Eco-friendly green home
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ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम

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ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम जैसा कि नाम से ही विदित होता है एक ऐसा घर होता है जिसे पर्यावरण के अनुकूल ही डिजाइन एवं तैयार किया गया हो। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं इन घरों में स्मार्ट आइडियाज का क्रियान्वयन तथा पर्यावरण के अनुकूल मैटेरियल्स का उपयोग कर न सिर्फ ऊर्जा की खपत कम की जाती है बल्कि जल एवं बिजली के संरक्षण का भी उचित ध्यान रखा जाता है। आज सारे विश्व के वैज्ञानिक एवं सम्बन्धित वैज्ञानिक समुदाय ईको-फ्रेंडली एवं प्रदूषण मुक्त उपायों पर अत्यधिक जोर दे रहे हैं। लोगों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक किया जाए। जिससे कि यह हमारे आने वाले कल के लिये हितकर हो सके। इन्हीं सब उपायों में से एक है ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम्स का एक नवीन कॉन्सेप्ट जिसकी लोकप्रियता दिन दूनी तथा रात चौगुनी बढ़ती ही जा रही है।

ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम या ग्रीन बिल्डिंग एक आन्दोलन के रूप में सन 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में शुरू हुई जब वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल के दाम आसमान छूने लगे थे। इसी के प्रत्युत्तर में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों की सरकारों ने ऊर्जा संरक्षण के सस्ते तथा पर्यावरण के अनुकूल उपायों की खोजबीन के लिये कई खोज कमेटियों का गठन कर दिया। इन्हीं सभी उपायों एवं शोध का नतीजा था ग्रीन होम या ग्रीन बिल्डिंग का नवीन कॉन्सेप्ट। सन 1990 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय कोड काउन्सिल तथा यूनाइटेड किंग्डम (ग्रेट ब्रिटेन) में स्थापित नेशनल एसोसिएशन ऑफ होम बिल्डर्स ने एक मानक तैयार करवाया जिसमें ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम को बनाने हेतु आवश्यक सुझाव तथा दिशा-निर्देश दिए गए थे। यही नहीं सन 2005 में यूनाइटेड नेशन (UN) ने पर्यावरण संरक्षण का ध्यान रखते हुए क्लीन एनर्जी पॉलिसी को कानून का रूप दे दिया। इस कानून में नागरिकों को अपने दैनिक तथा अन्य क्रिया-कलापों में ज्यादा से ज्यादा ईको-फ्रेंडली बनने का सुझाव दिया गया था जिसमें ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम बनाने का भी जिक्र किया गया था।

क्या है ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम

ईको-फ्रेंडली ग्रीन होम जैसा कि नाम से ही विदित होता है एक ऐसा घर होता है जिसे पर्यावरण के अनुकूल ही डिजाइन एवं तैयार किया गया हो। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं इन घरों में स्मार्ट आइडियाज का क्रियान्वयन तथा पर्यावरण के अनुकूल मैटेरियल्स का उपयोग कर न सिर्फ ऊर्जा की खपत कम की जाती है बल्कि जल एवं बिजली के संरक्षण का भी उचित ध्यान रखा जाता है। यदि हम हाल के दिनों में नजर डालें तो हम पाते हैं कि पिछले कुछ सालों से बिजली की दरों में कई गुणा बढ़ोत्तरी होती चली आ रही है, जिसके फलस्वरूप हर घर का बिजली बिल बेहिसाब बढ़ रहा है। इसके अलावा हमारे घरों में जल का उचित प्रबंधन न होने से हमारे दैनिक कार्यकलापों में तो जल बर्बाद होता ही है साथ ही साथ वर्षा का जल भी बिना उपयोग हुए नदी-नालों में बह जाता है। यदि ग्रीन बिल्डिंग कॉन्सेप्ट को दैनिक जीवन में अपना लिया जाए तो इन समस्याओं से निपटा जा सकता है। सामान्यतया ग्रीन बिल्डिंग उस इमारत को कहा जाता है न केवल कम-से-कम जल का इस्तेमाल होता है, बल्कि बर्बाद हुए जल की रिसाइक्लिंग हेतु उचित व्यवस्था हो। इनमें ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने हेतु ग्रीन उपायों को अपनाया जाता है तथा वहाँ रहने वाले लोगों के लिये परम्परागत इमारतों की तुलना में स्वस्थ माहौल मुहैया कराया जाता हो।

यदि भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो हमारे यहाँ ईको-फ्रेंडली घरों का निर्माण कोई नई बात नहीं है क्योंकि भारतीय संस्कृति तथा जनमानस वास्तुशास्त्र तथा पर्यावरण संरक्षण में गहरी आस्था रखते थे तथा प्राचीन काल से वास्तु तथा पर्यावरण के अनुकूल ही भारतीय घरों की डिजाइन जैसे बरामदा, रोशनदान, बगीचे इत्यादि का निर्माण न सिर्फ इन घरों में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्यवर्द्धक माहौल मुहैया कराते थे। वरन इनके द्वारा उचित जल-प्रबंधन, वायु-संचार इत्यादि में भी भरपूर मदद मिलती थी। परन्तु आज सभ्यता की चकाचौंध में हम अपनी कई प्राचीन संस्कृतियों तथा परम्पराओं को पीछे छोड़ते हुए आगे चले जा रहे हैं।

वैज्ञानिकों द्वारा ग्रीन होम के लिये दिए गए सुझावों पर एक नजर डालते हैं-

1. यदि हमारे घर की छतों पर ऑटोक्लैण्ड एरेटिड कांक्रीट (Autoclaved Aerated Concretes) का इस्तेमाल किया जाए तो यह न सिर्फ सूर्य की गर्मी से छतों तथा इमारतों को बचाएगा बल्कि यह कमरों को ठंडा रखने में भी सक्षम है जिससे कि एयरकंडीशन तथा कूलरों का उपयोग 50 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।

2. हमारे घरों में उपयोग होने वाली साधारण ग्लासों की अपेक्षा यदि डबल ग्लेज्ड, ई-ग्लास आदि हाई परफॉर्मेन्स काँच का प्रयोग किया जाए तो यह भी मकानों को शीतल रखने में मददगार सिद्ध हो सकती है।

3. अपने घरों में तथा घरों के चारों तरफ वृक्षारोपण की कई पद्धतियाँ जैसे- इंडोर गार्डन, आउटडोर गार्डन, अपनी बालकनी में टेरेस गार्डन, किचन गार्डन, ब्लैंक प्लान्टेशन (Blank Plantation) आदि अपनाते हैं तो यह पेड़-पौधे न सिर्फ लोगों को शुद्ध ऑक्सीजन देंगे अपितु यह कई जानलेवा तथा हानिकारक गैसों को अवशोषित करके अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़ों से लोगों की सुरक्षा भी करेंगे।

4. थर्मोकोल से बने प्रोडक्ट का इस्तेमाल अन्दर की तरफ किया जाए तो यह भी दीवारों तथा छतों को गर्म होने से बचाते हैं।

5. घरों में डोमेस्टिक रेन-वाटर हार्वेस्टिंग अपनाकर वर्षा के जल तथा घरेलू क्रियाकलापों में बर्बाद हो रहे जल का उचित प्रबंधन तथा इस्तेमाल हो सकता है, जिससे घरों में कभी भी पानी की किल्लत नहीं होगी।

सम्पर्क सूत्र :

श्री राहुल रोहिताश्व, पर्यावरणविद एवं युवा पक्षी वैज्ञानिक, मंदार नेचर क्लब, भागलपुर, बिहार, (मो. : 09050944061; ई-मेल : mnc_rahul2003@rediffmail.com)

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