गंगऊ अभ्यारण्य

मध्य प्रदेश स्थित अन्य अभ्यारणों की तरह यह अभ्यारण्य तुलनात्मक रूप से पुराना अभ्यारण्य है। इसका नाम वर्तमान में गंगऊ वीरान ग्राम के नाम से रखा गया है। जो पन्ना स्टेट की पुरानी तहसील थी। पुराने समय का प्रतिष्ठित गाँव था जो वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व के सीमान्तर्गत बीरान गाँव हैं। गंगऊ अभ्यारण कराकल का (विशेष जंगली बिल्ली) (Kunx Carcal) अन्तिम निवास स्थान माना जाता है। मध्य भारत के शुष्क पर्णपाती जंगल का यह जानवर विलुप्तप्राय जन्तु प्रजाति है। विगत वर्षों में कराकल को अभ्यारण के अंदर और बाहर देखा गया है। बाघ के अतिरिक्त अन्य माँसाहारी वन्य प्राणी-जैसे तेंदुआ, भेड़िया, जंगली कुत्ता, लकड़बग्घा, भालू एवं सियार इत्यादि भी इस आरक्षित क्षेत्र में पाये जाते है। चूँकि गंगऊ अभ्यारण की सीमा पन्ना टाइगर रिजर्व से लगी होने के कारण, राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में वन्य पशुओं के वास स्थान में उल्लेखनीय सुधार होने के कारण वन्य पशुओं की संख्या में जहाँ बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं गंगऊ अभ्यारण क्षेत्र की समुचित सुरक्षा एवं वन्य पशुओं के वास स्थान में सुधारात्मक कार्य करने से यह क्षेत्र वन्य पशुओं के लिए समुचित वफर जोन (अंतरथ प्रक्षेत्र) के रूप में अति उपयोगी होगा।

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान


उत्तरी विन्ध्य पहाड़ियों में स्थित पन्ना अभ्यारण्य का विस्तार भारत के मध्यप्रदेश राज्य के उत्तरी क्षेत्र में पन्ना और छतरपुर जिलों में फैला हुआ है। इसका क्षेत्रफल 542.67 वर्ग किलोमीटर है। समुद्र तल से ऊँचाई 212 मीटर से 338 मीटर तक है। यह देशान्तर 790-45’ पूर्व से 800-09’पूर्व एवं अक्षांश 240-27’ उत्तर से 240-46’ उत्तर में स्थित है। यहाँ गर्मी-मार्च से जून के मध्य तक, वर्षा-मध्य जून से मध्य सितम्बर तक और सर्दी मध्य नवम्बर से फरवरी तक पड़ती है। पन्ना अभ्यारण्य के बीच करीब 55 किलोमीटर तक टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर केन नदी बहती है। इसका बहाव दक्षिण से उत्तर की ओर है। केन नदी की वजह से पन्ना बाघ रिजर्व की सुन्दर छटा का वर्णन कुछेक अभ्यारण्यों में किया जाता है। इसकी कंदरायें और झरने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य का एहसास कराते हैं। केन वास्तव में पन्ना बाघ रिजर्व की जीवन रेखा है। भौगोलिक रूप से पन्ना जिले के तहत् अभ्यारण्य के मोटे तौर पर तीन विशिष्ट हिस्से हैं। ऊपरी तालगाँव पठार, मध्य हिनौता पठार और केन नदी की घाटी। जबकि छतरपुर जिले में अभ्यारण्य के हिस्से में आकर्षक पहाड़ों की श्रृंखलाएँ हैं।

दरअसल पन्ना बाघ रिजर्व का पन्ना जिले का संरक्षित वन (Reserved Forest) और छतरपुर जिले के कुछ संरक्षित वन पहले पन्ना, छतरपुर और बिजावर रियासतों के शासकों के शिकारगाह थे। 1975 में मौजूदा उत्तर और दक्षिण पन्ना वन विभाग के क्षेत्रिय वनों से गंगऊ वन जीव अभ्यारण्य का निर्माण किया गया। बाद में साथ जुड़े छतरपुर वन सम्भाग के कुछ हिस्सों को इस अभ्यारण्य में शामिल किया गया। 1981 में इसी गंगऊ वन्य जीव अभ्यारण्य के स्थान पर पन्ना राष्ट्रीय उद्यान अस्तित्व में आया।

पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में केन और श्यामरी नदियाँ प्रवाहित होती हैं। यहाँ घाटियाँ, गिरि, कंदरा और गुफायें भी हैं। समृद्ध जैव विविधता यहाँ देखी जा सकती है। केन नदी यहाँ पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के उत्तर दिशा में बहती है। इस नदी में मगर और घड़ियाल भी पाये जाते हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में रैप्टाइल पार्क भी विकसित किया जा रहा है।

खजुराहों के समीप पन्ना टाइगर रिजर्व अनेक दर्शनीय स्थलों से परिपूर्ण है जैसे केन घड़ियाल अभ्यारण्य, रनेह प्रपात प्रासाद, ट्री हाउस, पन्ना के मंदिर, बृहस्पति कुण्ड, सारंग आश्रम, चौमुख नाथ मंदिर, मझगवां की हीरा खदानें, प्रणामी आलम के अनेक मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय, स्मृति वन (पर्यावरण) पाण्डव प्रपात आदि। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में अनेक जलप्रपात हैं जैसे-पाण्डव प्रपात जो पन्ना से 15 किलोमीटर दूर पन्ना- छतरपुर रोड पर बुधरोड मार्ग में दायीं ओर मुख्य सड़क से एक किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ गुफाएँ थीं जो खण्डहर बन गई हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ वनवास के समय पाण्डवों ने कुछ समय बिताया था इसलिए इसे पाण्डव प्रपात कहते हैं। इस प्रपात एवं गुफाओं के निर्जन वन में 1930 में क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी गुप्त रूप में कुछ समय व्यतीत किया था। एक छोटा सा नाला पहाड़ी से गिरकर यह जलप्रपात बनाता है। यहाँ की नैसर्गिक सुन्दरता और अन्य झरनों के दृश्य मन को मोहने वाले हैं।

केन घड़ियाल अभ्यारण्य


खजुराहो से उत्तर-पूर्व दिशा से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित केन घड़ियाल अभ्यारण्य पन्ना व छतरपुर जिले में 45 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला आरक्षित क्षेत्र अपने में नैसर्गिक सौंदर्य समेटे हुए प्रकृति का अनूठा सौंदर्य स्थल है। इस अभ्यारण्य के बीच में कैमूर पर्वत माला से निकली केन नदी पर बनाया और घड़ियालों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए स्थापित किया गया है। यहाँ अनेकों प्रपात वर्षा ऋतु में देखने को मिलते हैं। इन प्रपातों में रनेह फाल यहां का प्रसिद्ध जल प्रपात है। सुन्दर व सुरम्य शैल श्रेणियों से निर्मित यह अभ्यारण्य प्रदेश के माने हुए अभ्यारण्यों में एक है। वैसे तो यह अभ्यारण्य वर्ष भर पर्यटकों के लिए खुला रहता है। परन्तु वर्षा ऋतु में रनेह जलप्रपात को देखने का सर्वश्रेष्ठ समय रहता है।

केन नदी दक्षिण से निकलकर उत्तर-पूर्व की ओर बहती है। केन नदी में बुन्देलखण्ड के पठार के विभिन्न शैलों में ग्रेनाइट, डोलोमाइट व क्वार्ट्स आदि प्रकार के पत्थर पाये जाते हैं। इन शैलों की बनावट व संरचना को देखकर देशी-विदेशी भूगर्भविद् व पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। चट्टानों की यह संरचना ‘गौंडवाना शैल’ का हिस्सा हैं। ग्रेनाइट पत्थरों के बीच-बीच में लम्बी-लम्बी दरारों में पिघला हुआ लावा भी काले रंग की पट्टियों के रूप में दृष्टिगोचर होता है। रनेह फाल व्यू-प्वाइंट पर बैठकर सायंकाल बनने वाले इन्द्रधनुष की सप्तरंगी छटा प्रकृति से तादात्म्य स्थापित करते हुए देखते ही बनती है।

जब केन नदी अपने पूरे यौवन पर हो तो व्यू-प्वाइंट में दोनों ओर अनेकों जलप्रपात आपको दिखाई पड़ेगें। चूँकि यह स्थान अभ्यारण्य के भीतर है इस कारण स्थान पर खाना बनाना व नदी में तैरना प्रतिबंधित है। इस स्थान पर बैठकर इस प्राकृतिक दृश्यावलियों को घण्टों निहारा जा सकता है, मानो कि सारी खूबसूरती इस स्थान पर सिमट गई है। रनेह फाल व्यू-प्वाइंट से एक किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति-पथ है। इस स्थान पर पैदल या वाहन से पहुँचा जा सकता है। रास्ते में चीतल के झुण्ड कुलांचे भरते हुए विचरण करते मिल जाएंगे। विभिन्न प्रजातियों की वनस्पतियों के नाम वृक्षों पर लगी पट्टियों पर मिल जाएंगे। नदी के किनारे विचरण कर प्रकृति को अधिक से अधिक महसूस किया जा सकता है। केन नदी को गहरी घाटियों के मध्य एक टापू स्थित है। यह एक दुर्गम स्थल है, जहाँ जाना प्रतिबन्धित है। यहाँ अनेक प्रजातियों की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।

इस अभ्यारण्य में नीलगाय, चिंकारा, चीतल आदि हिरण प्रजातियों के झुण्ड के अतिरिक्त लाल व काले मुँह के बंदरों के समूह पेड़ों की शाखाओं पर उछलते-कूदते रोमांचक दृश्य उपस्थित करते हैं। अभ्यारण्य क्षेत्र के अंतिम छोर पर पहुँचने पर केन व कूड़न नदी का संगम मिलता है। यह मौहार घाट कहलाता है। केन नदी में आपको कई प्रजातियों के जलचर जैसे-ब्रह्मानी डक, कौरमौरेन्ट, र्स्टोफ, डार्डर, किंग फिशर, हेरोन, प्लोवर आदि का जल क्रीड़ा करते हुए दूरबीन से नजारा किया जा सकता है।

पन्ना का हीरा


पन्ना भारत का एकमात्र हीरा उत्पादक क्षेत्र है। 18वीं सदी की शुरुआत में विश्व में हीरों के और स्थानों की खोज से पहले दुनिया भर के देशों के लिए हीरों की प्राप्ति का एक मात्र स्थान भारत ही था। मौजूदा दौर में भारत के मध्यप्रदेश विन्ध्य क्षेत्र में पन्ना जिले से सतना जिले तक हीरो की पट्टी विद्यामान है। पन्ना जिले मझगवाँ हीरा खदान पन्ना से 20 किलोमीटर दक्षिण और खजुराहो से 63 किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं। जहाँ किम्बरलाइट पाइप (पट्टी) में मशीन से हीरों की खुदाई की जाती है। पन्ना बाघ रिजर्व में हिनौता प्रवेश द्वार की सीमा पर यह स्थान है। इस काम को सिर्फ राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) अंजाम देता है। यहाँ हीरों की खुदाई का काम प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व के निर्माण से काफी पहले 60 के दशक के आखिर में शुरू हो चुका था। बेहतरीन हीरे, ऑफ कलर हीरे और औद्योगिक गुणवत्ता के हीरे पन्ना से प्राप्त किए जाते हैं। इस खदान से हीरों को निकालने का काम लगातार तेजी से पकड़ रहा है।

ज्ञातव्य है कि जग प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भारत के गोलकुण्डा खान से प्राप्त हुआ था। हाल ही में मझगवाँ स्थित राष्ट्रीय खनिज विकास निगम द्वारा संचालित हीरा खदान से अब तक का सबसे बेशकीमती हीरा लगभग एक करोड़ रूपये से भी अधिक मूल्य का प्राप्त हुआ है। पन्ना में हीरा और पत्थर की खदानें हैं और यहाँ फायर क्ले भी मिलती है।यहाँ हीरे की चमक का दूसरा पहलू भी है। खदान से औद्योगिक प्रदूषण निकलता है और इसे केन नदी में मिला दिया जाता है। इससे नदी प्रदूषित हो रही है। खदान के हजार से ज्यादा कामगारों के लिए ईंधन और चारे की जरूरत की वजह से वनों पर भारी दबाव पड़ रहा है।

मध्यप्रदेश का प्रमुख धार्मिक और पर्यटन केन्द्र केन नदी के किनारे स्थित है। जो विश्व संरक्षित सम्पदा है। यहाँ पर प्रदेश का एक मात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है।

रनेह प्रपात


छतरपुर जिले में केन नदी रनेह नामक जलप्रपात का निर्माण करती है। यह प्रपात छतरपुर पन्ना मार्ग, टौरिया टेक से 15 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व दिशा में स्थित है। जहाँ यह प्रपात है वहाँ रंग-बिरंगे पत्थर पाये जाते हैं। इस प्रपात के बीचों-बीच एक कुण्ड है। जिसमें तीन ओर से पानी गिरता है। जो केवल एक दिशा से खुला हुआ है। इस प्रपात की विशेषता यह है कि बहते हुए जल के मध्य में लाल ओर काले रंग के प्राकृतिक पत्थर की शिलाएँ दृष्टिगोचर होती हैं जो प्रपात की सुन्दरता में चार चाँद लगाती हैं. सूर्योदय एवं सूर्यास्त में रनेह प्रपात को देखना एक रोमाचंक अनुभव से गुजरने जैसा है। हालांकि यह प्रपात बारहमासी नहीं है। इसे केवल वर्षा एवं शरद ऋतु में ही देखा जा सकता है। केन नदी का यह महत्वपूर्ण प्रपात है।

बुन्देलखण्ड प्रपातों की मनोरम भूमि है। झरने हमें निर्मलता और गतिशीलता का संदेश देते हैं। हमें जीवन में जलधारा जैसा मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। सच कहा जाय तो समूचा विन्ध्य निर्मल निर्झरणियों, सुरम्य जल प्रपातों और नाना प्रकार की नदियों के बाहुपाश में अलिंगनबद्ध है। अतीत को अपने मानस पटल में छिपाये धार्मिक, पौराणिक एवं स्वतंत्रता संग्राम के महत्व के यह नयनाभिराम और प्राकृतिक सौंदर्य के खजाने आज भी विन्ध्य की उपत्यकाओं में विद्यमान हैं।

राजगढ़ महल


केन के किनारे राजगढ़ महल है, जो पन्ना-छतरपुर मार्ग में स्थित चन्द्रनगर गाँव से एक किलोमीटर दूरी पर राष्ट्रीय उद्यान के किनारे स्थित है।

खजुराहो


खजुराहों के भव्य मंदिरों ने आज इसे विश्व के प्रमुख पर्यटन स्थलों में जगह दिलाई है। ये मंदिर हिन्दू शिल्प तथा स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूनें हैं। इन मंदिरों को चन्देल राजाओं ने सन् 950 से 1050 के मध्य बनवाया था। कुल 85 मंदिरों में से आज केवल 22 ही शेष बचे हैं, जो कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ कलात्मक अजूबों में माने जाते हैं। यहाँ के मंदिरों को मुख्य रूप से तीन भागों (अर्थ मण्डप, मण्डप एवं गर्भ गृह में बाँटा जा सकता है।

इन मन्दिरों को तीन समूहों में विभक्त किया जा सकता है। इन मंदिरों में कन्दरिया महादेव, चौसठ योगिनी मन्दिर, चित्रगुप्त मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, मतंगेश्वर मंदिर, हनुमान प्रतिमा, वराह मंदिर, ब्रह्म मंदिर, वामन मंदिर, जवारी मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, आदिनाथ मंदिर, दूल्हादेव मंदिर, घण्टई मंदिर हाल ही में उत्खनन में प्राप्त बीज मण्डल शिव मंदिर आदि दर्शनीय हैं।

केन नदी से 60 किलोमीटर दूर छत्रसाल के नाम पर बसा छतरपुर है जो मुगल काल में शौर्य का प्रतीक रहा है।

केन की सहायक व्यारमा नदी दमोह से 21 किलोमीटर दूरी पर सागर-जबलपुर मार्ग पर स्थित है। यहाँ गुरैया नदी और व्यारमा नदी का संगम स्थल है। फरवरी में तीन दिवसीय नोहटा उत्सव भी मनाया जाता है। नोहटा गाँव से सड़क किनारे कल्चुरी कालीन नोहलेश्वर शिव मंदिर स्थित है। जिसे कल्चुरी नरेश युवराज देव (प्रथम) की रानी नोहला देवी ने निर्मित कराया था। इसका निर्माण काल 10 वीं शताब्दी है। यहाँ के राजा और रानी दोनों ही शैव उपासक थे। कल्चुरी स्थापत्य कला की यह बेजोड़ कृति मनमोहक, ऐतिहासिक और पुरा वैभव से परिपूर्ण है।

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