कैर, कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर…

कैर, कुमटिया सांगरी
कैर, कुमटिया सांगरी


कैर, कुमटिया सांगरी (फोटो साभार - पलक बंसल 06 डॉट वर्डप्रेस डॉट कॉम)राजस्थान के देसी खाने की खोज हमें बीकानेर के भेलू गाँव स्थित गोदारो की ढाणी तक ले गई। रेतीले टीलों पर चलते हुए हमें एक कूमट (अकेसिया सेनेगल) का पेड़ मिला। अक्टूबर में जब हम यहाँ पहुँचे, तब तक पेड़ की फलियों की बिनाई हो चुकी थी और पेड़ पर कुछ ही फलियाँ बची थीं। हमने उनमें से एक को खोलकर देखा, उसमें तीन बटन जैसे चपटे बीज थे। इन बीजों को कुमटिया या चपटिया कहा जाता है और यह राजस्थान के मारवाड़ी व्यंजन पंचकूट का एक महत्त्वपूर्ण अवयव है।

कुमटिया के अलावा इस व्यंजन में केर (कप्पारिस डेसीडुआ), सांगरी (प्रोसोपिस सिनेरेरीआ), गुंदा (कोर्डिया मिक्सा) और कच्चे आम का प्रयोग किया जाता है। ये पाँच फल और फलियाँ राजस्थान की संस्कृति में इतने रचे बसे हैं कि कवियों ने इन पर कविताएँ भी लिखी हैं, मसलन “कैर, कुमटिया सांगरी, काचर बोर मतीर, तीनूं लोकां नह मिलै, तरसै देव अखीर।” इसका तात्पर्य है कि ये व्यंजन राजस्थान के अलावा तीनों लोकों में नहीं मिलते और देवता भी इनके लिये तरसते हैं। इन सब्जियों में केवल केर और सांगरी को ही लोग ज्यादा जानते हैं पर यह पक्का है कि कुमटिया के बिना पंचकूट अधूरा है।

इस व्यंजन को अक्सर शीतला अष्टमी के दिन बनाया जाता है। यह त्यौहार देवी शीतला को समर्पित है और होली के एक सप्ताह बाद मनाया जाता है। इस दिन, देवी को शान्त रखने के लिये, घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। माना जाता है कि देवी को खुश रखने से स्मॉल पॉक्स (चेचक) जैसे रोगों से बचा जा सकता है।

पंचकूट जल्दी खराब भी नहीं होता और यह लम्बी यात्रा के दौरान ले जाने के लिये एक पसन्दीदा भोजन है। क्योंकि इसकी सभी सामग्री पेड़ों से पाई जाती है। इनकी बार-बार खेती नहीं करनी पड़ती और यह रेगिस्तान में विशेष रूप से अनुकूल हैं। लोगों को जब जहाँ और जितनी फली और फल मिलते हैं, वे उन्हें इकट्ठा कर लेते हैं। चूँकि यह एक समय में थोड़ी ही मात्रा में मौजूद होती है, इसलिये फली और फलों को संचय करना पड़ता है ताकि जरूरत के समय में भोजन के रूप में प्रयोग किया जा सके। पहले समय में अकाल के वक्त इन सब्जियों का बहुत महत्त्व था।

इन सूखे खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बनाने के लिये पाक कला में निपुण होना आवश्यक है। राजस्थान के लोगों में यह खूबी पारम्परिक रूप से मौजूद है। शादियों में इसको सूखे मेवों के साथ पकाया जाता है और गर्व के साथ परोसा जाता है। दूसरी तरफ इसी सामग्री को बाजरे की रोटी के साथ एक घरेलू व्यंजन की तरह भी खाया जाता है। उनकी लोकप्रियता इससे स्पष्ट है कि अब ये सूखी सब्जियाँ ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और काफी महँगी मिलती हैं, मसलन 500 ग्राम पैक की कीमत 450 रुपए है।

कूमट पेड़ केवल पौष्टिक बीजों के लिये ही नहीं जाना जाता। इस पेड़ से एक गोंद निकलता है जिसे गम अरेबिका कहा जाता है और इसका प्रयोग प्रसंस्कृत भोजन में स्टेबलाइजर के रूप में होता है। इसके अलावा, इसका प्रयोग छपाई, पेंट, सौन्दर्य प्रसाधन और कपड़ा उद्योगों में भी किया जाता है।

यह पेड़ पश्चिमी सूडान, नाइजीरिया और अरब प्रायद्वीप में मूल रूप से पाया जाता है जहाँ से इसे मिस्र, ऑस्ट्रेलिया, पोर्टो रीको, वर्जिन आइलैंड और दक्षिण एशिया में उगाने के लिये ले जाया गया था। 15वीं शताब्दी में यूरोप के व्यापारी सेनेगल नदी के मुहाने के आस-पास के समुद्री तट पर जाकर इस गोंद को अरबों-बर्बर जनजातियों से खरीदते थे। इसी कारण यह समुद्र तट गम कोस्ट कहा जाता था। सूडान आज भी इस गोंद का सबसे बड़ा निर्यातक है।

भले ही भारत के राजस्थान, पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा प्रदेशों में यह पेड़ पाया जाता है पर इनमें पर्याप्त मात्रा में गोंद नहीं निकलता। सेंट्रल एरिड जोन रिसर्च इंस्टीट्यूट, जोधपुर में इन पेड़ों से गोंद के उत्पादन को बढ़ाने और क्षेत्र में लोगों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने के लिये रिसर्च की गई है। इसमें पाया गया कि हार्मोन एथेफोन से उत्पादन में वृद्धि हो सकती है। वैसे यह पेड़ पारम्परिक कृषि पद्धति प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण घटक भी है, क्योंकि यह जमीन की नाइट्रोजन ठीक करता है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार कर सकता है। पर अब किसान व्यावसायिक कृषि को अपनाने के चलते अपनी जमीन से इन पेड़ों को हटाते जा रहे हैं। हालांकि सरकार इन पेड़ों को अधिक से अधिक उगाने के लिये किसानों को कभी-कभार मुफ्त बीज बाँटती है।

राजस्थान में लोग दैनिक रूप से कुमटिया को पसन्द करते हैं, पर वे शायद इनके लाभों को नहीं जानते। 2014 में बायोकेमिस्ट्री रिसर्च इंटरनेशनल में छपे एक अध्ययन से पता चलता है कि बीज में हृदय को सुरक्षित करने वाले गुण हैं। इसमें सीरम टीसी (टोटल कोलेस्ट्रॉल), एलडीएल-सी (लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन कोलेस्ट्रॉल), ट्राइग्लिसराइड और वीएलडीएल-सी (वेरी लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन-कोलेस्ट्रॉल) स्तर काम करने की क्षमता है।

कुमटिया के बीज दिल, किडनी और लिवर को होने वाली समस्याओं को भी ठीक करते हैं। इस अध्ययन को करने वाले शोधार्थी राजस्थान और मध्य प्रदेश से हैं। वे कहते हैं कि बीज के एक्सट्रैक्ट्स का प्रयोग कर खराब खाने से होने वाले अथेरोस्क्लेरोसिस का इलाज मुमकिन हो सकता है। इण्डियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज में 2017 में छपे एक अन्य अध्ययन के अनुसार, बीज के सत्व पाँच बैक्टीरियल स्ट्रेंस को एंटीबायोटिक्स से बेहतर नियंत्रित कर सकते हैं।

बीजों में एक तरह की वसा भी है जो दवाई बनाने के काम आता है। अफ्रीका में इस पेड़ की गोंद को भी दवाई की तरह प्रयोग में लाया जाता है और यह आँतों की लाइनिंग ठीक करने के काम आता है। बीजों के पोषण मूल्य का व्यापक रूप से विश्लेषण नहीं किया गया है पर जब पशुओं के लिये खाने के रूप में खाई जाने वाली अकेसिया की प्रजातियों का विश्लेषण किया गया तो पाया गया कि अकेसिया सेनेगल के बीजों में अन्य प्रजातियों के मुकाबले फास्फोरस, जिंक और सेलेनियम ज्यादा है। एक और विश्लेषण से पता चलता है कि बीज में 39 प्रतिशत प्रोटीन है। यह चनों में पाये लगभग 19 प्रतिशत प्रोटीन से ज्यादा है।
 

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