होली के दिन दिल . . .

26 Feb 2015
0 mins read


फाल्गुन आते ही फाल्गुनी हवा मौसम के बदलने का एहसास करा देती है। कंपकपाती ठंड से राहत लेकर आने वाला फाल्गुन मास लोगों के बीच एक नया सुख का एहसास कराता है। फाल्गुन मास से शुरू होने वाली बसंत ऋतु किसानों के खेतों में नई फसलों की सौगात देता है। पतझड़ के बाद धरती के चारों तरफ हरियाली की एक नई चुनरी ओढ़ा देता है बसंत, हर छोटे–बड़े पौधों में फूल खिला देता है बसंत, ऐसा लगता है एक नये सृजन की तैयारी लेकर आता है बसंत। ऐसे में हर कोई बसंत में अपनी जिंदगी में भी हँसी, खुशी और नयापन भर लेना चाहता हैं। इसी माहौल को भारतीय चित्त ने एक त्योहार का नाम दिया होली। जैसे बसंत प्रकृति के हर रूप में रंग बिखेर देता है। ऐसे ही होली मानव के तन-मन में रंग बिखेर देती है। जीवन को नये उल्लास से भर देती है।

होली नई फसलों का त्योहार है, प्रकृति के रंगो में सराबोर होने का त्योहार है। मूलतः होली का त्योहार प्रकृति का पर्व है। इस पर्व को भक्ति और भावना से इसीलिए जोड़ा जाता है कि ताकि प्रकृति के इस रूप से आदमी जुडे और उसके अमूल्य धरोहरों को समझे जिनसे ही आदमी का जीवन है।

होली के इस अवसर पर, होली के दिन दिल पर पत्थर रखकर हमें दुःखी मन से पानी बचाने की अपील करनी पड़ रही है। पानी की कमी से रंगो की होली की जगह खून की होली होना आये दिन सुनने और पढ़ने को मिल रही है पिछले एक साल के अंदर मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में दर्जनों लोगों की मौत पानी के कारण हुए झगड़ों में हुई। संभ्रात शहरियों ने अपने झील, तालाब को निगल डाले हैं। तालाबों को लील चुकीं ये बड़ी इमारतें बेहिसाब धरती की कोख का पानी खाली कर रही हैं। अंधाधुंध दोहन से पीने के पानी में आर्सेनिक, युरेनियम, फ्लोराइड तमाम तरह के जहर पानी जैसे अमृत तत्व में घुल चुके हैं। भावी भविष्य के समाज के जीवन में पानी का हम कौन सा रंग भरना चाहते हैं। क्या हमको यह हिसाब लगाने की जरूरत नहीं है। होली के नाम पर जल स्रोतों में सैंकड़ो टन जहरीले केमिकल हम डाल देंगें। क्या यह उन लोगों के साथ जो खरीद कर पानी नहीं पी सकते अत्याचार नहीं है। बेहिसाब पानी की बर्बादी प्रकृति के अमूल्य धरोहरों की बर्बादी हैं। सत्य यही है कि पंच तत्वों से बनी मानव जाति यदि पानी खो देगी तो अपना अस्तित्व भी खो देगी।

प्रतिदिन हम बगैर सोचे-समझे पानी का उपयोग और उपभोग करते जाते हैं। यह एक अवसर है कि हम अपने भीतर झाँकें और अपना अन्तर्मन टटोलें कि रंगों के इस शानदार त्योहार पर हम पानी की बर्बादी न करें…

बिना पानी के एक दिन गुज़ारने की कल्पना करें तो हम काँप उठेंगे। इस होली पर अपने जीवन में रंगों को उतारें जरूर, लेकिन साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हमारे आसपास की दुनिया में जलसंकट तेजी से पैर पसार रहा है। इसलिये त्योहार की मौजमस्ती में हम कुछ बातें याद रखें ताकि प्रकृति की इस अनमोल देन को अधिक से अधिक बचा सकें…

 

होली पर पानी बचाने हेतु कुछ नुस्खे…


• होली खेलने के लिये आवश्यकतानुसार पानी की एक निश्चित मात्रा तय कर लें, उतना पानी स्टोर कर लें फ़िर सिर्फ़ और सिर्फ़ उतने ही पानी से होली खेलें, अधिक पानी खर्च करने के लालच में न पड़ें…
• सूखे रंगों का अधिकाधिक प्रयोग करें।
• सम्भव हो तो प्राकृतिक रंगों का उपयोग करें, क्योंकि वे आसानी से साफ़ भी हो जाते हैं।
• गुब्बारों में पानी भरकर होली खेलने से बचें।
• जब होली खेलना पूरा हो जाये तभी नहाने जायें, बार-बार नहाने अथवा हाथ-मुँह धोने से पानी का अपव्यय होता है।

 

होली खेलने के दौरान पानी की बचत के टिप्स


• किसी अलग जगह अथवा किसी बगीचे में होली खेलें, पूरे घर में होली खेलने से घर गन्दा होगा तथा उसे धोने में अतिरिक्त पानी खर्च होगा।
• पुराने और गहरे रंगों वाले कपड़े पहनें ताकि बाद इन्हें आसानी से धोया जा सकता है।
• होली खेलने से पहले अपने बालों में तेल लगा लें, यह एक तरह से बचाव परत के रूप में काम करता है। इसकी वजह से चाहे जितना भी रंग बालों में लगा हो एक ही बार धोने पर निकल जाता है।
• इसी तरह अपनी त्वचा पर भी कोई क्रीम या लोशन लगाकर बाहर निकलें, इससे आपकी त्वचा रूखेपन और अत्यधिक बुरे रासायनिक रंगों के इस्तेमाल की वजह से खराब नहीं होगी।
• अपने नाखूनों पर भी नेलपॉलिश अवश्य कर लें ताकि रंगों और पानी से वे खराब होने से बचें और होली खेलने के बाद भी अपने पहले जैसे स्वरूप में रहें।
• मान लें कि आप बालों में तेल और त्वचा पर क्रीम लगाना भूल भी गये हों तो होली खेलने के तुरन्त बाद शावर अथवा पानी से नहाना न शुरु करें, बल्कि रंग लगी त्वचा और बालों पर थोड़ा नारियल तेल हल्के-हल्के मलें, रंग निकलना शुरु हो जायेंगे और फ़िर कम से कम पानी में ही आपका काम हो जायेगा।
• यदि आप घर के अन्दर अथवा छत पर होली खेल रहे हों, तो कोशिश करें कि फ़र्श पर एक तारपोलीन की शीट बिछा लें, जब होली के रंग का काम समाप्त हो जाये तो वह तारपोलीन आसानी से कम पानी में धोया जा सकता है, जबकि फ़र्श अथवा छत के रंग छुड़ाने में अधिक पानी और डिटर्जेण्ट लगेगा।

 

पानी के कम से कम उपयोग द्वारा घर की सफ़ाई हेतु टिप्स -


दिन भर होली खेलने के बाद घर-आँगन और छत की धुलाई एक बड़ा काम होता है, लेकिन हमें इस काम में कम से कम पानी का उपयोग करना चाहिये। इस हेतु निम्न सुझाव हैं -

1. दो बाल्टी पानी भर लें, एक बाल्टी में साबुन / डिटर्जेण्ट का पानी लें और दूसरी में सादा-साफ़ पानी लें।
2. दो स्पंज़ के बड़े-बड़े टुकड़े लें।
3. फ़र्श अथवा घर के जिस हिस्से में सबसे अधिक रंग लगे हों वहाँ साबुन के पानी वाले स्पंज से धीरे-धीरे साफ़ करें।
4. इसके बाद साफ़ पानी वाले स्पंज से उस जगह को साफ़ कर लें।
5. सबसे अन्त में एक बार साफ़ पानी से उस जगह को धो लें।
6. सबसे अन्त में सूखे कपड़े अथवा वाइपर से जगह को सुखा लें।

इस विधि से पानी की काफ़ी बचत होगी ही साथ ही रंग साफ़ करने में मेहनत भी कम लगेगी। अधिक गहरे रंगों को साफ़ करने के लिये वॉशिंग सोडा भी उपयोग करें यह अधिक प्रभावशाली होता है, लेकिन इसका उपयोग बहुत कम मात्रा में होना चाहिये वरना अधिक झाग की वजह से पानी अधिक भी लग सकता है। यह करते समय दस्ताने अथवा प्लास्टिक या रबर हाथों में पहनना न भूलें, क्योंकि सोडा अथवा साबुन के लिक्विड आदि हाथों की त्वचा के लिये खतरनाक हो सकते हैं।

 

पर्यावरण बचाने में सहयोग करें -


यह संयोग ही है कि मार्च के महीने में ही होली और विश्व जल दिवस एक साथ आ रहे हैं। समूचे विश्व और भारत के बढ़ते जलसंकट के मद्देनज़र हमें पानी बचाने के लिये एक साथ मिलकर काम करना चाहिये और होली जैसे अवसर पर पानी की बर्बादी रोकना चाहिये। इस धरती पर लगभग 6 अरब की आबादी में से एक अरब लोगों के पास पीने को भी पानी नहीं है। जब मनुष्य इतनी बड़ी आपदा से जूझ रहा हो ऐसे में हमें अपने त्योहारों को मनाते वक्त संवेदनशीलता दिखानी चाहिये। इस होली पर जितना सम्भव हो अधिक से अधिक पानी बचाने का संकल्प लें…

 

होली की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading