिए और गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध में 9 फरवरी से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृसदन में चल रहा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन इस बार जोर पकड़ने के बजाय असफल साबित हो रहा है। वर्ष 2008 के बाद गंगा की अविरलता और बांधों के विरोध में लगातार हो रहे अनेक आंदोलनों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब संत समाज और उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल ऐसे किसी आंदोलन के विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रोफेसर से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने जी.डी. अग्रवाल 9 फरवरी से मातृसदन में अनशन कर रहे हैं। अग्रवाल आईआईटी, कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं लेकिन अब इन्होंने संन्यास ग्रहण कर खुद को गंगा को समर्पित कर दिया है। इससे पहले भी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर बन रही परियोजनाओं के खिलाफ हरिद्वार के मातृसदन और उत्तरकाशी में गंगा तट पर अनशन कर चुके हैं।

स्वामी सानंद के अनशन के बाद ही केंद्र सरकार ने लोहारीनागपाला परियोजना बंद कर दी थी। लोहारीनागपाला परियोजना बंद करने और गंगोत्री से उत्तरकाशी तक 125 किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र को अविरल बनाने की मांग को लेकर स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने उत्तरकाशी में 13 जून, 2008 से 30 जून तक आमरण अनशन किया था। इसी अनशन के दबाव में सरकार ने लोहारीनागपाला परियोजना बंद कर दी थी, हालांकि इस दौरान स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद को उत्तरकाशी में जोरदार विरोध का भी सामना करना पड़ा था। यहां तक कि हमले की आशंका के चलते उन्हें उत्तरकाशी से अपना आंदोलन दिल्ली शिफ्ट करना पड़ा था।

गंगा पर बन रहे बांध के विरोध में अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंदगंगा पर बन रहे बांध के विरोध में अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंदकेंद्र सरकार द्वारा लोहारीनागपाला परियोजना बंद करने का भाजपा और उत्तराखंड क्रांति दल ने भी विरोध किया था। यहां तक कि भाजपा सरकार में मंत्री रहे यूकेडी नेता दिवाकर भट्ट ने तो ज्ञान स्वरूप सानंद के खिलाफ पत्रकार वार्ता बुलाकर उन्हें आईएसआई का एजेंट और उत्तराखंड के विकास का विरोधी करार दिया था। 2009-10 और 2011 के दौरान भी स्वामी सानंद दिल्ली और हरिद्वार में गंगा की अविरलता के लिए आंदोलन करते रहे हैं। हालांकि इस दौरान बांधों का विरोध करने के चलते उन्हें खुद भी विरोध का सामना करना पड़ा है।

2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने से पूर्व गंगा की अविरलता को लेकर अनेक आंदोलन हुए। गंगा सेवा अभियान, गंगा रक्षा मंच, गंगा बचाओ अभियान के नाम पर इस दौरान खूब सियासत हुई। यहां तक कि गंगा रक्षा मंच के बैनर पर स्वामी स्वरूपानंद के दो चेलों ने 2008 में ही हरकी पौड़ी के निकट सुभाषघाट पर 38 दिनों का आमरण अनशन किया था। इतना ही नहीं, बाबा रामदेव भी तब इस आंदोलन में कूद पड़े थे। विश्व हिंदू परिषद से लेकर बजरंग दल तक ने गंगा से जुड़े आंदोलन में खूब सियासत की। हालांकि इन्हीं आंदोलनों का नतीजा था कि गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ ही राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन भी किया गया। बावजूद इसके यह सवाल आज भी उतना ही बड़ा है कि गंगा बेसिन प्राधिकरण और गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के बावजूद क्या गंगा का कोई भला हो पाया।

महज आरती से कहां संभव है गंगा का भलामहज आरती से कहां संभव है गंगा का भलाइतना ही नहीं, इस दौरान केंद्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान के स्थान पर गंगा की स्वच्छता के लिए नई योजना गंगा क्लीन प्लान भी शुरू की है लेकिन न तो गंगा की स्वच्छता को लेकर कोई नीति बन पाई है, न ही गंगा में खनन और बांधों को लेकर स्थिति साफ हो पाई है। इन सब कारणों से ही गंगा को लेकर चलने वाली सियासत ने मौका परस्ती का चेहरा बना लिया है। गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था।

अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं। हालांकि जानकारों का मानना है कि अगर नदियों में जल विद्युत परियोनजाएं बिल्कुल नहीं बनाई जाएंगी तो पहाड़ का पानी यूं ही बहकर बर्बाद हो जाएगा और पहाड़ के लोगों के काम नहीं आएगा। उत्तराखंड के क्षेत्रीय राजनीतिक दल बड़े बांधों के तो विरोधी रहे हैं लेकिन छोटे बांधों का इन दलों ने हमेशा ही समर्थन किया है। अब जबकि स्वामी सानंद गंगा की अविरलता को लेकर हरिद्वार में अनशन में बैठ गए हैं तो दूसरी तरफ प्रदेश के राजनीतिक दल और संत समाज भी उनके खिलाफ सक्रिय हो गया है। आश्चर्यजनक रूप से ऐसा पहली बार हुआ है कि गंगा के लिए हो रहे किसी आंदोलन में संत समाज ने खुद को अलग रखा हो। ऐसा असल में स्वामी सानंद के उस बयान के चलते हुआ है जिसमें उन्होंने अनशन शुरू करने के बाद कहा है कि लोगों को उनके आंदोलन के समर्थन में चारधाम यात्रा का भी बहिष्कार करना चाहिए।

नदी को प्रदूषित करने वालों से बचाना ही होगानदी को प्रदूषित करने वालों से बचाना ही होगास्वामी सानंद की इस बात से नाराज संत समाज खुलकर उनके खिलाफ खड़ा हो गया है। अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरिगिरि ने इस बयान को गैर जिम्मेदाराना करार देते हुए कहा कि स्वामी ज्ञानस्वरूप का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। पुराणों और शास्त्रों में तीर्थयात्रा का वर्णन है। यह यात्रा सदियों से चली आ रही है। उन्होंने अखाड़ा परिषद भी गंगा रक्षा को लेकर चिंतित है। 2013 में इस मुद्दे को प्रमुखता से रखा जाएगा। गंगा रक्षा सबका कर्तव्य है लेकिन इसमें राजनीति करना या फिर राजनीतिक दल के इशारे पर आंदोलन करना उचित नहीं है। वहीं जूना अखाड़े के राष्ट्रीय महामंत्री विद्यानंद सरस्वती ने भी स्वामी सानंद के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि बयान गंगा और श्रद्धालुओं का अपमान है। हालांकि अपने बयान पर बवाल होता देख स्वामी सानंद ने सफाई देते हुए कहा है कि उनका मकसद किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। बल्कि गंगा की दुर्दशा के प्रति आगाह कराना है।

यदि इसी तरह गंगा पर बांध बनते रहे और गंगा का दोहन होता रहा तो फिर एक दिन गंगा का अस्तित्व मिट जाएगा और तीर्थ यात्रा कैसे होगी? स्वामी सानंद की इस सफाई के बावजूद संत समाज उनके समर्थन के लिए सामने नहीं आया है। स्वामी सानंद के आंदोलन को प्रायोजित कर रहे ज्योतिष एवं द्वारकापीठ के जगदगुरु स्वामी स्वरूपानंद महाराज को कांग्रेस के करीब माना जाता है। वहीं आंदोलन कर रहे स्वामी सानंद अपने शुरुआती दिनों से ही आरएसएस के करीब रहे हैं। उत्तराखंड क्रांति दल और उत्तराखंड रक्षा मोर्चा ने तो साफ शब्दों में इस आंदोलन की खिलाफत करने का एलान कर दिया है। रक्षा मोर्चा का एक शिष्टमंडल जहां स्वामी सानंद से हरिद्वार में मिलकर अनशन समाप्त करने की मांग कर चुका वहीं यूकेडी ने अनशन समाप्त करने की मांग कर चुका वहां यूकेडी ने अनशन के चौथे दिन 12 फरवरी को स्वामी सानंद को तीन दिनों में हरिद्वार छोड़कर चले जाने की चेतावनी दे डाली है। ऐसा न करने पर यूकेडी स्वामी सानंद के खिलाफ व्यापक आंदोलन की बात कर रही है। वहीं रक्षा मोर्चा के प्रवक्ता पी.सी. थपलियाल का कहना है कि स्वामी सानंद को अपना आंदोलन हरिद्वार की जगह कानपुर या बनारस में चलाना चाहिए जहां गंगा उत्तराखंड के मुकाबले कई गुना अधिक प्रदूषित है।

Email : mahesh.pandey@naidunia.com

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