हिमालय के लिये केन्द्र में अलग से मंत्रालय हो

नई दिल्ली, पत्रिका। हम लगातार हिमालय की रक्षा के लिये केन्द्र सरकार से अलग मंत्रालय की माँग कर रहे हैं। इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। अलग मंत्रालय होने से हिमालय से जुड़ी तमाम समस्याएँ, जानकारी और कार्यवाही एक ही स्थान पर हो सकेगी। यह बात पर्यावरणविद डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने राजस्थान पत्रिका से विशेष बातचीत में कही।

मैदानी इलाके के लोगों का इसे बचाने में योगदान नगण्य है। उन्होंने कहा कि विकास और पारिस्थितिकी के बीच भी नियंत्रण होना चाहिए। आज हम जिस तौर तरीके से विकास का पहिया घुमा रहे हैं, इससे हिमालय को नुकसान हो रहा है। हिमालय में पिछले दिनों आई प्राकृतिक आपदाओं का कारण पारिस्थितिक असन्तुलन है। यदि हिमालय पर खतरा बढ़ेगा तो दुनिया भी अछूती नहीं रहेगी क्योंकि हिमालय में लगातार जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।

डॉ. जोशी ने कहा कि हिमालय को बचाने के लिये हर तबके के लोगों को आगे आना होगा। इसमें वे लोग शामिल हैं जो इसका उपभोग सबसे अधिक कर रहे हैं और स्थानीय लोगों को भी आगे बढ़कर हिमालय बचाने की मुहिम का हिस्सा बनना होगा।

बाशिन्दों को उनके हिसाब से मिले रोज़गार


उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र के बाशिन्दों को उनके हिसाब से केन्द्र सरकार को रोज़गार मुहैया कराना होगा तभी हिमालय की रक्षा सम्भव होगी। उदाहरण के लिये हिमालय क्षेत्र के जंगल, आबोहवा, नदियों के पानी को बचाने जैसे काम का उन्हें पैसा मिलना चाहिए।

आखिर उनके पास जो स्किल है, उसमें तो वे पारंगत होंगे और हिमालय की रक्षा कर पाएँगे। क्षमता के अनुसार ही उन्हें रोज़गार मिलना चाहिए। अब स्थानीय लोग कोई फ़ैक्टरी या हाइड्रो पावर स्टेशन तो स्थापित करेंगे नहीं, उन्हें तो वही काम चाहिए जो उन्हें आता है और यह हिमालय की रक्षा के लिये हितकारी भी है।

अब बाँधों से बाढ़ का खतरा नहीं


डॉ. जोशी ने कहा कि देश में अब बाँधों से बाढ़ नहीं आएगी। आखिर हिमालय की नदियाँ पानी के लिये तरसने लगी हैं। हिमालय के जलागम को बचाना होगा। उन्होंने कहा कि हिमालय की हालत गम्भीर है। हिमालय को बचाने की जिम्मेदारी केवल वहाँ के लोगों की अकेली लड़ाई नहीं है बल्कि उन लोगों की भी है जो हिमालय का सबसे अधिक उपयोग करते हैं। इसका उपयोग मैदानी इलाकों के लोग अधिकाधिक करते हैं। यमुना नदी पूरी दिल्ली की पानी की माँग पूरी करती है लेकिन यहाँ की सरकार पानी पर बहस कर रही है जबकि वह कहाँ से आ रही है, इसकी चिन्ता किसी को नहीं है।

पारिस्थितिकी व विकास में भी नियंत्रण हो


मैदानी इलाके के लोगों का इसे बचाने में योगदान नगण्य है। उन्होंने कहा कि विकास और पारिस्थितिकी के बीच भी नियंत्रण होना चाहिए। आज हम जिस तौर तरीके से विकास का पहिया घुमा रहे हैं, इससे हिमालय को नुकसान हो रहा है। हिमालय में पिछले दिनों आई प्राकृतिक आपदाओं का कारण पारिस्थितिक असन्तुलन है। यदि हिमालय पर खतरा बढ़ेगा तो दुनिया भी अछूती नहीं रहेगी क्योंकि हिमालय में लगातार जैव विविधता का ह्रास हो रहा है।

सम्मेलन में हिमालयन यूनिटी मूवमेंट का गठन


दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय हिमालय सम्मेलन समाप्त हो गया। सम्मेलन में हिमालय पर काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों, शोध कर्मियों, वैज्ञानिकों, तकनीकी विशेषज्ञों, नीति बनाने वालों ने अपनी बातें रखीं। सम्मेलन में देश भर के विभिन्न भागों से आये तीन सौ से अधिक लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन में समवेत स्वर ने कहा कि हिमालय में विश्व की आत्मा बसती है।

हिमालय के संसाधन तेजी से घट रहे हैं। पिछले दिनों उत्तराखण्ड, कश्मीर और नेपाल में आई प्राकृतिक आपदाएँ प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। सम्मेलन में कई विशेषज्ञों जैसे प्रो. तलत अहमद, डॉ. संजय कुमार आदि ने बातें रखीं। सम्मेलन में हिमालयन यूनिटी मूवमेंट का गठन किया गया। यह संगठन हिमालय से जुड़ी तमाम समस्याओं पर काम करेगा।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading