ग्रीन हाउस प्रभाव एक वैश्विक समस्या (Green House Effect : a global problem)


सारांश


पृथ्वी की प्राकृतिक जलवायु निरन्तर बदलती रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव के द्वारा पृथ्वी की सतह गर्म हो रही है। ग्रीन हाउस प्रभाव सूर्य की किरणें कुछ गैसों और वायुमण्डल में उपस्थित कुछ कणों से मिलकर होने की जटिल प्रक्रिया है। कुछ सूर्य की ऊष्मा वायुमण्डल से परावर्तित होकर बाहर चली जाती हैं। लेकिन कुछ ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा बनाई हुई परत के कारण बाहर नहीं जाती है। अतः पृथ्वी का निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है तथा यह जीवन को प्रभावित करती है। ग्रीन हाउस प्रभाव के बिना पृथ्वी का औसत तापमान वर्तमान सामान्य औसत 15डिग्री से.ग्रे. के स्थान पर- 18डिग्री से.ग्रे. होगा। फिर भी वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों जैसे CO2, CH4, N2O, O3 और जलवाष्प तथा हैलोकार्बन की बढ़ी हुई मात्रा समस्या उत्पन्न करती हैं।

Abstract : The earth’s natural climate has always been and still constantly changing. Greenhouse effect is warming of the surface of the earth by a complex process involving sunlight, trace gases and particles in the atmosphere. Some of the heat energy escapes to the space but much of it is trapped by the layers of atmospheric greenhouse gases to outer space and get absorbed. Thus the earth’s lower atmosphere heats up. The greenhouse effect is a natural phenomenon and vital to life. Without the greenhouse effect the earth’s average temperature would be -180C, instead of current average temperature of 150C. However, problem arise when the atmospheric concentration of greenhouse gases such as CO2, CH4, N2O, O3 halocarbons and water vapour increases.

ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं - 1. विकिरण ऊर्जा (सौर ऊर्जा), 2. ऊष्मीय ऊर्जा, 3. रासायनिक ऊर्जा (कार्बनिक यौगिकों के बन्ध), 4. यांत्रिक ऊर्जा (दो प्रकार स्थैतिक ऊर्जा (संचित ऊर्जा) और गतिज ऊर्जा (उपयोगी ऊर्जा)। सूर्य पृथ्वी पर जीवों के लिये सभी प्रकार के ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य में नाभिकीय संलयन के द्वारा बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। जो सभी दिशाओं में विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में विकृत होती है। जो कि सौर विकिरण कहलाती हैं। इसमें बहुत कम भाग पृथ्वी के वायुमंडल तक पहुँचता है। विकिरण ऊर्जा की दृश्य सीमा की तरंग दैर्ध्य 390 एन.एम. से 720 एन.एम. होती है। हम सूर्य से विद्युत चुम्बकीय विकिरण के द्वारा 1,73000×1012 वाट ऊर्जा प्राप्त करते हैं। जिसमें से

 

30%

विकिरण ब्रह्माण्ड (स्पेस) में परावर्तित हो जाता है।

23%

विकिरण जल चक्र में जल वाष्प और नमी में प्रयोग हो जाता है।

47%

विकिरण वायुमंडल, पृथ्वी तथा समुद्र के द्वारा अवशोषित होता है।

1%

से कम विकिरण हवा तथा वायु प्रवाह में प्रयोग होता है।

केवल लगभग 0.01% विकिरण प्रकाश संश्लेषण में प्रयोग होता है।

 

ग्रीन हाउस प्रभाव; सामान्य धारणा - ग्रीन हाउस प्रभाव वह प्रभाव है जिसमें वायुमंडल में उपस्थित सूर्य प्रकाश विकिरण गैसों तथा कणों की जटिल क्रियाओं के द्वारा पृथ्वी की सतह तथा निम्न वायुमंडल गर्म हो जाता है। जब निम्न तरंग दैर्ध्य के विकिरण यू.वी. 320 से 290 एन.एम., दृश्य स्पेक्ट्रम तथा कुछ निम्न इफ्रारेड सूर्य से पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं तो इसका तीसरा भाग ब्रह्माण्ड में परावर्तित हो जाता है तथा बचे हुए भाग में कुछ वायुमंडल के द्वारा अवशोषित हो जाता है तथा कुछ पृथ्वी की सतह के द्वारा अवशोषित हो जाता है। (पृथ्वी उच्च तरंग दैर्ध्य के विद्युत चुम्बकीय विकरण निर्गत करती है। यहाँ पृथ्वी एक ब्लैक बॉडी की तरह कार्य करती है। जो एक अच्छा विकरक भी है।) कुछ ऊष्मीय ऊर्जा ब्रह्माण्ड से परावर्तित न होकर वायुमण्डल में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसों के द्वारा अवशोषित हो जाती है जिससे पृथ्वी का वायुमंडल गर्म हो जाता है। यही सामान्य ग्रीन हाउस प्रभाव है।

ग्रीन हाउस प्रभाव का लाभदायक पहलू - सामान्यतः ग्रीन हाउस के बिना पृथ्वी का औसत तापमान- 18डिग्री से.ग्रे. होगा जो कि वर्तमान में 15डिग्री से.ग्रे. है, जिससे सामान्य जीवन संभव नहीं है। पृथ्वी का तापमान सामान्य बनाए रखने का श्रेय ग्रीन हाउस गैसों को है। इनकी मात्रा बढ़ने पर समस्या भी उत्पन्न होती है।

ग्रीन हाउस प्रभाव-नामकरण


ग्रीन हाउस या ग्लास हाउस का प्रयोग ठण्डे देशों में जहाँ वाह्य तापमान अत्यधिक कम होता है। आंतरिक वायुमंडल को गर्म रखने के लिये किया जाता है। इन ग्रीन हाउसों में सूर्य की रोशनी पारदर्शी काँच के द्वारा आती है। प्रतिवर्तित ऊष्मा या रक्त विकिरण आर-पार नहीं हो पाते हैं। क्योंकि रक्त विकरण का कुछ विशिष्ट भाग काँच के द्वारा अवशोषित हो जाता है। इससे ग्रीन हाउस की आंतरिक सतह गर्म रहती है। जो कि पौधों तथा अन्य सामानों के लिये उपयोगी होती है। प्राकृतिक ग्रीन हाउस प्रभाव वायुमंडल के मानक पर यह है कि ग्रीन हाउस और ग्रीन हाउस गैसें ग्रीन हाउस के ग्लास कवच की तरह हैं।

ग्रीन हाउस गैसों के स्रोत-


 

कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2)

यह मुख्य ग्रीन हाउस गैस है। इसके मुख्य स्रोत कोयले का दहन, वनों का कटान, सीमेंट उद्योग।

मेथेन (CH4)

यह दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस है। इसके मुख्य स्रोत-ऑक्सीजन, जीवाणुओं की प्रक्रिया, आंतकि कोयला खदानों में।

नाइट्रस ऑक्साइड (N2O)

यह गैस ग्रीन हाउस प्रभाव में 6% योगदान देती है। इसके मुख्य स्रोत उर्वरक, कोयला दहन।

हैलो कार्बन

यह मानव उत्पादित रासायनिक यौगिक है जिसमें हैलोजन परिवार के तत्व तथा कार्बन और अन्य गैसों से मिलकर हाइड्रो फ्लोरोकार्बन (एचएफसी) परफ्लोरोकार्बन (पीएफसी) और सल्फरहेक्साफ्लोराइड (एस.एफ.6) शामिल है।

सतही ओजोन (O3)

ट्रोपोस्फीयर में उपस्थित यह एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रीन हाउस गैस है। जो औद्योगिक गतिविधियों से निकलती है।

जल वाष्प

यह प्राकृतिक श्वसन, तथा वाष्पीकरण से प्राप्त होती है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने पर वायुमण्डल में इसकी मात्रा बढ़ जाती है।

 

गत दशक में मानव जनित अनियंत्रित औद्योगीकरण, अनियोजित शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि तथा अनेकानेक जीवन-यापन कृत्यों द्वारा वातावरण निरन्तर प्रदूषित होता रहा है। वर्तमान में आवश्यकताओं की पूर्ति की अंधाधुंध दौड़ के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा सामान्य से लगभग 31 प्रतिशत बढ़ गई है जिसके कारण अधिक ऊष्मा निचले वातावरण में समाहित हो रही है, जो ग्रीन हाउस गैसों के सामंजस्य को अव्यवस्थित कर वैश्विक ताप में उत्तरोत्तर वृद्धि उत्पन्न कर रहा है। फलस्वरूप जलवायु को गंभीर रूप से प्रभावित कर अति वर्षा व सूखे जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो रही हैं वर्तमान में पृथ्वी का तापमान औसतन 0.2 डिग्री से.ग्रे. से 0.6 डिग्री से.ग्रे. तक बढ़ा है। जिसके निकट भविष्य में 1.4 डिग्री से.ग्रे. से 5.8 डिग्री से.ग्रे. तक बढ़ने की आशंका है। तापमान वृद्धि के फलस्वरूप ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे, समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा, जिससे कई तटवर्ती शहर जलमग्न हो जायेंगे। ऐसी स्थिति मानव जीवन हेतु विषम होगी। परिस्थितियों को देखते हुए विश्व के अनेक देशों ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सभा (यू.एन.एफ.सी.सी.) के अंतर्गत ग्रीन गैसों के प्रसारण का कम करने की दिशा में संधि की है।

ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी की आवश्यकता- ग्रीन हाउस गैसों के निष्कासन में कमी करना कठिन है परन्तु असंभव नहीं है। बहुत संख्या में अन्तरराष्ट्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर संस्थाएँ इस पर कार्य कर रही हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य जिनके द्वारा इसके निष्कासन को कम किया जा सकता है, यथा-

1. खपत तथा उत्पादन में ऊर्जीय क्षमता की बढ़त होनी चाहिए। नई स्वचलित वाहन तकनीक की आवश्यकता।
2. वाहनों में पूर्ण रूप से ईंधन का दहन होना चाहिए जा कि ठीक रख-रखाव से संभव है।
3. ऊर्जा के नए स्रोतों का प्रयोग करना चहिए जैसे- सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा इत्यादि।
4. उद्योगों से निकलने वाले जहरीले पदार्थों के निष्कासन को कम करन चाहिए।
5. हैलोकार्बन के उत्पादन को कम करना चाहिए जैसे- फ्रिज, एयरकन्डीशन, में पुनः चक्रीय रसायनों का प्रयोग करना चाहिए।
6. ईंधन वाले वाहनों का प्रयोग कम करना चाहिए।
7. वनीकरण को बढ़ावा देना चाहिए तथा जंगलों को कटने से रोकना चाहिए।
8. समुद्रीय शैवाल बढ़ाना चाहिए ताकि प्रकाश संश्लेषण के द्वारा कार्बन डाइआक्साइड का प्रयोग किया जा सके।

उपरोक्त सभी प्रयास विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा किये जा रहे हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रीन हाउस प्रभाव को कम करके उसके द्वारा उत्पन्न जटिल समस्याओं को रोका जा सकेता है। जिससे गरीबी, सामाजिक असमानता और पर्यावरण बचाव मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से निपटा जा सकता है, ताकि एक बेहतर भविष्य बने।

अवलोकित संदर्भ


1. जैकब, डैनियल जे. (1999) वायुमण्डलीय रसायन-एक परिचय, अध्याय-2, ग्रीन हाउस प्रभाव, प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस।
2. डे, ए.के. (2001) पर्यावरण रसायन, न्यू, एज इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली।
3. www.globalgiving.org
4. www.fightgolabalwarming.com

लेखक परिचय


निरंजनी चौरसिया
एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन शास्त्र विभाग, श्री जयनारायण स्नातकोत्तर महाविद्यालय, लखनऊ 226001 उ.प्र., भारत, dr.niranjanichaurasia19@gmail.com
प्राप्त तिथि-04.07.2016 स्वीकृत तिथि-17.08.2016

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