जागरुकता में बदली स्वच्छता

19 Sep 2019
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swachh bharat abhiyan
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स्वच्छता भारत अभियान ऐसा अभियान है, जो माँग आधारित एक जनकेन्द्रित है। इसके जरिए कोशिश हो रही है कि लोगों की स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को बेहतर बनाया जाए। कहा जाता है कि जागरूकता जब विचारों में ढल जाती है और उस पर लगातार सक्रियता बनी रहती है तो 10-15 सालों में ये आदत बन जाती है। ग्रामीण स्वच्छता अभियान देश के ज्यादातर गाँवों तक पहुँच चुका है। फरवरी के पहले हफ्ते में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश की 98 फीसदी ग्रामीण आबादी इसके तहत आ चुकी है।

राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय का उपयोग 93.4 प्रतिशत होने की पुष्टि हुई है। यानी, जिन घरों में शौचालय उपलब्ध है, उनमें से 93.4 प्रतिशत उसका उपयोग भी करते हैं। जो राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश पूरी तरह से ओडीएफ घोषित हो चुके हैं, उसमें अंडमान एंड निकोबार द्वीप, आन्ध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, लक्षदीप, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु और उत्तराखण्ड शामिल हैं।

महात्मा गाँधी 1920 के दशक में अपने भाषणों में देश के लोगों से हमेशा सफाई की बात करते थे। अपने देशव्यापी दौरों में वो जिस तरह तमाम शहरों को देखते थे, उससे उन्हें लगता था कि देश के लोग सफाई को लकर जागरुक नहीं हैं। लिहाजा हमारे सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी का आलम है। गाँधीजी की इस बात पर शायद ही किसी ने ध्यान दिया हो। 02 अक्टूबर, 2014 को जब गाँधी जी की इस इच्छा को सामने रखते हुए स्वच्छ भारत अभियान की घोषणा की गई, उसके बाद एक बड़ा बदलाव आया है। सबसे बड़ी बात ये हुई कि लोगों में सफाई को लेकर जागरुकता आ चुकी है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वास्तविक तौर पर सफाई अभियान रंग लेता लगने लगा है। हाल ही में बिल गेट्स ने भारत के स्वच्छता अभियान की तारीफ की। उन्होंने कहा कि अगर भारत में स्वच्छता अभियान जारी रहा तो ये न केवल इस देश के लिए बहुत बढ़िया होगा बल्कि पूरी दुनिया को भी इससे कुछ सीखने को मिलेगा। गेट्स ने कहा कि अच्छी बात ये है कि भारत के लोगों के बीच सफाई को लेकर बातचीत होने लगी है। दिमाग में ये बात बैठने लगी है कि स्वच्छता हमारे जीवन में अहम रोल निभाती है। स्वच्छ भारत और निर्मल भारत अभियान कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए चलाया जा  रहा ऐसा अभियान है, जो माँग-आधारित एवं जनकेन्द्रित है। इसके जरिए कोशिश हो रही है कि लोगों की स्वच्छता सम्बन्धी आदतों को बेहतर बनाया जाए। स्व-सुविधाओं की माँग उत्पन्न करने के साथ स्वच्छता सुविधाओं को उपलब्ध कराया जाए। ऐसा होने पर ग्रामीणों का जीवन-स्तर खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएगा। गाँव न केवल स्वच्छ होंगे बल्कि काफी हद तक बीमारियों से मुक्त हो जाएँगे। कहा जाता है कि जागरुकता जब विचारों में ढल जाती है और उस पर लगातार सक्रियता बनी रहती है तो 10-15 सालों में ये आदत बन जाती है।

ग्रामीण स्वच्छता अभियान देश के ज्यादातर गाँवों तक पहुँच चुका है। फरवरी के पहले हफ्ते में पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश की 98 फीसदी ग्रामीण आबादी इसके तहत आ चुकी है। आँकड़े कहते हैं कि अब तक 27 राज्यों के 5.5 लाख गाँव खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) घोषित हो चुके हैं। 05 फरवरी, 2019 तक 9.16 करोड़ टायलेट बन गए। इसमें से 2.94 करोड़ टायलेट तो पिछले दो सालों में बनाए गए हैं। इसमें 601 जिले, 5934 ब्लॉक, 2,46,116 ग्राम पंचायतें और 5,50,151 गाँव ओडीएफ घोषित हो चुके हैं। इस पर करीब 70 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, ये रकम राज्य और केन्द्र सरकारों ने पिछले साढ़े तीन साल में खर्च की है।

इस स्कीम में सरकार ‘हर घर में शौचालय’ के निर्माण के लिए गरीबी-रेखा से नीचे रहने वालों को 12 हजार रुपए देती है। ऐसी ही मदद गरीबी रेखा से ऊपर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, छोटे और मझोले किसानों और भूमिहीन मजदूरों को भी दी जाती है। इस अभियान में 60 फीसदी रकम केन्द्र द्वारा लगाई जाती है तो 40 फीसदी राज्यों के जरिए। हालांकि नार्थ-ईस्ट राज्यों में तस्वीर कुछ अलग है। वहाँ कहीं-कहीं केन्द्र ने 90 फीसदी तक आर्थिक मदद की है। प्राइवेट कम्पनियों को भी सोशल रिस्पांसिबिलिटी फंड से ग्रामीण स्वच्छता के लिए काम करने को प्रेरित किया जा रहा है। ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रामीण इलाकों में जिन घरों में शौचालय है, वहाँ ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। साफ है कि ग्रामीण इलाके के लोगों की आदतों में तेजी से बदलाव आ रहा है। शौचालय के उपयोग में वो किसी से पीछे नहीं हैं। केन्द्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की और से विश्व बैंक समर्थित स्वच्छ भारत मिशन परियोजना के अन्तर्गत एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा किए गए राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय का उपयोग 93.4 प्रतिशत होने की पुष्टि हुई है। यानी, जिन घरों में शौचालय उपलब्ध है, उनमें से 93.4 प्रतिशत उसका उपयोग भी करते हैं। जो राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश पूरी तरह से ओडीएफ घोषित हो चुके हैं, उसमें अंडमान एंड निकोबार द्वीप, आन्ध्रप्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखण्ड, कर्नाटक, केरल, लक्षदीप, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु और उत्तराखण्ड शामिल हैं। जिन गाँवों को खुले में शौच मुक्त घोषित और सत्यापित किया गया है, सर्वेक्षण एजेंसी ने उनमें से 95.6 प्रतिशत गाँवों के खुले में शौच मुक्त होने की पुष्टि की है। ये सर्वेक्षण मध्य नवम्बर 2017 और मध्य मार्च 2018 के बीच किया गया। इसके अन्तर्गत 6136 गाँवों के 92,040 घरों का स्वच्छता सम्बन्धी विषयों पर सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण के अन्तर्गत गाँवों के स्कूल आँगनबाड़ी एवं सामुदायिक शौचालयों का भी सर्वेक्षण किया गया। जाहिर है अब जब इसके नए आँकड़े आएँगे तो तस्वीर और बेहतर नजर आएगी।
 
बचत के साथ बीमारियों से बचाव भी
 
यूनिसेफ ने पहले कहा था कि स्वच्छता का अभाव भारत में हर साल एक लाख से भी अधिक बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार है। अब यूनसेफ का कहना है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में चल रहे स्वच्छता अभियान से न केवल बीमारियाँ कम हो रही हैं बल्कि इसका खर्च बचने से ओडीएफ गाँव का हर परिवार 50 हजार रुपए सालाना की बचत भी कर पा रहा है।
 
डब्ल्यूएचओ भी कर चुका है तारीफ

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी इस अभियान की तारीफ कर चुका है। डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ रिचर्ड जॉनस्टन ने कहा कि ‘स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)’ से बड़े पैमाने पर लोग मौत के मुँह में जाने से बचा लिए जाएँगे।
 
सफाई का बीमारियों में कमी से है सीधा रिश्ता

शुद्ध पेयजल और शौचमुक्त गाँवों और जिलों के बढ़ने से माँ और नवजात बच्चों को संक्रामक बीमारियों से बचाया जा रहा है। ये हालत अगर स्वच्छ समाज और स्वच्छ देश बना रहे हैं तो इसका असर हमारे सकल घरेलू उत्पाद की बेहतर सेहत पर पड़ेगा। जब स्वच्छता बढ़ेगी, पेयजल शुद्ध होगा तो खानपान भी बेहतर होगा। इससे बीमारियों में गिरावट आएगी, एक साल पहले के आँकड़े बताते हैं कि ओडीएफ जिलों में 62.5 फीसदी माएं स्वस्थ पाई गई हैं तो गैर ओडीएफ जिलों में ये स्थिति 57.5 फीसदी की रही। जिन घरों में पाइप से पीने का पानी आता है, वहाँ संक्रमण अपने निम्न-स्तर पर है। पंचायतों और स्वास्थ्य विभाग के बीच जिस तालमेल की जरूरत है, वो बेहतर दिखने लगा है। हमें ये भी जानना चाहिए कि मानव मल किस तरह पर्यावरण को न केवल प्रदूषित करता है बल्कि स्वास्थ्य पर खराब असर भी डालता है। मानव मल में भारी संख्या में रोगों के कीटाणु होते हैं। एक ग्राम मानव मल में एक करोड़ वायरस, दस लाख बैक्टीरिया से दस्त, टाइफाइड, आँतों में कीड़े, रोहा, हुक वार्म, मलेरिया, फालेरिया, पीलिया, टिटनस आदि बीमारियाँ हो सकती हैं। इनसे अब गाँवों में काफी हद तक बचाव होने लगा है।
 
अगला कदमजैसाकि पहले भी कहा जा चुका है सफाई को लेकर सक्रियता लगातार जब कई सालों तक जारी रहेगी तो ये हमारी आदतों में दिखने लगेगी। इसलिए सरकार की योजना अपने कदम को केवल ओडीएफ तक सीमित रखने की नही है बल्कि इसके बाद ओडीएफ प्लस जैसा कार्यक्रम चलाया जाएगा। स्थानीय तौर पर ठोस और द्रव अपशिष्टों के ट्रीटमेंट मैनेजमेंट पर काम होगा। बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का उपयोग कर ग्रामीण भारत में कचरे के इस्तेमाल से पूँजी तैयार की जाएगी। यानी कचरे को जैव उर्वरक और ऊर्जा के विभिन्न रूपों में बदला जाएगा और उसका उपयोग किया जाएगा।
 

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