झील संरक्षण प्राधिकरण विधेयक पारित

आमजन की राय लेने का सुझाव और विपक्ष की आपत्तियाँ दरकिनार
प्रवर समिति को भेजकर खामियाँ दूर करने और कानून लागू करने से पहले आमजन से राय लिए जाने की विपक्ष की आपत्तियों को दरकिनार कर राज्य विधानसभा ने शनिवार को राजस्थान झील (संरक्षण और विकास) प्राधिकरण विधेयक 2015 को ध्वनिमत से पारित कर दिया।

विधेयक के प्रावधानों के तहत अब राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित झीलों के संरक्षण, पुनर्सृजन और सौन्दर्यकरण के काम किए जाएंगे, ताकि इनका मूल स्वरूप बरकरार रखते हुए इनके प्रति पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके। इससे पहले राज्य सरकार ने झील संरक्षण प्राधिकरण के लिए गत 25 जनवरी को अध्यादेश जारी किया था। अब इसे विधानसभा में पारित करवा कर कानून का रूप दिया गया है।

नगरीय विकास मन्त्री राजपाल सिंह शेखावत ने विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत किया। इस पर करीब दो घण्टे की चर्चा के बाद सदन ने इसे पारित कर दिया। विपक्ष की ओर से हालाँकि विधेयक के प्रावधानों व इसकी भाषा पर आपत्ति जताते हुए विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने और जनमत के लिए परिचालित करने के प्रस्ताव रखे थे, लेकिन इन्हें बहुमत के आधार पर अस्वीकार कर दिया गया। वरिष्ठ विधायक प्रद्युम्न सिंह ने इस मत पर विभाजन की माँग भी रखी, लेकिन अध्यक्ष ने मन्जूर नहीं किया। भाजपा विधायक नरपत सिंह राजवी, प्रहलाद गुंजल व फूलचन्द भिण्डा और निर्दलीय हनुमान बेनीवाल ने भी प्राधिकरण के प्रावधानों में संशोधन की माँग उठाई थी।

विरासत, पर्यटन और ईको सिस्टम के लिए मील का पत्थर
चर्चा का जवाब देते हुए शेखावत ने कहा कि प्रदेश में जलस्रोत धीरे-धीरे विलुप्त हो रहे हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि राज्य के 50 प्रतिशत जल स्रोत खत्म हो गए हैं। हमने लम्बे समय तक मानव निर्मित एवं प्राकृतिक जल संरचनाओं के साथ खिलवाड़ किया है। पानी और घास पर लोगों का अधिकार तब ही सुरक्षित रहेगा, जब झीलें बची रहेंगी। झीलों का संरक्षण व सौंदर्यकरण समय की माँग है। ऐसे में यह विधेयक राज्य की विरासत एवं पर्यटन तथा ईको सिस्टम को संरक्षित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि विधेयक के कारण धार्मिक मान्यताओं और परम्पराओं पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। विधेयक का उद्देश्य मात्र झीलों को बचाने तक ही सीमित नहीं है, इसके माध्यम से झीलों को उनके पुराने स्वरूप में लौटाने की ओर बढ़ना चाहते हैं। विधेयक के कानून बनने के बाद पूरे ईको सिस्टम का इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट सम्भव हो सकेगा।

हाईकोर्ट ने भी दिए थे प्राधिकरण बनाने के आदेश
शेखावत ने बताया कि वर्ष 2007 में राजस्थान हाईकोर्ट ने झीलों के संरक्षण के लिए तत्कालीन सरकार को प्राधिकरण बनाने के आदेश दिए थे। केन्द्र सरकार ने भी कानून बनाने के राज्य सरकार के अधिकार पर सहमति जताई। इसके बाद मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने 29 जुलाई 2010 को स्वायत्त शासन विभाग को कानून बनाने के निर्देश दिए थे। पूर्ववर्ती सरकार भी 2013 में भी जो अध्यादेश लाई थी, यह विधेयक उसी का संवर्धित स्वरूप है।

अपनों ने भी उठाए सवाल
विधानसभा में शनिवार को पारित झील (संरक्षण) एवं विकास) प्राधिकरण विधेयक पर चर्चा के दौरान सत्ताधारी भाजपा के वरिष्ठ विधायकों ने भी सवाल उठाए। भाजपा के वरिष्ठ विधायक नरपत सिंह राजवी ने यहाँ तक कहा कि विधानसभा के इतिहास में आज तक ऐसा कानून नहीं देखा, जिसमें किसी को स्वच्छन्द अधिकार मिल जाएं। भाजपा से निलम्बित विधायक प्रहलाद गुंजल ने तो विधेयक पेश किए जाने की मंशा पर ही सवाल उठा दिया, वहीं फूलचन्द भिण्डा ने प्राधिकरण को झील क्षेत्र घोषित करने में मनमानी का अधिकार मिल जाने की आशंका जताई।

राजवी ने कहा कि कानून में ‘एब्सोल्यूट राइट’ कभी नहीं होता, ‘एब्सोल्यूट ड्यूटी’ हो सकती है। उन्होंने विभिन्न प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इनमें बहुत सुधार की जरूरत है। बिल तो पास हो ही जाएगा, क्योंकि यहाँ विरोध करने वाले नहीं हैं। भिण्डा ने प्राधिकरण को असीमित अधिकार दिए जाने पर आपत्ति जताई।
 

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