ग्रामसभा- लोकतंत्र की पहली सीढ़ी

भारतीय ग्रामीण समुदाय की प्रमुख विशेषता ग्रामसभा है। ग्रामसभा एक ऐसी सभा है जिसके माध्यम से ग्रामीणसमुदाय के आंतरिक और बाह्य तनावों का निपटारा, ग्रामों में बेहतर सुशासन व्यवस्था और ग्रामों का विकास किया जा सकता है।

महात्मा गांधी का सीधा-सा तर्क था कि जब तक गांवों का विकास नहीं होगा तब तक सशक्त एवं समृद्ध भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है। संविधान निर्माण के वक्त ही गांधीजी के ग्राम स्वराज पर चर्चा हुई और संविधान के अनुच्छेद 40 में संशोधन करके पंचायत को जोड़ा गया। गाँधीजी की ग्राम स्वराज लोकतंत्र की पहली सीढ़ी ग्रामसभा ही है। ग्रामसभा की भागीदारी के बिना किसी भी योजना का सफल क्रियान्वयन नहीं हो सकता है। यदि ग्रामसभाओं को सशक्त एवं क्षमताशील बना दिया जाए तो भारत का भविष्य स्वस्थ, विकसित एवं खुशहाल रूप में सामने आएगा। यही कारण है कि सरकार ग्रामसभाओं को सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है।ग्रामसभा- लोकतंत्र की पहली सीढ़ी डाॅ. बृजेश कुमार की अवधारणा को पूरा करने के लिए आजादी के बाद ही भारत के गांवों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास शुरू हुए और आज किसी न किसी रूप में जारी हैं।

भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन के बाद पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। पंचायतें/सभाएं अधिक सशक्त एवं क्षमताशील हुई। जिन राज्यों में 20 लाख से कम जनसंख्या है उनके लिए क्षेत्र पंचायत इकाई गठित करने का मामला राज्य सरकार पर छोड़ा गया है। गांव के सभी मतदाताओं को मिलाकर ग्रामसभा का गठन किया जाता है। कम से कम 500 की आबादी पर एक ग्राम पंचायत का गठन होता है। ग्रामसभा ही ग्राम पंचायत के कार्यों की निगरानी तथा मार्गदर्शन करती है। सरकार पंचायती राज के आंकडे़ गिनाते-गिनाते नहीं थकती है। परंतु एक कड़वा सत्य देखने में आता है कि कहने को गांवों में पंचायतीराज लागू है लेकिन सरकार में ही बैठेलोग अलग से यह कहने से नहीं चूकते हैं कि देखिए! पंचायतीराज किस तरह भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। उनके लिए यह लोक नियंत्रित प्रशासन को असफल बनाने का माध्यम बन गया है। वस्तुतः अभी जो प्रधान बनाए गए हैं उनकी स्थिति एम.एल.ए. जैसी ही है। जिस तरह एम.एल.ए. पर जनता का नियंत्रण पांच साल मेंएक बार वोट डालने तक सीमित है उसी तरह गांव में आम जनता की प्रधान के ऊपर कुछ नहींचलती। काननू के मुताबिक ग्रामसभा की बैठकें होनी चाहिए लेकिन प्रधान को उसी कानून में इतनी छूट है किवह अपने कुछ भ्रष्ट साथियों के साथ मिलकर सब खानापूर्ति कर देते हैं। दूसरी तरफ अगर कोई प्रधान ईमानदारी से काम करना चाहे तो उसे इलाके के बी.डी.ओ., एस.डी.ओ., सी.डी.ओ. काम नहीं करने देते। गांव के फडं पर इन लोगो का शिकंजा इतना खतरनाक है कि वे चाहे तो गांव की ओर एक पैसा न जाने दें।

इन समस्याओं को दूर करने के लिए लोकराज आंदोलन (स्वराज अभियान) द्वारा समाज, सरकार और कानून के जानकारों के साथ गहन विचार-विमर्श के बाद पंचायती राज कानूनों में आवश्यक संशोधन के लिए यह दस्तावेज तैयार किया गया है। इससे ग्रामसभाओं को मजबूत बनाने के लिए यथासम्भव मजबूत कानून की अवधारणा स्पष्ट की गई हैः-

1. वे सभी कार्य जो गांव मे किए जाने हैं और जिसका अंतर्संबंध किसी अन्य ग्राम से नहीं है, गांव के स्तर पर किए जाएं। (ग्रामसभा) वे कार्य जो गाँव के स्तर पर नहीं किए जा सकते और ऐसे काम जो इस स्तर पर नहीं हो सकते उन्हें ब्लाॅक-स्तर, जिला-स्तर या राज्य-स्तर पर स्थिति अनुसार हस्तांतरित कर देना चाहिए। शासन के हर स्तर के लिए ऐसे कार्य की एक सूची बना ली जाए। साथ ही किसी कार्य से संबंधित सभी कर्मचारी और धनराशि संबंधित स्तर की शासन इकाई के अधीन होगी।
2. इसी प्रकार सभी संस्थाएं जैसे स्कूल, अस्पताल, दवाखाना, इत्यादि जो किसी एक गाँव के निवासियों के लिए है, उसे केवल ग्राम द्वारा चलाया जाए अन्यथा जिला या राज्य-स्तर पर चलाया जाए।
3. भू-उपयोग में बदलाव भी ग्रामसभा ही तय करेगी।
4. ग्रामसभा अपने प्राकृतिक संसाधनों पर पूरा सामुदायिक नियंत्रण करेगी।
5. सभी भूमि हस्तांतरण और संबंधित रिकार्ड की देख-रेख ग्रामसभा ही करेगी।
6. इसी तरह सड़क, गलियां, जन शौचालय इत्यादि जो पूरी तरह किसी एक गाँव की सीमा के भीतर हो, उसकी देख- रेख की जिम्मेदारी ग्राम स्तर पर दी जाए अन्यथा ब्लाॅक, जिला या राज्य को सौंप दे।
7. राज्य के राजस्व का कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सा एकमुश्त राशि के रूप में तथा किसी योजना विशेष से संबंद्ध किए बगैर ही सीधे ग्रामसभाओं को दिया जाए। ग्राम, ब्लाॅक, जिला स्तर की व्यवस्था से संबधित राज्य सरकार की योजनाएं समाप्त कर दी जाएं तथा पंचायतों के लिए एकमुश्त राशि प्रदान की जाए।
8. ग्राम स्तर पर सभी निर्णय ग्रामसभा द्वारा ही लिए जाएंगे। ग्रामसभा द्वारा लिए गए फैसलों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी ग्राम सचिव की होगी। ग्राम सचिव की नियुक्ति ग्रामसभा द्वारा की जाएगी। ग्रामसभा के निर्णय अंतिम माने जाएंगे। यदि उस निर्णय में कोई तकनीकी त्रुटि न हो या उससे किसी कानून का उल्लंघन न होता हो। यदि ग्रामसभा के किसी निर्णय को लेकर कोई कानूनी विवाद होता है तो इसका निपटारा लोकपाल ओम्बड्समैन द्वारा किया जाएगा।
9. ग्रामसभा की बैठक महीने में कम से कम एक बार अवश्य होगी। बैठक का एजेंडा सचिव द्वारा तैयार एवं तय किया जाएगा और बैठक से एक सप्ताह पहले ग्रामसभा के सभी लोगों के बीच इसे वितरित किया जाएगा। ग्रामसभा के सदस्य यदि किसी मुद्दे को एजेंडे मे डलवाना चाहे तो बैठक से 10 दिन पहले लिखित या मौखिक तौर पर सचिव को दे सकते हैं। प्रत्येक बैठक की शुरुआत आपसी सहमति से तय की जाएगी कि मुद्दों पर विचार-विमर्श एवं चर्चा का क्रम क्या होगा।
10. सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण इस व्यवस्था में दो तरह से होगा-
11. वे कर्मचारी जिनकी नियुक्ति अलग- अलग स्तर के शासन स्तर पर ब्लाॅक पंचायत, जिला पंचायत आदि द्वारा सीधे की गई हो।
12. वे कर्मचारी जिनकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की गई थी (लेकिन नई व्यवस्था के तहत) उन्हें ग्राम, ब्लाॅक, जिला शासन व्यवस्था के अधीन स्थानान्तरित कर दिया गया है।
13. यदि ग्रामसभा के पास किसी प्रकार की अनियमितता की जानकारी पहुंचती है या अन्य कारण से, ग्रामसभा चाहे तो किसी मामलें मे जांच करा सकती है। ग्रामसभा चाहे तो इस जांच के लिए अपनी कोई समिति बना सकती है या किसी सक्षम अधिकारी को जांच के लिए कह सकती है जो एक निश्चित समय-सीमा के अंदर जांच रिपोर्ट ग्रामसभा को सौंपेगी। ग्रामसभा इस रिपोर्ट को पूर्णतः या आंशिक रूप से स्वीकार या खारिज कर सकती है या उस पर यथोचित कदम उठा सकती है।
14. ग्रामसभा की 90 प्रतिशत महिला सदस्यों की सहमति के बिना शराब की दुकान का परमिट नहीं दिया जाएगा।
15. रिकार्ड में पारदर्शिता - ग्राम, ब्लाॅक, जिला पंचायत के सभी आंकड़े सार्वजनिक हो। प्रत्येक सप्ताह दो निर्धारित दिवसों पर निश्चित समय पर कोई भी व्यक्ति बिना आवेदन डाले इन रिकार्ड्स को देख सकता है। यदि कोई रिकार्ड की प्रति चाहता है तो वह निर्धारित शुल्क जमा कर प्राप्त कर सकता है।

ग्रामसभा के कार्य


1. राज्य सरकार के बजट में प्रत्येक ग्राम, ब्लाॅक, जिला स्तर पंचायत को राज्य वित्त आयोग द्वारा फार्मूला के अनुसार धनराशि उपलब्ध कराई जाएगी।
2. ग्रामसभा अपने गांव के लिए वार्षिक योजना बनाएगी।
3. ग्रामसभा में होने वाले किसी कार्य के लिए भुगतान ग्रामसभा की संतुष्टि बिना नहीं किया जाएगा। यदि ग्रामसभा असंतुष्ट है तो वह भुगतान रोक सकती है। साथ ही खराब कार्य किए जाने का कारण जानने के लिए जांच करा सकती है और जवाबदेही भी कर सकती है।

अतः निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि यदि ग्रामसभाओं को अत्याधुनिक सुविधाओं एवं अधिकारों से लैस कर दिया जाए एवं ग्रामसभाओं को सशक्त एवं क्षमताशील बना दिया जाए तो भारत का भविष्य स्वस्थ, विकसित एवं खुशहाल तस्वीर के रूप में सामने उभर कर आएगा। यही वजह है कि सरकार (केन्द्र एवं राज्य) ग्रामसभाओं को सशक्त बनाने के लिए लगातार प्रयासरत है। ग्रामसभा की भागीदारी के बिना किसी भी योजनाका सफल क्रियान्वयन नहीं हो सकता है अर्थात लोकतंत्र की पहली सीढ़ी ग्रामसभाएं ही हैं।

(लेखक प्यारी देवी राजित स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सहजनवां, गोरखपुर मेंअसिस्टेंट प्रोफेसर (वाणिज्य) के पद पर नियुक्त हैं।)
ई-मेल: drbrijeshkumar44@gmail.com

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