जलवायु परिवर्तन के कारण अगरतला की भूजल संपदा पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभाव

23 Dec 2011
0 mins read
अगरतला की भौगोलिक स्थिति
अगरतला की भौगोलिक स्थिति
वर्तमान समय में ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन से जलवायु परिवर्तन के कारण नैसर्गिक वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की शोध संख्या में बेतहासा वृद्धि हो गयी है जो कि अपने आप में जलवायु परिवर्तन की गंभीरता तथा इसके अध्ययन की महत्वता को दर्शाता है। विकसित तथा विकासशील देशों के सरकारी दिशा निर्देशों में यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। मानवजनित ग्रीनहाऊस गैसों के लगातार उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन तथा दिनों-दिन बेतहासा बढ़ती आबादी के कारण लगातार घटते जा रहे विभिन्न प्राश्तिक स्रोतों (वन, जल इत्यादि) के कारण वातावरण पर पड़ने वाले प्रभावों का गंभीरता संबंधी अध्ययन 21वीं सदी में एक महत्वपूर्ण और चिन्तनीय विषय बन गया है। लगभग हर वैज्ञानिक मंच पर जलवायु परिवर्तन संबंधी परिचर्चा एक पसंदीदा विषय बन गया है।

प्रस्तुत आलेख में भी जलवायु परिवर्तन के कारण मानसूनी वर्षा की कमी से अगरतला शहर के भूजल पर पड़ने वाले प्रभाव की विवेचना की कोशिश की गयी है।

अगरतला शहर को उत्तरपूर्वी भारत में स्थित त्रिपुरा राज्य की राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस शहर का अपना ऐतिहासिक तथा धार्मिक महत्व तो है ही, वर्तमान में यह एक समृद्ध व्यवसायिक नगरी के रूप में भी विस्तृत होता जा रहा है। बंग्लादेश के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे होने के कारण तथा भारतीय रेल मानचित्र में आने के बाद इस शहर का महत्व उत्तरपूर्वी भारत के अन्य शहरों के मुकाबले ज्यादा ही बढ़ गया है। एक आश्चर्यजनक तथ्य अगरतला के बारे में यह भी है कि इस शहर का जनसंख्या घनत्व विश्व के कुछ सर्वाधिक विकसित माने जाने वाले शहरों से भी ज्यादा है। अगरतला शहर की भौगोलिक संरचना ऐसी है कि शहर के दक्षिणी भाग में बहने वाली हावड़ा नदी के अलावा अन्य कोई नदी स्रोत नहीं है। हालांकि उत्तरी दिशा में कटकल नदी का बहाव क्षेत्र है लेकिन इसका अस्तित्व गंदे नाले वाले पानी से ज्यादा नहीं कहा जा सकता है। हावड़ा नदी भी केवल मानसून अवधि तक ही जल से परिपूर्ण रहती है और मानसून के बाद यह भी सूख जाती है।

वर्तमान में संपूर्ण अगरतला शहर के निवासियों को अपने दैनिक उपयोग तथा पीने के पानी के लिए पूर्णतः भूजल पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है। इसके फलस्वरूप दिनों-दिन हैंडपम्पों तथा ट्यूबवेलों की संख्या में बेतहासा वृद्धि होती जा रही है। जिसका दबाव उपलब्ध भूजल संपदा पर साफ-साफ देखा जा सकता है। 2001 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया था कि भूजल स्तर 18 से 72 फीट तक था वहीं 2011 के सर्वेक्षण में पाया गया कि भूजल स्तर 30 से 120 फीट तक नीचे गिर गया है। अगरतला शहर की एक खासियत और है कि यहां यत्र-तत्र छोटे-बड़े ताल तलैया (लगभग 97,000,00 Sq. ft. में, स्रोत : ASPCB) बड़ी संख्या में स्थित हैं जो कि भूजल के रिचार्ज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। इन ताल-तलैया में लगभग 51% की हिस्सेदारी निजी मालिकों के कब्जे में है और 49% सरकारी अधिपत्य में है।

इस रिसर्च पेपर को पूरा पढ़ने के लिए अटैचमेंट देखें



Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading