जलाशय ही हैं प्यासे


25 फरवरी, 2016 को देश के 91 प्रमुख जलाशयों में 51.2 बीसीएम (अरब घन मीटर) जल का संग्रहण आँका गया, जो सीडब्ल्यूसी की निगरानी में हैं। यह इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 32 प्रतिशत है। इससे साफ नजर आ रहा है कि जब देश के प्रमुख जलाशय ही प्यासे हैं, तो देशवासियों को तो प्यासा रहना ही पड़ेगा। संग्रहण क्षमता का यह आँकड़ा पिछले वर्ष की इसी अवधि के कुल संग्रहण का 77 प्रतिशत तथा पिछले दस वर्षों के औसत जल संग्रहण का 76 प्रतिशत है। जो जनता के लिए चेतावनी है कि लोग अगर मानसून आने तक पानी चाहते हैं तो सँभाल कर पानी का इस्तेमाल करें। उसकी बर्बादी न करें।

हिमाचल, पंजाब और राजस्थान


देश के इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 157.799 बीसीएम है, जो देश की अनुमानित जल संग्रहण क्षमता 253.388 बीसीएम का लगभग 62 प्रतिशत है। उत्तरी क्षेत्र में हिमाचल, पंजाब तथा राजस्थान आते हैं। इस क्षेत्र में 18.01 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले छह जलाशय हैं। इनमें कुल उपलब्ध संग्रहण 5.89 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 33 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इनकी संग्रहण स्थिति 31 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इनकी कुल संग्रहण क्षमता का 37 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण बेहतर है, लेकिन यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से कम है।

झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा


पूर्वी क्षेत्र में झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल एवं त्रिपुरा आते हैं। इस क्षेत्र में 18.83 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 15 जलाशय हैं। इनमें कुल उपलब्ध संग्रहण 8.95 बीसीएम है, जो इनकी कुल संग्रहण क्षमता का 48 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 59 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 54 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण में भी कम है।

गुजरात और महाराष्ट्र


पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात तथा महाराष्ट्र आते हैं। इस क्षेत्र में 27.07 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशय हैं। इनमें कुल उपलब्ध संग्रहण 7.84 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 29 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 48 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इनकी कुल संग्रहण क्षमता का 53 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।

उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़


मध्य क्षेत्र में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ आते हैं। इस क्षेत्र में 42.30 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 12 जलाशय हैं। इनमें कुल उपलब्ध संग्रहण 16.91 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 40 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इनकी संग्रहण स्थिति 49 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इनकी कुल संग्रहण क्षमता का 37 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कमतर है, लेकिन यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से बेहतर है।

आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडू


दक्षिणी क्षेत्र में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल एवं तमिलनाडू आते हैं। इस क्षेत्र में 51.59 बीसीएम की कुल संग्रहण क्षमता वाले 31 जलाशय हैं। इनमें कुल उपलब्ध संग्रहण 11.61 बीसीएम है, जो इनकी कुल संग्रहण क्षमता का 23 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिति 31 प्रतिशत थी। पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण इसी अवधि में इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का 40 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कमतर है और यह पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कमतर है।

स्थिति है बदतर


पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण की स्थिति बेहतर है उनमें हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश और त्रिपुरा शामिल हैं। पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण की स्थिति एक समान है उनमें आंध्र प्रदेश- तेलंगाना (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजना) शामिल हैं। पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में जिन राज्यों में जल संग्रहण कम है उनमें पंजाब, राजस्थान, झारखंड, ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, तमिलनाडू, कर्नाटक और केरल शामिल हैं।

भूजल भी बेहाल


हिंदुस्थान विश्व भर में भूमि जल का सबसे बड़ा प्रयोक्ता है। कुल उपलब्ध 433 क्यूबिक किलोमीटर पुनर्भरणीय स्रोतों में से प्रति वर्ष 245 क्यूबिक किलो मीटर भूमि जल दोहन का अनुमान है जो कि विश्व के कुल जल का एक चौथाई से अधिक हे। ग्रामीण क्षेत्र में 60 प्रतिशत से अधिक सिंचित कृषि और 85 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति भूमि जल पर आधारित है। सरकार द्वारा भूजल के आवंटन में 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और सतत भूजल संसाधन के लिए 6,000 करोड़ रुपए के प्रमुख कार्यक्रम को स्वीकृति मिली है। कई परियोजनाओं पर कार्य मिशन मोड में किया जा रहा है ताकि परियोजनाएं निर्धारित समय तक पूरी हो जाएँ और इन परियोजनाओं से कृषकों को पूर्ण लाभ प्राप्त हो सके। इस कार्य में और तेजी लाने के लिए तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र सहित कुछ अन्य राज्यों के प्रधान सचिवों की एक समिति गठित की गई है। सरकार को जल संसाधन आवंटन बजट 2015-16 के 7.431 करोड़ रुपए की तुलना में 2016-17 के बजट में बढ़ाकर 12.517 करोड़ रुपए करना पड़ा है। यह बजटीय समर्थन और बाजार उधार से हुआ है। यह 168 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है।

सरकार ने शीघ्र सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) के तहत अब तक कुल 297 परियोजनाएं शुरू की हैं और जिनमें से अब तक 143 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं। 149 चल रही परियोजनाओं में से 89 परियोजनाओं को सक्रिय पाया गया है और उनमें से 46 परियोजनाएं उच्च प्राथमिकता श्रेणी के तहत रखी गई हैं। ये परियोजनाएं संभवत: विभिन्न स्तरों में 2020 के अंत तक पूरी हो जाएंगी। इसके अतिरिक्त इन 46 परियोजनाओं में से आगे 23 परियोजनाओं को चुना गया है और इन्हें मार्च, 2017 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। देश में भूमि जल संसाधनों के अतिदोहन, अस्थायी सिंचाई और जल गुणवत्ता गिरने से भूमि जल आपूर्ति की विश्वसनीयता को खतरा हो रहा है।

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