कब तक सहेंगे हम मां गंगा की अनदेखी?
स्वामी ज्ञानस्वरूप के जल त्याग को व्यापक समर्थन की अपील
वाराणसी के कबीरचौरा तपस्या स्थली (अस्पताल) में स्वामी ज्ञानस्वरूप से मिलने पहुंचे काशी के प्रमुख जन
मित्रों! संत स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नये नामकरण वाले प्रो. जीडी अग्रवाल का जीवन एक बार फिर संकट में है। गंगा की अविरलता और नरोरा से प्रयाग तक न्यूनतम प्रवाह की मांग को लेकर वह मकर संक्रान्ति से अनशन पर हैं। माघ मेला, प्रयाग में एक महीने के अन्न त्याग, मातृ सदन- हरिद्वार में पूरे फागुन फल त्याग के बाद अब चैत्र के माह का प्रारंभ होते ही 9 मार्च से उन्होंने जल भी त्याग दिया है। उनकी सेहत लगातार नाजुक हो रही है। चुनावी शोर में मीडिया ने भी उनकी महा-तपस्या की आवाज को नहीं सुनी। बीते दो माह के दौरान शासन ने भी जाकर कभी उनकी व्यथा जानने की कोशिश नहीं की। शासन तो अब भी नहीं चेता है। प्रशासन ने जरूर तपस्वी की आवाज बंद करने के लिए 10 मार्च की रात उन्हें जबरन उठाकर कबीर चौरा अस्पताल, वाराणसी पहुंचा दिया गया है। हालांकि स्वामी ज्ञानस्वरूप जी को गंगा के लिए प्राण देने में तनिक भी हिचक नहीं है। उनकी प्रतिज्ञा दृढ़ है। लेकिन क्या हम उनके प्राण यूं ही जाने दें?
आखिर हम कब तक गंगा के लिए बलिदान होते देखते रहेंगे? क्या हम इतने निकम्मे हैं कि बहरी सरकार को सुनने को भी बाध्य नहीं कर सकते? हम हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध... किसी भी धर्म या संप्रदाय के हों। हो सकता है कि स्वामी ज्ञानस्वरूप से हमारे वैचारिक या मानसिक मतभेद हों। लेकिन क्या गंगा से किसी का मतभेद हो सकता है। वह गंगा की अविरलता - निर्मलता हासिल करने के लिए जीवन होम करने पर लगे हैं। गंगा हम सभी की है। हम सभी गंगा की संतान हैं। क्या हमारा दायित्व नहीं बनता कि गंगा और गंगा रक्षा के लिए निरंतर मृत्यु की ओर बढ़ रहे गंगापुत्र की रक्षा के समर्थन में कुछ करें।