हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं : ईना युर्गा
ग्वालियर (म.प्र)। हमारी यात्रा में थोड़ा ग्लैमर जरूर नजर आ रहा है, लेकिन यह सच्चाई नहीं है। वास्तव में हम इस देश के लिए दिल से काम करना चाहते हैं। यह हमारा मिशन है न कि प्रोफेशन। यह सबको पता है, विकासशील देशों में स्वच्छता एक बहुत बड़ी समस्या है। खासतौर पर भारत में हो रहे खुले में शौच का मुद्दा दुनिया भर में सेनिटेशन पर काम कर रहे संगठनों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। यहां तक कि वर्षों से स्वास्थ्य पर काम कर रहे संगठनों व विशेषज्ञों ने भी मान लिया है कि जब तक यहां खुले में शौच होता रहेगा और हाथ धोने में लापरवाही बरती जायेगी, कई जानलेवा बीमारियों को जड़ से खत्म करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इस आब्जर्वेशन से स्पष्ट तौर पर साफ-सफाई के महत्व का पता लगता है। यह कहना है जर्मनी बेस वाश युनाइटेड संस्था की मैंनेजर ईना युर्गा का, जो इस समय निर्मल भारत यात्रा में एक अहम रोल निभा रही हैं। ईना जर्मनी में चल रही वाश स्कूल की भी हेड हैं। उन्होंने इस साल मार्च में वाश युनाइटेड ज्वाइन किया था, इसके पहले वह सेनिटेशन व मेंसुरल हाईजीन पर काम कर रही डब्ल्यूएसएससीसी संस्था में महत्वपूर्ण भूमिका में थीं।
ईना निर्मल भारत यात्रा की आर्गनाइजर वाश युनाइटेड के इस प्रयास को बहुत महत्व नहीं देतीं, बल्कि इसे एक दमदार शुरुआत भर मानती हैं। उनका मानना है कि इंडिया में बहुत सिद्दत व मनोवैज्ञानिक ढंग से काम करने की जरूरत है। भारतीय समाज काफी जटिल है, जिसे आसानी से समझा नहीं जा सकता। यहां की कुछ आदतें और पंरपरायें हजारों वर्षों से अस्तित्व में हैं, जिसमें फेरबदल एक टॅफ व चैलेजिंग जॉब है। इनमें खुले में शौच करने से रोक पाने को तो मैं 21वीं सदी की एक बड़ी चुनौती मानती हूं। ऐसा नहीं है कि इसे रोकने के प्रयास नहीं हो रहे हैं, निश्चित ही इंडियन गवर्नमेंट सीरियसली एफर्ट कर रही है। बावजूद इसके वाश युनाइटेड समझता है कि ओपन डिफिकेशन फ्री इंडिया बनाने में करीब पांच से दस साल तो लग ही जायेंगे।
इंडिया में स्वच्छता के प्रति मेरा नजरिया क्लीयर है। मैं यह नहीं मानती कि भारत के घरों में साफ-सफाई का ख्याल नहीं रखा जाता। घर अमूमन साफ ही नजर आते हैं, लेकिन घरों के आगे-पीछे, गलियों, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर कूड़े के ढेर, गंदगी और बजबजाती नालियों से दम घुटता है। उससे निकलती दुर्गन्ध, मच्छर, और कीटाणु बीमारी को जन्म देते हैं। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि दुनिया में सबसे अधिक बच्चे भारत में हैजे और डायरिया के कारण मर जाते हैं। इसके पीछे सिर्फ और सिर्फ एक वजह है घरों के आस-पास फैली गंदगी, खुले में शौच व बस्तियों के चारों तरफ बहती गंदी नालियां।
इस यात्रा के दौरान सभी कर्यक्रमों में केवल हैंडवाश को प्रमुखता देने के सवाल पर ईना कहती हैं कि इस देश में हाथ धोया ही नहीं जाता, ऐसा संदेश देना उनका मकसद नहीं है। लेकिन खाना खाने के पहले, टॉयलेट जाने के बाद व माहवारी के समय हाथ धोने में यहां हर दर्जे तक लापरवाही की जाती है, इसका मैं बाकायदे प्रमाण दे सकती हूं। बहुत सारी बीमारियां तो हाथ न धोने की वजह से पनपती हैं। यही वजह है कि यात्रा के दौरान हम हैंडवाशिंग को केंन्द्र में रखना चाहते हैं, और इसमें कुछ गलत नहीं है। हालांकि मैं यह भी मानती हूं कि कम्युनिटी तक हमारी पहुंच कमजोर है, इसलिये हम अपने स्ट्रेटजी में थोड़ा फेर-बदल करने पर विचार-विमर्श कर रहे हैं, लेकिन हैंडवाशिंग का रिजल्ट काफी पॉजीटिव है। इस पर गंभीरता से लगे रहने की जरूरत है। इंडिया में एक-एक बच्चे को हाथ धोने की आदत डालनी ही पड़ेगी।
भारत में आगे काम करने के सवाल पर ईना कहती हैं कि उनकी योजना यहां की कुछ संस्थाओं के साथ वर्क करने की है, लेकिन कौन रियल है कौन फेक यह पता लगाना थोड़ा मुश्किल काम है।
लेखक- इंडिया वाटर पोर्टल के फेलो हैं