जिम कार्बेट की नजर से नैनीताल

12 Nov 2019
0 mins read
जिम कार्बेट की नजर से नैनीताल
जिम कार्बेट की नजर से नैनीताल

आप एक बढ़िया-सी दूरबीन ले लीजिए और मेरे साथ चलिए चीना पहाड़ी की चोटी पर। यहाँ से आपको नैनीताल के आस-पास के इलाके का नजारा वैसे ही दिखाई देगा - जैसे किसी ऊँची उड़ती चिड़िया की आँखों से आप देख रहे हों। सड़क एकदम सीधी चढ़ाई वाली है, लेकिन यदि चिड़िया, पेड़ों और फूलों में आपकी दिलचस्पी है तो तीन मील की यह चढ़ाई आपको अखरेगी नहीं। ऊपर यदि आपको भी उन तीनों ऋषियों की तरह प्यास लगे तो मैं आपकी स्फटिक के समान धौला और चमकदार पानी का एक स्रोत बताऊँगा, जहाँ आप अपनी प्यास बुझा सकते हैं। थोड़ा सुस्ताने और  अपना लंच करने के बाद अब हम उत्तर की तरफ मुड़ते हैं। आपको ठीक नीचे घने पेड़ों से भरी जो घाटी दिखती है, वह कोसी नदी तक फैली हुई है। नदी के पार एक-दूसरे के साथ चलती पहाड़ियों की चोटियाँ हैं, जिन पर यहां-वहां गाँव बसे हुए हैं।। इन्हीं में से एक चोटी पर अल्मोड़ा शहर है और दूसरी पर रानीखेत की छावनी। इन चोटियों के पार और चोटियाँ हैं, जिनमें सबसे ऊँची पहाड़ी ढूँगर बुकाल है, लेकिन 14,200 फीट ऊँची यह पहाड़ी बर्फ से ढके हिमालय पर्वतों के सामने बौनी पड़ जाती है। यदि कौए की उड़ान के हिसाब से सोचें तो आपके उत्तर में 60 मील दूर त्रिशूल है और 23,406 फीट ऊंची इस पहाड़ी के पूरब और पश्चिम में बर्फ के पहाड़ों की अटूट लकीर सैकड़ों मील लम्बाई में है। जहाँ बर्फ निगाहों में ओझल होती है, वहाँ त्रिशूल के पश्चिम की तरफ पहले तो गंगोत्री वाले पहाड़ हैं, फिर बर्फ की नदियों और पहाड़ों के ऊपर केदारनाथ और बद्रीनाथ के पवित्र स्थान हैं और स्मिथ की वजह से मशहूर माउन्ट कामेट पर्वत (25,447 फीट) है। त्रिशूल के पूरब की तरफ थोड़ा और पीछे आपको नंदादेवी पर्वत (25,689 फीट) दिखाई देगा, जो कि हिन्दुस्तान में सबसे ऊँचा पर्वत है। उसके दाहिनी तरफ सामने नंदाकोट है- देवी पार्वती का बेदाग तकिया और थोड़ा आगे पूरब में पंचाचूली की खूबसूरत चोटियाँ हैं। पंचाचूली, मतलब पाँच चूल्हे-तिब्बत में कैलास के रास्ते जाते पांडवों ने यहीं खाना पकाया था। सूरज की पहली किरण के आने पर चीना और बीच की पहाड़ियाँ जब रात के अंधेरे के आगोश में ही होती हैं, तब बर्फीले पर्वतों का माथा गहरे रंग से बदलकर गुलाबी हो जाता है और जैसे ही आसमान की सबसे करीबी चोटी को सूरज छूता है, यह गुलाबी रंग हौले-हौले चकाचैंध सफेदी में बदल जाता है.
 
दिन के वक्त ये पहाड़ शीतल और दूधिया दिखते हैं- चोटियों के पीछे बर्फीली धुंध की झीनी परत नजर आती है। सूरज के डूबते वक्त ये नजारा कुदरत के चितेरे के मन की उड़ान के मुताबिक गुलाबी, सुनहरी या लाल रंग लिए होता है। अब बर्फ के पहाड़ों की तरफ आप पीठ कर लीजिए और चेहरा दक्षिण की तरफ। अपनी दूर निगाह की आखिरी हद पर तीन शहर आपको दिखाई देंगे- बरेली, काशीपुर और मुरादाबाद। इन तीन शहरों में काशीपुर हमारे सबसे नजदीक है और फिर यदि कौए की उड़ान से हम आसमानी दूरी मापें तो यह हमसे 50 मील दूर है। ये तीनों शहर कोलकाता और पंजाब को जोड़ने वाली रेलवे लाइन के किनारे बसे हैं। रेलवे लाइन और इन पहाड़ियों के बीच की जमीन तीन किस्म की पट्टियों में बंटी है। पहली पट्टी में खेती-किसानी होती है और यह करीब 20 मील चैड़ी है। दूसरी पट्टी घास की है। करीब 10 मील चैड़ी इस पट्टी को तराई कहा जाता है और तीसरी पट्टी भी 10 मील चैड़ी है, जिसे भाबर कहा जाता है। भाबर पट्टी सीधे निचली पहाड़ियों तक फैली हुई है। इस पट्टी में साफ किए गए जंगलो की उपजाऊ जमीन को सींचने के लिए कई नदी-नाले हैं और इस पट्टी में छोटे-बड़े कई गाँव बस गए हैं।
 
इनमें से सबसे नजदीकी गाँव कालाढूँगी सड़क के रास्ते नैनीताल से 15 मील दूर है और इसी बस्ती के ऊपरी सिरे पर हमारा गाँव है- छोटी हल्द्वानी, जो कि तीन मील लम्बी पत्थर की दीवार से घिरा हुआ है। नैनीताल से कालाढूँगी आने वाली सड़क जहाँ पर निचली पहाड़ियों के किनारे बनी सड़क से आ मिलती है-ठीक वहीं मौजूद हमारी कॉटेज की छत पेड़ों के झुरमुट से झांकती दिखाई देती है। यहाँ की निचली पहाड़ियों के करीब-करीब पूरे इलाके के पत्थरों में लोहा है। उत्तरी हिन्दुस्तान में पहली बार लोहा कालाढूँगी में ही गलाया गया था। लोहा गलाने में लकड़ी का ईधन इस्तेमाल किया गया था, कुमाऊँ के बेताज बादशाह सर हेनरी रैमजे को जब यह डर लगा कि भाबर के पूरे जंगल ही इन भट्टियों में झोंक दिए जाएंगे तो उन्होंने भट्टियाँ बन्द करा दी।
 
चीनी पहाड़ी पर जहाँ आप बैठे हैं, वहाँ से लेकर कालाढूँगी तक निचली पहाड़ियों में साल के घने जंगल हैं। इन पेड़ों की लकड़ी रेलवे स्लीपर बनाने के काम आती है। पहाड़ी की सबसे नजदीकी चोटी की नजदीकी परत के पास है छोटी सी झील खुर्पाताल, जिसके इर्द-गिर्द फैले खेतों में हिन्दुस्तान के सबसे उम्दा आलू पैदा होते हैं। अपनी दांई तरफ थोड़ा आगे, आपको सूरज की रोशनी में चमकती गंगा दिखाई देती है और बांई तरफ यही रोशनी शारदा के पानी पर चमकती दिखाई देती है। इन दोनों नदियों और निचली पहाड़ियों से होकर इनके गुजरने के बीच की दूरी करीब दो सौ मील है।
 
अब आप पूरब की तरफ मुड़ें। अब आपके सामने और बीच की दूरी में फैला जो इलाका दिखाई देता है, उसे पुराने गजेटियरों में साठ झीलों वाला जिला कहा गया है। इनमें से बहुत-सी झीलें गाद जमने से भर गई हैं। कुछ झीले तो मेरे सामने ही भरकर खत्म हुई हैं और अब कुछ मायने रखने वाली जो झीलें बची हैं वे हैं- नैनीताल, सातताल, भीमताल और नौकुचियाताल। नौकुचियाताल के आगे आइसक्रीम के कोन जैसी जो पहाड़ी दिखाई दे रही है, वो है छोटा कैलास। इस पवित्र पहाड़ी पर किसी परिंदे या जानवर का शिकार यहाँ के देवताओं को गवारा नहीं। लाम से छुट्टी पर लौटा एक सिपाही जिसने देवताओं की मर्जी के खिलाफ एक पहाड़ी पर बकरी का शिकार किया था, यहाँ शिकार करने वाला आखिर इंसान साबित हुआ था। पहाड़ी बकरी को अपना शिकार बनाने के बाद अपने दो साथियों के देखते-देखते बगैर किसी जाहिर वजह के वह गिरा और हजार फुट गहरी घाटी में समा गया। छोटे कैलास के आगे काला आगर पहाड़ियाँ हैं, जहाँ मैं चैगढ़ के आदमखोर की तलाश में दो बरस तक घूमता रहा था। इन पहाड़ियों के बाद नेपाल के पर्वत आँखों से ओझल होते दिखते हैं।
 
अब जरा पश्चिम की ओर मुड़ें। लेकिन पहले यह जरूरी है कि आप कुछ सौ फीट नीचे उतर कर देवपट्टा की 7991 फुट ऊँची और चीना से सटी हुई चोटी पर आ जाए। ठीक नीचे पेड़ों से भरपूर बीच की तंग पट्टी वाली गहरी घाटी चीना और देवपट्टा के जोड़ से शुरू होती है और दाचुरी से होती हुई कालाढूँगी तक चली जाती है। हिमालय की किसी भी घाटी के मुकाबले यहाँ कई गुना ज्यादा पेड़-पौधे, फल-फूल, परिंदे और जानवर हैं। इस खूबसूरत घाटी के आगे की पहाड़ियों की अटूट माला गंगा तक चली जाती है। गंगा का धूप में चमकता पानी आप सौ मील दूर से भी देख सकते हैं। गंगा के उस तरफ शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं- वो पहाड़ियाँ, जो बुलन्दी से खड़े हिमालय के जन्म के पहले ही बूढ़ी हो चुकी थीं।

 

TAGS

nainital, nainital hindi, history of nainital, lakes in nainital, naini lake, jim corbett national park, british era in nainital, nainital wikipedia.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading