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हिंद महासागर

हिंद महासागर इसका विस्तार दक्षिण ध्रुवक्षेत्र से भारत तक ओर पूर्वी अफ्रीका से आस्ट्रेलिया और तस्मानिया तक है। इसका अधिकतर भाग भूमध्यरेखा के दक्षिण में पड़ता है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों इसी के भाग हैं। इस सागर में अनेक द्वीप हैं जिनमें मैडागास्कर, श्रीलंका, मौरिशस, लोकोटा, अंडेमन, निकोबार, मालद्वीप, लक्का द्वीप और मुर्गुई प्रमुख हैं। मिस्र की 'स्वेज नहर' इसे भूमध्य सागर से जोड़ती है। यह 7,42,40,000 वर्ग किमी में फैला है। क्षेत्रफल में प्रशांत महासागर के आधे से कम है। इसके जल की मात्रा अटलैंटिक महासागर से कुद कम है। इसकी औसत गहराई लगभग 3,900 मी और सबसे अधिक गहराई 7,500 मी है। हिंद महासागर के क्षेत्र में छह महीने तक मानूसनी हवाएँ उत्तर पूर्व से चलती हैं, जब कि बाकी समय में ये हवाएँ उत्तरी दिशा में दक्षिण पश्चिम की ओर चलती हैं। सन्‌ 1958 के सितंबर में हिंद महासागर की छानबीन के लिए एक विशाल अंतर्राष्ट्रीय योजना (स्पेशल कमेटी ऑन ओशनोग्राफिक रिसर्च ) बनाई गई है। इस योजना में 18 देशों ने इस सागर में मछलीक्षेत्रों, ताँबे, बेरियम के भंडारों, वायु की गति, रेडियो विकिरण आदि के अध्ययन की योजना बनाई। इसमें मछलियों के अक्षय भंडार का अनुमान है। इसकी तली में रत्नों के भंडार का भी अनुमान है। अनेक नदियों जैसे सिंध, ब्रह्मपुत्र, गंगा, इरावदी, सालबीन, शटल अल अख जांबगी आदि का पानी इसमें गिरता है।

छानबीन के कार्य में तीन प्रकार के देश भाग ले रहे हैं। प्रथम वे देश जो छानबीन के लिए अपने जहाज तथा वैज्ञानिक दोनों भेज रहे हैं। इनमें भारत, अमरीका, इंग्लैंड, जापान आदि हैं। दूसरे, वे देश जो समुद्र की ऊपरी सतह एवं मौसम की ही जाँच करेंगे तथा छानबीन में काम करनेवाले जहाजों को सहायता देंगे। तीसरे वे देश, जिन्होंने केवल अपने वैज्ञानिक भेजे हैं। इस प्रकार अब लगभग 18 के स्थान पर 25 देश हिंद महासागर की खोज में लगे हैं।

इस महासागर के पास के क्षेत्र संसार की सबसे घनी आबादीवाले क्षेत्र हैं। भारत, लंका, इंडोनिशिया, मलाया तथा अफ्रीकी तटों में प्रोटीनयुक्त पदार्थ की बहुत कमी है। इसकी पूर्ति के लिए मछलियों की खोज करना आवश्यक हो गया है।

हिंद महासागर की खोज से पता चला है कि महासागर के नीचे बहुत बड़ी बड़ी घाटियाँ हैं। एक घाटी तो 960 किमी लंबी तथा 40 किमी चौड़ी है। यह घाटी अंडमान के समुद्र से सुमात्रा के उत्तरी सिरे से लेकर बर्मा के एक दक्षिण पश्चिमी टापू के बीच है। यह घाटी महासागर में एक से तीन मील तक की गहराई में है तथा इसके ईद गिर्द कई ऊँची ऊँची चोटियाँ हैं। सबसे ऊँची चोटी घाटी से 3,600 मी ऊँची है। छानबीन करनेवालों ने ध्वनि संकेतों की सहायता से इस सागर का एक मानचित्र तैयार किया है। इन ध्वनियों से पता चलता है कि कई बड़ी बड़ी पहाड़ियाँ हैं तथा बहुत नीची जमीनवाले मैदान भी हैं। इसी सिलसिले के बीच बंगाल की खाड़ी के तल में मटमैली नदियों से बनी अनेक बड़ी बड़ी धाराओं की भी खोज की गई है। इनमें सबसे बड़ी जलधारा लगभग 6 किमी लंबी तथा 90 मी चौड़ी है।

महासागर के मौसम संबंधी ज्ञान तथा आँकड़े इकट्ठे करने के लिए बंबई में एक अंतर्राष्ट्रीय ऋतुकेंद्र की स्थापना की गई है जो यंत्रों की सहायता से मौसम के बारे में एवं समुद्री तूफानों के बारे में सूचना देता है।

समुद्री भूगर्भीय ज्ञान प्राप्त करने के लिए समुद्र की तलहटी में सूराख किए गए हैं। पानी के भीतर चट्टानां के आसपास तथा नीचे कैमरों से चित्र लिए गए। इससे मिट्टी की जमावट, उसकी उत्पादकता, जलवायु, और चुंबकीय परिवर्तनों के बारे में जानकारी ज्ञात की गई। समुद्रवैज्ञानिकों ने पता लगया है कि दक्षिण पूर्व एशिया के समीप की गहराई में फेरो मैंगनीज के क्रिस्टल करोड़ों टनों के लगभग मौजूद हैं। इसी प्रकार और भी कई प्रकार के धातु खनिजों का पता लगा है।

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