जल तत्व

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गर्मी में जब धरती तपने लगती है तब हमें जल का महत्त्व समझ में आने लगता है। आयुर्वेद की भाषा में इसे समझें तो जल श्रम की थकान दूर करने वाला, बेहोशी और प्यास मिटाने वाला, खेद नाशक, बेवक्त आने वाली नींद को मिटाने वाला, आलस्य को भगाने वाला, तृप्तिकारक, हृदय का मित्र, शीतल हल्का और अमृत के समान जीवन का सबसे बड़ा सहायक तत्व है।

सुबह से लेकर रात तक हमें जल की जरूरत पड़ती है। सफाई से लेकर खाने-पीने, नहाने-धोने तक में पानी की जरूरत पड़ती है। भोजन के बिना तो आप कई दिन गुजार सकते हैं पर पानी के बिना ज्यादा समय सकुशल गुजारना मुश्किल है। हवा के बाद जीवन के लिए सबसे आवश्यक पानी ही है। यह गुण पानी में ही है कि उसे तरल के अलावा ठोस और गैस में भी परिवर्तित किया जा सकता है। जल में चीजों को साफ करने का प्रबल गुण है।

दुनिया का कोई भी फ्रेशनर ऐसी ताज़गी नहीं दे सकता, जैसी जल में स्नान करने से मिलती है। एक दिन न नहाएं तो पूरे दिन आप अलसाए रहते हैं। यह जल ही तो है जिसके स्पर्श का एहसास आनंद देता है। स्विमिंग कर लें तो शरीर नई चेतना महसूस करने लगता है। जल स्नान करना हमारे धर्मो में भी पुण्यकारी माना गया है।

जिनके पास फव्वारे की सुविधा है वे यदि अपनी पीठ और पूरे शरीर पर वेग से पानी गिराएं तो उससे स्नायुओं को बल मिलेगा और पाचन शक्ति उन्नत होगी। भूख भी बढ़ेगी। रक्त संचार भी जल में भीगे कपड़े (तौलिया) के घर्षण से दुरुस्त रहता है। यदि आप उचित मात्र में पानी का सेवन न करें तो शरीर में कई तरह बीमारियां घर कर लेती हैं जैसे- कब्ज, सिरदर्द, उच्च रक्तचाप, पेशाब में जलन, शारीरिक ताप बढ़ना, त्वचा रोग, बाल झड़ना, थकान होना, पथरी बेहोशी हिचकी आदि। इसलिए पानी की पूरी मात्र लें। शरीर के तापमान से ज्यादा गरम या ज्यादा ठंडा पानी नुकसान देता है।

जारी..

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