गुमराह किया गया सुप्रीम कोर्ट को

सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। पर्यावरण मन्त्रालय ने आईआईटी कानपुर के प्रो. विनोद तारे की रिपोर्ट को आधार बनाकर जो जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी है वह इस बात की तस्दीक करती है।

सुप्रीम कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। यह काम पर्यावरण मन्त्रालय करता रहा है। मन्त्रालय ने कोर्ट को बताया है कि उत्तराखंड में बनने वाले छह बांधों से नदी और उसके आस-पास के पर्यावरण को कोई खतरा नहीं है।

यह दलील मन्त्रालय ने आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे की रिपोर्ट को आधार बनाकर दी है। मन्त्रालय ने यह भी कहा है कि बांध से बद्रीनाथ मठ को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा। लेकिन प्रकाश जावड़ेकर के मन्त्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को जो जानकारी दी है, वही सच नहीं है। दरअसल, विनोद तारे की रिपोर्ट में इन बांधों पर फिर से विचार करने को कहा गया है। रिपोर्ट में जो लिखा है, वह इस प्रकार है- ‘बांध का वहाँ के पर्यावरण और निवासियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसलिए जरूरी है कि नए सिरे से पर्यावरणीय और सामाजिक स्थिति पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाए। पुराने अध्ययन को आधार बनाकर बांध बनाने की अनुमति देना ठीक नहीं है। यदि ऐसा किया गया तो बद्रीनाथ मठ खतरे में पड़ जाएगा।’ यही विनोद तारे समिति की रिपोर्ट का सार है। इस रिपोर्ट को मन्त्रालय ने गलत तरीके से पेश किया।

इस समिति में विनोद तारे के अलावा बतौर सदस्य वीबी. माथुर, ब्रिजेश सिक्का और दलेल सिंह भी थे। इसके गठन के पीछे एक लम्बी कहानी है, उस पर आने से पहले समिति की अनुशंसा को जानना बेहतर रहेगा।

विनोद तारे समिति के मुताबिक ‘‘बांध को लेकर पहले से मौजूद रिपोर्ट्स और बांध बनाने वालों से बातचीत के बाद यह बात निकलकर आती है कि बांध सम्बन्धित क्षेत्र के लिए ठीक नहीं है।’’ बांध के निर्माण से स्थानीय जैव-विविधता, पारिस्थितिकी, नदी प्रवाह तन्त्र और वन्य जीवन का सन्तुलन बिगड़ जाएगा। इसलिए पूरे मसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। इसमें बताया गया है कि बांध से नदी के प्रवाह पर पड़ने वाले प्रभाव पर भी विचार करने की दरकार है। अलकनंदा के संदर्भ में यह भी ध्यान देना होगा कि यदि हिमनदों का सृजन नहीं होता तो किस तरह के उपाय करने होंगे। वैसे 2013 की त्रासदी के बाद परियोजना वाले क्षेत्र में बहुत कुछ बदल गया है। इसलिए बांध जैसी परियोजना पर काम करने से पहले कई बार सोचना होगा। सम्भावित परिणामों का गहरा अध्ययन करना होगा।

विशेषज्ञ समिति का कहना है कि अलकनंदा, धौलीगंगा और भागीरथी पर प्रस्तावित छह बांध से नदियों की लम्बाई प्रभावित होगी। भागीरथी और धौलीगंगा पर प्रस्तावित बांध से नदी की लम्बाई क्रमश: 39 और 29 प्रतिशत प्रभावित होगी। मतलब यह है कि नदी का अविरल प्रवाह बाधित होगा। ये नदियाँ गंगा बेसिन का हिस्सा हैं। यदि गंगा को निर्मल और अविरल धारा बनाना मोदी सरकार का संकल्प है तो फिर प्रकाश जावड़ेकर उसकी मातृ नदियों के साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के सामने वे सारी बातें क्यों नहीं रखीं, जिसे विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है।

वजह जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट को जान-बूझकर अंधेरे में रखा गया है। मन्त्रालय ने अपने हलफनामे में समिति के उस हिस्से को शामिल ही नहीं किया, जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा है कि ये बांध सम्बन्धित क्षेत्र के लिए उचित नहीं हैं। लिहाजा इस पर एक बार फिर से गहन विचार की आवश्यकता है। मन्त्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा फरवरी में डाला था, कोर्ट ने उसे अपने रिकॉर्ड में ले लिया है। रिकॉर्ड में लेने का सीधा मतलब है कि प्रस्तावित परियोजना को हरी झंडी मिल सकती है। जिन परियोजनाओं के लिए पर्यावरण मन्त्रालय ने सुप्रीम कोर्ट की आँखों में धूल झोंकी है, उनका नाम लाटा तपोवन, कोटलीबेल, झेलम टमक, अलकनंदा, खिरओ गंगा और भयनदर गंगा है। इनमें से कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की हैं और कुछ निजी क्षेत्र की।

वैसे मसला सिर्फ छह परियोजनाओं का नहीं है। भागीरथी और अलकनंदा पर 24 परियोजनाएँ प्रस्तावित हैं। इस बाबत सुप्रीम कोर्ट ने सप्रंग सरकार को ही निर्देश दिया था कि परियोजना पर काम करने से पहले पर्यावरण और जैव-विविधता पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाए। इसके लिए बकायदा समिति का गठन किया गया था। जाँच-पड़ताल के बाद समिति ने साफ शब्दों में कहा था कि बांध नहीं बनाया जाना चाहिए।

यह अनुशंसा किसी एक समिति ने नहीं की थी। इस मसले को ध्यान में रखकर बनाई गई दोनों समितियों की एक ही राय थी। यह बात 2012 की है। लेकिन 2013 में केदारनाथ घाटी में जो कुछ हुआ, उसके बाद सब कुछ बदल गया। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में नए बांध बनाने पर रोक लगा दी। साथ ही सरकार से कहा था कि वह एक समिति का गठन करे। इसके बाद पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई। रवि चोपड़ा समिति 24 बांध में से 23 के खिलाफ थी। यह मई 2014 की बात है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि विभिन्न समितियों ने जो राय दी है, उसमें विरोधाभास है। इसलिए फिर से समिति गठित करने की माँग की। कोर्ट ने कहा कि 24 बांध को प्रतिबंधित किया जाए। सरकार क्यों एक और समिति बनाना चाहती है?

हालाँकि नई सरकार के शासन सम्भालने के बाद सब कुछ बदल गया। उसने कहा कि अब कोई समिति नहीं बनेगी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ही आदेश दे दिया था कि भागीरथी और अलकनंदा पर प्रस्तावित हर परियोजना पर रिपोर्ट तैयार की जाए। उसी के तहत इन छह बांधों के लिए प्रो. विनोद तारे समिति का गठन किया गया था, जिसकी चेतावनी के बारे में पर्यावरण मन्त्रालय ने हलफनामे में कोई जिक्र नहीं किया।

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