कछुओं को बचाने के लिए तरुण ने शुरू किया संघर्ष
3 September 2011


भरूच। रतन तालाब बरसों साल पुराना तालाब है जो नवाबों ने बनाया था। एक वक़्त पर ये भरूच का पर्यटक स्थल होता था और इसे कछुआ तालाब भी कहा जाता था। यहां पर 500 से ज्यादा कछुए रहते थे लेकिन अब इनकी संख्या घटकर सिर्फ आधी रह गई है।

तरुण सामाजिक मुद्दों को लेकर फिल्म बनाते हैं। इसके ज़रिए वह लोगों में जागरूकता फैलाने की कोशिश करते हैं। इस दौरान उन्होंने अपने कैमरे में जो भी समस्याएं कैद की उनको लेकर प्रशासन का ध्यान भी खींचा।

ऐसी ही एक समस्या से तरुण रूबरू हुए जब उन्होंने रतन तालाब के कछुओं पर फिल्म बनाना शुरू किया। उनके सामने 2 चौंकाने वाली सच्चाई आईं, एक तो रतन तालाब में रहने वाले कछुए तेजी से मर रहे थे और दूसरा उनका प्रजनन नहीं हो रहा था। तरुण ने फैसला किया कि वे इस समस्या की तह तक जाएंगे।

जैसे-जैसे भरूच शहर का विकास होने लगा लोगों ने तालाब के आसपास घर बनाने शुरू कर दिए। तालाब की खूबसूरती तो खत्म हो गई तालाब लोगों के अतिक्रमण का शिकार हुआ और इसकी बलि चढ़े वो कछुए जिनका आशियाना ये तालाब है। यहां का पानी अब रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए इस्तेमाल होता है। यहां पर लोग कपड़े धोते हैं। पास ही में एक शौचालय है जिसकी सारी गन्दगी इस पानी में जाती है और तालाब के पानी को गंदा करती है।

अब अगर बात करें कछुओं के प्रजनन की तो कछुए कुछ ही घंटो के लिए तालाब से बाहर आते हैं और अपने अंडे किनारे पर रख देते हैं। अपने लालच के लिए लोग इन कछुओं के अंडों को भी बेच देते हैं या फिर उनको खा लेते हैं।

तरुण ने कई बार यहां के लोगों को समझाया कि अपने फायदे के लिए कछुओं को मारना ठीक नहीं। उनकी मुहिम का इतना असर तो हुआ कि लोग अब इन कछुओं को सुबह शाम खाना खिलाने की कोशिश करते हैं।

कछुओं को बचाने के लिए तालाब की सफाई होना भी बहुत ज़रूरी है और इसमें प्रशासन की अहम भूमिका है। इसके लिए तरुण कई बार नगर पालिका के अधिकारियों से मिले उनका कहना है कि कछुओं के लिए कोई और रहने का इंतज़ाम वो जल्दी करेंगे।

लेकिन तरुण का मानना है कि जिस तालाब में वो सालों से रह रहे हैं उनसे उनका घर क्यों छीना जाए। तालाब को साफ़ रखना प्रशासन की ज़िम्मेदारी है और वो अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते।
 

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