जल एक असाधारण गुणधर्मों वाला द्रव

5 Jan 2016
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जलजल के बिना धरती पर जीवन सम्भव नहीं। जल एक रंगहीन, स्वादहीन तथा पारदर्शी यौगिक है। इसके एक अणु में हाइड्रोजन के दो तथा आॅक्सीजन का एक परमाणु होता है। यह धरती पर ठोस, द्रव एवं गैस तीनों अवस्थाओं में ही पाया जाता है।

लेकिन पहले जल को एक तत्व यानि एलीमेंट माना जाता था। यहाँ तक कि प्राचीन रसायनज्ञ माने जाने वाले कीमियागर भी जल को तत्व मानते थे। सन 1781 में हेनरी केवेंडिश ने पहले पहल यह साबित किया कि जल काई तत्व नहीं बल्कि एक यौगिक है। इसके दो वर्ष बाद 1783 में एंतोइन लाॅरेंट लेवोशिए ने अपने प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया कि जल हाइड्रोजन और आॅक्सीजन नामक तत्वों के मेल से बना एक यौगिक है।

जल एक असाधारण गुणों वाला द्रव है। साधारणतया तापमान में वृद्धि के साथ पदार्थों के आयतन में वृद्धि होती है लेकिन जल एक अपवाद है। शून्य डिग्री सेल्सियस पर जल ठोस यानी बर्फ के रूप में होता है। तापमान बढ़ने पर बर्फ जल में बदलने लगती है। लेकिन शून्य डिग्री सेल्सियस से 4 डिग्री सेल्सियस तक इसका आयतन घटता है जिसके चलते इसके घनत्व में वृद्धि होती है। इसके बाद तापमान बढ़ाने पर जल का आयतन बढ़ता है यानि इसका घनत्व कम होता है। किसी भी अन्य द्रव में जल जैसा यह गुण देखने को नहीं मिलता।

जल का हिमांक (फ्रीजिंग प्वाइंट) शून्य डिग्री सेल्सियस है यानि यह शून्य डिग्री सेल्सियस पर बर्फ के रूप में आ जाता है। इसका क्वथनांक (बाॅयलिंग प्वाइंट) 100 डिग्री सेल्सियस है यानि यह 100 डिग्री सेल्सियस पर उबलता है।

जल का यह गुण इसमें मौजूद रासायनिक बंधों के कारण होता है जिन्हें रसायनविज्ञानी हाइड्रोजन बंध कहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर जल में हाइड्रोजन बंध न होते तो इसका हिमांक शून्य डिग्री सेल्सियस की जगह -100 डिग्री सेल्सियस तथा इसका क्वथनांक - 80 डिग्री सेल्सियस होता। जरा सोचिए ऐसे में पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत ही न हुई होती। जल का हिमांक शून्य डिग्री सेल्सियस तथा क्वथनांक 100 डिग्री सेल्सियस साधारण दाब पर ही होता है।

प्रेशर कुकर में दाब के बढ़ने से ही जल का क्वथनांक बढ़ जाता है जिससे खाना जल्दी पकता है।

दाब बढ़ाने से पानी का हिमांक कम हो जाता है तथा जल शून्य डिग्री सेल्सियस तापमान पर बर्फ के रूप में न जमकर शून्य से भी नीचे के तापमान पर जमता है। ध्रुवीय प्रदेशों में चारों ओर बर्फ ही बर्फ छाई होती है। बर्फ की परत के नीचे की परतों पर प्रबल दाब होता है। ऐसे में वातावरण का तापमान शून्य से नीचे होने पर भी नीचे दबी बर्फ पिघली हुई यानि जल द्रव की अवस्था में ही होती है। बर्फ की मोटी परत कुलाचक की तरह भी काम करती है। तभी इस परत के नीचे का जल जम नहीं पाता और जल में मछलियाँ आदि सुरक्षित विचरण करती हैं।

ध्रुवीय प्रदेशों में रहने वाले एस्किमो लोग बर्फ के नीचे मौजूद इसी जल का उपयोग कर तथा इसमें रहने वाली मछलियों का शिकार कर जीवित रहते हैं।

चूँकि जल का घनत्व 4 डिग्री सेल्सियस पर महत्तम होता है, बर्फ (जो शून्य डिग्री या इससे कम तापमान पर होती है) का घनत्व जल से कम होता है। तभी बर्फ जल से हल्की होने के कारण उस पर तैरती है।

तैरते समय बर्फ का 10 प्रतिशत हिस्सा जल से ऊपर होता है। इस तरह बर्फ का 10 प्रतिशत हिस्सा जल से ऊपर तथा 90 प्रतिशत हिस्सा जल में डूबा रहता है। यही कारण है कि महासागरों में तैरते हुए बर्फ के हिमखंडों का 10 प्रतिशत हिस्सा ही जल से ऊपर दिखाई देता है। अंग्रेजी कहावत ‘टिप आॅफ द आइसबर्ग’ में भी यही वैज्ञानिक तथ्य सन्निहित दिखाई देता है।

अटलांटिक महासागर में 1912 में हिमखंड से टकरा जाने के कारण टाइटैनिक नामक जहाज दुर्घटनाग्रस्त होकर डूब गया था। पानी के बाहर हिमखंड का केवल दस प्रतिशत हिस्सा ही होता है। इस वैज्ञानिक तथ्य की अनदेखी करने के कारण ही यह दुर्घटनाग्रस्त हुआ। समुद्र से गुजरते और भी जहाज हिमखंड सम्बन्धी इस वैज्ञानिक तथ्य से अनभिज्ञ होने के कारण इसके छोटे से हिस्से को पानी से बाहर देखकर भ्रम में पड़ जाते हैं और दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।

बर्फ का एक और अद्भुत गुण यह होता है कि वह फिसलनदार होती है। इसके इसी गुण के कारण ही स्केटिंग और स्कीइंग जैसे बर्फ पर खेले जाने वाले खेल सम्भव हो पाते है।

बर्फ की सतह के चिकने होने के पीछे छिपे रहस्य को जानने के प्रयास वैज्ञानिकों ने किए हैं। अपने अध्ययन द्वारा उन्होंने पाया कि बर्फ की सतह का व्यवहार ठोस तथा द्रव के बीच का होता है यानि न तो यह पूरी तरह से ठोस जैसा होता है और न पूरी तरह से द्रव जैसा। वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि बर्फ की सतह पर मौजूद जल के अणुओं में होने वाला कंपन शेष अणुओं की तुलना में अधिक तीव्रतापूर्ण होता है। तभी बर्फ की सतह कुछ-कुछ द्रव जैसा व्यवहार करती है।

आभास मुखर्जी
43, देशबंधु सोसायटी, 15, पटपड़गंज, दिल्ली - 110092
 

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