जलस्रोतों का संरक्षण करें

18 Apr 2009
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उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच का निर्देश

इलाहाबाद हाइकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सरकार को निर्देश दिया है कि आने वाले समय में जल की होने वाली कमी से निपटने के लिये समूचे उत्तरप्रदेश में झीलों, तालाबों और अन्य जलस्रोतों का संरक्षण और उचित संधारण किया जाये। जस्टिस देवीप्रसाद सिंह ने एक सुनवाई के दौरान यह निर्देश भी दिया कि यदि कोई क्षेत्र या भूमि का टुकड़ा किसी जलस्रोत या तालाब/झील के लिये आरक्षित है तो उस जगह किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य की अनुमति नहीं दी जाये, और यदि ऐसी कोई अनुमति दी गई है तो उसे तत्काल प्रभाव से रद्द करें।

उत्तरप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड, उप्र के मुख्य सचिव, नगर निगमों और अन्य अधिकारियों को यह निर्देशित किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों के मुताबिक सभी जलस्रोतों का संचालन और संधारण अपने खर्चे से किया जाये। इस निर्णय में हिंचलाल तिवारी (2001) तथा बिट्टू सहगल (2001) केस के निर्णय और दिशानिर्देशों का अनुपालन किया जाना अपेक्षित है। हिंचलाल बनाम कमला देवी और अन्य के विवाद में अदालत ने फैसला देते हुए कहा, “तालाब, पोखर, गढ़ही, नदी, नहर, पर्वत, जंगल और पहाड़ियां आदि सभी जल स्रोत पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखते हैं इसलिए पारिस्थितिकीय संकटों से उबरने और स्वस्थ पर्यावरण के लिए इन प्राकृतिक देनों की सुरक्षा करना आवश्यक है। ताकि सभी संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिए गए अधिकारों का आनंद ले सकें।“

इतना ही नहीं अदालत ने राज्य सरकार को प्रत्येक गांव में एक विशेष जांच दल नियुक्त करने का भी आदेश दिया। जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश हाइकोर्ट ने दिया, साथ ही निर्णय में यह भी कहा गया है कि प्रभावित परिवारों को वैकल्पिक स्थानों पर अन्यत्र प्लॉट आबंटित कर दिया जाये।

माननीय न्यायालय ने कहा कि सभी प्रकार के शहरी नियोजन प्लान एवं नक्शे आदि जिनकी स्वीकृति मिल चुकी है, या उन पर काम शुरु हो चुका है, उसमें इस प्रकार से बदलाव किये जायें कि प्राकृतिक जलस्रोतों को कोई नुकसान न पहुँचने पाये। प्रत्येक झील, तालाब या अन्य जल स्रोत के आसपास किसी भी प्रकार के सरकारी या निजी निर्माण कार्य की अनुमति तब तक नहीं दी जाये, जब तक कि यह सुनिश्चित न हो जाये कि वे निर्माण जलस्रोतों पर अतिक्रमण नहीं करते।

जलस्रोतों पर हुए अतिक्रमणों को चिन्हित करने और उन्हें हटाने के लिये जिला और राज्य स्तर पर एक समिति गठित करने का भी सुझाव दिया गया है। इस समिति के अध्यक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस शैलेन्द्र सक्सेना होंगे। सभी निजी मकानों, निजी कॉलोनाइजरों और ऊँची इमारतों में “वाटर हार्वेस्टिंग” को अनिवार्य करने का भी निर्देश दिया गया है।

भविष्य की चिंता जाहिर करते हुए कोर्ट ने कहा कि “सन् 2050 की सम्भावित 180 करोड़ से अधिक की जनसंख्या को देखते हुए उस वक्त प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1000 क्यूबिक मीटर हो जायेगी जो कि 2001 में प्रति व्यक्ति 1800 क्यूबिक मीटर थी। भारत इस समय उपयोग हेतु तथा पेयजल की कमीं महसूस कर रहा है, कहीं सन् 2050 तक शायद पानी एक “दुर्लभ” वस्तु न बन जाये। जस्टिस सिंह ने लखनऊ विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि शहर की कठौता झील और उससे लगने वाले छोटे-बड़े तालाबों की जिस भूमि का आबंटन कर दिया गया है उसे रद्द करें और सभी आबंटितों को अन्यत्र प्लॉट उपलब्ध करवायें ताकि यह मुख्य जलस्रोत बचाया जा सके।

यह सभी निर्णय लखनऊ के निवासी राजेन्द्र द्वारा दायर याचिका पर दिये गये।

Tags- Talab, Pond, Tank, Environmental Law, PIL, Water Channel, Water Resources, High Court, Right to water, Ecology

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