ई-कोलाई से कैसे हो मुकाबला

23 Aug 2011
0 mins read
ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा
ई-कोलाई बैक्टीरिया से बढ़ता खतरा

पिछले दिनों विश्व ने एक छोटे से बैक्टीरिया एंटेरोहेमोरेजिक एशेरिकिया कोलाई के आंतक के साये में लगभग पन्द्रह दिन मौत के खौफ से जूझते हुए बिताए, खासतौर पर यूरोपीय देशों में यह दहशत जमकर बरसी, क्योंकि इस जीवाणु ने सिर्फ 8000 से अधिक लोगों को अस्पताल तक ही नहीं पहुंचाया बल्कि अपनी धमाकेदार आमद से पूरे यूरोप और दुनिया के वैज्ञानिकों को चेता दिया कि इलाज ढूंढ़ने से पहले वह कहीं भी कभी भी कहर बरपाने में सक्षम और समर्थ है। इस जीवाणु ने कुछ ही दिनों में लगभग तीन दर्जन लोगों के प्राण पर संतोष जता कर अपने रौद्ररूप को कुछ सीमित तो कर लिया है पर वह सवाल छोड़ गया है कि खाद्य पदार्थों के साथ कृषि वैज्ञानिकों की छेड़छाड़ कभी भी तबाही मचाने से चूकेगी नही।

दरअसल ई-कोलाई खाने की चीजों से फैलने वाला जीवाणु है। अमूमन यह हमारी और दूसरे स्तनधारी जानवरों की आंत में रहता है। इसकी वजह से डायरिया हो जाता है। ज्यादा बुरे हालात में इससे किडनी फेल होने या कॉमा तक में जाने का खतरा रहता है। जर्मनी के साथ ही ई-कोलाई संक्रमण के मामले ऑस्ट्रिया, चेक गणराय, डेनमार्क, फ्रांस, नीदरलैंड, नार्वे, स्पेन, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और अमेरिका में भी कुछ अधिक पाए गए। प्रारंभ में माना गया कि यह जीवाणु स्पेन से आने वाली सब्जियों के कारण फैल रहा है पर अब यह साफ हो चुका है कि यह उत्तरी जर्मनी से आया साधारण ई-कोलाई की एक खतरनाक किस्म है। मिल्क प्रोडक्ट से लेकर हरी सब्जियों तक हर चीज इस जीवाणु के दायरे में है। कम से कम तीन और अधिकतम आठ दिनों में जब इस जीवाणु का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर दिखता है तब तक डायरिया, हल्के बुखार और पेट में मरोड़ जैसे बातें किडनी के फेल हो जाने तक पहुंच जाती है और रक्त का स्वभाव तक बदल सकता है। यद्यपि इस जीवाणु की 70 डिग्री से. या इससे अधिक तापमान पर मौत हो जाती है। चिकित्सकों के लिए यह जीवाणु एक कठिन चुनौती इसलिए बन जाता है कि प्रभावित व्यक्ति को आम डायरिया वाली एंटीबायोटिक दवाएं गलती से भी दे दी जाऐं तो जटिलता बढ़ सकती है जबकि पहले दिखाई देने वाले लक्षण डायरिया के ही होते हैं। हेमोलिटिक यूरेमिक सिंड्रोम या एचयूएस का बड़ा कारण भी ई-कोलाई जीवाणु ही है। इसकी चपेट में आने वालों के रक्त के श्वेत रक्त कणिकाऐं की संख्या तेजी से कम होने लगती है, ब्लड प्रेशर, हृदय संबंधी जटिलताऐं, किडनी फेल होने वाली समस्याऐं जब सामने आती हैं तब तक यह बैक्टीरिया शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट कर चुका होता है।

इस जीवाणु की भयावहता का प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता तो ठीक था, इसकी तीव्रता का प्रभाव देशों की अर्थनीति पर भी महसूस किया गया है। स्पेन के उत्पाद पर यूरोप भर में इस जीवाणु के डर से प्रतिबंध लगाया गया तो स्पेन ने कड़ा विरोध किया। जर्मनी ने तो साफ तौर पर अपने यहां फैल रहे इस जीवाणु के लिए स्पेन की सब्जियों को जिम्मेवार ठहराया है। ब्रिटेन ने इसे लेकर सावधानी बरतनी शुरू कर दी है तो अमेरिका में पहले ही डिसी कंट्रोल एंड प्रिवेंशन सेंटर्स को सतर्क कर दिया गया है। रूस से आने वाली सब्जियों और दूसरे खाने-पीने के प्रोडक्ट्स पर कड़ाई की गई तो प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन ने कहा कि वे इसे लेकर डब्लूटीओ में मुद्दा उठाऐंगे। भारत ने भी बाहर से आने वाले ऐसे उत्पादों पर कड़ाई बरतनी शुरू कर दी है जिनसे ई-कोलाई का खतरा संभव हो। इस तरह ई-कोलाई अब स्वास्थ्य ही नहीं देशों की अर्थव्यवस्था और आपसी संबंधों तक पर खतरा बन गया है।

ई-कोलाई नामक यह जीवाणु कहां से आया, इतनी तेजी से कैसे फैला यह अभी कोई नहीं जानता। पर संदेह है कि टमाटर, खीरे, पत्तेदार सलाद और अंकुरित अनाजों व बीजों से यह सामने आया है। रोगियों से जब पूछताछ की गई तो उन्होने कहा कि टमाटर, कच्चे खीरे और पत्तेदार सलाद के सेवन के बाद से यह स्थिति बनी पर चिकित्साशास्त्री मानते हैं कि यह अंकुरित बीज के सेवन से भी फैल सकता है। क्योंकि जापान में जुलाई 1996 में ऐसा ही संक्रमण फैल चुका है जो वहां की एक बागवानी की मूली के अंकुरित बीजों से फैला था उस समय लगभग 10 हजार लोग इस संक्रमण की चपेट में आए थे और कई लोग मौत का शिकार भी बने थे। हाल ही में जिस जीवाणु ने कहर बरपाया है उसके बारे बर्लिन स्थित रोर्बेट कोंख इंस्टीटयूट ने खीरे, टमाटर और हरी पत्तियों वाले सलाद को खाने की चेतावनी उठा ली है कहा गया है कि यह कोई नया जीवाणु नहीं है यह एक ऐसा वर्णसंकर क्लोन है जिसमें अलग-अलग रोगाणुओं की उग्रता का मिश्रण हुआ है यह रोगाणु हमारी बड़ी आंत की भीतरी दीवार से बुरी तरह चिपक जाता है और एंटीबायोटिक दवाईयों से पूरी तरह अप्रभावी रहा सकता है। हमारे गुर्दों की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करने की इसकी क्षमता भी पहले की अपेक्षा अधिक विनाशकारी हो गई है। भारत में हमे अभी से ही बेहद चौकस और चौकन्ना रहना होगा ताकि इस तरह के जीवाणुओं के संक्रमण से आमजन को किसी भी तबाही से पहले ही बचाया जा सके। अभी तो इस स्थिति से संतोष प्रकट किया जा सकता है कि इस जीवाणु की संहारक क्षमता स्वतः ही समाप्ति की और बढ़ रही है।
 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading