कावेरी : लहर में जहर

Kaveri
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प्रदूषण बोर्ड की रपट को आए 13 साल बीत गए, कावेरी में ना जाने कितना पानी बह गया, उससे ढेर सारे विवाद और हंगामे उपज गए लेकिन उसका प्रदूषण दिन दुगना-रात चौगुना बढ़ता रहा। उस पर राजनीति की बिसात बिछी है। कावेरी गवाह है कि आधुनिक विकास की कितनी बड़ी कीमत नदियां चुका रही हैं। कावेरी में जब तक पानी है, वह जीवनदायिनी है और उस दिन तक उसके पानी को लेकर दो राज्य लड़ते रहेंगे, लेकिन जिस दिन उसमें घुलता जहर खतरे की हद को पार कर जाएगा, उस दिन से यही लोग इस नदी को अपने राज्य की सीमा में घुसने से रोकने का झंडा उठा लेगें।पौराणिक कथाओं में कुर्गी-अन्नपूर्णा, कर्नाटक की भागीरथी और तमिलनाडु में पौन्नई यानी स्वर्ण-सरिता कहलाने वाली कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर विवाद से तो सभी परिचित हैं लेकिन इस बात की किसी को परवाह नहीं है कि यदि इसमेें घुलते जहर पर तत्काल ध्यान नहीं दिया गया तो जल्दी ही हालात काबू से बाहर हो जाएंगे। दक्षिण की जीवन रेखा कही जाने वाली इस नदी में कही कारखानें का रसायनयुक्त पानी मिल रहा है तो कहीं शहरी गंदगी का निस्तार सीधे ही इसमें हो रहा है, कहीं खेतों से बहते जहरीले रसायनयुक्त खाद व कीटनाशक इसमें घुल रहे हैं तो साथ ही नदी हर साल उथली होती जा रही है। बंगलूरू सहित कई विश्वविद्यालयों में हो रहे शोध समय-समय पर चेता रहे हैं कि यदि कावेरी को बचाना है तो उसमें बढ़ रहे प्रदूषण पर नियंत्रण जरूरी है, लेकिन बात कागजी घोड़ों की दौड़ से आगे बढ़ नहीं पा रही है।

कावेरी नदी कर्नाटक के कुर्ग जिले के पश्चिमी घाट के घने जंगलों में ब्रह्मगिरी पहाड़ी पर स्थित तलकावेरी से निकलती है। कोई आठ सौ किलोमीटर की यात्रा के दौरान कई सहायक नदियां इसमें आकर मिलती हैं, लेकिन जब दो लाख घन मीटर से अधिक वार्षिक जल बहाव वाली कावेरी का समागम तमिलनाडु में थंजावरु जिले में बंगाल की खाड़ी में होता है तो यह एक शिथिल सी छोटी सी जल-धारा मात्र रह जाती है। कावेरी के पानी को लेकर दो राज्यों के बीच का विवाद संभवतया दुनिया के सबसे पुराने जल विवादों में से एक है।

17वीं सदी में टीपू सुल्तान के शासनकाल में जब तत्कालीन मैसूर राज्य ने इस पर बांध बनाया था तब मद्रास प्रेसीडेंसी ने इस पर आपत्ति की थी। इस झगड़े का एक पड़ाव सन् 1916 में सर विश्वेसरैया की पहल पर बनाया गया कृष्णराज सागर यानी केआरएस बांध था। पर जब दोनों राज्यों में पानी की मांग बढ़ी तो यह बांध भी विवादों की चपेट में आ गया।

कावेरी की लपटों में ना जाने क्या-क्या झुलसा, लेकिन पानी पर सियासत करने वालों ने इस बात की सुध कभी नहीं ली कि कावेरी का मैला होता पानी अब जहर बनता जा रहा है। कुछ साल पहले बंगलूरू विश्वविद्यालय ने वन और पर्यावरण मंत्रालय तथा राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय-एनआरडीसी की मदद से एक विस्तृत शोध किया था जिसमें बताया गया था कि केआरएस बांध से नीचे आने वाला पानी ऊपरी धारा की तुलना में बेहद दूषित हो गया है। गौरतलब है कि केआर नगर, कौल्लेगल और श्रीरंगपट्टनम नगरों की नालियों का गंदा पानी और नंजनगौडा शहर के कारखानों व सीवर की निकासी बगैर किसी शोधन के काबिनी नदी में मिला दी जाती है। काबिनी नदी आगे चल कर नरसीपुर के पास कावेरी में मिल जाती है। कहने को कोल्लेगल में एक ट्रीटमेंट प्लांट लगा है, लेकिन इसे चलते हुए कभी किसी ने नहीं देखा।

शहरी गंदगी के बाद कावेरी को सबसे बड़ा खतरा इसके डूब क्षेत्र में हो रही अंधाधुंध खेती से है। ज्यादा फसल लेने के लालच में जम कर रासायनिक खाद व कीटनाशकों के इस्तेमाल ने कावेरी का पानी जहर कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बरसात के दिनों में कावेरी के पानी में हर रोज 1,051 टन सल्फेट, 21 टन फास्फेट और 34.88 टन नाईट्रेट की मात्रा मिलती है।

गर्मी के दिनों में जब पानी का बहाव कम हो जाता है तब सल्फर 79 टन, 2.41 टन फास्फेट और 3.28 टन नाईट्रेट का जहर हर रोज इस पावन कावेरी को दूषित कर रहा है। याद रहे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक नाईट्रेट के रूप में नाईट्रोजन की इतनी मात्रा वाला पानी बच्चों के लिए जानलेवा है।

कौललागेल क्षेत्र में शहरी सीवर के कारण कावेरी का पानी मवेशियों के लिए भी खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। यहां पर पानी में कैडमियम, एल्यूमिनियम, जस्ता और सीसा की मात्रा निर्धारित स्तर को पार कर जाती है। ये नदी किनारे रहने वालों के लिए आए दिन नई-नई बीमारियों की सौगात लेकर आ रहे हैं। वैसे तो अन्य नदियां की ही तरह कावेरी में भी खुद-ब-खुद शुद्धीकरण की विशेषता है, लेकिन आधुनिक जीवनशैली के लिए आवश्यक बन गए रासायनों की बढ़ती मात्रा से नदी का यह गुण नाकाम हो गया है। कावेरी के किनारों पर रेत की बेतरतीब खुदाई, शौचकर्म और कपड़ों की धुलाई ने भी नदी का मिजाज बिगाड़ दिया है।

कावेरी के दूषित होने की चेतावनियां 13 साल पहले 1995 में केद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रपट में दर्ज थीं। उसमें कहा गया था कि कावेरी का पानी अपने उद्गम तालकावेरी से मैसूर शहर की सीमा तक सी ग्रेड का है, जबकि यह होना ए ग्रेड का चाहिए। विदित हो कि ए ग्रेड के पानी की 100 मिलीलीटर मात्रा में कॉलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा 50 होती है, जबकि सी ग्रेड में यह खतरनाक विषाणु छह हजार होता है।

पानी की अम्लीयता का पैमाना कहे जाने वाले पीएच वैल्यू में काफी अंतर दर्ज किया गया था। प्रदूषण बोर्ड की उस रिपोर्ट यह भी बताया गया था कि केआर बांध से होगेनेग्गल तक और पगलूर से ग्रेंड एनीकेट तक और उसे आगे कुंभकोणम तक पानी की क्वालिटी ई ग्रेड की है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी पीने के लिए कतई नहीं होता है।

प्रदूषण बोर्ड की रपट को आए 13 साल बीत गए, कावेरी में ना जाने कितना पानी बह गया, उससे ढेर सारे विवाद और हंगामे उपज गए लेकिन उसका प्रदूषण दिन दुगना-रात चौगुना बढ़ता रहा। उस पर राजनीति की बिसात बिछी है।

कावेरी गवाह है कि आधुनिक विकास की कितनी बड़ी कीमत नदियां चुका रही हैं। कावेरी में जब तक पानी है, वह जीवनदायिनी है और उस दिन तक उसके पानी को लेकर दो राज्य लड़ते रहेंगे, लेकिन जिस दिन उसमें घुलता जहर खतरे की हद को पार कर जाएगा, उस दिन से यही लोग इस नदी को अपने राज्य की सीमा में घुसने से रोकने का झंडा उठा लेगें।

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