झीलों और तालाबों के संरक्षण के लिए छोड़ी गूगल की नौकरी

24 Jul 2019
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अरुण कृष्णमूर्ति।
अरुण कृष्णमूर्ति।

पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रतिष्ठित पद और अच्छे वेतन वाली नौकरी करना हर व्यक्ति का सपना होता है। यदि नौकरी गूगल जैसे प्रतिष्ठित वैश्विक संस्थान में लगे तो मानो जीवन की आधी समस्या ही दूर हो गई, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े रहने वाले लोगों के जीवन में पद और पैसा ज्यादा महत्व नहीं रखते। ये लोग हमेशा समाज के उत्थान में अपना योगदान देना चाहते हैं। ये योगदान यदि पर्यावरण संरक्षण के प्रति हो तो करोड़ों लोगों का जीवन इससे जुड़ जाता है। अपनी जड़ों और पर्यावरण के साथ जुड़े हुए एक ऐसे ही शख्स हैं चेन्नई के ‘अरुण कृष्णमूर्ति‘, जिन्होंने पर्यावरण को बचाने के लिए गूगल की नौकरी छोड़ दी और तालाबों से कचरा निकाल उन्हें पुनर्जीवित करने में जुट गए। लोगों से मिलने वाले पैसे और अपने दृढ़ संकल्प के बल पर अरुण देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब 39 झीलों और 48 तालाबों का पुनरुद्धार करने में सफल रहे।

भारत इस समय भीषण जल संकट से जूझ रहा है। अति दोहन के कारण भूजल स्तर लगातार कम हो रहा है। दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगरों में निकट भविष्य में भूजल समाप्त होने की चेतावनी तक दे दी गई है,तो वहीं देश के अन्य इलाकों में भी जल की कमी एक विकट समस्या के रूप में सामने आ रही है। तालाब, झील, कुएं, पोखर, बावड़ियां और नदियां लगातार सूख रहे हैं। जिस कारण कई इलाकों के लिए शुद्ध जल पाना हर दिन एक चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में चेन्नई से 29 किलोमीटर दूर मुदिचुर गांव के अरुण कृष्णमूर्ति ने जल को बचाने का जिम्मा लिया। अरुण ने नाडुवीरपट्टू से अपनी पढ़ाई की। जिसके बाद मद्रास क्रिश्चियन काॅलेज ने माइक्रोबायोलाॅजी में स्नातक किया और गूगल हैदराबाद में नौकरी लग गई। देश के लाखों युवाओं का सपना होता है गूगल में नौकरी करना। गूगल में नौकरी लगना भी अरुण के लिए एक सपने जैसा ही था, जिसने उनके सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की नींव रख दी थी, लेकिन सूखती झीलों और तालाबों तथा उनमें गंदगी को देखकर अरुण काफी विचलित हो उठते थे। उन्हें भारत जैसे देश में ये बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण लगता था। इसीलिए वें नौकरी के साथ ही जल संरक्षण के लिए कार्य करते रहे, लेकिन एक बार उन्हें लगा कि एक समय में एक ही काम किया जा सकता है, तो उन्होंने जल संरक्षण के रास्ते को चुना और गूगल की नौकरी छोड़ दी। 

दरअसल अरुण बचपन से ही पर्यावरण से जुड़े रहे हैं। जल और वन संरक्षण में उनकी बचपन से ही रूचि थी, लेकिन ग्राम पंचायत के प्रमुख धमोधरन ने उन्हें काफी प्रभावित किया। धमोधरन अक्सर लोगों को तालाबों से कचरा निकालकर उन्हें स्वच्छ रखने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया करते थे। अरुण भी उनके इस कार्य को देखते हुए ही बड़ा हुआ था। नौकरी छोड़ने के बाद अरुण ने अपना जीवन पर्यावरण के प्रति ही समर्पित कर दिया और झीलों को साफ करने के उद्देश्य के लिए वर्ष 2007 में एनवायरमेंट फाउंडेशन इंडिया (ईएफआई) की स्थापना की। अपने इस अभियान की शुरुआत हैदराबाद के गुरुनधान झील को साफ करके की। अरुण ने जल संरक्षण में योगदान देने वाले स्वयंसेवकों के लिए विभिन्न स्कूलों में जाकर विभिन्न जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन किया। सेमिनार और कार्यशालाओं के माध्यम से जल संरक्षण की जानकारी दी। हाईड्रोस्टैन नाम से एक वीडियो सीरीज बनाकर भी देश के जलाशयों के बारे में लोगों को जानकारी दी। ये वीडियो सीरीज यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। अपशिष्ट प्रबंधन के लिए ‘नो वेस्ट’ जैसे जागरुकता कार्यक्रम चलाए। गांवों में पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ‘‘ग्रीन ग्रामम’’ जैसे प्लाए तैयार किये।

अरुण कृष्णमूर्ति।

अरुण ने वर्ष 2007 में अपने अभियान की शुरुआत अकेले ही थी। वह पर्यावरण संरक्षण के अपने संकल्प के साथ चलते चले गए और कारवां जुड़ता गया। उन्होंने तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुड्डुचेरी और गुजरात में जल संरक्षण के लिए कार्य किया। इतने वृहद स्तर पर कार्य करने के लिए फंड की जरूरत पड़ता तो लाजमी है। अपने अभियान में निरंतर बढ़ते रहने के लिए उन्होंने आम लोगों से पैसे एकत्रित किए। लोगों से मिले इन पैसों से ही उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब 39 झीलों और 48 तालाबों का पुनरुद्धार करने में सफलता मिली। अब इस अभियान को आगे बढ़ाने में उन्हें सरकार और अन्य गैर सरकारी संगठनों का भी सहयोग मिल रहा है, लेकिन अरुण का उद्देश्य केवल पानी बचाना ही नहीं बल्कि जलस्थान पर रहने वाले जीव-जंतुओं को भी संरक्षित करना है। इसीलिए वें जलीय जीव संरक्षण के लिए एक ऐसा माॅडल तैयार कर रहे हैं, जिससे एक बार सफाई पूरी होने के बाद किसी भी झील में कचरे व गंदगी को फिर से पहुंचने से रोका जा सके। इससे जलीय जीव और पौधों की प्रजातियों को संरक्षित किया जा सकेगा। अरुण कहते हैं कि लोगों को लगता है कि जमीन पर उतरे बिना झीलें कचरे और गंदगी से मुक्त होंगी, पर ऐसा बिल्कुल नहीं है। झीलों को बचाने के लिए न केवल उतरकर उनके अंदर जाकर इन्हें साफ करना होगा, बल्कि इनमें कचरा फेंकने वालों पर भी नकेल कसनी होगी। 

दरअसल हमारे देश में स्वच्छता की बात तो हर कोई करता है। अपने घर और आंगन को सभी साफ रखते हैं, सड़क, नदी, तालाबों, झीलों और सार्वजनिक स्थानों को गंदा करना लोगों की दिनचर्या का हिस्सा बन गया है। बढ़ती गंदगी के कारण जल और वायु प्रदूषित हो गए है। जिसका परिणाम केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरा विश्व भुगत रहा है, लेकिन अभी भी लोगों को जागरुकता का अभाव है। जिसे दूर करने के लिए अरुण कृष्णमूर्ति जैसे युवाओं की इस देश को जरूरत है, जो निस्वार्थ भाव से दृढ़ संकल्पित होकर पर्यावरण संरक्षण के कार्य करें। प्राकृतिक संसाधनों के रूप में जो हमें विरासत में मिला, आने वाली पीढ़ी केवल किताबों में पढ़ने के बजाए उसका लाभ उठा सके। 

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