गरीब ही क्यों धकेले जाएं
माना की भारत सरकार ड्रिप सिंचाई व्यवस्था को आगे बढ़ा रही है, लेकिन हकीकत में तो इससे बड़े उद्योग ही फल-फूल रहे है। और छोटे किसान पीछे धकेल दिए गए हैं।
यूँ तो ड्रिप सिंचाई अनेक किसानों के दुखों का निवारण है, लेकिन इसके सामने एक बड़ी बाधा है कि यह काफी महंगा पड़ता है। एक हेक्टेयर जमीन की सिंचाई में 20 हजार से 40 हजार रुपये तक की लागत आ जाती है। भारत सरकार ड्रिप सिंचाई में निजी क्षेत्र के उद्यमियों को प्रोत्साहित कर रही है, जिसके लिए इसकी क्रियान्वयन एजेंसी, बागवानी कृषि निदेशालय इसके प्रचार-प्रसार में लगी हैं। इसमें रियायत (सब्सिडी) का भी प्रावधान है, जिसे एक अवधि के बाद में हटा लिया जाएगा।
इस व्यवस्था की खामियां
गुजरात में ड्रिप के उपयोग को प्रोत्साहित करने में जुटी संस्था ’आगा खाँ रूरल सपोर्ट प्रोग्राम (एकेआरएसपी) के सीईओ अपूर्व ओझा के अनुसार, वास्तव में सरकारी रियायत के कारण ही इसकी कीमत कम नहीं होती है। चूँकि उन्हें सरकार से वादे के अनुसार एक निश्चित धन राशि मिल जाती है, अत: वे इस व्यवस्था को सस्ता करने और किसानों की सहुलियत के अनुसार इसे ढालने का कोई प्रयास नहीं करते हैं।
किसान रियायत पाएं तो कैसे पाएं?
सरकारी रियायत से ड्रिप सिंचाई व्यवस्था
बनाना वाकाई एक टेढ़ी खीर है
किसान कृविअ/बाविअ को आवेदन करते हैं
·
किसान कृविअ/बाविअ सेइसकी योग्यता का
प्रमाण पत्र प्राप्त करते हैं
·
स्थानिय ड्रिप व्यवस्था के निर्माता से सम्पर्ककरते हैं
·
निर्माता इसकी लागत राशि का
चिट्ठा बनाकर देता है
·
किसान इसे जिकृअ के पास जमा करते हैं
·
जिकृत वित्तीय सहायता की मंजूरी देता हैं
·
बैंक से ऋण प्राप्त करते हैं
·
निर्माता के पूरी राशि का भुगतान
कोई रियायत नहीं
·
कृविअ को रसीद की एक प्रति देते हैं
·
कृविअ जिकृत को इसकी मंजूरी देता है
·
डीईओ निर्माता को इसके रियायत की राशि जारीकरता है
कृविअः कृषि विकास अधिकारी
बाविअः बागवानी विकास अधिकारी
जिकृअः जिला कृषि अधिकारी