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इटावा

इटावा उत्तर प्रदेश का एक जिला है, जो दक्षिणी-पश्चिमी भाग में है। इसके उत्तर में फर्रुखाबाद तथा मैनपुरी, पश्चिम में आगरा, पूर्व में कानपुर तथा दक्षिण में जालौन और मध्य प्रदेश स्थित हैं। इसका क्षेत्रफल ४,३२७ वर्ग कि.मी. तथा जनसंख्या १४,४५,१९७ है। इसमें चार तहसीलें हैं : विधुना (उ.प्र.), औरैया (द्र.), भर्थना (केंद्र), तथा इटावा (प.)। यों तो यह जिला गंगा यमुना के द्वाबे का ही एक भाग है, परंतु इसे पाँच उपविभागों में बाँटा जा सकता है। (१) 'पछार'-यह सेंगर नदी के पूर्वोत्तर का समतल मैदान है जो लगभग आधे जिले में फैला हुआ है; (२) 'घार' सेंगर तथा यमुना का द्वाबा है जो अपेक्षाकृत ऊँचा नीचा है; (३) 'खरका'-इसमें यमुना के पूर्वकालीन भागों तथा नालों के भूमिक्षरण के स्पष्ट चिह्न विद्यामान हैं, (४) यमुना-चंबल-द्वाबा-एकमात्र बीहड़ प्रदेश है जो खेती के लिए सर्वथा अनुपयुक्त है; (५) चंबल के दक्षिण की पेटी-यह एक पतली सी बीहड़ पेटी है जिसमें केवल कुछ ग्राम मिलते हैं; इसकी भूस्थिति यमुना-चंबल के द्वाबे से कठिन है। 'पछार' तथा 'घार' में दोमट और मटियार तथा 'भूड़' और 'झाबर' में 'चिक्का' मिट्टी पाई जाती है। अंतिम तीनों भागों में 'पाकड़' नामक कंकरीली मिट्टी भी मिलती है। दक्षिण में यत्रतत्र लाल मिट्टी मिलती है। इसकी जलवायु गर्मियों में गर्म तथा जाड़ों में ठंडी रहती है। वर्षा का वार्षिक औसत लगभग ३४.१५है।

इसकी कुल कृषीय भूमि ६०.३ प्रतिशत है, वन केवल ३.९ प्रतिशत है। सिंचाई के मुख्य साधन नहरें, कुएँ, नदियाँ तथा तालाब हैं जिनमें नहरें ८५.३ प्रतिशत, कुएँ १३.१ प्रतिशत तथा अन्य साधन १.६ प्रतिशत हैं। खरीफ रबी से अधिक महत्वपूर्ण है, खरीफ की मुख्य फसल बाजरा तथा रबी की चना है।

इटावा नगर इटावा जिले का केंद्र है जो यमुना के बाएँ किनारे पर बसा हुआ है। यह उत्तरी रेलवे का एक बड़ा स्टेशन है और फर्रुखाबाद-ग्वालियर तथा आगरा-इलाहाबाद जानेवाली पक्की सड़कें भी यहाँ मिलती हैं। यह आगरा से ७० मील पर दक्षिण-पूर्व में तथा इलाहाबाद से २०६ मील पर उत्तर पश्चिम में स्थित है। इस नगर में नालों की संख्या अधिक है अत: इसकी जल निकासी बहुत अच्छी है। यहाँ की जामा मस्जिद बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है, पूर्वकाल में यह एक हिंदू मंदिर था जिसे मुसलमानों ने मस्जिद में परिणत कर दिया। चौहान राजाओं के प्राचीन दुर्ग के भग्नावशेष भी इटावा की गौरवगाथा के परिचायक हैं। हिंदूकाल में यह एक प्रसिद्ध नगर था, परंतु महमूद गजनवी तथा शहाबुद्दीन की लूट मार ने इस नगर के वैभव को मिट्टी में मिला दिया। मुगलकाल में इसका जीर्णोद्वार हुआ, परंतु मल्हारराव होल्कर ने सन्‌ १७५० ई. के लगभग इस नगर को फिर लूटा। आजकल यह गल्ले तथा घी की बड़ी मंडी है और यहाँ का सूती उद्योग (विशेषकर दरी उद्योग) उन्नतिशील अवस्था में है। (ले.रा.सिं.क.)

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