जसवंतसागर की अकाल मौत!

1 Jan 2009
0 mins read

दिनेश बोथरा/ भास्कर

जोधपुर। रिजर्वायर के रूप में 109 साल पहले बनाए गए जसवंतसागर बांध ने दम तोड़ दिया है। पिछले लंबे अरसे से इसमें पानी का ठहराव नहीं होने के कारणों की जांच कर रहे नेशनल इंस्टीटच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी (एनआईएच) ने अपनी आखिरी रिपोर्ट में यह खुलासा किया है कि अब यह बांध रिजर्वायर नहीं रहा, केवल ग्राउंडवाटर रिचार्ज स्ट्रक्चर के तौर पर काम आ रहा है। लाइमस्टोन फार्मेशन वाले इसके भूगर्भ के खोखलेपन से सतह पर भी सिंकहोल बनने लगे हैं।लाइमस्टोन के कारण वैसे ही भूगर्भ में फ्रेक्चर होने की समस्या ज्यादा थी, मगर रिजर्वायर में अंधाधुंध नलकूप और ओपनवैल खोदने से हालात इतने विकट हो गए हैं कि भूगर्भीय खोखलेपन का असर कई मीटर ऊपर सतह पर दरारों और छेद के रूप में होने लगा है। जल संसाधन विभाग ने बाढ़ के कारण एक दीवार क्षतिग्रस्त होने और लगातार बांध के उपयोगिता खोने के तथ्य सामने आने के बाद विस्तृत अध्ययन का काम सौंपा था।

इंस्टीटच्यूट के वैज्ञानिकों ने डेढ़ साल तक विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के बाद यह पाया है कि सतह पर जगह-जगह सिंकहोल और पोथोहोल होने से ऐसी स्थिति नहीं बची कि इसे दुबारा सिंचाई के लिए पानी छोड़ने लायक बनाया जा सके। लाइमस्टोन का लगातार विघटन होने से ऐसी स्थितियां बनी हैं। कभी सूखे के हालात तो कभी अप्रत्याशित पानी की आवक के बीच नलकूपों से पानी खींचने की होड़ ने भी भूगर्भीय फ्रेक्चर को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया।

वैज्ञानिकों का मानना है कि फ्रेक्चर या खोखलेपन की भरपाई न केवल मुश्किल है, बल्कि इसे बढ़ने से रोकना भी आसान नहीं रहा। लाइमस्टोन फार्मेशन में किसी तरह के डेमेज कंट्रोल उपाय करना बहुत ज्यादा जटिल होने के साथ इतना खर्चीला है कि उतना फायदा शायद न मिल पाए। यहां तक कि रिजर्वायर में लाइमस्टोन से ऊपर की भू-सतह में भी पानी को झेलने की क्षमता इस हद तक खत्म हो चुकी है कि फ्रेक्चर और खोखलापन न भी हो तो पानी का ठहराव संभव नहीं है।

इको-सिस्टम को नुकसान

विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ लोगों की स्वार्थपूर्ति के कारण पानी नहीं मिलने से अड़ौस-पड़ौस गांवों में खेती उजड़ गई है। इससे यहां के इको-सिस्टम को भी नुकसान पहुंचा है। बांध के एकमात्र डेड स्टोरेज हिस्से में कुछ पानी बचता है। वह इसलिए कि इसके भूगर्भ में सेंडस्टोन है। 1978-79 में 285.05 मिमी पानी बरसने पर बांध का गेज 21 फीट था। जब सिंचाई के लिए इससे दो महीने बाद पानी छोड़ा गया तो गेज 18. 90 फीट था। इसके अगले साल भी 236 मिमी बारिश में ही बांध 21.10 फीट भर गया था, जो पानी छोड़ने पर 16.20 फीट तक था। 1984-85 के बाद इस बांध के कैमचेंट व भराव क्षेत्र से छेड़छाड़ बढ़ी तो हालत यह हो गई कि कितनी भी बारिश में यदि बांध आधा-अधूरा भरा भी तो पानी छोड़ने की स्थिति आते-आते वह खाली मिलता।

इतिहास के पन्नों में रह गई खुशहाली

1980 तक इस बांध से नहरों में छोड़े जाने वाले पानी से 10 हजार 706 एकड़ इलाके में सिंचाई होती थी, मगर 1985 तक यह एरिया घटकर महज 3 हजार 848 एकड़ ही रह गया। 1997-98 तक यह एरिया 931 एकड़ तक सिमट गया। इसके बाद के सालों में बांध में पानी बचता ही नहीं था तो सिंचाई होनी ही बंद हो गई।

विभाग ने नहीं छोड़ी पुनरुद्धार की उम्मीदें

एनआईएच की रिपोर्ट आने के बावजूद जल संसाधन विभाग ने दोहराया है कि बांध के पुनरुद्धार के लिए साढ़े नौ करोड़ की योजना पर काम नहीं रुकेगा। यह पुनरुद्धार बांध के उस हिस्से में होगा, जो पिछले साल क्षतिग्रस्त हुआ था। अफसरों ने कहा कि वैज्ञानिकों के मत पर सरकार विचार कर रही है, लेकिन इसके सीपेज कम करने के प्रयास किए जाएंगे।

साभार - भास्कर न्यूज .

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading