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कार्बन

कार्बन एक तत्व है, जो स्वतंत्र तथा संयोजित दोनों रूपों में मिलता है। स्वतंत्र कार्बन के भिन्न अपर रूप हीरा, ग्रैफ़ाइट तथा कोयला हैं। हवा के कार्बन डाइ-ऑक्साइड में, पानी में घुले कार्बोनेट में और संगमरमर, खड़िया, अनेक चट्टानों तथा कई प्रकार के खनिज पदार्थों में संयोजित कार्बन रहता है। जीवधारी, वनस्पति, पेट्रोलियम तथा सभी कार्बनिक वस्तुओं का एक अत्यावश्यक अवयव कार्बन है।

साधारण ताप पर कार्बन सामान्यत: अक्रिय है, परंतु तप्त करने पर यह बहुत सी वस्तुओं से संयोग करता है। ऑक्सीजन से क्रिया में कार्बन मोनो-ऑक्साइड तथा डाइ-ऑक्साइड बनता है :

C + ú ½ O2= C O, C + O2 = C O2

उच्च ताप पर कार्बन द्वारा कई धातुओं के ऑक्साइड का अवकरण हो जाता है। उच्च ताप पर ऑक्सीजन से संयुक्त होने की प्रवृत्ति के कारण ही यह धन ईधंन के लिए तथा धातुकर्म में सरल अवकारक के लिए अत्यधिक प्रयुक्त होता है। अति उच्च ताप पर यह हाइड्रोजन से भी क्रिया करता है और फलस्वरूप हाइड्रोकार्बन बनते हैं।

यौगिकों में कार्बन की सामान्यतया चतु:संयोजकता रहती है तथा वलय अथवा श्रृंखला में दूसरे कार्बन परमाणु से भी संयोग करना इसका विशेष गुण है। इसीलिए असंख्य कार्बनिक यौगिक उपलब्ध हैं।

कई प्रकार के कार्बनिक यौगिकों को, जैसे लकड़ी का चूर, चीनी, पत्तियों इत्यादि को, अपर्याप्त वायु में गर्म करने से वे झुलस जाते हैं और वाष्प तथा दूसरी वाष्पशील वस्तुएँ बाहर निकल जाती हैं। अंत में काली वस्तु बच रहती है जो विशुद्ध कार्बन रहता है, रंग रूप में हीरा कार्बन का रूप नहीं प्रतीत होता परंतु कोयला, काज, ग्रैफ़ाइट की भाँति यह भी वस्तुत: कार्बन का ही एक अपर रूप है। इन सभी प्रकार की वस्तुओं को वायु में पूर्णतया जलाने पर कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस ही मिलती है। मात्रात्मक विचार से पूर्वोक्त सभी वस्तुओं से भार भी बराबर ही मिलता है। कार्बन के ये विभिन्न अपर रूप होते हुए भी उनके रंग, रूप, मणिभ संरचना तथा दूसरे भैतिक गुणधर्म अत्यंत भिन्न होते हैं।

रंगहीन तथा रंगीन दोनों प्रकार के हीरे मिलते हैं; यह अत्यंत कड़ी मणिभ वस्तु है। विशेष प्रकार से काटने पर, जिससे आंतरिक पूर्ण परावर्तन अधिक हो, यह अत्यंत चमकदार हो जाता है और मणियों की भाँति प्रयुक्त होता है। इसका घनत्व 3.3 —3.5 है और इसका वर्तनांक तथा विक्षेपक शक्ति अधिक होती है। कुछ प्रकार के हीरों का रंग कैथोड-रे, ऐल्फ़ा-रे अथवा अल्ट्रावायलेट-रे में रखने पर बदलता है। काले रंग के हीरे (कारबोनेडो तथा बोर्ट) मणियों के लिए अनुपयुक्त होते हैं, परंतु अत्यंत कड़े होने के कारण बहुमूल्य घर्षक हैं। कांच काटने, पतला तार खींचने के ठप्पे बनाने, चट्टान छेदने, हीरा अथवा दूसरी मणियों को काटने, अथवा उनपर पालिश करने के यंत्र बनाने में काले हीरे का उपयोग होता है।

एक्स-रे द्वारा हीरे के मणिभ (crystal) के अध्ययन से ज्ञात हुआ कि कार्बन के प्रत्येक परमाणु कार्बन के दूसरे चार परमाणुओं से संबंधित हैं। इनके संयोजकता-बध समचतुष्फलक के अनुसार व्यवस्थित होते हैं; दो निकटवर्ती कार्बन परमाणु में दूरी केवल 1.54 आंगस्ट्रम है तथा षड्भुज वलय की चौड़ाई 2.51 आंगस्ट्रम है। इस संरचना के कारण ही हीरा अत्यंत कड़ी वस्तु हो जाता है।

ऐसा अनुमान होने पर कि पिघले हुए तत्प पदार्थ में कार्बन के विलयन को अत्यधिक दाब पर ही ठंडा करने से हीरा बनेगा, लोगों ने इस विधि द्वारा कार्बन से हीरा बनाने का प्रयत्न किया। इस्पात के सुदृढ़ खोल में कार्बन को उच्च ताप पर पिघले लोहे में घुलने दिया जाता है। तब खोल को अचानक ठंडा किया जाता है। इसके भीतर स्वत: अत्यधिक दबाव प्राप्त होता है। लोहे को अम्ल में घुला देने पर हीरा निकलता है, परंतु नन्हें-नन्हें टुकड़ों में।

कार्बन का दूसरा रूप है ग्रैफ़ाइट जो काले रंग का कोमल, चिकना तथा चमकदार ठोस पदार्थ है। इसे कागज पर घिसने से काला चिह्न बन जाता है। इसलिए यह लिखने की पेंसिल बनाने में प्रयुक्त होता है। इसकी विद्यत्‌ तथा उष्मा संचालकता अधिक है; इन गुणों के कारण यह विद्युत्‌ मोटरों के विद्युतविश्लेषण (electrolysis) में प्रयुक्त विद्युतग्र के लिए उपयोगी होता है। धातुओं को पिघलाने की कई प्रकार की घरियाँ भी इससे बनाई जाती हैं। व्यावसायिक मात्रा में ग्रैफ़ाइट बनाने के लिए कोयला अथवा कार्बनयुक्त दूसरी उपयुक्त वस्तु को बालू (या ऐसे ही किसी अन्य ऑक्साइड) के साथ विद्युत्‌ आर्क की विशेष प्रकार की भट्ठियों में लगभग 2000स् सें तक गर्म किया जाता है। इस प्रक्रिया में पहले कारबाइड बनता है जिसके विघटन से सिलिकान वाष्पित हो जाता है और कार्बन, ग्रैफ़ाइट के रूप में, बच रहता है। इस प्रक्रिया से अति शुद्ध ग्रैफ़ाइट प्राप्त होता है जिसका उपयोग विशेषकर विद्युतीय कार्यों में होता है। ग्रैफाइट का कलिल विलयन पानी में 'ऐक्वाडाग' नाम से अथवा तेल में 'आयलडाग' नाम से किसी सतह को विद्युच्चालकता प्रदान करने के लिए, या स्नेहन (lubrication) के लिए बहुत प्रयुक्त होता है। यद्यपि ग्रैफ़ाइट अम्ल या क्षार के तनु विलयन के प्रति अक्रिय है, तथापि इति ऑक्सीकारक वस्तु से यह क्रिया करता है। गाढे सल्फ़्यूरिक तथा नाइट्रिक अम्ल और पोटैशियम क्लोरेट की क्रिया में ग्रैफ़ाइट से ग्रैफ़िटिक अम्ल (या ऑक्साइड) बनता है।

एक्स-रे के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि ग्रैफ़ाइट के मणिभ में कार्बन परमाणु एक ही समतल में व्यवस्थित होते हैं और एक षड्कोण के कोनों पर स्थित रहते हैं। दो अगल-बगल के कार्बन तथा दो निकटतम समतलों की परस्पर दूरी 3.40 आंगस्ट्रम होती है।

काठकोयला लकड़ी के तथा अस्थिकोयला (animal charcoal) हड्डी के कार्बनीकरण से प्राप्त होता है। व्यावसायिक मात्रा में इन्हें तैयार करने पर अनेक बहुमूल्य उपजात भी मिलते हैं। काठकोयले का उपयोग मुख्यत: ईधंन के लिए तथा अस्थिकोयले का उपयोग गैस या रंग के अवशोषक के रूप में होता है। काजल और कालिख (carbon black) तेल या पेट्रोलियम को अपर्याप्त वायु में जलाने पर प्राप्त होता है।

प्राकृतिक गैस से इसी प्रकार गैस-कालिख (gas black) प्राप्त किया जाता है। यह गाढ़े काले रंग का महीन चूर्ण है जिसका उपयोग काली स्याही, वार्निश तथा रबर को सुदृढ़ करनेवाले पदार्थों के रूप में होता है। पत्थर के कोयले में कार्बन के साथ दूसरी वस्तुएँ भी पर्याप्त मात्रा में होती हैं। इसका भंडार कई देशों में पाया गया है। विभिन्न प्रकार के कोयलों के कार्बन की मात्राएँ भिन्न होती हैं। भारी मशीनों के लिए ईधंन के रूप में साधारणत: पत्थर का कोयला ही प्रयुक्त होता है। इसे बंद भट्ठी में गर्म कर कई बहुमूल्य रासायनिक पदार्थ प्राप्त किए जाते हैं तथा बचा हुआ कोक घरेलू कामों में ईधंन के लिए प्रयुक्त होता है।

कार्बन से संयोजित धातु के यौगिकों को कारबाइड कहते हैं जो साधारणतया कठिनाई से ही उच्च ताप पर बनते हैं। ये दो प्रकार के हाते हैं : एक तो पानी से सरलता से क्रिया करते हैं। इस क्रिया में हाइड्रोकार्बन बनता है। उनके उदाहरण हैं कैल्शियम, ऐल्यूमिनियम, इत्यादि के कारबाइड।

Ca C2 + 2 H2 O = Ca (O H2) + C2 H2

दूसरे वर्ग के सदस्य अति कठोर हैं तथा उष्मसह वस्तुएँ बनाने में काम आते हैं (जैसे टाइटेनियम, ज़रकोनियम, वैनेडियम और टंग्स्टन के कारबाइड)।

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