जल का घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य उपयोग


ग्रामीण तथा नगरीय पेयजल प्रदाय योजना का विकास :


जल मानव जीवन की एक प्रधान आवश्यकता है। प्रत्येक जीवधारी को जीवित रहने के लिये जल अत्यंत आवश्यक है। प्राचीन समय में पीने एवं घरेलू कार्यों के लिये नदी या तालाबों के जल को सीधे (बिना किसी यांत्रिकी या तकनीकी विधि का प्रयोग किये) उपयोग कर लिया जाता था। इस प्रकार की पेयजल व्यवस्था स्वास्थ्य के लिये अत्यंत हानिकारक एवं भयानक होती थी। वर्तमान में पेयजल की व्यवस्था यांत्रिकी एवं तकनीकी विधियों द्वारा किया जाता है। यह व्यवस्था लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा की जाती है।

ऊपरी महानदी बेसिन में सन 1991 के अनुसार कुल जनसंख्या 1,33,26,396 व्यक्ति हैं। इसमें 1,06,68,837 (80.5 प्रतिशत) ग्रामीण एवं 26,57,570 (19.05 प्रतिशत) नगरीय जनसंख्या है। यह जनसंख्या 14,723 गाँव एवं 68 नगर में निवास करती है। इसके अंतर्गत ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में उपलब्ध शुद्ध जल का वितरण एवं जल की समस्या का अध्ययन किया गया है।

ग्रामीण पेयजल व्यवस्था :


ऊपरी महानदी बेसिन में ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति के लिये वर्तमान में राजीव गांधी पेयजल मिशन (1972-73) एवं राष्ट्रीय पेयजल मिशन (1986) द्वारा सुरक्षित पेयजल विशेषकर समस्याग्रस्त एवं स्रोत-विहीन गाँवों में उपलब्ध हो रहा है।

बेसिन में ग्रामीण क्षेत्रों की प्रमुख समस्या शुद्ध पेयजल उपलब्ध न होने की है, जिससे अनेक संक्रामक बीमारियाँ फैलती हैं। अत: आवश्यक है कि यहाँ इन समस्याओं से बचने के लिये पेयजल व्यवस्था का समुचित विकास किया जाय। यहाँ के ग्रामीण अभी भी पुराने साधनों (नदी, तालाब, कुएँ एवं नालें आदि) से पीने एवं अन्य घरेलू कार्यों हेतु जल का उपयोग करते हैं। वर्तमान में शासन द्वारा हस्तचलित नलकूप लगाया जा रहा है जिससे ग्रामीणों की समस्याएँ कुछ कम हुई हैं। गर्मियों में नदी नाले एवं तालाब सूख जाते है एवं जल का सतह भी बहुत नीचे चला जाता है। जिससे ग्रामीण लोगों को पेयजल की समस्या से जुझना पड़ता है। बेसिन में अनेक गाँव ऐसे भी हैं जहाँ वर्षभर पेयजल की प्राप्ति हेतु एक से दो किमी दूर जाना पड़ता है। शासन ने ऐसे ग्रामों को समस्यामूलक ग्राम घोषित किया है। समस्यामूलक ग्रामों में पेयजल की व्यवस्था लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा किया जा रहा है।

ऊपरी महानदी बेसिन में 14,164 आबाद गाँव में से 841 (5.95 प्रतिशत) साधनयुक्त गाँव एवं 13,322 (94.05 प्रतिशत) समस्यामूलक गाँव है। यहाँ हस्तचलित नलकूपों की संख्या 59,194 है। यहाँ प्रति हजार जनसंख्या पर 4 नलकूप हैं।

ऊपरी महानदी बेसिन - ग्रामीण पेयजल सुविधायुक्त एवं समस्यामूलक ग्राम, 1995

पेयजल की आपूर्ति एवं समस्या :


ऊपरी महानदी बेसिन में धरातलीय एवं भूमिगत जल उपभोग के बीच असंतुलन दिन-प्रतिदिन गंभीर होते जा रही है जिसके कारण धरातलीय जल की अनावश्यक बर्बादी एवं भूमिगत जल के अतिदोहन की समस्या ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में व्याप्त है। यह समस्या बेसिन में मिट्टी की प्रकृति एवं बनावट, पानी सोखने की क्षमता, रासायनिक तत्वों की उपस्थिति आदि कारकों से प्रभावित है। बेसिन में 13,322 (94.05 प्रतिशत) समस्यामूलक गाँव है। कुल 13,853 (97 प्रतिशत) गाँव में पेयजल सुविधा है लेकिन गर्मी के दिनों में कार्यरत हैंडपम्प सूख जाते हैं। इसका प्रमुख कारण भूगर्भ जल का स्तर नीचा हो जाना है इससे पेयजल के साथ-साथ सिंचाई की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है। दूसरा कारण धरातलीय जल का उपयोग सिंचाई एवं औद्योगिक कार्यों के लिये बहुतायत से होने के कारण पेयजल की समस्या हो जाती है।

ऊपरी महानदी बेसिन - ग्रामीण पेयजल व्यवस्था एवं ज प्रदाय योजनाएं, 1995

हस्तचलित पम्पों की स्थिति :


ऊपरी महानदी बेसिन में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित हैण्डपम्पों की संख्या 59,194 है जिसमें 55,604 (93.93 प्रतिशत) कार्यरत एवं 3,590 (6.07 प्रतिशत) हैंडपम्प बिगड़े हुए हैं। इसके लिये 623 हैंडपम्प मैकेनिक उपलब्ध है एवं 21 चलित इकाईयाँ हैं। बेसिन में रायगढ़ जिले में सर्वाधिक हैंडपम्प (43 प्रतिशत) बिगड़े हुए हैं इसके बाद क्रमश: एवं कांकेर 0.83 प्रतिशत का स्थान है। यहाँ नागरिकों में जागरूकता एवं जवाबदारी की कमी के कारण नलकूपों की स्थिति खराब होते जा रही है। इसके सुधार के लिये मैकेनिकों एवं उचित मशीनरी के अभाव से तुरंत कार्यवाही नहीं हो पाती, फलस्वरूप नलकूप वर्षा के दिनों में कीचड़ आदि से भर जाते हैं। जिससे गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।

ग्रामीण पेयजल के साधन :


जल मनुष्य की प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है, जो सहज प्राप्य माना जाता है। लेकिन धरातलीय एवं भू-गर्भीय जलस्तर के असमान वितरण के कारण जल साधनों के वितरण में असमानता मिलती है। ऊपरी महानदी बेसिन में वर्षा की मात्रा, वितरण एवं वाष्पीकरण आदि जलस्रोतों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं। जनसंख्या वृद्धि एवं तकनीकी उन्नति के परिणामस्वरूप जल की मात्रा, पर्याप्तता, जल का स्तर एवं उसके गुणों में निरंतर सुधार हो रहा है जिससे पेयजल की आपूर्ति होती है।

ऊपरी महानदी बेसिन में कुओं की संख्या 88,790 (68.85 प्रतिशत), नलकूप 376,087 (27.98 प्रतिशत) एवं तालाब 4090 (3.17 प्रतिशत) है। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल का प्रमुख साधन कुआँ है। बेसिन में सर्वाधिक कुआँ रायपुर जिले (28.05 प्रतिशत) एवं कम रायगढ़ जिले (9.43 प्रतिशत) में है। तालाबों की अधिकता दुर्ग जिले (42.17 प्रतिशत) एवं रायगढ़ जिले में कम (6.11 प्रतिशत)। इसका प्रमुख कारण मैदानी क्षेत्रों में तालाबों का निर्माण आसानी से किया जा सकता है जबकि विषम धरातलीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत तालाब निर्माण में कठिनाई होती है।

गरीय पेयजल आपूर्ति :


ऊपरी महानदी बेसिन में नगरों में जलापूर्ति की समस्या गाँवों से अधिक है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार यहाँ की नगरीय जनसंख्या 26,57,570 (19.05 प्रतिशत) 68 नगरों में निवास करती है। शहर में निरंतर आबादी का दबाव बढ़ते जा रही है, जिससे पेयजल का संकट गहराता जा रहा है।

ऊपरी महानदी बेसिन - ग्रामीण पेयजल व्यवस्था एवं ज प्रदाय योजनाएं, 1995 वर्तमान में पेयजल पूर्ति के साथ-साथ औद्योगिक जलापूर्ति भी हो रही है इस कारण जलापूर्ति योजनाओं के द्वारा पेयजल समस्या को सुलझाने के लिये विभिन्न जल शोधन केंद्र एवं पेयजल टैंक का निर्माण किया जा रहा है, जिससे समाज को जल की आवश्यक पूर्ति हो सके।

ऊपरी महानदी बेसिन में रायपुर बड़ा नगर है। यहाँ की आबादी 4,62,674 हो गई है, जिससे पानी की आपूर्ति प्रारंभिक दिनों से कम हो गई है। नगर निगम द्वारा पेयजल आपूर्ति 40 लीटर पानी प्रति-व्यक्ति प्रतिदिन के अनुसार आपूर्ति न होकर केवल 25 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति-व्यक्ति की जा रही है। रायपुर में खारुन नदी के अलावा 150 पावरपम्प तथा 500 हैंडपम्पों के माध्यम से 1.60 लाख लीटर पानी की आपूर्ति की जा रही है। वर्तमान में रायपुर के कुछ वार्ड ऐसे हैं जहाँ पानी की आपूर्ति नहीं हो पाती है, जैसे शांतिनगर, रविग्राम, तेलीबांधा सहित कई झुग्गी-झोपड़ी वाले नये बसे क्षेत्र। कुछ क्षेत्रों में लोग नजूल या निजी भूमि में अवैध ढंग से बस जाते हैं जिसके कारण जल सुविधाओं को उपलब्ध कराने में अनेक परेशानी आती है।

रायपुर के बाद दूसरे प्रमुख नगरों में दुर्ग-भिलाई, राजनांदगाँव, धमतरी, बालोद, राजिम, खैरागढ़, महासमुंद, डोंगरगढ़, बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, खरसिया, सारंगढ़ आदि उल्लेखनीय है।

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ने नगरीय जनसंख्या के लिये 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन जल सुनिश्चित किया है, परंतु नगरों की बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती इसके लिये विभाग द्वारा अनेक प्रयास किये जा रहे हैं।

ऊपरी महानदी बेसिन - ग्रामीण पेयजल व्यवस्था एवं ज प्रदाय योजनाएं, 1995 ऊपरी महानदी के ग्रामीण एवं नगरीय पेयजल आपूर्ति में सुधार एवं विकास हेतु अग्रलिखित प्रयास किये जाने चाहिए-

1. नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की कमी को देखते हुए भू-गर्भ जलस्रोतों का विकास।
2. जल-शोधन प्रक्रिया हेतु क्लोरीनेटर, अवसादीकरण एवं एरीएशन संयंत्र की स्थापना।
3. नगरीय क्षेत्रों में पेयजल वितरण प्रणाली में सुधार।
4. जल संग्राहकों एवं रिहायशी क्षेत्रों के मध्य जल वितरण प्रणाली।
5. जल आपूर्ति क्षेत्र के मध्य की दूरी का समाधान।
जल का घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य उपयोगजल का घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य उपयोगवर्तमान में बेसिन की कुछ नगरीय जनसंख्या 21,45,749 है, जिसकी कुल जलापूर्ति क्षमता 8,22,920 लीटर प्रतिदिन है परंतु विभिन्न स्रोतों से केवल 72,806 लीटर जल की वास्तविक आपूर्ति हो रही है। इस प्रकार नगरीय क्षेत्र में आज भी जल की आपूर्ति पूरी नहीं हो पा रही है।

बेसिन के प्रमुख नगरों में पेयजल व्यवस्था का संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है

1. रायपुर :
सन 1991 की जनगणना के अनुसार रायपुर नगर की जनसंख्या 4,62,694 है। यह बेसिन का प्रमुख नगर है। सर्वप्रथम 1893 में रायपुर नगर में पेयजल की व्यवस्था की गई थी। यहाँ खारून नदी से इन फिल्टरेशन गैलरी द्वारा जल प्राप्त किया जाता था। 1967 एवं 1968 में 12.5 लाख लीटर क्षमता वाले दो प्लाटो ने कार्य प्रारम्भ किया। वर्तमान में 150 लीटर जल की जगह केवल 82 लीटर जल की आपूर्ति हो रही है। रायपुर नगर में प्रतिव्यक्ति अपनी आवश्यकता का 55 प्रतिशत जल प्राप्त हो रहा है। रायपुर नगर में खारून नदी से जल की पूर्ति होती है। यहाँ 75 लाख लीटर जल की पूर्ति की जा रही है। कुल जल उपयोग का 80 प्रतिशत जल खारून नदी से एवं शेष 20 प्रतिशत जल 150 पावर पम्पों एवं नलकूपों द्वारा पूर्ति होता है।

रायपुर नगर में जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ उद्योगों का भी तेजी से विकास हो रहा है, जिससे जल की मांग में निरंतर वृद्धि हो रही है। इसके साथ-साथ गर्मी में नदी का जल सूख जाता है एवं भूमि का जलस्तर भी नीचे चला जाता है। इन समस्याओं से निपटने के लिये नगर की जल प्रदाय व्यवस्था को दो चरणों में विकसित किया गया है।

द्वितीय चरण में नदी के किनारे निर्मित पुरानी जल प्रदाय व्यवस्था को नये जल ग्रहण कुएँ के निर्माण से सुदृढ़ करके इस अतिरिक्त जल की मात्रा को रावणभाटा में निर्मित जल शोधन गृह में शुद्ध कर नगर में निर्मित 34.2 लाख लीटर क्षमता की दो नई उच्चस्तरीय टंकियों से जोड़ा गया है। जहाँ से जल नगर के विभिन्न इलाकों में सुनियोजित जल प्रणाली के माध्यम से 10 मीटर ऊँचाई के दबाव में वितरित किया जा रहा है।

2. दुर्ग :
दुर्ग, बेसिन में रायपुर के बाद दूसरा प्रमुख नगर है। भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के बाद इस नगर का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। यहाँ 1956 से पेयजल प्रदाय व्यवस्था विद्यमान है, जिसकी पूर्ति क्षमता 13.68 लाख लीटर प्रतिदिन है। दुर्ग नगर में जल पूर्ति शिवनाथ नदी से की जाती है।

भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के पश्चात दुर्ग नगर की जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए 67.5 लाख लीटर के स्थान पर 1.09 करोड़ लीटर क्षमता वाले टैंक का निर्माण किया गया है। वर्तमान में 90 लीटर जल प्रति व्यक्ति प्राप्त हो रहा है। इस कमी को पूरा करने के लिये 2.05 करोड़ लीटर क्षमता वाले टैंक का निर्माण किया जा रहा है। नलकूपों एवं हस्तचलित पम्पों द्वारा भी जलपूर्ति की कमी को पूरा किया जा रहा है।

3. राजनांदगाँव :
राजनांदगाँव नगर में 1956 से नलजल की व्यवस्था की गई है। जिससे पीने एवं घरेलू कार्यों हेतु जल का प्रयोग हो सके। प्रारंभ में राजनांगाँव नगर की जल प्रदाय क्षमता 9.20 लाख लीटर थी परंतु वर्तमान में 1.59 करोड़ लीटर प्रतिदिन जल प्रदाय व्यवस्था की जा रही है। वर्तमान में राजनांदगाँव में 88 लीटर जल, प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति जल की पूर्ति की जा रही है। यहाँ जल पूर्ति का मुख्य स्रोत शिवनाथ नदी है।

4. धमतरी :
धमतरी नगर में हस्तचलित पम्पों एवं नलकूपों द्वारा जल की पूर्ति की जाती है। यहाँ प्रतिदिन 38 लीटर प्रति व्यक्ति जल की पूर्ति होती है। यहाँ 60 पावन पम्प एवं 2 टैंक 2.2 लाख लीटर क्षमता का है। जिससे नगरवासियों को जल की पूर्ति की जा रही है। यहाँ नदियों एवं बांधों से जल की आपूर्ति नहीं होती।

5. भाटापारा :
भाटापारा रायपुर जिले के उत्तर पश्चिम भाग में स्थित है। यहाँ प्रतिदिन 54.72 लाख लीटर जल की आपूर्ति हो रही है। यहाँ प्रतिव्यक्ति 40 लीटर प्रतिदिन जल की प्राप्ति होती है। इस नगर में शिवनाथ नदी द्वारा जल की पूर्ति की जाती है।

6. महासमुंद :
महासमुंद नगर में केशवनाला द्वारा जल प्रदाय किया जाता है। यहाँ 18 पावर पम्पों के माध्यम से 45.00 लाख लीटर जल की आपूर्ति की जाती है। यहाँ 40 लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन जल की पूर्ति केशवनाला एवं नलकूपों द्वारा की जाती है।

7. भिलाई नगर :
भिलाई नगर में जलपूर्ति व्यवस्था भिलाई-इस्पात संयंत्र द्वारा किया है। भिलाई नगर में भरौदा जलाशय से जल की पूर्ति की जाती है। यहाँ 16.87 करोड़ लीटर जल का उपयोग अपने घरेलू कार्यों में कर रहे हैं। दल्लीराजहरा में भी भिलाई इस्पात संयंत्र द्वारा ही जल प्रदाय की व्यवस्था की गई है।

8. खैरागढ़ :
खैरागढ़ नगर में पिपरिया नाला से जल प्राप्त किया जाता है। पिपरिया नाले से प्रतिदिन 3.5 लाख लीटर जल की पूर्ति की जाती है। इसके अतिरिक्त दो नलकूपों पर पावर पंप लगाकर नगर वासियों को 2 लाख लीटर जल प्रतिदिन प्राप्त हो रहा है। यहाँ प्रतिदिन 90 लीटर प्रतिव्यक्ति जल प्राप्त हो रहा है।

9. बिलासपुर :
बिलासपुर में हसदेव - बांगो परियोजना से पेयजल आपूर्ति होती है। साथ ही 4 पावर पम्पों से 20.511 लाख लीटर जल की प्राप्ति हो रही है।

10. कोरबा :
कोरबा में 14.33 लाख लीटर जल की आपूर्ति 2 पम्पों के माध्यम से हो रही है। यहाँ 7 लीटर जल प्रतिव्यक्ति खपत हो रहा है।

11. रायगढ़ :
यहाँ 11 पम्पों से 1,70,500 लीटर जल की आपूर्ति हो रही है। यहाँ 90 लीटर प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति जल उपलब्ध हो रहा है।

12. कांकेर :
कांकेर शहर में 4.5 लाख लीटर क्षमता की पानी टंकी बनाना प्रस्तावित है। वर्तमान में 8 पम्पों के माध्यम में 2.25 लाख लीटर जल की आपूर्ति हो रही है। यहाँ 80 लीटर प्रतिव्यक्ति जल की आपूर्ति हो रही है।

13. छुई खदान :
छुई खदान में नलकूप द्वारा 65 लीटर प्रतिदिन जल प्राप्त है। यहाँ 6 पम्पों के माध्यम से जल उपलब्ध होता है। यहाँ प्रतिदिन 5 पम्पों से 4.56 लाख लीटर जल की आपूर्ति होती है।

डोंगरगढ़, में 06 पम्पों से 18.58 लाख लीटर जल की आपूर्ति हो रही है। इसी तरह अंबागढ़ चौकी 10 पम्पों से 42.64 लाख लीटर, बालोद 26 पम्पों में 24.80 लाख लीटर, बेमेतरा, में 26 पम्पों से 34.95 लाख लीटर, धमधा में 12 पम्पों से 56.35 लाख लीटर, पाटन में 12 पम्पों से 43.38 लाख लीटर, तिल्दा नेवरा में 15 पम्पों से 15.08 लाख लीटर, आरंग में 15 पम्पों से 11.33 लाख लीटर, गोबरा-नवापारा में 42 पम्पों से 16.38 लाख लीटर, बागबहरा में 15 पम्पों से 13.57 लाख लीटर, पेथौरा में 12 पम्पों से 55.55 लाख लीटर, कुरूद में 14 पम्पों से 73.31 लाख लीटर, चांपा में 7 पम्पों से 41.21 लाख लीटर, मुंगेली में 9 पम्पों से 38.06 लाख लीटर, जांजगीर में 09 पम्पों से 32.05 लाख लीटर, सक्ति में 04 पम्पों से 24.47 लाख लीटर जल की आपूर्ति होती है। पत्थलगाँव में 8 पम्पों से 66.38 लाख लीटर, सारंगढ़ में 04 पम्पों से 12.57 लाख लीटर, खरसिया में पम्पों से 67.57 लाख लीटर, धरघोड़ा में 06 पम्पों से 45 लाख लीटर एवं धर्म जयगढ़ में 05 पम्पों से 70.40 लाख लीटर जल की प्राप्ति होती है।

ऊपरी महानदी बेसिन में वर्तमान में जिलेवार पेयजल आपूर्ति की पर्याप्त व्यवस्था शासन की ओर से किया जा रहा है। रायपुर जिले 342 पम्पों से 3,32,765 लाख लीटर, बिलासपुर जिले में 68 पम्पों से 71,975 लाख लीटर, रायगढ़ जिले में 39 पम्पों से 08,005 लाख लीटर, राजनांदगाँव जिले में 73 पम्पों से 69,002 लाख लीटर, दुर्ग जिले में 150 पम्पों से 3,18,948 लाख लीटर पेयजल एवं कांकेर नगर में 8 पम्पों से 22.25 लाख लीटर पेयजल की आपूर्ति किया जा रहा है।

औद्योगिक जल पूर्ति :


किसी भी क्षेत्र के औद्योगिक विकास के लिये उस क्षेत्र में संसाधन उपलब्धता अत्यंत आवश्यक है। इन संसाधनों के आधार पर ही क्षेत्र विशेष की औद्योगिक प्रगति की प्रवृत्ति तथा विकास की सीमा निर्धारित की जाती है।

ऊपरी महानदी बेसिन औद्योगिक संसाधनों की दृष्टि से एक सम्पन्न क्षेत्र है। यहाँ उद्योगों के विकास हेतु समस्त साधन एवं विधाएँ पर्याप्त हैं। इन सुविधाओं में जल एक प्रमुख तत्व है। जल की उपलब्धता ने यहाँ के प्रमुख उद्योगों के स्थानीयकरण पर प्रभाव डाला है। बेसिन के प्रमुख उद्योगों में भिलाई इस्पात संयंत्र, सीमेंट उद्योग, एल्यूमिनियम, बॉक्साइट, उद्योग, ताप विद्युत एवं जूट उद्योग है।

ऊपरी महानदी बेसिन में नदियों के अलावा कुओं एवं नलकूपों के जल का उपयोग उद्योगों में किया जाता है। इस क्षेत्र में छोटी-बड़ी अनेक नदियाँ प्रवाहित होती हैं, जिनमें महानदी प्रमुख है। इसकी सहायक शिवनाथ, हसदो-मांद है। जहाँ वर्ष भर पानी रहता है, परंतु कुछ नदियाँ गर्मी के दिनों में सूख जाती है। इस क्षेत्र में नदियों द्वारा 9,270 हेक्टेयर जल क्षेत्र का निर्माण करती है। दुर्ग एवं रायपुर जिले में कुएँ एवं नलकूप अधिक है जिनका जल भी उद्योगों के काम आता है।

बेसिन के विभिन्न जिले रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगाँव, रायगढ़, दुर्ग एवं कांकेर में छोटी-बड़ी औद्योगिक इकाईयाँ स्थापित है। इन जिलों में क्रमश: औद्योगिक जलापूर्ति रविशंकर सागर परियोजना एवं तांदुला जलाशय, हसदेव-बांगों परियोजना, शिवनाथ नदी, केलो नदी एवं खारून नदियों से उद्योगों के लिये निरंतर जल की आपूर्ति की जा रही है।

हसदवे- बांगों परियोजना से कोरबा तथा आस-पास स्थित ताप-विद्युत गृहों तथा अन्य औद्योगिक इकाईयों की जल की आवश्यकता की पूर्ति की जाती है। कोरबा स्थित 200 मेगावाट के तापविद्युत गृहों को पानी देने के साथ-साथ सिंचाई हेतु शेषजल का उपयोग होता है। वर्तमान में कोरबा में 45 मेगावाट क्षमता की 3 विद्युत इकाईयों को जलापूर्ति की जा रही है।

भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये रविशंकर सागर (गंगरेल), तांदुल जलाशय (बालोद) एवं गोंदली तथा खरखरा जलाशय से जल प्राप्त किया जाता है। गोंदली जलाशय का निर्माण सिंचाई हेतु किया गया था, परंतु भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के पश्चात गोंदली जलाशय का जल भिलाई इस्पात संयंत्र के लिये सुरक्षित कर दिया गया है। भिलाई इस्पात संयंत्र में कुछ 4,544.3 लाख घन मीटर जल का प्रतिदिन उपयोग किया जाता है जिसमें 1,440 लाख घनमीटर जलापूर्ति गोंदली जलाशय से की जाती है। अतिरिक्त जलापूर्ति महानदी जलाशय (4083.9 लाख घनमीटर) एवं तांदुला जलाशय से होती है।

मांढ़र सीमेंट कारखाने में भी जल की खपत अधिक है। यहाँ खारून नदी में जल की आपूर्ति की जाती है। इस स्थान पर जल को साफ कर पम्पसेटों के द्वारा खींचकर भूमिगत नालियों द्वारा संयंत्र तक पहुँचाया जाता है। प्रतिदिन इस कारखाने में 25 लाख लीटर जल की खपत होती है।

सेंचुरी सीमेंट कारखाना बैकुण्ठ में है जहाँ मांढर सीमेंट कारखाने की अपेक्षा जल की खपत कम है। इस कारखाने में जल पूर्ति खारून नदी से भूमिगत नालियों द्वारा किया जाता है। इस संयंत्र में प्रतिदिन 11.4 लाख लीटर जल की पूर्ति खारून नदी होती है।

मोदी सीमेंट कारखाना में गिली विधि से सीमेंट तैयार किया जाता है जिससे जल की खपत अधिक होती है। इस संयंत्र में जल की खपत प्रतिदिन 40 लाख लीटर होती है। यहाँ जल की आपूर्ति महानदी नहर प्रणाली की प्रमुख शाखा बलौदाबाजर शहर खाना प्रणाली द्वारा की जा रही है साथ ही यहाँ नलकूपों से भी जल की पूर्ति की जा रही है।

जामुल सीमेंट उद्योग में खारून नदी से भूमिगत नाली द्वारा जल की पूर्ति होती है। यहाँ प्रतिदिन 45 लाख लीटर जल की आपूर्ति रानी तालाब एवं स्वयं के नलकूपों द्वारा की जाती है।

रायगढ़ में जूट उद्योग स्थापित है। वहाँ के लिये जल की उपलब्धता केलो नदी एवं अन्य साधनों से होती है।

ऊपरी महानदी बेसिन में उद्योगों के विकास के लिये औद्योगिक क्षेत्रों का विकास किया जा रहा है। प्रमुख औद्योगि क्षेत्रों में भिलाई-दुर्ग, भनपुरी, टाटीबंध, सोनडोंगरी, नंदिनी, कुम्हारी एवं उरला औद्योगिक क्षेत्र। इन औद्योगिक क्षेत्रों में उरला औद्योगिक क्षेत्रों में प्रतिदिन 45 लाख लीटर जल पूर्ति मध्य प्रदेश उद्योग निगम द्वारा की जाती है।

ऊपरी महानदी बेसिन में अभी पूर्ण रूप से उद्योगों की स्थापना नहीं हो सकी है। इसलिये वर्तमान में प्रतिदिन 18 लाख लीटर जल की खपत हो रही है बेसिन में अन्य उद्योगों के लिये 4.5 लाख लीटर, जल की आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति वे स्वयं नलकूपों, कुओं आदि से करते हैं।

रायपुर में प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर है। इस औद्योगिक क्षेत्र में उरकुरा, भनपुरी तथा बीरगाँव आते हैं। इस क्षेत्र में जल प्रदान करने हेतु 15 नलकूप एवं 12 कूएँ हैं।

वर्तमान में रायपुर नगर में प्रतिदिन 22.8 लाख लीटर जल उद्योगों के लिये अलग से प्रदान किया जाता है। रायपुर नगर बढ़ते हुए औद्योगिक विकास के लिये जल प्रदान करने हेतु दो चरणों में काम किया जा रहा है। दूसरे चरण में फाफाडीह, तेलीबांधा से जल प्रदान किया जा रहा है। इसलिये जलाशयों की जल क्षमता को बढ़ाया जा रहा है।

भिलाई औद्योगिक क्षेत्र एवं नंदिनी क्षेत्र में भी स्वयं के कुओं एवं नलकूपों द्वारा प्रतिदिन 450 लाख लीटर जल की पूर्ति की जाती है।

इन विभिन्न संयंत्रों एवं संस्थानों को जल प्रदान करने में सरकार को कर के माध्यम से आय प्राप्त होती है। वर्तमान में सरकार को इससे 150 लाख रुपये प्रतिवर्ष आय की प्राप्ति होती रही है।

ऊपरी महानदी बेसिन - ग्रामीण पेयजल व्यवस्था एवं ज प्रदाय योजनाएं, 1995

जल की गुणवत्ता :


ऊपरी महानदी बेसिन में रायपुर, भिलाई, कोरबा, रायगढ़, राजनांदगाँव में जल प्रदूषक तत्व विद्यमान है जो अपशिष्ट तत्व के कारण है। जल के वर्तमान तरीकों से उपयोग के कारण भविष्य में जल की गंभीर समस्या का संकट सामने है। जल में भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तत्वों की भूमिका समान होती है, किंतु वर्तमान में जलीय ऑक्सीजन, अवशोषण क्षमता, शहरीकरण एवं औद्योगीकरण से जल के अवगुण निर्मित हो गए हैं और मानव उपयोग में हानिकारक प्रभावों के कारण जल प्रभावों के कारण जल-जन्य रोग होता है (त्रिवेदी, 280-28)।

जल की गुणवत्ता जल स्रोतों के गुणों पर निर्भर करती है। जल के गुणों में परिवर्तन नये जलस्रोतों के कारण सामान्य जल पूर्ति में गिरावट के कारण, किसी जलगृह में प्रवेश करने वाले विभिन्न स्रोतों में वाहित जल तथा औद्योगिक इकाईयों द्वारा होती है। त्रिवेदी ने मल प्रदूषकों का मानक तैयार किया है। इस आधार पर ऊपरी महानदी बेसिन में अपशिष्ट प्रदूषक जल बहिस्राव निम्नलिखित रूप में है -

1. घरेलू बहिस्राव :
विभिन्न घरेलू कार्यों जैसे खाना पकाने, नहाने, धोने या अन्य सफाई कार्यों में विभिन्न रासायनिक पदार्थों का उपयोग होता है, जो अंतत: अपशिष्ट पदार्थों के रूप में घरेलू बहिस्राव के साथ बहा दिये जाते हैं। सामान्य मलिन जल से अधिक गंभीर जल प्रदूषण नहीं होता परंतु यदि उसमें कीटनाशी तथा प्रक्षालक पदार्थ भी सम्मिलित हो, तब हानि की संभावना बढ़ जाती है।

बेसिन के ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट जल की निकासी क्रम मात्रा में होती है। क्योंकि ग्रामीण लोग तालाबों का अधिकतर प्रयोग करते हैं जिसके कारण घरेलू बहिस्राव कम होता है। अत: इसका पुन: उपयोग श्रमसाध्य एवं खर्चिला है। यहाँ 94635 किलो लीटर जल में 20,000 किलो लीटर जल बह जाता है।

बेसिन में शहरी क्षेत्रों में घरेलू बहिस्राव अधिक होता है। इस अपशिष्ट जल में रासायनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है। इस जल का उपचार करके जल का पुन: उपयोग किया जा सकता है। यहाँ 18460 किलो लीटर जल में 3700 किलो लीटर जल बह जाता है।

2. वाहित मल :
वाहित मल के अंतर्गत मुख्यत: घरेलू तथा सार्वजनिक शौचालयों में निकले मानव मल-मूत्र का समावेश होता है। वाहित जल में कार्बनिक तथा अकार्बनिक दोनों प्रकार के पदार्थ होते हैं, जो जल की अधिकता होने पर धुली हुई अथवा निलंबित अवस्था में रहते हैं। सामान्यत: ठोस मल का अधिकांश भाग कार्बनिक होता है, इसमें मृतोपजीवी तथा सूक्ष्मजीवी भी रहते हैं। यहाँ 14,155 किलो लीटर जल में 2,800 किलो लीटर जल बह जाता है इसमें 1000 किलो लीटर जल वहित मल का उपयोग किया हुआ जल होता है।

इस प्रदूषित जल में अनेक जलजन्य रोगों के सूक्ष्मजीव उपस्थित रहते हैं। प्रदूषित जल का उपचार करके इसका पुन: उपयोग किया जा सकता है।

3. औद्योगिक बहिस्राव :
उत्पादन प्रक्रिया के अंत में उद्योगों से निकलने वाला बहिस्राव हानिकारक अपशिष्ट पदार्थों से युक्त रहता है, जिनका उपचार अति आवश्यक होता है। औद्योगिक अपशिष्ट में जैसे लौह अयस्क खनन के पश्चात अयस्क पर चिपके अवांछित पदार्थ को धोकर अलग कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में मृदा के कण धुलकर जल के साथ चले जाते हैं। इसमें मृदा कणों का आकार पत्थर से लेकर महीन कण तक हो सकते हैं। इनमें छोटे कण जल स्रोतक के साथ दूर-दूर तक चला जाता है जो बहते हुए जल से धीरे-धीरे अलग-अलग होकर लाल रंग के महीन मृदा के रूप में जमा हो जाते हैं। इसलिये सामान्यत: इसके रंग के कारण लाल-कीचड़ मिट्टी कहते हैं। अत: ऐसे जल के उपचार की आवश्यकता है। इसमें उपस्थिति विभिन्न प्रकार के कणों या अघुलनशील पदार्थों को धीरे-धीरे जमा करके अलग कर दिया जाता है। बेसिन में लौह अयस्क के निष्कर्षण में जल का उपयोग 6,000 किलो लीटर प्रतिदिन है, जिसका 2,500 किलो लीटर जल बह जाता है। इसे उपचार करके पुन: लौह निष्कर्षण के उपयोग में लाया जा सकता है।

4. कृषि बहिस्राव :
दोषपूर्ण कृषि पद्यतियों के कारण मृदा भरण अधिक होता है। मृदा भरण के फलस्वरूप मृदा बहकर नदियों तथा तालाबों में पहुँचकर उनके तल में पंक के रूप में बैठ जाती है। इस प्रकार की कीचड़ मिट्टी से जल प्रदूषित होता है। इसके अतिरिक्त आजकल उर्वरक के साथ कीटनाशी का अत्यधिक प्रयोग भी जल प्रदूषण का एक कारक है।

बेसिन में सिंचाई के लिये 55,000 घन मीटर जल का उपयोग होता है। यहाँ कृषि के द्वारा व्यर्थ बह जाने वाले पानी की मात्रा नगण्य है। परंतु खेत में ही सूख जाता है।

इस प्रकार ऊमरी महानदी बेसिन में सभी स्रोतों से प्रवाहित होने वाले जल 5,900 किलो लीटर है। इसमें अनेक प्रकार के पदार्थ, मिश्रण या घोल के रूप में रहते है। अपशिष्ट जल की कुल मात्रा अधिक होती है। अपशिष्ट जल शहरी क्षेत्रों में अधिक निकलता है। इसे किसी निर्दिष्ट या सीमित क्षेत्र में एकत्रित रख पाना संभव नहीं है। अत: ऐसे जल को नदी-नालों, झीलों या तालाबों के जल के साथ मिला देना चाहिए।

जल की गुणवत्ता की समस्याएँ :


ऊपरीमहानदी बेसिन के जल असंतुलन दूर करने के लिये एवं कम जल वाले भू-भागों को जल उपलब्ध कराने के लिये दो या दो से अधिक नदी घाटियों को नहरों में जोड़कर जल ग्रिड प्रणाली द्वारा नदियों के जल को एक स्थान पर एकत्रित किया जाता है। इससे जल की गुणवत्ता एवं मात्रा समान बनी रहती है। ये क्षेत्र निम्नलिखित हैं -

1. रविशंकर सागर परियोजना से निकाली गई नगर से न्यू रूद्री बेराज जल ग्रिड प्रणाली
2. महानदी मुख्य नहर और तांदुला जलग्रिड प्रणाली
3. पैरी हाईडेम जलग्रिड प्रणाली एवं
4. अभनपुर उद्वहन सिंचाई जलग्रिड प्रणाली।

महानदी में वर्षा ऋतु में पानी के परिमाण में असामान्य वृद्धि हो जाती है, जिससे बाढ़ शीघ्र आ जाती है और जल की तीव्रता के कारण बाढ़ शीघ्र समाप्त हो जाती है। इस तरह जल का समुचित उपयोग जलग्रिड प्रणाली से हो रहा है। प्रकृति ने पानी को यह अद्भुत गुण दिया है कि एक सीमा तक वह स्वयं ही अपनी शुद्धता बनाये रख सकता है अत: अपशिष्ट पदार्थों का पारिस्थितिकीय तंत्र में लौटाने का महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जल की गुणवत्ता जलस्रोतों के गुणों पर निर्भर करती है। जल के गुणों में परिवर्तन नये जल स्रोतों के कारण, सामान्य जलापूर्ति के गुण में गिरावट के कारण किसी जलगृह में प्रवेश करने वाले विभिन्न वाहित जलस्रोतों तथा औद्योगिक इकाईयों द्वारा होता है। अत: पेयजल आपूर्ति की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जिससे जल को क्लोराइड मुक्त शुद्ध पेयजल की व्यवस्था किया जा सके।

पेयजल संबंधी समस्याएँ :


ऊपरी महानदी बेसिन में जल की गुणवत्ता में ह्रास के कारण घरेलू एवं नगरपालिकाओं के वाहित जल, औद्योगिक अपशिष्ट, कार्बनिक अपशिष्ट एवं खनिज अपशिष्टों से पेयजल संबंधी समस्याएँ नगरीय क्षेत्रों में व्याप्त है। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं।

1. पेयजल प्राप्ति के प्राथमिक स्रोत - तालाब, कुओं एवं नलकूपों आदि का जलस्तर कम होना,
2. जल जनित रोगों की उत्पत्ति
3. जल में आयोडीन का अभाव
4. नलकूप एवं हस्तचलित पम्पों से न्यूनतल जल सुविधा
5. कठोर चूना प्रस्तर शिष्ट, ग्रेनाइट का विस्तार
6. मानवीय दुरुपयोग
7. जल का दोषपूर्ण वितरण प्रणाली
8. रख-रखाव के पर्याप्त प्रबंध का अभाव
9. पाइप कनेक्शन संबंधी दोष, एवं
10. जल रिसाव की समस्या।

ऊपरी महानदी बेसिन के नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के पेयजल का अध्ययन किया गया है, जिसमें उपर्युक्त समस्याएँ देखी गई है। लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग द्वारा जलापूर्ति एवं जलगुणवत्ता को बनाये रखने के लिये जलोपचार संयंत्रों की विशेष कार्यक्रम अभियान संचालित करती है। जिलास्तर पर विभिन्न प्रयोगशालाओं एवं जल परीक्षण केंद्रों के द्वारा जल पूर्ति की बेहतर व्यवस्था, परिचालन व रख-रखाव पर ध्यान दिया जाता है। ऊपरी महानदी बेसिन में जलोपचार संयंत्रों की स्थापना में नरूआ (गिलीवर्म) निवारण कार्यक्रम, फ्लोरोसिस नियंत्रण कार्यक्रम, डिक्लोहाइड्रेशन हेतु 481 संयंत्रों की स्थापना, स्वास्थ्य शिक्षा, पेयजल उपयोग नियंत्रण कार्यक्रम, क्षारीयता नियंत्रण कार्यक्रम, जल का वैकल्पिक स्रोत एवं लौह पृथक्करण संयंत्रों की स्थापना आदि विशेष जल विलयीकरण कार्यक्रम संचालित है जिससे जल की कठोरता, क्षारीयपन, गुणवत्ता आदि दूर रखने के साथ-साथ प्रभावित स्थानों में पेयजल आपूर्ति पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

पेयजल संबंधी समस्याओं के निराकरण के उपाय (दूषित जल का शुद्धिकरण) :


ऊपरी महानदी बेसिन में बिलासपुर, रायगढ़, कांकेर, राजनांदगाँव, दुर्ग एवं रायपुर जिले के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पेयजल की समस्या एवं जल जनित रोगों की समस्या अधिक है। यहाँ के जल में आयोडीन की कमी पाई जाती है। अत: पेयजल समस्याओं के निराकरण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं -

1. पेयजल का उचित एवं विवेकपूर्ण उपयोग
2. पेयजल वितरण प्रणाली में सुधार
3. पेयजल स्रोतों का विकास एवं संकुचित पेयजल व्यवस्था
4. जल शोधन प्रक्रिया हेतु संयंत्र की स्थापना
5. जल शोधन केंद्रों में क्लोरीनेटर, अवसादीकरण एवं एयर कंडीशन संयंत्र स्थापना
6. जल प्रदूषण की रोकथाम करना
7. जलीय समस्याओं से नागरिकों को अवगत कराना
8. प्रशासकीय एवं वित्तीय समस्या को दूर करना
9. वैकल्पिक सुरक्षित जल स्रोत उपलब्ध करना, एवं
10. जल रिसाव की समस्या को दूर करना।

जल जनित रोग :


ऊपरी महानदी बेसिन में प्रदूषित जल के सेवन से वर्षा के दिनों में जल संबंधी रोगों की उत्पत्ति होती है। यह रायपुर, बिलासपुर एवं रायगढ़ जिले में सर्वाधिक है। यह जिला नगरीय समस्याओं से ग्रसित है। यहाँ जल शुद्धिकरण संबंधी दोष, पेयजल का समुचित प्रबंधन का अभाव, लोगों में जागरूकता के अभाव एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में कमी आदि के कारण यहाँ ये रोग ज्यादा पनपते हैं। इनमें वायरस जनित, बैक्टीरिया जनित, कृमि जनित, प्रोटोजोआ एवं परजीवी रोग सम्मिलित है।

बेसिन में प्रमुख रूप से खूनी पेचिस, अतिसार, मियादी बुखार, एवं नारू रोग गाँवों में देखने को मिलते है, यह वर्षाकाल में दूषित जल के उपयोग से होता है। अत: स्वास्थ्य शिक्षा का प्रचार-प्रसार कर शुद्ध जल पीने के लिये प्रेरित करना चाहिए।

बेसिन में बिलासपुर जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों के विस्तार कार्यों के परिणामस्वरूप जल प्रदूषण की समस्या जन्म लेती है। यहाँ उत्तरी क्षेत्र में स्थित मरवाही, पेंड्रा, कोटा विकासखंडों में गुणवत्ता की दृष्टि से जल कठोर है। (कठोरता 300 से 800 मिलीग्राम प्रति लीटर है) साथ ही जल में आयोडीन की कमी है, परिणामस्वरूप नारू रोग एवं पेट से संबंधित अनेक रोगों की गंभीर समस्या है। बिलासपुर जिले में ही पंडरिया, लोरमी, करतला एवं मालखरौदा विकासखंडो में अन्वशोध, खूनी पचिस, अतिसार एवं पीलिया जैसे जल जनित रोगों से प्रभावित गाँवों की स्थिति गंभीर रही है। स्वस्थ्य विभाग के अनुसार रायपुर जिले, कांकेर, महासमुंद, दुर्ग, राजनांदगाँव एवं जांजगीर क्षेत्र में बिलासपुर, जांजगीर, महासमुंद, राजनांदगाँव रायगढ़ एवं कांकेर जिले में मलेरिया के प्रकरण बढ़े हैं। इसलिये मलेरिया रोग पर प्रभावी नियंत्रण के लिये सभी स्तर पर कड़ाई से पालन किया जा रहा है।

बेसिन में नगरीय क्षेत्रों में जल आपूर्ति की दोषपूर्ण वितरण प्रणाली, सार्वजनिक नलों द्वारा जल आपूर्ति क्षेत्रों में रख-रखाव के पर्याप्त प्रबंध न होने के कारण जल के अपव्यय एवं दुरुपयोग की समस्या है। नगरीय क्षेत्रों में जल संग्राहकों से दूरस्थ स्थित क्षेत्रों में जलापूर्ति एक गंभीर समस्या है। बिलासपुर अकलतरा, चांपा औद्योगिक क्षेत्र, कुम्हारी डिस्टलरी एवं उर्वरक कारखाना, सीमेंट कारखाना, भिलाई इस्पात संयंत्र एवं अन्य छोटे-बड़े उद्योगों के अपशिष्ट पदार्थ सीधे नदी जल में प्रवाहित किये जाने के कारण जल प्रदूषण होता है। इनसे कार्बनडाइऑक्साइड की अधिकता, जल जैविक ऑक्सीजन की कमी, जल की अम्लीयता में वृद्धि आदि दुष्परिणाम मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ती है। अत: शासकीय एवं अशासकीय स्तर पर इसके रोकथाम के प्रयास किये जाने चाहिए।

 

ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास, शोध-प्रबंध 1999


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

प्रस्तावना : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास (Introduction : Water Resource Appraisal and Development in the Upper Mahanadi Basin)

2

भौतिक तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि

3

जल संसाधन संभाव्यता

4

धरातलीय जल (Surface Water)

5

भौमजल

6

जल संसाधन उपयोग

7

जल का घरेलू, औद्योगिक तथा अन्य उपयोग

8

मत्स्य उत्पादन

9

जल के अन्य उपयोग

10

जल संसाधन संरक्षण एवं विकास

11

सारांश एवं निष्कर्ष : ऊपरी महानदी बेसिन में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास

 

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