ग्रीष्मकालीन राजधानी

28 Nov 2019
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ग्रीष्मकालीन राजधानी
ग्रीष्मकालीन राजधानी

अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य और स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के कारण औपनिवेशिक शासक नैनीताल की तुलना यूरोपीय नगरों से करते थे। ब्रिटिशर्स को नैनीताल में यूरोपियनों की मनोरंजन की रुचि तथा ब्रिटिश राज की प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करने की सामर्थ्य का अंदाजा हो गया था। लिहाजा 1862 में नैनीताल को नार्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया गया।

1858 के अन्त तक अंग्रेजों ने देशी राज-रजवाड़ों और साहूकारों की निष्ठापूर्ण स्वामी भक्ति तथा सक्रिय सहयोग के बूते सैनिक विद्रोह को क्रूरता के साथ कुचल दिया था। इसके बाद उत्तराखण्ड समेत सम्पूर्ण भारत में ब्रिटिश शासन की जड़ें और अधिक मजबूत हो गई थीं। 1857 की क्रान्ति के अनुभवों से ब्रिटिशर्स की नैनीताल के प्रति आत्मीयता और बढ़ गई। हालांकि उन्हें गदर के दौरान की यादें कचोटती तो थी, पर शरणार्थी के रूप में उनके नैनीताल प्रवास के अनुभव यादगार थे। अब यूरोपियन को अपने और अपने बच्चों के लिए नैनीताल हर दृष्टि से उपयुक्त और सुरक्षित लगने लगा था। उस दौर में भारत की राजधानी कोलकाता थी। गर्मियों के मौसम में साधन सम्पन्न अंग्रेज शिमला चले जाते थे। यूरोपियन को अब नैनीताल के रूप में शिमला से कहीं ज्यादा सुन्दर और सुरक्षित जगह मिल गई थी।

अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य और स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के कारण औपनिवेशिक शासक नैनीताल की तुलना यूरोपीय नगरों से करते थे। ब्रिटिशर्स को नैनीताल में यूरोपियनों की मनोरंजन की रुचि तथा ब्रिटिश राज की प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करने की सामर्थ्य का अंदाजा हो गया था। लिहाजा 1862 में नैनीताल को नार्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की ग्रीष्मकालीन राजधानी बना दिया गया। उसी साल स्टोनले के पास स्थित वर्तमान जी.बी.पंत अस्पताल के अध्यासन वाले बंगलों में से एक बंगला लेफ्टिनेंट गवर्नर के आवास के लिए अधिगृहीत कर लिया गया। इसके फौरन बाद अनेक सरकारी कार्यालय भी नैनीताल आ गए। शुरुआत में ग्रीष्मकालीन राजधानी के सचिवालय में एक सचिव और कुछ उप सचिव थे। लिपिक वर्ग मालरोड के एक घर में सचिवालय का कार्य निपटाते थे। वित्त विभाग मैनर हाउस से संचालित होता था। धीरे-धीरे सचिवालय के कर्मचारियों की संख्या बढ़ती गई। मल्लीताल स्थित पैवेलियन भवन को सचिवालय के लिए अधिगृहीत कर लिया गया। बाद में सचिवालय में बड़ी संख्या में कर्मचारी आ गए। हर साल मार्च के आखिरी हफ्ते में सचिवालय नैनीताल आ जाता था। पहले नवम्बर को आगरा वापस चला जाता था। सचिवालय का सामान लाने-ले जाने का काम कुलियों द्वारा होता था। 1835 से 1868 तक नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की राजधानी आगरा थी।

नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनते ही नैनीताल के विकास को एकाएक पंख लग गए। यहाँ निर्माण कार्यों में तेजी आ गई। किराए के प्रयोजनार्थ मकान बनने लगे। आबादी बढ़ी और चहल-पहल भी। व्यापार फला-फूला। इसी बीच तालाब के किनारे असेम्बली रुम्स बनकर तैयार हो गया। इसे ‘नाचघर’ भी कहा जाता था। असेम्बली रुम्स का उपयोग नगर पालिका कमेटी की बैठकों, पार्टियों, नाच-गाने के साथ थियेटर के रूप में होने लगा। तब यहाँ यातायात के साधन सीमित थे। झम्पानी, डांडी, हाथ रिक्शा और ठंडी सड़क से घोड़ों की सवारी के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं था। लेफ्टिनेंट गवर्नर विशेष डांडी से राजभवन आते-जाते थे।

‘कुमाऊँ आयरन कम्पनी’ और कर्नल ड्रमण्ड की कम्पनी ‘ड्रमण्ड एण्ड को’ मिलकर नवम्बर 1862 में ‘उत्तरी भारत कुमाऊँ आयरन वर्क्स कम्पनी लिमिटेड’ हो गई थी। यह कम्पनी पहले ईस्ट इण्डिया रेलवे और बाद में अवध एवं रूहेलखण्ड रेलवे को लोहे की आपूर्ति करती थी। कम्पनी खुर्पाताल, कालाढूंगी, रामगढ़ और देचौरी में लोहा बनाती थी।

1865 में तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर एवं चीफ कमिश्नर सर ई-ड्रमॉण्ड ने माल्डन स्टेट में खुद का नया घर बना लिया। जब गवर्नर के तौर पर उनका कार्यकाल पूरा हो गया तो उन्होंने यह घर 40 हजार रुपए में मोतीराम शाह को बेच दिया। बाद में नए गवर्नर सर विलियम मुझर, सर जॉन स्ट्रॉचे और सर जॉर्ज कूपर इसी भवन में बतौर किराएदार 3600 रुपए सालाना किराए पर रहे। माल्डन स्टेट के राज्यपाल निवास के बगल में राज्यपाल के कारिंदों के लिए स्टाफ क्वाटर्स बनाए गए थे। राज्यपाल के कारिंदों के निवास स्थान को स्टाफ हाउस कहा जाता था।

बसावट शुरू होने के 25 साल के दौरान नैनीताल एक सुव्यवस्थित नगर का रूप ले चुका था। 1867 में नगर का विधिवत स्टेट प्लान बन गया था। पूरे नैनीताल की वैज्ञानिक तरीके से नाप-जोख के बाद स्टेट्स के प्रामाणिक मानचित्र बन गए थे। यह नैनीताल का पहला औपचारिक एवं प्रामाणिक, सर्वे था। 1867 तक नैनीताल में तल्लीताल और मल्लीताल बाजार सहित 169 सरकारी एवं गैर सरकारी स्टेट्स बनाए जा चुके थे। इन स्टेटों को करीब सवा आठ सौ एकड़ जमीन आवंटित कर दी गई थी।

 

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