जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य

24 Jul 2015
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जब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को बजाय विशुद्धतः पर्यावरणीय, आर्थिक या तकनीकी चुनौती मानने के स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में ग्रहण किया जाएगा तब यह स्पष्ट होगा कि हम एक ऐसी दुर्दशा के साक्षी बन रहे हैं जो कि मानवता के हृदय को चोट पहुँचा रही है। हमें अभी जो कमोबेश दूरस्थ खतरा प्रतीत होता है, स्वास्थ्य उसे एक मानवीय चेहरा प्रदान करता है। इस स्तर के अल्पपोषण एवं खाद्य असुरक्षा में यह सम्भावना निहित है कि वह एक ऐसी राजनीतिक क्रिया को बढ़ावा दे सकता है जिसकी ओर हम सबका ध्यान महज कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन अकेला आकर्षित नहीं करा सकता। बुरी खबर वास्तव में बहुत बुरी है। परन्तु पहले एक शुभ समाचार। ‘‘जलवायु परिवर्तन से निपटना इस शताब्दी की सबसे बड़ी स्वास्थ्य उपलब्धि हो सकती है। ब्रिटेन स्थित स्वास्थ्य जर्नल ‘‘दि लांसेट” द्वारा प्रकाशित एक विस्तृत रिपोर्ट में यह शुभ संकेत दिया है।” इस रिपोर्ट में मानव स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन के जटिल अन्तर्सम्बन्धों की खोजबीन की गई है।

‘‘स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन : सार्वजनिक स्वास्थ्य संरक्षण हेतु नीतिगत प्रतिक्रिया” नामक इस विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा समीक्षित व्यापक रिपोर्ट में घोषणा की गई है कि मानव निर्मित वैश्विक तापमान वृद्धि के प्रभावों ने विश्व द्वारा पिछली आधी शताब्दी में अर्जित सर्वाधिक प्रभावशाली स्वास्थ्य लाभों को खतरे में डाल दिया है। इतना ही नहीं इसमें कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के सतत् उपयोग से मानवता को भविष्य में संक्रामक रोगों की नई प्रवृत्तियों, वायु प्रदूषण, खाद्य असुरक्षा और कुपोषण, जबरन पलायन, विस्थापन और सशस्त्र संघर्षों को भुगतना पड़ सकता है। जिसकी वजह से स्थितियाँ और भी बदतर हो जाएँगी।

आयोग के सह अध्यक्ष डॉ.एंथोनी कोस्टेलो, जो कि एक शिशुरोग विशेषज्ञ हैं एवं लन्दन यूनिवर्सिटी कॉलेज के वैश्विक स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक हैं, का कहना है, ‘‘जलवायु परिवर्तन में इतनी क्षमता है कि वह हालिया दशकों में आर्थिक विकास के माध्यम से अर्जित स्वास्थ्य लाभों पर पानी फेर सकता है। ऐसा सिर्फ परिवर्तनीय एवं अस्थिरता की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ रहे सीधे प्रभावों के माध्यम से ही नहीं होगा बल्कि कई अप्रत्यक्ष तरीकों जैसे बढ़ते पलायन एवं घटती सामाजिक स्थिरता द्वारा भी होगा। हमारा विश्लेषण स्पष्ट तौर पर बतला रहा है कि जलवायु परिवर्तन से निपटना हमारे स्वास्थ्य के लिये भी लाभदायक है। जलवायु परिवर्तन से निपटना आने वाली पीढ़ियों को मानव स्वास्थ्य को लाभ पहुँचाने का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अवसर है।”

नवगठित स्वास्थ्य एवं जलवायु परिवर्तन पर लांसेट आयोग को अन्तरराष्ट्रीय जलवायु विज्ञानियों एवं भूगोलवेत्ताओं, सामाजिक एवं पर्यावरण वैज्ञानिकों, जैवविविधता विशेषज्ञों, इंजीनियरों एवं ऊर्जा नीति विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों, राजनीति विज्ञानियों एवं सार्वजनिक नीति विशेषज्ञों एवं स्वास्थ्यकर्मियों का एक नया एवं व्यापक सहयोग निरूपित किया जा रहा है।

इस रिपोर्ट को अब तक की अपनी तरह की सर्वाधिक तथ्यपरक एवं परिपूर्ण रिपोर्ट माना जा रहा है। हालांकि इस विषय पर अनेक अध्ययन हो चुके हैं, लेकिन आयोग का तर्क है कि जलवायु परिवर्तन द्वारा मानव स्वास्थ्य के सम्मुख प्रस्तुत प्रलयंकारी जोखिमों को अन्य लोगों ने कमोबेश कम करके आँका है। इस रिपोर्ट की निम्न चार प्रमुख उपलब्धियाँ हैं,

1. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव ने पिछली आधी शताब्दी में स्वास्थ्य के क्षेत्र में अर्जित लाभों के समक्ष खतरा पैदा कर दिया है। इसके प्रभाव आज भी महसूस किये जा रहे हैं एवं भविष्य में मानव स्वास्थ्य के समक्ष जो चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रही हैं वह पूर्णतया अस्वीकार्य और अत्यन्त विनाशकारी हैं।
2. जलवायु परिवर्तन से निपटना 21वीं शताब्दी का महानतम वैश्विक स्वास्थ्य अवसर साबित हो सकता है।
3. कार्बनविहीन वैश्विक अर्थव्यवस्था प्राप्त करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना अब प्राथमिक रूप से महज तकनीकी अथवा आर्थिक प्रश्न नहीं बचा है, बल्कि यह अब एक राजनीतिक प्रश्न है।
4. जलवायु परिवर्तन मूलभूत तौर पर मानव स्वास्थ्य का एक विषय है और इससे निपटने की गति बढ़ाने और नीतियों को अपनाने में स्वास्थ्यकर्मियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

आयोग के सहअध्यक्ष एवं यू सी एल इंस्टिट्यूट फॉर ह्युमन हेल्थ एवं परफॉरमेंस के निदेशक डॉ. ह्यूज माँटगोमरी का कहना है, ‘‘जलवायु परिवर्तन एक स्वास्थ्य आकस्मिकता या आपातस्थिति है और यह आपातकालीन प्रतिक्रिया की माँग करती है।” बढ़ते वैश्विक तापमान ने अत्यन्त विपरीत मौसमी घटनाएँ, फसलों की असफलता, पानी की कमी एवं अन्य संकटों में वृद्धि की है। उनका कहना है रिपोर्ट स्पष्ट रूप से यह बताने का प्रयास है कि अब कठोर एवं त्वरित निर्णय लिये जाने की आवश्यकता है।

इस तरह की परिस्थितियों में कोई भी चिकित्सक वार्षिक चर्चाओं की शृंखला पर विचार नहीं कर रहा है और इसे लेकर उनकी उम्मीदें भी अपर्याप्त हैं। ठीक इसी तरह जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक प्रतिक्रिया हमारे सामने आ रही है। आयोग के एक अन्य प्रपत्र में बताया है कि जलवायु परिवर्तन सम्बन्धी व्यापक विमर्श में मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रभावों पर विचार करना क्यों आवश्यक है।

जब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को बजाय विशुद्धतः पर्यावरणीय, आर्थिक या तकनीकी चुनौती मानने के स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में ग्रहण किया जाएगा तब यह स्पष्ट होगा कि हम एक ऐसी दुर्दशा के साक्षी बन रहे हैं जो कि मानवता के हृदय को चोट पहुँचा रही है। हमें अभी जो कमोबेश दूरस्थ खतरा प्रतीत होता है, स्वास्थ्य उसे एक मानवीय चेहरा प्रदान करता है। इस स्तर के अल्पपोषण एवं खाद्य असुरक्षा में यह सम्भावना निहित है कि वह एक ऐसी राजनीतिक क्रिया को बढ़ावा दे सकता है जिसकी ओर हम सबका ध्यान महज कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन अकेला आकर्षित नहीं करा सकता।

इस रिपोर्ट में निहित उपलब्धियों एवं चेतावनियों पर प्रतिक्रिया देते हुए फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ, ब्रिटेन के नीति विभाग के अध्यक्ष माइक चाइल्ड का कहना है विश्व के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में से एक ने जबरदस्त नए प्रमाण देते हुए तर्क दिया है कि जलवायु विनाशलीला के प्रवाह को रोकने के लिये तुरन्त ही कुछ क्रान्तिकारी निर्णय लेने की आवश्यकता है।

उनका कहना है, ‘‘जब स्वास्थ्य कर्मी इसे आपातकाल (इमरजेंसी) कहकर पुकारेंगे तो दुनिया भर के राजनीतिज्ञों को इसके बारे में सुनना ही पड़ेगा।” इसके निदान व उपचार के सम्बन्ध में रिपोर्ट से सम्बन्धित चिकित्सकों एवं वैज्ञानिकों द्वारा इसे पूर्ववर्ती चिकित्सकों द्वारा तम्बाखू, एच आई वी/एड्स से जिस शिद्दत से निपटा गया है उसी तेवर से जलवायु परिवर्तन की विनाशलीला से निपटने की बात कही गई है। उनका कहना है कि अब समय आ गया है कि हम (चिकित्सक) मानव और पर्यावरण स्वास्थ्य को लेकर चल रहे इस संघर्ष का नेतृत्व करें।”

आयोग का तर्क है कि यदि हम जीवाश्म ईंधन से मुक्ति पा लेंगे तो मानव स्वास्थ्य में भी जबरदस्त सुधार आ सकता है। डॉ. कास्टेलो का कहना है, ‘‘वास्तव में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये आप जो भी करेंगे वह स्वास्थ्य के लिये लाभप्रद ही होगा। इससे हम हृदयाघात, लकवा एवं मधुमेह में भी कमी ला सकते हैं।”

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