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कार्बन डाइ-साल्फ़ाइड

कार्बन डाइ-साल्फ़ाइड यह गंधक से संयोजित का यौगिक है। 1796 में लैंपेडियस (Lampadius) ने इसका पता लगाया और उसकी व्याकृति वैक्वेलिन ने ज्ञात की। यह गर्म कार्बन पर गंधक का वाष्प प्रवाहित करने से बनता है : C + 2 S = C S2 औद्योगिक परिमाण में इसके उत्पादन के लिए भी मूलत: इसी क्रिया का उपयोग होता है। ढलवाँ लोहे अथवा मिट्टी के बने भभके काठ कोयला 800º-900º सें. तक गर्म किया जाता है तथा गंधक का वाष्प नीचे से, कोयले से होकर प्रवाहित किया जाता है। गैसीय उत्पाद से संघनित्र में प्रवाहित कर कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड प्राप्त की जाती है। गैसीय उत्पाद से संघनित्र में प्रवाहित कर कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड प्राप्त की जाती है। इसमें कुछ अन्य यौगिक भी रहते हैं, जो आसवन द्वारा दूर कर लिए जाते हैं। कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड के अधिक उत्पादन के लिए गंधक का अतितप्त वाष्प आवश्यक होता है। इसके लिए कार्बन से क्रिया होने के पहले ही वाष्प को अधिक गर्म कर लिया जाता है। टेलर की विधि में, जिसमें विद्युत्‌ भट्ठी का उपयोग होता है, गंधक के पिघलने से प्राप्त वाष्प भभके के भीतर ही अतितप्त होकर कोयले से क्रिया करती है। इन भभकों में तापसह ईटों का अथवा इसी प्रकार की दूसरी वस्तुओं का अस्तर आवश्यक होता है जिससे उच्च ताप पर गंधक या कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड की लोहे के बने बर्तन से क्रिया न हो सके।

साधारण ताप पर कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड रंगहीन तथ अति उड़नशील द्रव है। इसकी गंध अरुचिकर होती है परंतु सावधानीपूर्वक आसवन से प्राप्त द्रव में मीठी गंध रहती है। इसके ठोस होने तथा उबलने का ताप क्रमश:116º सें. तथा –46.25º सें. है। द्रव का आपेक्षिक घनत्व 0º सें. पर 1.2923 है। कार्बन डाइ-सल्फाइड विषैला है और अंगूर की लताओं पर कीड़े तथा गेहूँ के एलिवेटर में चूहों को मारने के लिए प्रयुक्त होता है।

कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड का वाष्प ज्वलनशील है तथा ऑक्सीजन के साथ इसके वाष्प का मिश्रण धड़ाके के साथ जलता है। कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड बहुत सी रसायनिक सल्फ़ाइड बनता है। उबलते हुए कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड में क्लोरीन की क्रिया से कार्बन टेट्रा-क्लोराइड प्राप्त होता है। गर्म पोटैशियम या ताँबे से यह विघटित होता है जिससे धातु के सल्फ़ाइड बनते हैं। कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड के साथ जलवाष्प अथवा हाइड्रोजन सल्फ़ाइड गर्म ताँबे पर प्रवाहित करने से मीथेन प्राप्त होता है।

यह पानी में लगभग अविलेय है (0º सें. पर 100 मिलीलीटर पानी में 0.204 ग्राम) परंतु ऐल्कोहल, ईथर इत्यादि से मिश्रित होता है। कार्बन डाइ-सल्फ़ाइड में चर्बी, गंधक, फ़ास्फ़ोरस, आयोडीन, रबर इत्यादि घुल जाते हैं जिसके कारण विलायक के रूप में इसका अधिक उपयोग होता है। नकली रेशम बनाने तथा रबर उद्योग में भी इसका अत्यधिक उपयोग है।

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