गोमती भी सिसक रही है

गोमती नदी अब मैली हो गई है
गोमती नदी अब मैली हो गई है

जौनपुर। अब गोमती नदी में साफ-सुथरा जल प्रवाहित नहीं होता बल्कि पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करने वाला गंदा पानी बहता है। इसमें नालियों और सीवर से निकलने वाली गंदगी ही बहती है। आदि गंगा कहलाने वाली गोमती भी गंगा की तरह सिसक रही है। गोमती का उद्भव किसी पर्वत से नहीं हुआ है जो इसमें साफ सुथरा जल दूसरी पहाड़ी नदियों की तरह पूरे वर्ष भर प्रवाहित होता रहे। इसके जल-प्राप्ति के स्रोतों में बारिश का पानी अथवा मानसूनी जल, अंडर ग्राउंड पानी अथवा भूमिगत जल, नहरों का जल और नगरों का मलीय जल है। गोमती नदी के आस-पास के क्षेत्रों में वर्ष 2005 ई. के बाद पर्याप्त मानसूनी वर्षा न होने की वजह से इसका अस्तित्व खतरे में है। गौरतलब है कि गोमती नदी की उत्पत्ति गोमत ताल से हुई है। इसे फुलहर झील के नाम से भी जाना जाता है। गोमती नदी की उत्पत्ति की जगह पीलीभीत के माधोटांडा के पास है।

यह नदी पीलीभीत से निकलकर लगभग 900 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गाजीपुर जनपद के कैथी, सैदपुर में गंगा नदी में मिल जाती है। गोमती नदी कहीं भी सीधी नहीं बहती है। घूमती हुई बहने के कारण पहले इसका नाम घूमती नदी था। कालांतर में घूमती नदी, गोमती नदी के रूप में जानी जाने लगी। कैथी, सैदपुर दोनों नदियों गंगा और गोमती का संगम स्थल है। दोनों नदियों के संगम स्थल पर ही मार्कण्डेय महादेव का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है। जौनपुर में प्रवाहित होने वाली सई नदी भी गोमती में मिल जाती है। इसके बावजूद गोमती नदी में पर्याप्त जल नहीं है। दरअसल जौनपुर में गोमती नदी में बहने वाले पानी से बहुत पहले सन् 1982 ई. में भीषण बाढ़ आई थी। लेकिन पिछले 6 वर्षों, सन् 2005 ई. के बाद से इस नदी को मानसूनी जल मिल नहीं रहा है। यही कारण है कि भूमिगत जल के बहाव का कोई भरोसा नहीं है। समुचित वर्षा न होने की वजह से नहरें भी सूखी पड़ी हुई हैं। ऐसे में गोमती नदी में महज इसके किनारों पर स्थित नगरों का प्रदूषित जल ही इसका प्रमुख जलीय स्रोत है।

इस नदी के किनारे पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के अलावा लखीमपुर खीरी, सीतापुर, सुल्तानपुर और जौनपुर शहर बसे हुए हैं। इन नगरों में बनने वाले घरों की सबसे बड़ी समस्या जल निकासी की है। स्थानीय पंचायतों और सरकारों ने सीवर का गंदा पानी, जीवन प्रदायिनी नदियों में ही गिराने का फैसला किया है। पहले और कोई दूसरी व्यवस्था संभव भी नहीं थी। प्राचीन काल से ही नदियों के किनारे सभ्यताएं विकसित हुई हैं। पहले राजतंत्र नदियों को संरक्षण प्रदान करते थे। आज देश में संसदीय लोकतंत्र प्रणाली विकसित है लेकिन नदियों के जल के परिशोधन की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है। कुछ ऐसा ही गोमती के साथ भी है। इसमें नगरों का मल-जल तो बहता ही है, इसके साथ ही औद्योगिक इकाइयों का स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जल भी खूब बहता है। गोमती के किनारे बसे नगरों में संपन्नता है संपन्नता की वजह से आभूषणों की ढेर सारी दूकानें यहाँ हैं। सोने और चाँदी की सफाई में प्रयुक्त जल की निकासी भी गोमती नदी में होती है।

जौनपुर स्थित टी डी कालेज में भूगोल विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं पर्यावरण मामलों के जानकार डॉ. डी पी उपाध्याय कहते हैं कि किसी भी कीमत पर सरकारी आदेश एवं नागरिक-चेतना द्वारा आभूषणों की दूकानों पर साफ-सफाई में प्रयुक्त जल को गोमती अथवा किसी भी दूसरी नदी में गिराने पर शीघ्र ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए। आभूषणों की दूकानों पर उपयोग में लाए गए जल से नागरिकों में गंभीर बीमारी के उत्पन्न होने का खतरा हमेशा बना रहता है। डॉ. उपाध्याय कहते हैं कि चलिए आदमी तो जल को शुद्ध कर सकता है लेकिन पशुओं के लिए पीने वाले पानी का बुरा हाल है। उनका तो यहां तक कहना है कि यदि नदियों का जलीय प्रदूषण समाप्त हो जाए तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पर नियंत्रण पाया जा सकता है। बहुत पहले गाए हुए इस फिल्मी गाने, ‘पानी रे पानी तेरा रंग कैसा?’ पर गौर फरमाएं। आज गंदगी के कारण गोमती नदी का पानी काला पड़ चुका है। वर्तमान में यह न तो पीने योग्य रह गया है और न ही हम इसका उपयोग नहाने के लिए ही कर सकते हैं। नदियों ने हमें जीवन दिया है और हम हैं कि हमने नदियों; खासकर गोमती की बर्बादी में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
 

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