गोविन्द वन्य जीव एवं पशु विहार भी तस्करों के निशाने पर

21 Feb 2016
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सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की सीमा से लगा हुआ गोविन्द वन्य जीव पशु विहार में जंगली पशुओं की तस्करी जारी है। बताया जा रहा है कि यहाँ पर अन्तरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्करों का गिरोह कई वर्षों से अपनी पैठ बनाए हुए हैं। हालांकि विभागीय अधिकारी खानापूर्ती के लिये गिरफ्तारी तो कर देते हैं, वनस्पति वन्य जीव तस्करी बदस्तूर जारी है।

काबिलेगौर हो कि विगत पाँच वर्षों में 22 तस्करों से 20 क्विंटल उच्च हिमालयी क्षेत्र की बहुमूल्य औषधीय पादप- अतीश, पंजा, जटा मासी, कुटकी, मीठा, शालमपंजा, धूपढ़ाड़ी एवं दंदासे के दस बोरे पकड़े जा चुके हैं। इसी दौरान वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो की मदद से अपर यमुना वन प्रभाग के वनाधिकारी ने मय फोर्स के साथ तस्करों से नौगाँव के पास विलुप्त प्रायः प्रजाती के हिमालयी उद्विलाव की एक खाल व घुरल, काकड़ की 20 खालें बरामद की थी।

विभागीय आँकड़े बताते हैं कि विगत तीन वर्षों में वन्य पशुओं की गणना के अनुसार इस पार्क में गुलदारों की संख्या जहाँ 32 थी वहीं अब 27 ही रह गए। इसी प्रकार भूरा भालू 17 में से केवल 04, कस्तूरी मृग 114 में से मात्र 67 जबकि काला भालू 198 में से 171 ही शेष रह गए। घुरड़ भी 377 में से 348 शेष हैं, इसी प्रकार भरल 167 में से मात्र 97 ही बचे हैं।

ज्ञात हो कि 957.96 वर्ग किलोमीटर में फैले पशु विहार के अन्तर्गत 42 ग्राम आते हैं। तस्कर इन ग्रामीणों का वन्य जीव तस्करी में उपयोग करते हैं। पकड़े जाने पर स्थानीय लोगों को ही कानून के शिकंजे में फँसाया जाता है। असली गिरोह को अब तक विभाग गिरफ्तार करने में नाकाम ही साबित हुआ है।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि विकास के नाम पर यहाँ की जनता को हमेशा दुत्कारा ही नहीं गया वरन विकास के लिये वन्य जीव संरक्षण अधिनियम ही आड़े आता रहता है। यही वजह है कि स्थानीय युवाओं का इस्तेमाल बाहर से आने वाले बड़े वन्य जीव तस्कर करते है।

42 ग्रामों के लिये आज तक मोटर मार्ग के नाम से मात्र पैदल मार्ग ही बन पाये हैं वे भी ग्रामीणों के भारी संघर्ष की वजह से बन पाये। अन्यथा गोविन्द वन्य जीव पशु विहार के अन्तर्गत पड़ने वाले 42 ग्रामों के लोग वनों के कानून के बीच पीसते ही जा रहे हैं।

गोविन्द वन्य जीव पशु विहार के उपनिदेशक जी.एन. यादव ने बताया कि पशु विहार में स्वीकृत पदों के सापेक्ष पाँच गुना वन कर्मी कम हैं। इस क्षेत्र में बसे प्रत्येक गाँवों से एक मुखविर नियुक्त करने का प्रस्ताव उन्होंने शासन को भेजा है। कहा कि यदि इस प्रस्ताव को शासन हरी झण्डी दे देता है तो वन्य जीवों की तस्करी पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। वहीं प्रभागीय वनाधिकारी ए.के. त्रिपाठी का मानना है कि मुखवीरों का एक विशेष और सुदृढ़ तंत्र को स्थानीय स्तर पर विकसित करना पड़ेगा।

उल्लेखनीय तो यह है कि कथियान के जंगल एवं जाख बीठ में वन्य जीवों का अवैध शिकार एवं उनके अंगों की तस्करी लगातार जारी है। यद्यपि इस क्षेत्र में विगत दो वर्षों से नई दिल्ली की केन्द्रीय वन्य जीव अपराध बोर्ड की टीम सक्रीय तो है, अलबत्ता वन्य जीवों की तस्करों पर लगाम लगाने में उन्हें भारी मशक्कत करनी पड़ रही है। जबकि वन विभाग के नैटवाड़, मोरी, जरमोला, नौगाँव तथा डामटा व जमुना पुल में वन निकासी चौकियाँ भी मुस्तैद हैं परन्तु ये चौकियाँ मात्र हाथी के ही दाँत भर साबित हो रही है।
 

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