जल संसाधन संभाव्यता

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वर्षा तथा जलाधिशेष :

वर्षा का मासिक एवं वार्षिक वितरण :

सारिणी क्रमांक - 2.1

ऊपरी महानदी बेसिन - वर्षामापी केंद्रों में वर्षा एवं वर्षा की मात्रा (प्रतिशत में)

(मिलीमीटर में)

क्र.

वर्षामापी केंद्र

दक्षिण-पश्चिम मानसून काल (वर्षा कालीन)

वर्षाकालीन वर्षा की मात्रा प्रतिशत

शीतकालीन वर्षा

शीतकालीन वर्षा की मात्रा प्रतिशत

ग्रीष्मकालीन वर्षा

ग्रीष्मकालीन वर्षा की मात्रा प्रतिशत

कुल वार्षिक वर्षा

1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

9.

10.

11.

12.

रायगढ़

चांपा

पेण्ड्रा

सरायपाली

बलौदाबाजार

कवर्धा महासमुंद

रायपुर

गरियाबंद

डोगरगढ़

चौकी

कांकेर

1,468.60

1,279.20

1,146.40

1,220.30

1,189.80

905.70

1,385.80

1,135.10

1,357.30

1,129.00

1,264.20

1,141.00

89.70

89.51

82.85

88.57

88.21

81.09

89.43

86.12

87.60

87.81

87.18

86.76

83.00

90.40

129.00

81.80

86.40

116.90

89.50

101.20

105.00

99.40

106.80

89.10

5.06

6.32

9.32

5.93

6.40

10.46

5.77

7.67

6.77

7.73

7.36

6.77

83.00

59.50

108.20

76.60

72.50

94.20

74.20

81.70

87.10

57.30

79.00

84.90

5.24

4.17

7.38

5.56

5.39

8.43

4.78

6.19

5.62

4.45

5.44

6.45

1,637.20

1,429.10

1,383.60

1,378.70

1,348.70

1,116.80

1,549.50

1,318.00

1,549.40

1,285.70

1,450.00

1,315.00

योग

औसत बेसिन

1,218.53

87.06

89.20

7.15

80.06

5.29

1,396.80

स्रोत - जिलाभू-अभिलेख कार्यालय, रायपुर, म. प्र.

वार्षिक वर्षा का वितरण :

वर्षा की मासिक एवं वार्षिक विचलनशीलता :

सारिणी क्रमांक - 2.2

ऊपरी महानदी बेसिन - वार्षिक वर्षा की विचलनशीलता

क्र.

वर्षामापी केंद्र

औसत वर्षा (सेमी)

मानक विचलन

विचलनशीता (%)

अधिकतम

न्यूनतम

1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

9.

10.

11.

12.

रायगढ़

चांपा

पेण्ड्रा

सरायपाली

बलौदाबाजार

कवर्धा

महासमुंद

रायपुर

गरियाबंद

डोंगरगढ़

चौकी

कांकेर

136.6

119.0

140.3

114.8

111.5

92.4

129.1

108.8

129.1

108.8

119.5

109.6

178.6

164.2

132.9

144.9

140.4

102.0

164.1

130.2

159.9

137.2

148.7

136.5

1.30

1.37

0.94

1.26

1.25

1.10

1.27

1.19

1.23

1.28

1.24

1.24

130

137

94

126

125

110

127

117

123

128

124

124

 

औसत

119.4

164.4

1.39

139

स्रोत - जिला भू-अभिलेख कार्यालय

तापमान तथा पवन :

तापमान :


ऊपरी महानदी बेसिन में तापमापी केंद्रों से प्राप्त तापमान के आधार पर ग्रीष्म ऋतु (मई) का अधिकतम चांपा, रायपुर एवं कांकेर मेक 47.20 सेल्सियस है। इसी तरह रायगढ़ 46.70, 43.30 एवं राजनांदगांव 43.30 सेल्सियस है। शीतऋतु (जनवरी) में न्यूनतम तापमान रहता है। पेण्ड्रा सबसे ठंडा स्थान है जहाँ न्यूनतम तापमान बेसिन में 3.30 सेल्सियस है। इसी तरह शीतऋतु में क्रमश: कांकेर 5.0, राजनांदगाँव 5.1, दुर्ग 6.20, रायगढ़ 7.00 एवं चांपा 7.80 सेल्सियस है (सारिणी क्रमांक 2.3)। तापमान में विभिन्नता भौगोलिक परिस्थितियों पर ज्यादा निर्भर करता है।

सारिणी क्रमांक - 2.3

ऊपरी महानदी बेसिन - तापमापी केंद्रों में तापमान

(अंश सेल्सियस में)

क्र.

केंद्र

शीत ऋतु (जनवरी)

ग्रीष्म ऋतु (मई)

अधिकतम

न्यूनतम

अधिकतम

न्यूनतम

1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

रायपुर

पेण्ड्रा

रायगढ़

कांकेर

चांपा

दुर्ग

राजनांदगांव

35.0

30.1

33.3

32.8

32.2

30.4

29.3

5.0

3.3

7.0

5.0

7.8

6.2

5.1

47.2

43.9

46.7

47.2

47.2

42.3

43.3

14.4

17.8

25.0

14.4

20.5

17.5

18.8

 

औसत बेसिन

31.8

5.6

45.4

18.3

पवन :


ऊपरी महानदी बेसिन में वायु ऊर्जा भी बहुत लाभदायक हो सकती है। क्योंकि क्षेत्र में अप्रैल से अगस्त तक वायु की गति अच्छी होती है। दिनवार वायु गति का अध्ययन से स्पष्ट है कि रायपुर में मई से अगस्त तक अधिकतम 20 दिन प्रतिमाह एवं 8 किलोमीटर प्रतिघंटा की क्षमता तक पवन चक्की चलाई जा सकती है।

इस आधार पर रायपुर में अप्रैल से अगस्त पेण्ड्रा व कांकेर में मई से अगस्त तक पवन चक्कियों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। हालाँकि हर क्षेत्र में प्रतिमाह कुछ दिन ऐसे होते ही है जिनमें वायु की गति 8 किमी प्रतिघंटा या उससे अधिक होती है दिनवार वायु गति का अध्ययन करने पर पता चलता है कि रायपुर में मई से अगस्त तक अधिकतम 20 दिन प्रति माह की क्षमता तक पवन चक्की चलाई जा सकती है।

वार्षिक वर्षा का उतार चढ़ाव :

जलाधिशेष :

‘‘बुक कीपिंग प्रक्रिया’’

के आधार पर 1950-95 की अवधि के लिये गणना की गई।

सामान्य वाष्पोत्सर्जन :

1. वर्षा :


वर्षामापी केंद्रों के द्वारा प्राप्त वर्षा की मात्रा को जला-पूर्ति के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। सामान्य जलाधिशेष की गणना के लिये 35-40 का वर्ष लेना उपयुक्त रहता है, क्योंकि यह माना जाता है कि वृष्टिचक्र 35-40 वर्षों में पुनरावृत्ति होती है।

2. संभावित वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन :


इसके अंतर्गत जल की आवश्यकता अर्थात वाष्पीकरण एवं वनस्पतियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन की संभावित मात्रा को लिया जाता है। यह तापमान, वायु दिशा, वनस्पति के प्रकार एवं वनस्पति के जड़ों की गहराई आदि पर निर्भर करता है।

3. वर्षा व संभावित वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन में अंतर :


वर्षा की मात्रा जल की आवश्यकता से अधिक है या कम, यह देखने के लिये वर्षा में से वाष्पीकरण की संभावित मात्रा को घटाया जाता है यह अंतर धनात्मक एवं ऋणात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है, धनात्मक जलाधिक्य का एवं ऋणात्मकता जलाभाव का सूचक होता है।

4. संचयी संभावित जलहानि :


जिन महीनों में वर्षा वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन की संभावित मात्रा से कम होती है। उन्हीं महीनों में (पी - पी ई) ऋणात्मक होता है। ये जलहानि को दर्शाते हैं। जिस माह से जलहानि प्रारंभ हो रही है वहाँ से लेकर जब तक जलहानि बनी रहे वहाँ तक प्रत्येक की जल हानि में उसे पूर्व के महीने की जलहानि को जोड़कर संचयी जलहानि की संभावित मात्रा ज्ञात की जाती है। धनात्मक पी. -पी. ई. वाले महीनों में चूँकि जल आधिक्य होता है अत: उसमें जलहानि शून्य दर्शायी जाती है। इस जलहानि के कारण मिट्टी में संचित आर्द्रता कम होती है।

5. मिट्टी में संचित आर्द्रता :


जब वर्षा अधिक होती है अर्थात पी. -पी. -ई. धनात्मक होता है तब मिट्टियाँ अपनी अधिकतम जलधारण क्षमता के अनुरूप आर्द्रता रखने लगती हैं। भिन्न-भिन्न मिट्टियों की आर्द्रता क्षमता भिन्न-भिन्न होती है। (सारिणी क्रमांक 2.8) एवं जलहानि के अनुसार उनकी धारित आर्द्रता से ह्रास प्रवृत्ति भी भिन्न-भिन्न होती है। मिट्टी के प्रकार व गहराई आदि पर निर्भर करती है।

6. संचित आर्द्रता में परिवर्तन :


यदि एक माह से दूसरे माह में मिट्टी की संचित आर्द्रता में परिवर्तन न हुआ हो, वे धरातलीय जल प्रवाह को दर्शाते हैं।

7. वास्तविक वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन :


वास्तविक वाष्पोत्सर्जन की गणना पेनमेन के सूत्रानुसार की गई है। जब वर्षा (पी) संभावित वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन (पी. ई.) से अधिक होती है तब वास्तविक वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन (पी. ई.) के बराबर होता है। किंतु यदि संभावित वाष्पोत्सर्जन (पी. ई.) से कम होता है। यह (पी. ई.) उपलब्ध वर्षा (पी.) एवं मिट्टी में संचित आर्द्रता की परिवर्तित मात्रा (एस. टी.) के बराबर होता है।

8. जलाभाव :


जल संभावित वाष्पोत्सर्जन (पी. ई.) और वास्तविक वाष्पीकरण एवं वाष्पोत्सर्जन (ए. ई.) में अंतर पाया जाता है तो यह अंतर जलाभाव को दर्शाता है।

9. जलाधिक्य :


जब वर्षा संभावित वाष्पीकरण वाष्पोत्सर्जन से अधिक होता है तब धनात्मक प्राप्त होता है। इसमें से मिट्टी की अधिकतम जलधारण क्षमता घटाने के बाद भी यदि कोई अतिरिक्त बचा रहता है तो वह जलाधिक्य को दर्शाता है।

सामान्य वाष्पोत्सर्जन :

संचित आर्द्रता उपयोग एवं संचित सामान्य जलहानि :

सारिणी क्रमांक - 2.8

ऊपरी महानदी बेसिन - औसत तापमान एवं सामान्य वाष्पोत्सर्जन का मासिक विवरण

(तापमान अंश सेल्सियस में)

क्रमांक

माह

औ. मा. ता.

औ. मा. सा.वा. (मिमी)

औ. मा. ता.

औ. मा. सा. ता. (मिमी)

1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

9.

10.

11.

12.

जनवरी

फरवरी

मार्च

अप्रैल

मई

जून

जुलाई

अगस्त

सितंबर

अक्टूबर

नवंबर

दिसंबर

17.45

79.5

24.5

29.1

32.7

30.65

30.65

25.4

25.45

23.45

19.85

17.15

74

95

145

173

209

115

111

104

103

105

80

66

23.65

27.65

32.4

35.9

33.3

28.15

27.85

28.1

20.65

26.1

22.0

28.00

85

115

148

74

203

165

105

101

102

113

93

77

स्रोत - इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर (म. प्र.)

जलाभाव :

आर्द्रता पर्याप्तता :

सूखा एवं बाढ़ की प्रायिकता

सूखा :

‘‘सूखा वह अवस्था है जिसमें वाष्पोत्सर्जन तथा प्रत्यक्ष वाष्पीकरण के लिये आवश्यक जल की मात्रा मिट्टी में उपलब्ध मात्रा से अधिक हो।’’

(थार्नथ्वेट, 1948. 3)।

ऊपरी महानदी बेसिन में कम सापेक्षित आर्द्रता, वायु तथा उच्च तापमान के कारण वाष्पोत्सर्जन अधिक होने से शुष्कता होती है। भूमि में उपलब्ध आर्द्रता में अधिक मात्रा में वाष्पीकरण होना सूखा है। सूखे की स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब 21 दिनों तक वर्षा ही न हो या सामान्य वर्षा 30 प्रतिशत से कम हो। सूखा प्रकार एवं बाढ़ का निर्धारण वर्षा की मात्रा के आधार पर निर्धारित करते हैं।

सारिणी क्रमांक - 2.9

ऊपरी महानदी बेसिन - सूखे की प्रवृत्ति

 

 

अवधि

क्र.

केंद्र

1901-60

1961-70

1971-80

1901-600

1980 के बाद

कुल का प्रतिशत

1

2

3

4

5

6

7

8


1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

9.

10.

11.

जिला-रायपुर

रायपुर

धमतरी

देवभोग

गरियाबंद

पिथौरा

भाटागाँव

बलौदाबाजार

कनकी

अर्जुनी

महासमुंद

राजिम


3

4

4

5

5

5

5

3

6

4

4


4

2

6

9

5

5

4

7

6

2

3


6

7

6

9

5

5

4

7

4

8

9

 

-

-

-

-

-

-

-

-

-

-

-

 

13

13

16

17

14

18

14

16

14

14

16

 

7.87

7.87

9.69

10.30

8.48

10.90

8.48

9.69

8.48

8.48

9.69

योग

रायपुर जिला

48

49

68

-

165

100.00

जिला

बिलासपुर

अवधि

1901-60

1961-70

1971-80

1901-600

1980 के बाद

कुल का प्रतिशत

1

2

3

4

5

6

7

8

12.

13.

14.

15.

16.

17.

योग-

योग-

सक्ती

पेंड्रा

जांजगीर

कटघोरा

मुंगेली

बिलासपुर

बिलासपुर

रायपुर+बिलासपुर

4

1

6

3

4

7

25

73

6

5

6

6

8

5

36

85

4

7

7

2

6

4

29

97

-

-

-

-

-

-

-

-

14

12

19

11

18

16

90

255

15.55

13.33

21.11

12.22

20.00

17.77

100.00

100.00

स्रोत - जिला भू-अभिलेख कार्यालय

सारिणी क्रमांक (2.10) से स्पष्ट है कि वर्षा की कमी के कारण सूखे की स्थिति सर्वाधिक रायपुर जिले में 18 बार भाटागाँव तथा जांजगीर, बिलासपुर जिले में 19 बार हुआ है एवं बिलासपुर जिले में कटघोरा तहसील में 11 बार सूखे की स्थिति निर्मित हुई है, इसके बाद रायुपर, धमतरी में 13 बार यह स्थिति आई है।

ऊपरी महानदी बेसिन में उत्तरी भाग में शुष्कता की आवृत्ति दक्षिणी भाग की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। उत्तरी भाग में बिलासपुर जिले के पेंड्रा एवं कटघोरा में शुष्कता गहनता 35.45 प्रतिशत है वहीं जांजगीर एवु मुंगेली क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक है। जिले का उत्तरी भाग वनाच्छादित है। अत: शुष्क अवधि की आवृत्ति कम है। जबकि बेसिन के दक्षिण का मैदानी भाग सूखे की चपेट में अधिक आता है तथापि बेसिन का कोई भी भाग सूखे से अप्रभावित नहीं है।

संपूर्ण अध्ययन अवधि में वर्ष 1961, 1964, 1967 एवं 1986 सूखायुक्त वर्ष थे। रायपुर जिले के अंतर्गत भाठागाँव एवं गरियाबंद सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र थे। परंतु वर्ष 1950, 1979, 1973, 1976 एवं 1979 में संपूर्ण क्षेत्र सूखाग्रस्त था। वर्ष 1960, 1974 एवं 1981 में बेसिन के 90 प्रतिशत क्षेत्र में सूखे की गंभीर स्थिति रही। कुछ क्षेत्र जैसे बिलासपुर जिले के कटघोरा क्षेत्र सामान्य वर्षा वाला क्षेत्र रहा। 1974 में जिले के पश्चिमी भाग को छोड़ सभी क्षेत्रों में सूखे की स्थिति रही।

शुष्कता सूचकांक के आधार पर बेसिन को तीन प्रमुख शुष्कता क्षेत्र में विभक्त किया जा सकता है (मानचित्र क्र. - 2.4)

1. अत्यधिक शुष्क क्षेत्र (शुष्कता सूचकांक 75 प्रतिशत)
2. मध्यम शुष्क क्षेत्र (शुष्कता सूचकांक 45 प्रतिशत)
3. निम्न शुष्क क्षेत्र (40 प्रतिशत)

(1) अत्यधिक शुष्क क्षेत्र :


ऊपरी महानदी बेसिन के सूखे की दशकीय प्रवृत्ति के अध्ययन के आधार पर दो प्रमुख जिले रायपुर एवं बिलासपुर जिले के सूखे के आंकड़े उपलब्ध हुए हैं जिसके आधार पर रायपुर जिले में वर्ष 1901 से 1980 तक की स्थिति सम्मिलित है। रायपुर जिले में गरियाबंद एवं भाठागाँव अत्यधिक शुष्कता क्षेत्र माने गये हैं। यहाँ शुष्कता सूचकांक क्रमश: 60 प्रतिशत एवं 65 प्रतिशत है।

बिलासपुर जिले के पश्चिमी भाग (मुंगेली) एवं बिलासपुर तहसील के क्षेत्र इसके अंतर्गत सम्मिलित है। मुंगेली एवं बिलासपुर प्रतिनिधि केंद्र है। इन केंद्रों पर शुष्कता सूचकांक क्रमश: 51.1 एवं 46 प्रतिशत है।

(2) मध्यम शुष्क क्षेत्र :


बेसिन के दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं। रायपुर जिले के देवभोग, कनकी, राजिम, रायपुर एवं धमतरी तहसील का क्षेत्र मध्यम शुष्कता वाले क्षेत्र है। जहाँ औसत 45 प्रतिशत शुष्कता सूचकांक है।

बिलासपुर जिले के दक्षिण पूर्वी क्षेत्र का जांजगीर एवं सक्ती तहसील इसके अंतर्गत है। जांजगीर एवं सक्ती दो प्रतिनिधि केंद्रों पर औसत शुष्कता सूचकांक क्रमश: 43.5 एवं 42.2 प्रतिशत है। वर्षा की अनिश्चिता इस क्षेत्र में सूखे की दशा निर्मित करने में विशेष सहायक है।

(3) न्यूनतम शुष्क क्षेत्र :


ऊपरी महानदी बेसिन का उत्तरी पर्वतीय एवं वनाच्छादित क्षेत्र इसके अंतर्गत आते हैं। रायपुर जिले के बलौदाबाजार, महासमुंद एवं बिलासपुर जिले के कोरबा, कटघोरा, पेंड्रा तहसील इसके अंतर्गत सम्मिलित हैं। इन क्षेत्रों का औसत वार्षिक वर्षा 1300 मिलीमीटर है। मिट्टी की आर्द्रता संचयन की क्षमता भी अधिक है। अत: यहाँ पर शुष्कता की आवृत्ति अपेक्षाकृत कम है।

बाढ़ :

सारिणी क्रमांक - 2.10

ऊपरी महानदी बेसिन - बाढ़ की स्थिति (1964-1990)

क्रमांक

तहसील

बाढ़ की संख्या

वर्ष

1.

2.

3.

4.

5.

6.

7.

8.

देवभोग

गरियाबंद

बलौदाबाजार

महासमुंद

रायपुर

धमतरी

राजिम

सरायपाली

7

6

6

6

5

5

5

4

1964-1993

1964-1990

1964-1990

1964-1990

1964-1990

1964-1990

1964-1990

1964-1990

स्रोत - जिला-भूअभिलेख कार्यालय

बेसिन में रायपुर जिले में सर्वाधिक बाढ़ की स्थिति देवभोग तहसील में निर्मित हुई है जहाँ वर्ष 1964 से 1993 के बीच 7 बार बाढ़ें आई और अपार जनधन की हानि हुई है। वर्ष 1971, 1980, 1982, 1990, 1991, 1992, 1993 सर्वाधिक बाढ़ वर्ष रहे। इसके बाद गरियाबंद, महासमुंद, बलौदाबाजार में क्रमश: 6-6 बार, महासमुंद, धमतरी, राजिम में क्रमश: 5-5 बार एवं सरायपाली में 4 बार बाढ़ें आई। सर्वाधिक बाढ़ वर्ष तुलनात्मक रूप में 1964, 1970, 1980, 1985, 1990, 1993 रहे।

बाढ़ के प्रकार :

1. छोटी बाढ़ें -

(40 प्रतिशत) वर्षा की तीव्रता

2. मध्यम बाढ़ें -

(50 प्रतिशत) वर्षा की तीव्रता

3. भारी बाढ़ें -

(60 प्रतिशत) वर्षा की तीव्रता

साथ में 1964 के बाद अब तक बाढ़ से विभिन्न तहसीलों के मानव एवं पशु प्रभावित हुए है साथ ही फसलों, मकानों की भी अत्यधिक क्षति हुई है।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र :

1. महानदी तटवर्ती बाढ़ प्रभावित क्षेत्र :


इसके अंतर्गत धमतरी कुरुद, राजिम, रायपुर, महासमुद, बलौदाबाजार, तथा कसडोल के महानदी तटवर्ती क्षेत्र के 650 गाँव एवं 7000 हे., कृषि क्षेत्र प्रभावित है। कारण- महानदी के जलग्रहण क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा तथा गंगरेल बांध द्वारा बिना पूर्व सूचना दिये बड़ी मात्रा में (3 लाख घनमीटर) पानी का छोड़ा जाना।

2. शिवनाथ तटवर्ती बाढ़ प्रभावित क्षेत्र :


इसके अंतर्गत सिमगा, भाटापारा के पश्चिमोत्तर क्षेत्र तथा बलौदाबाजार का उत्तरी तटवर्ती क्षेत्र के 300 गाँव तथा 36,012 हेक्टेयर कृषि क्षेत्र अत्यधिक वर्षा के कारण प्रभावित हुये।

3. खारुन तटवर्ती बाढ़ प्रभावित क्षेत्र :


कुरुद, अभनपुर, रायपुर तथा तिल्दा के पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र के 280 गाँव 11150 हे.। कृषि क्षेत्र अत्यधिक जल ग्रहण एवं अत्यधिक वर्षा से प्रभावित हुये।

4. अन्य प्रभावित क्षेत्र :


पैरी, सोंदूर, जोंक नदी के तटवर्ती क्षेत्र तथा कोल्हान, खोरसी, जामुनिया आदि नालों के तटवर्ती क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र रहे अतिवृष्टि के साथ वर्षा की गहनता, नगरीय क्षेत्रों में पानी निकासी की अपर्याप्त व्यवस्था आदि के कारण बाढ़ की स्थिति निर्मित हुई। निष्कर्षत: विगत (1964-93) वर्षों में बाढ़ का प्रभाव महानदी, खारुन तथा पैरी के तटवर्ती क्षेत्रों में सर्वाधिक रहा जिससे जनधन प्रभावित हुए। ऊपरी महानदी बेसिन में जल निकासी का व्यवस्थित नहीं होना, नदियों के किनारे भूमि पर मानव का असमीमित अतिक्रमण, नदियों में अवसादों का जमाव आदि कारणों से नदियों के तटवर्ती क्षेत्रों में तेजी से बाढ़ें आती हैं।

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