कार्बाइड के निकट भू-जल में खतरनाक कीटनाशक: सीएसई

3 दिसंबर, 1984 को हुई इस दुर्घटना में जिसमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और 5 लाख लोग प्रभावित हुए
3 दिसंबर, 1984 को हुई इस दुर्घटना में जिसमें 2 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और 5 लाख लोग प्रभावित हुए

भोपाल, एजेंसी विज्ञान एवं पर्यावरण केन्द्र (सीएसई) निदेशक सुनीता नारायण ने भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े स्थानीय कीटनाशक संयंत्र से खतरनाक रासायनिक कचरा साफ नहीं करने पर गहरा क्षोभ प्रकट करते हुए कहा है कि संयंत्र के आसपास की बस्तियों के भू-जल में धीमे जहर के रूप में इन रसायनों का प्रभाव पाया गया है। सीएसई की प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला में कार्बाइड संयंत्र क्षेत्र की मिट्टी और पानी का परीक्षण करने के बाद त्रासदी की 25वीं बरसी की पूर्व संध्या पर मंगलवार को संवाददाताओं से बातचीत में सुनीता ने कहा कि फैक्ट्री से तीन किलोमीटर दूर तक के इलाके में भू-जल में भारतीय मानकों से चालीस गुना अधिक तक कीटनाशक मौजूद हैं।

उन्होंने कहा कि जिन संस्थाओं को संयंत्र के अंदर मौजूद लगभग 340 टन रासायनिक कचरा हटाने की योजना बनाने का काम दिया गया है, सरकार उन्हें योजना शीघ्र बनाने को कहे तथा जल्द से जल्द ये कचरा वहां से हटा लिया जाए। सीएसई प्रयोगशाला ने संयंत्र और उसके आसपास पानी और मिट्टी के नमूनों की जांच की तथा संयंत्र के भीतर एवं बाहर के भू-जल में कीटनाशकों और भारी धातुओं का उच्च संकेन्द्रण पाया। सीएसई निदेशक ने कहा कि गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों के हित में जिम्मेदारी तय करना भी एक जरूरी हिस्सा है। कार्बाइड की अधिग्रहणकर्ता डाव कैमिकल इससे पल्ला झाड़ने की तैयारी में है, जबकि उसने अमेरिका में एस्बेस्टस संपर्क मामले में कार्बाइड की देनदारी स्वीकार की थी।

दुर्घटना के लिए भारतीय अदालत में एक बार मुआवजा तय होने के बाद कंपनी की जिम्मेदारी समाप्त नहीं हो जाती। इस मामले को लेकर सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से जो कागजात निकाले गए हैं, वे इस ओर इशारा करते हैं कि डाव कैमिकल को जिम्मेदारी से मुक्त करने की तैयारी चल रही है। एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि इस कार्बाइड संयंत्र में तीन विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों का उत्पादन होता था, जिनमें सेविन (कारबारील), टेमिक (एल्डिकार्ब) और सेविडोल (कारबारील एवं गामा हैक्साक्लोरोसाइक्लोहेक्सेन का मिश्रण) है। इन उत्पादों एवं तत्वों में अधिकतर दीर्घस्थाई और जहरीली प्रकृति के हैं। सीएसई प्रयोगशाला ने अपने परीक्षणों के लिए इन्हीं रसायनों को चुना था।

सुनीता ने कहा कि इस वर्ष अक्टूबर में संयंत्र के भीतर विभिन्न स्थानों से पानी का एक और मिट्टी के आठ नमूने लिए गए तथा संयंत्र से लगी दीवार एवं 3.5 किलोमीटर दूर तक की बस्तियों से भी ग्यारह अन्य पानी के नमूने लिए गए। संयंत्र के भीतर लिए गए सभी नमूनों में जहां उच्च स्तर का संदूषण पाया गया, वहीं तीन किलोमीटर दूर तक के पानी में भारतीय मानकों से चालीस गुना अधिक तक सर्वोच्च संदूषण पाया गया। सुनीता ने कहा कि संयंत्र और उसके निस्तारण स्थल के कूड़े में मौजूद रसायनों का चरित्र, बाहर की बस्तियों के भू-जल नमूनों से प्राप्त रसायनों के चरित्र से पूरी तरह मेल खाता है। पानी में मौजूद इन खतरनाक रसायनों से स्थानीय निवासियों का लगातार हो रहा सूक्ष्म संपर्क उनके शरीर में जहर घोल रहा है।

उन्होंने कहा कि यह घोर विषाक्तता से अलग है और इसलिए सरकार का यह दावा है कि चूंकि लोगों को कूड़े को छूने से कुछ नहीं होगा, इसलिए संयंत्र खतरनाक नहीं है, भ्रामक है। दरअसल समस्या यह है कि संयंत्र की जमीन में मौजूद रसायन भू-जल में घुल रहे हैं और इससे यहां के निवासी धीरे-धीरे जहर का शिकार बन रहे हैं। इस धीमे जहर का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव भयंकर होगा। सीएसई निदेशक ने कहा कि अनुसंधानकर्ताओं ने पाया है कि दुर्घटनास्थल के आसपास रहने वाले लोग अब भी असाध्य रोगों से लेकर विभिन्न विकृतियों तक से जूझ रहे हैं लेकिन किसी को भी निश्चित तौर पर यह नहीं पता कि इसमें गैस के रिसाव अथवा जहरीले पदार्थों से लगातार संपर्क में से किसका और कितना हाथ है। यह भी साफ है कि रसायनों और कीटनाशकों का कूड़ा संयंत्र संचालन के समय से ही परिसर में डाला जा रहा था।
 

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