कागज़ों में बहा पानी, सूखते रहे ताल-तलैया

बुंदेलखंड में बड़ी नदियों के किनारे रहने वाले कभी इस तरह का पानी का संकट नहीं झेलते थे जैसा हाल के कुछ सालों से झेल रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी थी कि नदी के किनारे कैचमेंट क्षेत्र में बरसात का पानी भर जाता था और वह आसपास की ज़मीन को भी नम रखता था। साथ पहाड़ और जंगल में पानी के स्रोत भी ताल-तालाब और नदियों के जल स्तर को बनाए रखते थे। पर्यावरण से खिलवाड़ की छूट मिलते ही सबसे पहले पेड़ काटे गए फिर पहाड़ खोदे गए और अब नदियों की तलहटी खोदी जा रही है। बुंदेलखंड अब विदर्भ की तरह के पानी के संकट को न्यौता देता नजर आ रहा है। इसकी मुख्य वजह तालाब के बाद नदियों की दुर्दशा है। इसके लिए राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं जो उन नेताओं और ठेकेदारों को प्राकृतिक संसाधनों की लूट की छूट दिए हुए हैं। नतीजा सामने है। बुंदेलखंड में नदियां सूख रही हैं। महोबा में ऐतिहासिक चंद्रावल नदी सूख गई है तो चंदेलकालीन तालाब का पानी तलहटी तक पहुंच चुका है। केंद्र सरकार ने चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए दो सौ करोड़ रुपए दिए। कागज़ में तो पानी बहने लगा लेकिन ताल-तालाब और सूख गए। बेतवा, पहुज, केन, उर्मिल, बाणगंगा और धसान जैसी कई छोटी-बड़ी नदियां संकट में हैं। पहले तो छोटी नदियों का पानी गरमी में सूखता था। लेकिन अब बड़ी नदियों का पानी भी सूख रहा है। उरई में कोटरा, सिकरी, व्यास, मोहाना, गोडा सिमरिया जैसे बेतवा नदी के घाट पर डुबकी मारने लायक पानी मिलना मुश्किल हो रहा है। यह बानगी है बुंदेलखंड में पानी के आने वाले संकट की।

पानी के लिए गांव-गांव में विवाद शुरू हो चुका है। यह संकट गांव-कस्बों से आगे बढ़ता हुआ जंगल तक पहुंच चुका है। कुछ दिनों पहले कुलपहाड़ में पानी तलाशती एक गर्भवती हिरणी को जंगल में कुत्तों ने मार डाला। जंगली जानवर भी पानी के संकट से जूझ रहे हैं। यह संकट और बढ़ने जा रहा है क्योंकि पारा चढ़ते ही ताल-तालाब और नदियों का पानी और घट जाएगा।

बुंदेलखंड में बड़ी नदियों के किनारे रहने वाले कभी इस तरह का पानी का संकट नहीं झेलते थे जैसा हाल के कुछ सालों से झेल रहे हैं। इसकी एक वजह यह भी थी कि नदी के किनारे कैचमेंट क्षेत्र में बरसात का पानी भर जाता था और वह आसपास की ज़मीन को भी नम रखता था। साथ पहाड़ और जंगल में पानी के स्रोत भी ताल-तालाब और नदियों के जल स्तर को बनाए रखते थे। पर्यावरण से खिलवाड़ की छूट मिलते ही सबसे पहले पेड़ काटे गए फिर पहाड़ खोदे गए और अब नदियों की तलहटी खोदी जा रही है। जब तलहटी खोद दी जाएगी तो पानी ठहरेगा कहां। अवैध खुदाई करने वाले लोगों में ज्यादातर सांसद, विधायक, नेता और पूर्व सांसद और विधायक हैं। इनका चरित्र भी सत्ता के साथ बदलता है। मसलन सिंह, पंडित, ठाकुर, बुधौलिया और गोस्वामी कंस्ट्रक्शन या ट्रांसपोर्ट के नाम वाले ट्रक दिखते थे। अब यादव ट्रांसपोर्ट या कंस्ट्रक्शन ज्यादा दिखता है। लेकिन इससे भ्रमित नहीं होना चाहिए क्योंकि ये सब मुखौटे हैं और धंधा करने वाला सिर्फ चोला बदलता है, कमान उसके हाथ में होती है। एक-एक नदी से पांच सौ हजार ट्रक बालू/मौरंग रोज निकालेंगे तो पानी कहां जाएगा यह अंदाजा लगाया जा सकता है।

सूखता जा रहा है चंदेलकालीन मदन सागर झीलसूखता जा रहा है चंदेलकालीन मदन सागर झीलमहोबा से निकलने वाली चंद्रावल नदी का नाम वहां की राजकुमारी के नाम पर है जिसे चंदेलों ने ग्यारहवीं सदी में दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान से युद्ध कर छुड़वाया था। कहा जाता है कि यह युद्ध करहरा गांव के पास हुआ था और बाद में इस नदी का नाम चंद्रावल रखा गया। यह नदी आसपास के गाँवों के लिए वरदान थी। महोबा में चंद्रावल नदी अब सूख चुकी है और उर्मिल बांध में भी पानी बहुत कम है। जबकि सोलह चंदेलकालीन तालाबों में पानी लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पहल की है। तालाबों की भी बहुत दुर्दशा हुई है। चंदेलकालीन मदन सागर तालाब करीब साढ़े छह किलोमीटर का है। लेकिन उसका कैचमेंट एरिया बाईस किलोमीटर का है जिसका पानी इस तालाब में आता था। अब इस कैचमेंट एरिया में लोगों ने मकान बना लिए तो सरकार ने सड़क और पुल बनाकर पानी आने का रास्ता ही बंद कर दिया।

पर्यावरण विशेषज्ञ केके जैन ने कहा-यही इस समस्या की जड़ है। ठीक उसी तरह जैसे नदियों की तलहटी खोद कर उन्हें बांझ बनाया जा रहा है। सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया तो फिर विदर्भ जैसे हालात बुंदेलखंड में पैदा हो जाएंगे।

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