हवा में जहर

10 Jun 2019
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भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है।
भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है।

बीते कुछ वर्षों में भारत में वायु प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। इसका नुकसान मानव स्वास्थ्य और कृषि में होते देख रहे हैं। प्रदूषण में मौजूद पार्टिक्यूलेट (पीएम) इस नुकसान की वजह है। पीएम दो प्रकार के हैं- पीएम 10 यानी ऐसे तत्व, जिनका आकार 10 माइक्रों मीटर से छोटा होता है। दूसरे हैं  पीएम 2.5, जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से छोटा हो सकता है। ये हमारी सांस के साथ शरीर मे दाखिल हो सकते हैं। पीएम 2.5 इतने छोटे होते हैं कि हमारे फेफड़ों में पहुंचने के बाद हमारे रक्त तक पहुंच सकते हैं।  ये फेफड़ों से लेकर रक्त, धमनियों और हृदय तक की बीमारियों की वजह बनते हैं।  

हम भारतीयों के लिए पीएम 2.5 तत्व बेहद घातक हो चुके हैं। शहरों की 90 प्रतिशत आबादी प्रति घनमीटर 10 माइक्रोग्राम से अधिक घनत्व वाले पीएम 2.5 के बीच जी रहे हैं। हर सांस के साथ यह उनके शरीर में दाखिल हो रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हर रोज 90 से अधिक शहरों के वायु प्रदूषण स्तर का आंकड़ा जारी करता है। इंडो-गैंगेटिक प्लेन्स (आईजीपी) यानी सिंधु गंगा के मैदान में मौजूद 14 प्रमुख शहरों में से 12 सबसे प्रदूषित शहरों में लगातार शामिल रहे हैं।  इनमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य हैं। देश की करीब  43 प्रतिशत आबादी यहीं रहती है। इसे विश्व के कुछ सबसे अधिक घनी मानव आबादी वाले क्षेत्रों में बिना जाता है।

17 गुना ज्यादा खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार नागरिक जिस हवा में सांस लेते हैं, उसमें पीएम 2.5 का औसत स्तर सालाना 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से कम होना चाहिए, जबकि इन आईजीपी शहरों में यह औसतन 100 से 173 माइक्रोग्राम तक बना रहता है।

ये है अध्ययन

रिसर्च के अनुसार भारत में पीएम 2.5 के एक्सपोजर से अकाल मृत्यु के मामलों  पर अब तक कोई विस्तृत अध्ययन नहीं किया गया है। ऐसे में उन्होंने यह आकलन किया। साथ ही पीएम 2.5  के एक जगह से दूसरी जगह जाने  के पैटर्न और असर को भी मापा गया । इस दौरान देश को छह हिस्सों में रखा गया। आईजीपी के अलावा उत्तर, पश्चिमी, मध्य, दक्षिण और पूर्वी भारत यह हिस्से थे। वहीं, भारत के बाहर से आने वाले प्रदूषण की भी श्रेणी बनाई गई। यह भी सामने आया कि भारत में होने वाला वायु प्रदूषण सर्दियों में उसी क्षेत्र में सीमित रहता है, जहां से वह उपजा है, लेकिन गर्मियों में दूसरे शहरों में फैलता है और सैंकड़ों  किमी तक चला जा सकता है। इसके अध्ययन के लिए नासा की रिसर्च लैब गाॅडर्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर द्वारा  विकसित पृथ्वी पर्यवेक्षण सिस्टम की सहायता ली गई। प्रदूषण के प्रकार, विस्तार, उत्सर्जन की मात्रा और मूवमेंट को दर्ज किया गया। 

कौलीराडो स्टेट यूनिवर्सिटी फोर्ट कोलिन्स के केमिस्ट्री विभाग  से लिजी एम डेविड, एटमाॅस्फियरिक साइंस विभाग से एआर रविशंकर, जाॅन के कोडरोस और जैफरी आर पीयर्स, आईआईटी मुंबई के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के चंद्र वैंकटरमन और नीदरलैंड के विज्ञान शोध संस्थान के पंकज सदावर्ते इस अध्ययन में शामिल रहे।

विश्लेषण 1: 99.9 प्रतिशत की सांसों को खतरा

डब्ल्यूएचओ ने पीएम 2.5 तत्वों की सुरक्षित सीमा सालाना 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से कम रखी है, लेकिन देश की 99.9 प्रतिशत आबादी 40 से 60 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर घनत्व वाले पीएम 2.5 की हवा में सांस ले रही है।

विश्लेषण 2: यहां से आ रहा यह पीएम 2.5

उद्योग, यातायात, कृषि कार्यों में उपयोग हो रहे गलत तौर तरीके, ऊर्जा उत्पादन और आवासीय क्षेत्रों  में पैदा हो रहे प्रदूषण से।

विश्लेषण 3: दूसरों की आबोहवा भी बिगाड़ रहे आईजीपी

आईजीपी जहां अपने क्षेत्र के 84 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं, वहीं यह बाकी क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रहा है। खासतौर पर उत्तर में 24, पूर्व में 30 और मध्य भारत के 27 प्रतिशत वायु प्रदूषण  के लिए आईजीपी को जिम्मेदार माना गया है। बल्कि पूर्वी भारत में आईजीपी क्षेत्रीय प्रदूषण से ज्यादा वायु को बिगाड़ रहा है। 

विश्लेषण 4: विदेशी प्रदूषण भी

विदेश प्रदूषण भी हवा बिगाड़ रहे हैं। इनमें उत्तर भारत में 30 और पश्चिम में 35 प्रतिशत प्रदूषण मध्यपूर्व, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आ रही धूल और जीवाश्म ईंधन जलने से उपजे प्रदूषक तत्व से हो रहा है। पूर्वी भारत में करीब 25 प्रतिशत वायु प्रदूषण की वजह बांग्लादेश है। मध्य और दक्षिण भारत के प्रदूषण में भी विदेशी प्रदूषण का योगदान है।

परिणाम: बीमारियों और मौतें

पीएम 2.5 के एक्सपोजर से औसतन एक वर्ष के दौरान होने वाली इन मौतों को वायु प्रदूषण के परिणाम के रूप में सामने रखा गया। इनमें आईजीपी में अकेले  करीब 70 प्रतिशत मौंते हुई जो संख्या में सर्वाधिक रही। इसकी वजह यहां अधिक आबादी के साथ साथ प्रदूषण की अधिक स्तर भी माना गया।

हर साल 11 लाख भारतीयों की ले रहा जान

उत्तर भारत में हदय रोग के कारण 15 हजार, फेफड़ों के कैंसर के कारण 6 हजार, दिमागी नसों की बीमारी के कारण 11 हजार और श्वास रोग के कारण 6.6 हजार, आईजीपी में हदय रोग से 2.34 लाख, फेफडों का कैंसर से 12.2 हजार, दिमागी नसों की बीमारी से 1.74 लाख, श्वास रोग से 1.27 लाख, पूर्वी भारत में हदय रोग से 27.7 हजार, फेफड़ों का कैंसर से 1.2 हजार, दिमागी नसों की बीमारी से 21.6 हजार, श्वास रोग से 12.5 हजार, पश्चिमी भारत में हदय रोग से 42.9 हजार फेफड़ों के कैंसर से 1.7 हजार, दिमागी नसों की बीमारी से 33.2 हजार, श्वास रोग से 18.2 हजार, मध्यभारत में हदय रोग से 58.8 हजार, फेफड़ों के कैंसर से 2.6 हजार, दिमागी नसों की बीमारी से 46.3 हजार, श्वास रोग से 26.8 हजार और दक्षिण भारत में हदय रोग से एक लाख, फेफड़ों का कैंसर से 4.1 हजार, दिमागी नसों की बीमारी से 78.4 हजार और श्वास रोग से 43.4 हजार लोगों को मौत होती है।

विश्लेषण 1: बाहर से आया प्रदूषण बड़ी वजह

उत्तर, पूर्व और पश्चिम भारत में वायु प्रदूषण से हो रही मौतों में करीब 24 प्रतिशत मौतें विदेशी भूमि से आए प्रदूषण से हो रही है। आईजीपी, मध्य और दक्षिण भारत के लिए यह आंकड़ा कम से कम 12 प्रतिशत दर्ज किया गया। देशभर के लिहाज से इस वजह से करीब 16 प्रतिशत मौतें हुई।

विश्लेषण 2: पूर्वी भारत दूसरे क्षेत्र से फैले प्रदूषण का शिकार

पूर्वी भारत में 39 प्रतिशत मौतों की वजह से देश दूसरे हिस्सों से आया प्रदूषण रहा। यानी, यहां अपने क्षेत्र में हुए प्रदूषण से ज्यादा नुकसान दूसरे  क्षेत्रों ने किया। वहीं आईजीपी से आया प्रदूषण यहां की 31 प्रतिशत मौतों की वहह रहा।

विश्लेषण 3: आईजीपी 46 प्रतिशत मौतों की वजह

देश में प्रदूषण से हुई मौतों की वजह 46 फीसदी आईजीपी क्षेत्र से निकल रहा प्रदूषण है। इसके अलावा 12 प्रतिशत दक्षिण भारत, 10 प्रतिशत मध्य भारत और छह प्रतिशत पश्चिम भारत प्रदूषण से हुई मौतों की वजह रहा।

विश्लेषण 4: खुद दूसरों से सबसे कम प्रभावित

खुद आईजीपी अन्य देश के क्षेत्रों से आए प्रदूषण से सबसे कम प्रभावित हुआ। यहां 76 प्रतिशत मौतें क्षेत्र से ही उपजे प्रदूषण से हुई। 

सिफारिशें

  • मानवीय गतिविधियों से हो रहे प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगाई जाए।
  • आईजीपी और मध्य भारत से उपज रहे प्रदूषण पर बारीकी से निगरानी रखने की जरूरत है, इसके लिए उपग्रहों की मदद ली जा सकती है।
  • विदेशों से आ रहे प्रदूषण में मध्यपूर्व बड़ा कारण है, इसके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की जरूरत है।
  • शहरी के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रदूषण से बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं। ऐसे में वायु की गुणवत्ता की निगरानी के लिए छोटे-छोटे स्तर पर जाकर काम करना होगा।

दूसरे अध्ययनों में 12 लाख मौतों का दावा

अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण शोध संस्था हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट ने 2017 के आंकड़ों के आधार पर बताया कि भारत में हर साल 12 लाख नागरिक प्रदूषण से मौत के शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार विश्व में तीस लाख मौतें अकेले पीएम 2.5 की वजह से हुई है। भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 की वजह से 2017 में 15 लाख मौतों की आशंका जताई गई है।

औसत उम्र ढाई वर्ष तक घटी

इस प्रदूषण की वजह से दक्षिण एशिया में बच्चों की औसत उम्र ढाई वर्ष कम हो रही है, बाकी दुनिया के बच्चों के लिए लिए यह कमी 20 महीनों की है।  एक प्रकार से यह कुपोषण, शराब और बिगड़ी जीवन शैली से होने वालेी मौतों से बड़ी वजह बन चुका है।

सालाना पीएम 2.5 लेवल

क्षेत्र               माइक्रोग्राम/घनमीटर

उत्तर                  50
आईजीपी          110
पूर्व                   58
पश्चिम               42         
मध्य                  60
दक्षिण               49

क्षेत्र के अनुसार: किसे, कहां से और कितना प्रदूषण मिल रहा

उत्तर भारत के क्षेत्र को उत्तर भारत से 40%, आईजीपी से 24%, पूर्वी पश्चिमी और मध्य भारत से 0%, दक्षिण भारत से 30% और विदेश से 5% प्रदूषण मिल रहा है। आईजीपी को उत्तर भारत से 2%, आईजीपी से 83%,  पूर्वी भारत से 0%, पश्चिमी से 2%, मध्य से 3%, दक्षिण से 9%, विदेश से 1%, पूर्वी भारत को उत्तर से 0%, आईजीपी से 33%, पूर्व से 30% पश्चिम से 1%, मध्य से 2%, दक्षिण से 0% विदेश से 25%, पश्चिम में भारत को उत्तर से 0%, आईजीपी से 18%, पूर्व को 0%, पश्चिम से 40%, मध्य से 4%, दक्षिण से 0%, विदेश से 35%, प्राकृतिक से 8%, मध्य भारत में उत्तर से 0%, आईजीपी से 27%, पूर्व से 0%, पश्चिम से 7%, मध्य से 40%, दक्षिण से 3%, विदेश से 19%, प्रकृति से 3%, दक्षिण भारत में उत्तर से 0%, आईजीपी से 6%, पूर्व से 0%, पश्चिम से 2%, मध्य से 14%, दक्षिण से 7%, विदेश से 16%,  प्रकृति से 1% प्रदूषण मिल रहा है।

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