जल संकट का स्थायी समाधान निकाले दिल्ली सरकार

28 Feb 2016
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यमुना के खाले में जल संग्रह की योजना को अमली जामा पहनाना होगा। इसके साथ बिजली के लिये भी ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि दिल्ली विद्युत आपूर्ति के मामले में आत्म निर्भर बने। उसे गैस आधारित विद्युत संयंत्रों को अधिकाधिक लगाना होगा। इसके साथ पड़ोसी राज्यों के साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे किसी भी स्थिति में दिल्ली की ओर जाने आने वाले रास्तों को नहीं रोकेंगे क्योंकि ये रास्ते केवल किसी एक प्रदेश को नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों से जोड़ने वाले रास्ते हैं। कितना अच्छा हो कि दिल्ली से सटे राज्यों की सीमा पर बड़ी ग्रीन बेल्ट सुनिश्चित की जाये जो हमेशा हरी-भरी रहे। हरियाणा में जाट आन्दोलन के दौरान दिल्ली से हरियाणा, पंजाब हिमाचल आदि प्रदेशों मे आना-जाना बाधित हो गया था। सड़क एवं रेल यातायात पूरी तरह से रुक गया था। किसी भी तरह के वाहन यहाँ तक कि साइकल तक को चलने नहीं दिया गया।

उस दौरान जो भी आवाजाही हो सकी वह केवल पैदल ही हो सकी। इस मार्ग से होने वाला व्यापार एवं व्यवसाय थम गया। फल एवं सब्जी मंडिया सूनी हो गई थीं और दिल्ली ने गम्भीर जल संकट का सामना किया जो जल संकट आज भी सामान्य नहीं हो पाया है। अनेक क्षेत्रों के लोग पेयजल के लिये तरस रहे हैं। दिल्ली के लिये यह बड़ी दुविधा की स्थिति है।

यह संकट देर सबेर खत्म हो जाएगा लेकिन दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार को इस बात पर गम्भीरता से विचार करना होगा कि अगर हरियाणा और उत्तर प्रदेश नाराज हो जाएँ तो दिल्ली को बिजली, पानी ही नहीं फल सब्जी दूध इत्यादि आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं के लिये मोहताज बना देने की क्षमता रखते हैं। उनकी नाराजगी की स्थिति में दिल्ली क्या कुछ कर सकती है। इसमें दो कोई दो राय नहीं कि दिल्ली पानी के लिये यमुना पर निर्भर है और यमुना का जल राष्ट्रीय सम्पदा है।

दिल्ली के पास जल आपूर्ति के लिये भागीरथी जल संयंत्र वैकल्पिक स्रोत है। सोनिया विहार जल संयंत्र तक इसी से पानी आ रहा है। इससे दिल्ली के एक हिस्से की प्यास बुझ रही है। मुनक नहर के क्षति ग्रस्त होने के बाद दिल्ली के करीब 60 प्रतिशत हिस्से प्रभावित हुए और यहाँ से आने वाले पानी का शोधन करने वाले सभी जल संयंत्र बन्द करने पड़े।

अभी जल संकट की जो स्थिति है उसे तात्कालिक समस्या माना जा सकता है लेकिन दिल्ली भारत की राजधानी है। इस राजधानी में नई दिल्ली नगर पालिका के तहत आने वाला समूचा क्षेत्र केन्द्र सरकार के तहत आने वाला क्षेत्र माना जाता है। इस क्षेत्र में भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सभी केन्द्रीय मंत्रियों का आवास व मंत्रालय हैं। इसी क्षेत्र में विदेशी दूतावास हैं। सभी सांसद देश के आला अधिकारी और न्यायाधीशों का भी निवास है। इस क्षेत्र की जलापूर्ति भी यमुना से मिलने वाले जल पर आश्रित है।

दिल्ली में अत्यधिक सर्दी और तेज गर्मी के मौसम में बिजली की माँग बढ़ती है। गर्मी के मौसम में पानी की भी माँग बढ़ जाती है। इस मौसम में बिजली पानी को लेकर दिल्ली के साथ दूसरे राज्यों की रस्साकशी हमेशा चलती रही है। दिल्ली सरकार पीक सीजन में हमेशा शिकायत करती रही है कि दिल्ली को बिजली का आबंटित कोटा पूरा नहीं मिल रहा है। दूसरे प्रदेश सेंट्रल ग्रिड से अतिरिक्त बिजली का दोहन कर रहे हैं।

दिल्ली में गैस आधारित बिजली संयंत्र इतनी बिजली पैदा नहीं करता कि वह राजधानी की माँग की पूर्ण आपूर्ति कर सके। दिल्ली में भूजल का दोहन लगातार होने से जल स्तर बहुत नीचे चला गया है। दिल्ली में किसी भी जल संकट की स्थिति में यहाँ का भूजल सबकी प्यास बुझाने की स्थिति में नहीं है। दिल्ली का जिस तरह से विस्तार होता जा रहा है।

आने वाले 10-15 वर्षों में बचे-खुचे खेत खलिहान लुप्त हो जाएँगे। खेत-खलिहान भूजल स्तर ऊँचा करने में बड़ी भूमिका अदा करते रहे हैं। जहाँ खेत-खलिहान खत्म हो रहे हैं वहीं यहाँ यमुना में नदी का सहज प्राकृतिक प्रवाह बिल्कुल नहीं है। वर्षा ऋतु में जब पड़ोसी राज्यों में वर्षा अधिक हो जाती है तब ही यमुना में उफान आता है।

उस समय दूसरे राज्य की मजबूरी होती है कि वह अधिक-से-अधिक पानी दिल्ली की ओर छोड़े ताकि उनके खेत-खलिहान और आबादी वाले क्षेत्र जलमग्न न हो जाएँ। इस दौरान दिल्ली में यमुना का खाला भर जाता है। इस दौरान जमीन बड़ी मात्रा में पानी सोखती है और शेष पानी आगे बहता चला जाता है।

वर्षा ऋतु में आने वाले अतिरिक्त पानी का संग्रह दिल्ली करने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि इस पानी का संग्रह करने की अभी तक हमारे पास कोई योजना नहीं है। यमुना के खाले में अतिक्रमण के चलते जितना जल जमीन तलहटी तक पहुँचना चाहिए वह नहीं पहुँच पा रहा है।

केन्द्र और दिल्ली सरकार को पानी के संकट को समाप्त करने के लिये अपनी पुख्ता योजना बनानी होगी। अपने बेकार चले जाने वाले पानी को उपयोग के लायक बनाना होगा।

यमुना के खाले में जल संग्रह की योजना को अमली जामा पहनाना होगा। इसके साथ बिजली के लिये भी ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि दिल्ली विद्युत आपूर्ति के मामले में आत्म निर्भर बने। उसे गैस आधारित विद्युत संयंत्रों को अधिकाधिक लगाना होगा।

इसके साथ पड़ोसी राज्यों के साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वे किसी भी स्थिति में दिल्ली की ओर जाने आने वाले रास्तों को नहीं रोकेंगे क्योंकि ये रास्ते केवल किसी एक प्रदेश को नहीं बल्कि देश के विभिन्न राज्यों से जोड़ने वाले रास्ते हैं। कितना अच्छा हो कि दिल्ली से सटे राज्यों की सीमा पर बड़ी ग्रीन बेल्ट सुनिश्चित की जाये जो हमेशा हरी-भरी रहे। ऐसा करने से जहाँ फल, सब्जियाँ, दूध, खाद्यान्न सहज उपलब्ध रहेंगे वहीं आबोहवा साफ-सुथरी रहेगी।

केन्द्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दे देने चाहिए कि आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति, स्वास्थ्य सेवाओं और बिजली तथा पानी की आपूर्ति में जो विघ्न खड़ा करेगा उसके खिलाफ ऐसी कार्रवाई की जाएगी जो दूसरों के लिये सबक बने और दिल्ली को ऐसा तो बनाना ही होगा कि वह कम-से-कम एक पखवाड़े तक किसी भी चुनौती और संकट का सामना करने की स्थिति में रहे।

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