...इसे हम पानी कहते हैं

6 May 2019
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बारिश जो आसमान से आती है, पानी मे गाती है।
पहाड़ों से फिसलती है, नदियों में चलती है
खपरैलों पर गिरती है, गलियों में मिलती है।
ये बारिश अक्सर गीली होती है, इसे हम पानी कहते हैं।

इन लाइनों को मैं हर इंसान से कहता हूं, जिससे मैं पानी और उसके महत्व की बात करता हूं। पानी, जिसे हम मराठी में पाणी, तमिल में तन्नी, कन्नड़ में नीर और न जाने क्या-क्या कहते हैं! इसके नाम जितने हैं उतनी ही बलशाली इसकी शक्ति भी है। इसमें इतनी शक्ति है कि जब आग से टकराता है, तो आंसू बन जाता है और चेहरे पर ढलता है तो रुबाब बन जाता है, और कभी-कभी सरकारी फाइलों में कुओं समेत चोरी भी हो जाता है। खैर, पानी तो पानी है, हमारी जिंदगानी है, इसलिए जब रूह की नदी सूखी हो, मन का हिरन प्यासा हो, दिमाग में लगी हो आग और प्यार की गागर खाली हो, तो मैं अक्सर बारिश वाली यह पंक्तियां गुनगुनाने लगता हूं। मेरी इन सभी बातों से आपको लग ही गया होगा कि पानी मेरे लिए कितना भावुक कर देनेवाला शब्द है। इससे मैं एक भावनात्मक जुड़ाव महसूस करता हूं, इसलिए कि मैं खुद एक ऐसे परिवार और ऐसी जगह से आया हूं जहां पर मैंने पानी के कारण लोगों को खुशियां और गम मनाते देखा है।

मैं किसान परिवार से हूं और एक किसान ही है जिसकी सारी खुशियां अच्छी बारिश से जुड़ी होती हैं। वह एक-एक बूंद पानी की कीमत जानता है और जानता है कि कैसे पानी की एक बूंद उसे और उसके परिवार को एक वक्त का खाना दे सकती है। पानी नहीं, तो खाना नहीं। मैंने अपने आसपास के लोगों को बारिश के सपने संजोते देखा है और उससे जुड़ी योजनाएं बनाते देखा है। बड़े शहरों में रहनेवालों को कभी पता ही नहीं चलता कि पानी की अहमियत क्या है ? क्योंकि उनके यहां तो अगर नल से पानी आना बंद हो जाए, तो तुरंत मोटर चलने लगती है और अगर उससे भी पानी न आए, तो बाजार से 20 लीटर की पानी की बोतल आ जाती है। उन्हें कोउ फर्क नहीं पड़ता अगर एक या दो दिन पानी नहीं आए, लेकिन कभी छोटी जगह रहनेवाले लोगों से पूछिए, किसानों से पूछिए जिनके यहां अगर दो दिन पानी नहीं आता तो खाना नहीं बन पाता, क्योंकि उसके लिए पानी ही नहीं बचता। बच्चे नहा नहीं पाते जी भरकर पानी नहीं पी पाते। उन्हीं लोगों के लिए मैं कहता हूं - ‘पानी तो पानी है, पानी जिंदगानी है।’ मुझे बहुत दुख होता है जब मैं किसी की छत पर टँकी से न जाने कितने लीटर पानी बहते देखता हूं। मैं सोचता हूं कि कैसे कोई इतना लापरवाह हो सकता है कि इतने कीमती पानी का मोल नहीं समझ रहा। लोग रोज न जाने कितने हजारों लीटर पानी बहा देते हैं। क्या वह जरा-सी समझदारी दिखाकर उसे बचा नहीं सकते। मैंने देखा है कि जहां शहरों में हम नौकरी, कार, बड़ा घर, सैलरी और न जाने कितनी छोटी-छोटी चीजों के लिए परेशान होते हैं, वहीं हमारे गांवों के किसान मजे से अपना जीवन जीते हैं। उन्हें न बड़ा घर चाहिए और न ही आलीशान गाड़ी। वर्षों उनके साथ काम करके मैंने जाना कि हमारे किसान को सिर्फ दो ही चीजें चाहिएं और वे हैं - पानी और बिजली। अगर ये चीजें किसान को मिल जाएं, तो वह किसी से कुछ नहीं मांगेंगे, लेकिन उन बेचारों के भाग्य में वह भी नहीं है। वह इसके लिए भी तरस जाते हैं। क्या उनकी गलती इतनी-सी है कि उनकी मांग बहुत ज्यादा बड़ी नहीं है, फिर कब उनकी छोटी-सी ख्वाहिश पूरी होगी, हालांकि मैं और मेरे जैसे कई लोग मिलकर अब इस समस्या से निपटने का रास्ता खोज रहे हैं, लेकिन मेरी अपील देश के हर नौजवान से है जो अपने किसान और अपने गरीब से प्यार करता है। उसी प्यार के लिए उन्हें पानी और बिजली का सुख भोगने का मौका दीजिए और वह मौका उन्हें बिना आपके सहयोग के नहीं मिलेगा। 

(लेखक प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता हैं)

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