गंगा सफाई का बड़ा अभियान

15 Jul 2016
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निर्मलता की अविरलता पूर्व शर्त होने के बावजूद इस तथ्य को क्यों नजरअन्दाज किया गया, यह सोचनीय पहलू है? परतंत्र भारत में जब अंग्रेजों ने गंगा किनारे उद्योग और गंगा पर बाँध व पुलों के निर्माण की शुरुआत की थी, तब पं. मदनमोहन मालवीय ने गंगा की जलधार अविरल बहती रहे, इसकी चिन्ता करते हुए 1916 में अंग्रेज सरकार को यह अनुबन्ध करने के लिये बाध्य किया था कि गंगा में हर वक्त, हर क्षेत्र में 1000 क्यूसेक्स पानी अनिवार्य रूप से बहता रहे।

लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का वादा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्त्वाकांक्षी स्वप्न गंगा को स्वच्छ कर उसकी जलधार को अविरल बनाना था। इसलिये स्वाभाविक है कि इस कार्यक्रम को जमीन पर उतरना ही था। हालांकि बीते दो वर्ष में जुबानी जमाखर्च के अलावा, धरातल पर कुछ दिखा नहीं। अलबत्ता अब एक व्यापक अभियान को जिस उत्सवधर्मिता के साथ क्रियान्वित करने का श्रीगणेश हुआ है, उससे उम्मीद बँधी है कि ‘नमामि गंगे’ परियोजना के भविष्य में सार्थक परिणाम निकलेंगे।

केन्द्र सरकार के वित्त पोषण से शुरू हुई यह योजना भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जीवनरेखा कहलाने वाली गंगा का कायाकल्प कर इसका सनातन स्वरूप बहाल करेगी। बावजूद इस योजना को निरापद और निर्बाध रूप से अमल में लाने के परिप्रेक्ष्य में कुछ आशंकाएँ इसलिये हैं, क्योंकि गंगोत्री से गंगासागर तक का सफर तय करने के बीच में इसके जल को औद्योगिक हितों के लिये निचोड़कर प्रदूषित करने में चमड़ा, चीनी, रसायन, शराब और जल विद्युत परियोजनाएँ सहभागी बन रही हैं।

उन पर गंगा सफाई की इस सबसे बड़ी मुहिम में न तो नियंत्रण के व्यापक उपाय दिख रहे हैं और न ही बेदखली के? इस लिहाज से यह कहना मुश्किल है कि गंगा हमेशा के लिये निर्मल एवं अविरल हो ही जाएगी। हो सकता है, गंगा के सरंक्षण के लिये बनाए जाने वाले नए कानून में कड़े उपाय दिखाई दें।

गंगा सफाई की पहली बड़ी पहल राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में हुई थी। तब शुरू हुए गंगा स्वच्छता कार्यक्रम पर हजारों करोड़ रुपए पानी में बहा दिये गए, लेकिन गंगा नाममात्र भी शुद्ध नहीं हुई। इसके बाद गंगा को प्रदूषण के अभिशाप से मुक्ति के लिये संप्रग सरकार ने इसे राष्ट्रीय नदी घोषित करते हुए, गंगा बेसिन प्राधिकरण का गठन किया, लेकिन हालत जस-के-तस रहे। भ्रष्टाचार, अनियमितता, अमल में शिथिलता और जवाबदेही की कमी ने इन योजनाओं को दीमक की तरह चट कर दिया।

भाजपा ने इसे 2014 के आम चुनाव में चुनावी मुद्दा तो बनाया ही, वाराणसी घोषणा-पत्र में भी इसकी अहमियत को रेखांकित किया। सरकार बनने पर कद्दावर, तेजतर्रार और संकल्प की धनी उमा भारती को एक नया मंत्रालय बनाकर गंगा के जीर्णोंद्धार की भगीरथी जिम्मेवारी सौंपी गई।

जापान के नदी सरंक्षण से जुड़े विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया गया। उन्होंने भारतीय अधिकारियों और विशेषज्ञों से कहीं ज्यादा उत्साह भी दिखाया। किन्तु इसका निराशाजनक परिणाम यह निकला कि भारतीयों की सुस्त और निरंकुश कार्य-संस्कृति के चलते उन्होंने परियोजना से पल्ला झाड़ लिया।

इन स्थितियों से अवगत होने के बाद, इसी साल जनवरी में सर्वोच्च न्यायालय को भी सरकार की मंशा संदिग्ध लगी। नतीजन न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाते हुए पूछा कि वह अपने कार्यकाल में गंगा की सफाई कर भी पाएगी या नहीं? लेकिन अब जिस बड़े पैमाने पर विविध रूपों में परियोजना को जमीन पर उतारा गया है, उससे लगता है कि गंगा सफाई की पिछली सरकारों की जो कवायदें, गंगा को पहले से कहीं ज्यादा प्रदूषित करने के रूप में सामने आती रही हैं, वैसा हश्र इस परियोजना का नहीं होगा।

अब ‘नमामि गंगे’ की शुरुआत गंगा किनारे वाले पाँच राज्यों में 231 परियोजनाओं की आधारशिला, सरकार ने 1500 करोड़ के बजट प्रावधान के साथ 104 स्थानों पर की है। इतनी बड़ी परियोजना इससे पहले देश या दुनिया में कहीं शुरू हुई हो, इसकी जानकारी मिलना असम्भव है। इनमें उत्तराखण्ड में 47, उत्तर-प्रदेश में 112, बिहार में 26, झारखण्ड में 19 और पश्चिम बंगाल में 20 परियोजनाएँ क्रियान्वित होंगी। हरियाणा व दिल्ली में भी 7 योजनाएँ गंगा की सहायक नदियों पर लगेंगी।

इस अभियान में शामिल परियोजनाओं को हम सरसरी निगाह से देखें तो दो भागों में बाँटकर समझ सकते हैं। पहली, गंगा को प्रदूषण मुक्त करने व बचाने की। दूसरी गंगा से जुड़े विकास कार्यों की। गंगा को प्रदूषित करने के कारणों में मुख्य रूप से जल-मल और औद्योगिक ठोस व तरल अपशिष्टों को गिराया जाना है।

जल-मल से छुटकारे के लिये अधिकतम क्षमता वाले जगह-जगह सीवेज संयंत्र लगाए जाएँगे। गंगा के किनारे आबाद 400 ग्रामों में ‘गंगा-ग्राम’ नाम से उत्तम प्रबन्धन योजना शुरू होगी। इन सभी गाँवों में गड्ढे युक्त शौचालय बनाए जाएँगे। सभी ग्रामों के शमशान घाटों पर ऐसी व्यवस्था ही जाएगी, जिससे जले या अधजले शवों को गंगा में बहाने पर पूरी तरह रोक लगे। शमशान घाटों की मरम्मत के साथ उनका अधुनीकिकरण भी होगा। विद्युत शवदाह गृह भी बनेंगे। साफ है, इन उपायों से विषाक्त अपशिष्ट गंगा में बहाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

विकास कार्यों की दृष्टि से इन ग्रामों में 30,000 हेक्टेयर भूमि पर पेड़-पौधे लगाए जाएँगे। जो उद्योगों से उत्सर्जित होने वाले कार्बन का शोषण कर वायु को शुद्ध रखेंगे, साथ ही गंगा किनारे की भूमि की नमी बनाए रखने का काम भी करेंगे। गंगा-ग्राम की महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं को अमलीजमा पहनाने के लिये 13 आईआईटी 5-5 ग्राम गोद लेंगी।

गंगा किनारे आठ जैव विविधता सरंक्षण केन्द्र भी विकसित किये जाएँगे। वाराणसी से हल्दिया के बीच 1620 किमी के गंगा जल मार्ग में बड़े-छोटे सवारी व मालवाहक जहाज चलेंगे। इस हेतु गंगा के कई तटों पर बन्दरगाह बनेंगे।

इस तरह से नमामि गंगे कार्यक्रम केवल प्रदूषण मुक्ति का अभियान मात्र न होकर विकास व रोजगार का भी एक बड़ा कार्यक्रम है। जिन पर कालान्तर में क्रिर्यान्वयन सही होता है तो जनता को भी लाभ मिलेगा। अलबत्ता गंगा स्थायी रूप से प्रदूषण मुक्त हो और इसकी अविरलता बनी रहे, इसके लिये गंगा की सहायक नदियों को भी प्रदूषण मुक्त करना जरूरी है?

हालांकि नमामि गंगे परियोजना में उन तमाम मुद्दों को छुआ गया है, जिनसे गंगा एक हद तक शुद्ध होगी व अविरल बहेगी। बावजूद जब तक गंगा के तटों पर स्थापित कल-कारखानों को गंगा से कहीं बहुत दूर विस्थापित नहीं किया जाता, गंगा गन्दगी से मुक्त होने वाली नहीं है? जबकि इस योजना में कानपुर की चमड़ा टेनरियों और गंगा किनारे लगे सैकड़ों चीनी व शराब कारखानों को अन्यत्र विस्थापित करने के कोई प्रावधान ही नहीं हैं। इनका समूचा विषाक्त कचरा गंगा को जहरीला तो बना ही रहा है, उसकी धारा को अवरुद्ध भी कर रहा है।

कुछ कारखानों में प्रदूषण रोधी संयंत्र लगे तो हैं, लेकिन वे कितने चालू रहते हैं, इसकी जवाबदेही सुनिश्चित नहीं है। इन्हें चलाने की बाध्यकारी शर्त की परियोजना में अनदेखी की गई है। हालांकि नमामि गंगे में प्रावधान है कि जगह-जगह 113 ‘वास्तविक समय जल गुणवत्ता मापक मूल्यांकन केन्द्र’ बनाए जाएँगे, जो जल की शुद्धता को मापने का काम करेंगे।

केन्द्र सरकार को राज्यों से तालमेल बिठाकर इनके कामकाज पर निगरानी रखनी होगी, ताकि प्रदूषण फैलने की जानकारी मिलने पर उद्योगों को आगाह किया जा सके। दूसरी बड़ी जरूरत मूल्यांकन सम्बन्धी उपकरणों के रख-रखाव की है। हमारे यहाँ संकट यह है कि संयंत्र और उपकरण तो लगा दिये जाते हैं, लेकिन सरकार की निगाह हटते ही नौकरशाही इनकी निगरानी से बेपरवाह हो जाती है। यही वजह है कि दिल्ली में यमुना पर लगे ज्यादातर प्रदूषणरोधी संयंत्र बन्द पड़े हैं। फ्लोराइड नियंत्रण संयंत्रों का भी यही हाल है।

उत्तराखण्ड में गंगा और उसकी सहायक नदियों पर एक लाख तीस हजार करोड़ की जलविद्युत परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं की स्थापना के लिये पहाड़ों को जिस तरह से छलनी किया जा रहा है, उसी का परिणाम देव-भूमि में मची तबाही है। गंगा की धारा को उद्गम स्थलों पर ही ये परियोजनाएँ अवरुद्ध कर रही हैं।

यदि प्रस्तावित सभी परियोजनाएँ वजूद में आ जाती हैं तो गंगा और हिमालय से निकलने वाली गंगा और उसकी सहायक नदियों का जल पहाड़ से नीचे उतरने से पहले ही निचोड़ लिया जाएगा। तब गंगा अविरल कैसे बहेगी?

गंगा की इस अविरल धारा की उमा भारती ने तब चिन्ता की थी, जब केन्द्र में संप्रग सरकार थी और उत्तराखण्ड में ‘श्रीनगर जल विद्युत परियोजना’ में धारादेवी मन्दिर डूब रहा था। इन डूबती देवी को बचाने के लिये उमा धरने पर बैठ गईं थीं। अन्ततः तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सात करोड़ रुपए जारी करके मन्दिर को लिफ्ट करने का आदेश देकर सुरक्षित किया। लेकिन इस परियोजना में इन जल विद्युत परियोजनाओं को कतई नहीं छेड़ा गया है। जबकि गंगा को सबसे ज्यादा अवरुद्ध यही योजनाएँ कर रही हैं।

निर्मलता की अविरलता पूर्व शर्त होने के बावजूद इस तथ्य को क्यों नजरअन्दाज किया गया, यह सोचनीय पहलू है? परतंत्र भारत में जब अंग्रेजों ने गंगा किनारे उद्योग और गंगा पर बाँध व पुलों के निर्माण की शुरुआत की थी, तब पं. मदनमोहन मालवीय ने गंगा की जलधार अविरल बहती रहे, इसकी चिन्ता करते हुए 1916 में अंग्रेज सरकार को यह अनुबन्ध करने के लिये बाध्य किया था कि गंगा में हर वक्त, हर क्षेत्र में 1000 क्यूसेक्स पानी अनिवार्य रूप से बहता रहे। हालांकि नरेंद्र मोदी ने इस करार को बहाल तो रखा है, लेकिन गंगा से औद्योगिक हितों की पूर्ति के चलते गंगा की अविरलता कैसे सम्भव बनी रहेगी इस पहलू पर खुलासा स्पष्ट नहीं है।

पर्यावरणविद भी मानते हैं कि गंगा की प्रदूषण मुक्ति को गंगा की अविरलता के तकाजे से अलग करके नहीं देखा जा सकता है? लेकिन टिहरी जैसे सैकड़ों छोटे-बड़े बाँधों से धारा का प्रवाह जिस तरह से बाधित हुआ है, उस पर मोदी सरकार खामोश है। जबकि मोदी के वादे के अनुसार नमामि गंगे योजना, महज गंगा की सफाई की ही नहीं सरंक्षण की भी योजना है। शायद इसीलिये उमा भारती को योजना की शुरुआत करते हुए कहना पड़ा कि अगले कुछ दिनों में ‘गंगा सरंक्षण कानून’ बनाया जाएगा। जिसमें ऐसे प्रावधान लाए जाएँगे,जिससे गंगा को दूषित करने वाले उद्योगों को दंडित किया जा सके।नदरअसल पिछले एक साल में पर्यावरण मंत्रालय को पर्यावरण उल्लंघन से सम्बन्धित 400 प्रकरण सिर्फ इसलिये छोड़ देने पड़े, क्योंकि उनसे निपटने के लिये अब तक कानूनी प्रावधान नहीं हैं। लेकिन कानून केवल गंगा के संरक्षण के लिये ही नहीं, अपितु उन सब नदियों के सरंक्षण के लिये बने जो देश की बड़ी आबादियों को जीवनदायी होने के बावजूद औद्योगिक हितों की बलि चढ़ रही हैं।
 

 

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