ग्रामीणों ने गढ़ी सामाजिक सफलता की मिसाल

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ओडिशा के आदिवासी बहुल कोरापुट गांव के लोगों को मिली खुले में शौच से राहत पहल
.एजेंसी। कोरापुट कहने को वह देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक के वाशिंदे हैं, जिन्हें बाहरी दुनिया के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन उन्होंने सामाजिक सफलता की एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो दूसरों के लिए अनुकरणीय है। ओडिशा के कोरापुट जिले में कोरापुट और सेमिलिगुदा ब्लॉकों के 11 गांव के 522 घरों में अब पक्के शौचालय बन चुके हैं और इन घरों में रहने वाले लोग खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त हैं।

कोरापुट से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोरापुट ब्लॉक के चंद्रमुंदर गांव की 60 वर्षीय कमला जैन ने बताया, ‘हमारे गांव के सभी 96 घरों में अब शौचालय है और खुले में शौच अब गुजरे जमाने की बात हो गई है। ग्रामीण (अधिकतर आदिवासी) अब शौचालय का प्रयोग करते हैं और यहां खुले में शौच पर सख्त मनाही है।’

कठिन थे रास्ते


कोरापुट ब्लॉक के चंद्रमुंदर सहित चकरलिगुदा, खापारापुट, गांधीपुट, स्टेशन सुकु, मालुगुडा और हल्दीपुट तथा सेमिलिगुदा ब्लॉक के बांदगुदा, डोरागुदा, जागमपुट और सादाम अब खुले में शौच मुक्त क्षेत्र बन गए हैं। गांवों में शौचालय संस्कृति को विकसित करना आसान नहीं था क्योंकि यहां रहने वाले सभी लोगों को खुले में शौच की आदत थी और वह इसके दुष्प्रभावों से भी वाकिफ नहीं थे। ग्रामीणों को खुले में शौच के बुरे प्रभाव से सचेत करने के लिए जिला प्रशासन को कई बार जागरुकता शिविरों का आयोजन करना पड़ा।

ऐसे किया लोगों को राजी


जिला जल और स्वच्छता अभियान (डीडब्ल्यूएसएम), कोरापुट के संयोजक देबाशीष पटनायक ने बताया, ‘जब हमने ग्रामीणों से अपने घरों में व्यक्तिगत शौचालय निर्माण करने के लिए संपर्क किया तब उनकी प्रतिक्रिया नकारात्मक थी। ग्रामीण शौचालय निर्माण के बिल्कुल खिलाफ थे।’ उन्होंने बताया, ‘हम दृढसंकल्प थे और हमने कई नुक्कड़ नाटकों, पोस्टर और सचित्र प्रस्तुतियों के जरिए ग्रामीणों को खुले में शौच के बुरे प्रभाव से अवगत कराया।’ पटनायक ने बताया कि ग्रामीणों को जब यह एहसास हो गया कि वे खुले में शौच की प्रवृत्ति के कारण ही डायरिया और मलेरिया जैसी विभिन्न तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं तो उन्होंने हमारे सुझाव को गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।

स्वच्छ भारत अभियान से मिली मदद


शौचालयों का निर्माण ‘निर्मल भारत अभियान’ (दो अक्टूबर से नाम बदलकर ‘स्वच्छ भारत अभियान’) के तहत किया गया और प्रत्येक के निर्माण में 10,000 रुपये की लागत आई। इसमें 4,500 रुपए मनरेगा के तहत 4,600 रुपए डीडब्ल्यूएसएम के तहत प्रदान किए गए। इनमें लाभार्थियों का योगदान 900 रुपये था।
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