हिमालयी क्षेत्र के लिये अलग मन्त्रालय अवश्य होना चाहिये, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में किस प्रकार का विकास मॉडल लागू हो, इसके उपाय हिमालय लोकनीति के माध्यम से सुझाए जा रहे हैं।
हिमालयी क्षेत्र के लिये अलग मन्त्रालय अवश्य होना चाहिये, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में किस प्रकार का विकास मॉडल लागू हो, इसके उपाय हिमालय लोकनीति के माध्यम से सुझाए जा रहे हैं।

हिमालय बचाने की मुहिम

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हिमालयी क्षेत्र के लिये अलग मन्त्रालय अवश्य होना चाहिये, लेकिन हिमालयी क्षेत्र में किस प्रकार का विकास मॉडल लागू हो, इसके उपाय हिमालय लोकनीति के माध्यम से सुझाए जा रहे हैं।



सभी कहते हैं कि हिमालय नहीं रहेगा तो, देश नहीं रहेगा, इस प्रकार हिमालय बचाओ! देश बचाओ! केवल नारा नहीं है, यह भावी विकास नीतियों को दिशाहीन होने से बचाने का भी एक रास्ता है। इसी तरह चिपको आन्दोलन में पहाड़ की महिलाओं ने कहा कि

‘मिट्टी, पानी और बयार! जिन्दा रहने के आधार!’

और आगे चलकर रक्षासूत्र आन्दोलन का नारा है कि

‘ऊँचाई पर पेड़ रहेंगे! नदी ग्लेशियर टिके रहेंगे!’

, ये तमाम निर्देशन पहाड़ के लोगों ने देशवासियों को दिये हैं।

‘‘धार ऐंचपाणी, ढाल पर डाला, बिजली बणावा खाला-खाला!’’

इसका अर्थ यह है कि चोटी पर पानी पहुँचना चाहिए, ढालदार पहाड़ियों पर चौड़ी पत्ती के वृक्ष लगे और इन पहाड़ियों के बीच से आ रहे नदी, नालों के पानी से घराट और नहरें बनाकर बिजली एवं सिंचाई की व्यवस्था की जाए। इसको ध्यान में रखते हुए हिमालयी क्षेत्रों में रह रहे लोगों, सामाजिक अभियानों तथा आक्रामक विकास नीति को चुनौती देने वाले कार्यकर्ताओं, पर्यावरणविदों ने कई बार हिमालय नीति के लिये केन्द्र सरकार पर दबाव बनाया है।

इस दौरान इसके कई रूप दिखाई भी दे रहे हैं। नदी बचाओ अभियान ने हिमालय नीति के लिये वर्ष 2008 से लगातार पैरवी की है। हिमालय देश और दुनिया के लिये प्रेरणा का स्रोत बना रहे, इसे ध्यान में रखकर के हिमालयवासियों द्वारा

‘हिमालय लोक नीति’

प्रस्तुत की गई है। इसके लिये हिमालयी राज्यों के लोग स्थान-स्थान पर एकत्रित होकर हिमालय लोक नीति के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके केन्द्र सरकार को सौंप रहे हैं।

हिमालय लोकनीति एक समग्र हिमालय नीति की मार्गदर्शिका

‘हिमालय लोक नीति’

का मसौदा तैयार किया गया है। सन् 2010 में उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में हिमालयी राज्यों के लोग एकत्रित हुए थे। जिन्होंने हिमालय लोकनीति का मसौदा तैयार किया है।

लोकसभा में हिमालय की गूँज

राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान (गंगोत्री से गंगासागर)

हिमालय गंगा का दाता है, गंगा को अविरल निर्मल बनाता है

के सन्देश के साथ 11 अक्टूबर 2014 को जय प्रकाश नारायण की जयन्ती के अवसर पर हिमालय नीति अभियान का प्रारम्भ गंगोत्री से किया गया था। इस अभियान का प्रथम चरण 30 अक्टूबर तक हरिद्वार तक हुआ था।

हरिद्वार में सर्वोदय सत्संग आश्रम में इस अभियान का प्रथम चरण पूरा होने पर उत्तराखण्ड के लगभग 6 जिलों के लोगों ने भाग लिया है। इसके बाद उत्तराखण्ड के प्रत्येक जनपद से 11 नवम्बर को एक साथ हिमालय लोकनीति का दस्तावेज़ प्रधानमन्त्री जी को जिलाधिकारियों के माध्यम से भेजा गया है।

राष्ट्रीय हिमालय नीति अभियान का दूसरा चरण 2-18 फरवरी 2015 के बीच चला। जो आगे मेरठ, बरेली, हरदोई, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, बनारस, कैथी, बलिया, छपरा, डोरीगंज, सोनपुर, पटना, भागलपुर, कृष्णनगर, कोलकाता, डायमंड हर्बर से गंगा सागर पहुँचा। इस बीच लगभग 5000 लोगों ने केन्द्र सरकार को हिमालय नीति के सम्बन्ध में पत्र भी भेजे।

गोमुख से गंगासागर के बीच हिमालयी नदियों का संगम

हिमालय लोकनीति की आवश्यकता क्यों?

क्या है हिमालय लोकनीति?

एकीकृत जल, जंगल, ज़मीन



1. जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय लोगों का अधिकार होगा, इससे सम्बन्धित विभाग, पंचायतों व स्थानीय लोगों को सहयोग करेंगे। सम्बन्धित विभाग ग्रामसभाओं को तकनीकी, आर्थिक सहयोग, राज्य सरकार के द्वारा उपलब्ध किया जाएगा।
2. प्रत्येक गाँव का अपना जंगल होगा, जहाँ से वह घास, लकड़ी की आपूर्ति कर सकता हो, इसके साथ ही घरेलू उपयोग हेतु आने वाली लकड़ी जैसे- मकान बनवाने, दाह संस्कार, जलावन आदि के लिये ग्रामस्तर पर ग्राम वन समितियों के माध्यम से इच्छुक व्यक्तियों को गाँव के जंगल से उपलब्ध करवाएगा। ऐसे गाँव जिनके पास जंगल नहीं हैं, उन्हें जंगल उपलब्ध करवाना राज्य सरकार का काम है, यदि ऐसा न हो तो गाँव वालों के सहयोग से मिश्रित जंगल तैयार करना होगा।
3. वन उत्पादों जैसे- सूखी लकड़ी, गिरा हुआ पेड़, सिर टूटा पेड़ का निस्तारण ग्राम वन समिति करवाएगी। गाँव की आवश्यकता के अनुसार गाँव में ही एक डिपो बनाया जाएगा, यदि वनोत्पाद गाँव की आवश्यकता से अधिक होंगे तो वह राज्य सरकार के सम्बन्धित विभाग को हस्तान्तरित किया जाएगा।
4. गाँव के खेतों, चारागाहों, ग्रामवन सीमा के अन्तर्गत तमाम भेषज एवं जड़ी-बूटियों का संरक्षण गाँव में जहाँ पर जिस परिवार या कम्युनिटी के नजदीक के उपयोग क्षेत्र में आता है, वे वहाँ पर चाहेंगे तो जड़ी-बूटी भी उगा सकते हैं, लेकिन उनकी सारी जड़ी-बूटी राज्य सरकार खरीदेगी, इसका समझौता गाँव वालों के साथ ग्राम वन समितियों के नेतृत्व में राज्य को करना चाहिए।
5. जिन राज्यों के पास 35 प्रतिशत से अधिक वन एवं वन भूमि हैं, उसे शेष वन एवं वन भूमि गाँव वालों को हस्तान्तरित करनी चाहिये, ताकि जिन गाँवों के पास वन न हो उन्हें वन प्रदान हो जाएगा, गाँव-सभा वन भूमि की ज़मीन भूमिहीन लोगों में प्राथमिकता के अनुसार बाँटेगी।
6. हिमालयी क्षेत्रों के गाँवों में प्रत्येक परिवार को अपनी निजी भूमि पर चारा-पत्ती, फल, रेशे तथा जलावन की वन प्रजातियों को उगाना होगा, उन्हें अधिक-से-अधिक वन उत्पाद स्वयं भी तैयार करने हैं, ताकि गाँव के सामुहिक वनों को अधिक मानवीय शोषण से बचाया जा सके।
7. हिमालयी राज्यों में जहाँ पर वन विदोहन के लिये वन निगम की व्यवस्था है, उसे ग्राम वन समितियों के अधिकार में दिया जाएगा।

जल, सिंचाई एवं कृषि, जल ऊर्जा

भूमि

‘वनाधिकार कानून 2006’

हिमालयी राज्यों में विशेष रूप से लागू रखने के लिये राज्य सरकारों पर केन्द्र का दबाव रहेगा। इसके साथ ही महिलाओं का कष्ट निवारण हेतु महिला नीति तथा युवाओं का पलायन रोकने हेतु युवा नीति बनवाने के लिये केन्द्र सरकार राज्यों को दिशा-निर्देश करेगी।
8. हिमालयी राज्यों में बड़े खनन प्राकृतिक संसाधनों को अत्यधिक नुकसान पहुँचाते हैं, इसलिये बड़े खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। स्थानीय पारम्परिक लघु खनन को इस चेतावनी के साथ खनन कार्य की अनुमति दी जाएगी, कि जिससे जंगल, ज़मीन व जलस्रोतों पर बुरा प्रभाव न पड़े।

जलवायु परिवर्तन नियन्त्रण

भूकम्परोधी भवन

हिमालयी शिक्षा, संस्कृति एवं पर्यटन

भारतीय हिमालय क्षेत्र : एक दृष्टि में

क्र. सं.

राज्य/क्षेत्र

भौगोलिक क्षेत्रफल (वर्ग किलोमीटर)

कुल जनसंख्या

2011 के अनुसार

अनु. जनजातिय

(प्रतिशत में)

साक्षरता दर

(प्रतिशत में)

1.

जम्मू एवं कश्मीर

222236

12548926

10.9

56

2.

हिमाचल प्रदेश

55673

6856509

4.0

77

3.

उत्तराखण्ड

53483

10116752

3.0

72

4.

सिक्कीम

7096

607688

20.6

54

5.

अरुणाचल प्रदेश

83743

1382611

64.2

54

6.

नागालैण्ड

16579

1980602

32.3

67

7.

मणिपुर

22327

2721756

85.9

71

8.

मिजोरम

21081             

1091014

94.5

89

9.

मेघालय

22429

2964007

89.1

63

10.

त्रिपुरा

10486

3671032

31.1

73

11.

असम

93760

31169272

12.4

63

12.

प.बं. पर्वतीय क्षेत्र

3149

1605900

अनुपलब्ध

अनुपलब्ध

हिमालय क्षेत्र में वन क्षेत्र का विस्तार - 2011

क्र. सं.

राज्य

कुल वन क्षेत्र (वर्ग किलोमीटर)

वन क्षेत्र का प्रतिशत

1.

जम्मू एवं कश्मीर

20230

9.10

2.

हिमाचल प्रदेश

37033

66.52

3.

उत्तराखण्ड

34651

64.79

4.

सिक्किम

5841

82.31

5.

अरुणाचल प्रदेश

51540

61.55

6.

नागालैंड

9222

55.62

7.

मणिपुर

17418

78.01

8.

मिजोरम

16717

79.30

9.

मेघालय

9496

42.34

10.

त्रिपुरा

6294

60.02

11.

असम

26832

34.21

भारतीय हिमालय क्षेत्र में राज्यवार पर्यटकों की संख्या - 2006

क्र.सं.

राज्य

पर्यटकों की संख्या

भारत में कुल पर्यटकों का प्रतिशत

 

 

स्वदेशी

विदेशी

स्वदेशी

विदेशी

1.

जम्मू एवं कश्मीर

76,46,274

46,087

1.66

0.39

2.

हिमाचल प्रदेश

76,71,902

281,569

1.66

2.40

3.

उत्तराखण्ड

16,666,525

85,284

3.61

0.73

4.

सिक्किम

2,92,486

18,026

0.06

0.15

5.

अरुणाचल प्रदेश

80,137

607

0.02

0.01

6.

नागालैण्ड

15,850

426

0.00

0.00

7.

मणिपुर

1,16,984

295

0.03

0.00

8.

मिजोरम

50,987

436

0.01

0.00

9.

मेघालय

4,01,529

4287

0.09

0.04

10.

त्रिपुरा

230,645

3245

0.05

0.03

हिमालय में जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा

हिमालय विकास- खतरे एवं चुनौतियाँ

हिमालय बचेगा तो गंगा बचेगी

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