हमारा स्वास्थ्य और प्रकाश


हम सभी चाहते हैं कि हम स्वस्थ रहें। स्वस्थ रहने के लिये उचित खान-पान, रहन-सहन और दैनिक जीवनचर्या का बड़ा योगदान होता है। अपना खानपान बहुत अच्छा हो सकता है लेकिन यदि जीवनचर्या ठीक नहीं है तो भी स्वस्थ रह पाना कठिन होता है। आजकल असंतुलित या कहें कि बिगड़ती हुई जीवनशैली के कारण कई खतरनाक बीमारियाँ पैदा हो रही हैं। हमारी जीवनशैली में और स्वस्थ रहने में सूर्य के प्रकाश का अत्यधिक योगदान है। सूर्य का प्रकाश ही क्यों, मानव निर्मित स्रोतों से प्राप्त प्रकाश से भी हमारा स्वास्थ्य प्रभावित होता है। आप सोच रहे होंगे कि आखिर प्रकाश से हमारे स्वास्थ्य का क्या लेना-देना? आइए, जानते हैं कि हमारे शरीर और स्वास्थ्य के लिये प्रकाश का क्या योगदान है?

Fig-1शायद आप जानते होंगे कि अभी तक ज्ञात जानकारी के अनुसार ब्रह्मांड में हमारी पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहाँ जीवन है। पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बहुत से अन्य कारणों के साथ-साथ प्रकाश भी एक प्रमुख कारण है। पृथ्वी पर प्रकाश का एक मुख्य स्रोत सूर्य है, जिसके बिना जीवन की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। दरअसल, न केवल जीवन की उत्पत्ति के लिये सूर्य का प्रकाश आवश्यक है, बल्कि जीवन को बनाए रखने के लिये भी सूर्य का प्रकाश जरूरी है। सूर्य के प्रकाश की मदद से ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के द्वारा पेड़-पौधे अपना भोजन बनाते हैं और हमें जीवनदायनी ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। चूँकि पेड़-पौधों से ही हमें भोजन मिलता है इसलिये कह सकते हैं कि अपरोक्ष रूप से सूर्य का प्रकाश ही हमारे भोजन का उपाय करता है। यही नहीं, मनुष्यों और पशुओं की अनेक जैविक क्रियाओं को पूर्ण करने के लिये भी प्रकाश आवश्यक होता है।

शायद आप जानते होंगे कि श्वेत प्रकाश जैसे कि सूर्य से प्राप्त प्रकाश विभिन्न सात रंगों से मिलकर बना होता है, जिनकी तरंगदैर्घ्य अलग-अलग होती है। तरंगदैर्घ्‍य के बढ़ते क्रम में ये रंग हैं- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, नीला, नारंगी तथा लाल। अलग-अलग तरंगदैर्घ्‍य वाले प्रकाश का हमारे शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि विद्युत बल्ब जैसे प्रकाश स्रोतों से प्राप्त प्रकाश में ये सातो रंगों के प्रकाश नहीं होते हैं।

हमारे शरीर की विभिन्न जैविक क्रियाओं के संचालन के लिये प्रायः 290 नैनोमीटर से 770 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्य वाला प्रकाश उपयोगी होता है। आपने देखा होगा कि प्रकाश के संपर्क में आने से कभी-कभी कुछ लोगों की त्वचा लाल हो जाती है। दरअसल, यह 290 से 315 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्‍य वाली पराबैंगनी प्रकाश किरणों के संपर्क में आने से होता है। इसी तरह यदि हमारा शरीर 280 से 400 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्‍य वाले पराबैंगनी प्रकाश से प्रभावित होता है तो त्वचा काली हो सकती है और दाँतों में विकृति आ जाती है। हम अपनी आँखों से इस खूबसूरत दुनिया को देख पाते हैं, तो यह भी प्रकाश की बदौलत है। इस दृश्य प्रकाश की तरंगदैर्घ्य 400 से 780 नैनोमीटर की रेंज में आती है।

स्वास्थ्य के लिये प्रकाश की उपयोगिता


प्रकाश हमारे स्वास्थ्य के लिये अत्यंत आवश्यक है। यदि हमारे शरीर को पर्याप्त मात्रा में सूर्य का प्रकाश न मिले तो कई तरह की बीमारियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है। आप जानते होंगे कि स्वस्थ रहने के लिये हमें विभिन्न पौष्टिक तत्व विटामिन, प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज लवण आदि की आवश्यकता होती है इसमें अधिकांश विटामिन और अन्य पौष्टिक पदार्थ हमें खाद्य पदार्थों से मिल जाते हैं, परंतु विटामिन-डी एक ऐसा विटामिन है जो कि मुख्यतः सूर्य के प्रकाश से ही मिलता है। जब सूर्य के प्रकाश की 290 से 300 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्‍य वाली अल्ट्रावायलेट यानि पराबैंगनी किरणें हमारी त्वचा पर पड़ती हैं तो हमारी त्वचा में विटामिन-डी का निर्माण होता है। जब ये पराबैंगनी किरणें त्वचा के सम्पर्क में आती हैं तो हमारी त्वचा में मौजूद एक प्रो-हार्मोन विटामिन में परिवर्तित होने की रासायनिक अभिक्रिया प्रारंभ हो जाती है।

इस प्रक्रिया में हमारी त्वचा में मौजूद 7-डिहाइड्रो कोलेस्ट्रॉल सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होने वाली अल्ट्रावायलेट किरणों को अवशोषित कर, कोलीकेल्सिफेरोल में परिवर्तित हो जाता है, जोकि विटामिन डी3 का प्रीविटामिन रूप होता है। इसके बाद यह प्रीविटामिन हमारे शरीर में प्रवाहित हो रहे रक्त के माध्यम से यकृत में पहुँचता है, जहाँ इसका चयापचय (मेटाबोलिकरण) होकर यह हाइड्रोक्सी विटामिन-डी में परिवर्तन होता है। इसे 25 हाइड्रोक्सी विटामिन डी यानि 25-(ओएच) डी भी कहते हैं। आगे हमारे गुर्दे यानि किडनी इस 25-(ओएच) डी को डि-हाइड्रोक्सी विटामिन-डी में बदल देते हैं। यह विटामिन डी का हार्मोन रूप होता है, जिसे हमारा शरीर उपयोग में लाता है।

माना जाता है कि हमारे शरीर को जितनी विटामिन-डी की आवश्यकता होती है उसका 90 प्रतिशत से अधिक सूर्य के प्रकाश में रहने से मिल जाता है अथवा मिल जाना चाहिए। इसके लिये हमारे शरीर का बिना ढका हुआ भाग जैसे चेहरा, पीठ, हाथ और पैर आदि प्रति दिन आधे घंटे के लगभग धूप में रहना आवश्यक होगा। यदि आप हर रोज धूप में नहीं रह सकते तो हफ्ते में दो-तीन दिन तो रहना ही चाहिए, अन्यथा शरीर में विटामिन-डी की कमी हो सकती है, जिसके कारण कई तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। आदर्श स्थिति में यदि हम बिना शरीर ढके 30 मिनट धूप में रहें तो हमारा शरीर 10,000 आईयू से 20,000 आईयू तक विटामिन-डी पैदा कर सकता है।

Fig-2हमारे शरीर के लिये विटामिन-डी अत्यंत उपयोगी होता है। यह शरीर में कैल्सियम के अवशोषण में मदद करता है। हड्डियों की डेंसिटी यानि घनत्व को बढ़ाता है और उन्हें मजबूत बनाने में सहायक होता है। इससे शरीर में हड्डियों के विकास और मांसपेशियों की कार्य प्रणाली में भी मदद मिलती है, साथ ही यह हमारे रोग प्रतिरोधक तंत्र को मजबूत भी करता है तथा शरीर में इंसुलिन, कैल्सियम और फॉस्फोरस के स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है। शोध अध्ययनों के आधार पर यह माना जाता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिये प्रतिदिन लगभग 2,000 आईयू विटामिन-डी चाहिए, लेकिन प्रायः देखा गया है कि हमारी बदलती दिनचर्या के कारण अधिकांश लोग हफ्तों तक धूप के संपर्क में नहीं आते हैं, जिसके कारण शरीर में विटामिन डी की कमी हो जाती है। और कई प्रकार के रोग पैदा होने लगते हैं। इसलिये आवश्यक है कि प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सूर्य के प्रकाश का भरपूर उपयोग करना चाहिए।

बच्चों में विटामिन-डी की कमी होने से उनके शरीर में कैल्सियम का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है, जिसके कारण उनकी हड्डियाँ कमजोर हो जाती हैं और मुड़ जाती हैं जिसे रिकेट्स बीमारी कहते हैं।

यदि बच्चों के शरीर पर 400 से 500 नैनोमीटर तरंगदैर्घ्‍य का प्रकाश न पड़े तो उनके शरीर में बिल्यूरमिन नामक पदार्थ की कमी हो जाती है, जिसके कारण उन्हें जांडिस यानि पीलिया हो जाता है। इसके अलावा भी प्रकाश का हमारे स्वास्थ्य पर कई प्रकार से प्रभाव हो सकता है। यह प्रभाव मानसिक भी हो सकता है और शारीरिक भी। उदाहरण के लिये आपने देखा होगा कि प्रायः दिन के समय विशेषकर प्रातःकाल जब सूर्य का प्रकाश हमारे शरीर पर और हमारे आस-पास बिखरता है तो हमारा मन प्रशन्नचित्त होता है, आत्मविश्वास अधिक होता है, शरीर फुर्तीला होता है, आँखों में दबाव कम होता है। दिन के प्रकाश का एक और प्रमुख मनोवैज्ञानिक पहलू यह है कि दिन के उजाले में हम एक दूसरे से मिलने और बाहर की खुली हवा में जाने की इच्छा व्यक्त करते हैं। प्रकाश के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के अलावा हमारे शरीर में नियंत्रण और समन्वय बनाने वाले तंत्रिका तंत्र तथा हार्मोन क्रियाविधि भी प्रकाश द्वारा ही संचालित होते हैं।

यही नहीं, हमारे नेत्र भी प्रकाश का उपयोग करके ही हमारे चारों ओर की वस्तुओं को देखने के लिये हमें समर्थ बनाते हैं। हमारी आँख की रेटिना में प्रकाश सुग्राही अनेक कोशिकाएं होती हैं, जो प्रकाश के संपर्क में आने पर सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिग्नल उत्पन्न करती हैं। ये सिग्नल तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँच जाते हैं और इस तरह हमें वस्तुओं को देखने में मदद करते हैं।

आप जानते हैं कि हमारे स्वास्थ्य के लिये पौष्टिक भोजन आवश्यक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे भोजन के मूल में भी प्रकाश ही है। यदि प्रकाश न होता तो पेड़-पौधे न होते, क्योंकि पेड़-पौधे अपना भोजन प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से बनाते हैं जिसके लिये सूर्य का प्रकाश आवश्यक है। और पेड़-पौधे न होते तो हमें भोजन और ऑक्सीजन नहीं मिलती। तो है न प्रकाश का योगदान हमारे स्वस्थ रहने में।

स्वास्थ्य पर प्रकाश का दुष्‍प्रभाव


ऐसा नहीं कि प्रकाश हमारे शरीर और स्वास्थ्य के लिये हमेशा उपयोगी ही हो। प्रकाश स्वास्थ्य के लिये हानिकारक भी हो सकता है। जैसे कि आजकल बढ़ते प्रकाश प्रदूषण के कारण अनिद्रा जैसी बीमारियाँ हो रही हैं। सूर्य के प्रकाश में मौजूद अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में अधिक देर तक रहने से सनबर्न तथा त्वचा का कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियाँ हो सकती हैं। गोरी त्वचा वाले लोगों की त्वचा काली पड़ सकती है। किसी भी प्रकार के तेज प्रकाश से हमारी आँखों को क्षति पहुँच सकती है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रकाश का, विशेषकर सूर्य के प्रकाश का, हमारे स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव होता है। जहाँ एक ओर यह शरीर के लिये अति आवश्यक विटामिन-डी का एक मात्र प्राकृतिक स्रोत है, वहीं यह स्किन कैंसर और बढ़ते प्रकाश प्रदूषण का एक प्रमुख कारण भी है।

सम्पर्क


श्रीमती कविता शर्मा
विज्ञान अध्यापिका, राजकीय सहशिक्षा माध्यमिक विद्यालय, खिचड़ीपुर, दिल्ली-110092


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