‘कड़वी हवा’ का जिक्र एक मीठा एहसास


64वें राष्ट्रीय पुरस्कार में फिल्म कड़वी हवा की सराहना



कड़वी हवाकड़वी हवाइस बार के नेशनल अवार्ड में सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने वाले फिल्म निर्देशक नील माधब पांडा की ताजा फिल्म ‘कड़वी हवा’ का विशेष तौर पर जिक्र (स्पेशल मेंशन) किया गया।

स्पेशल मेंशन में फिल्म की सराहना की जाती है और एक सर्टिफिकेट दिया जाता है, बस! बॉलीवुड से गायब होते सामाजिक मुद्दों के बीच सूखा और बढ़ते जलस्तर के मुद्दों पर बनी कड़वी हवा की सराहना और सर्टिफिकेट मिलना राहत देने वाली बात है।

फिल्म की कहानी दो ज्वलन्त मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती है-जलवायु परिवर्तन से बढ़ता जलस्तर व सूखा। फिल्म में एक तरफ सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड है तो दूसरी तरफ ओड़िशा के तटीय क्षेत्र हैं। बुन्देलखण्ड पिछले साल भीषण सूखा पड़ने के कारण सुर्खियों था। खबरें यह भी आई थीं कि अनाज नहीं होने के कारण लोगों को घास की रोटियाँ खानी पड़ी थी। कई खेतिहरों को घर-बार छोड़कर रोजी-रोजगार के लिये शहरों की तरफ पलायन करना पड़ा था।

‘कड़वी हवा’ में मुख्य किरदार संजय मिश्रा और रणवीर शौरी ने निभाया है। अपने अभिनय के लिये मशहूर संजय मिश्रा एक अंधे वृद्ध की भूमिका में हैं जो सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड में रह रहा है। उनके बेटे ने खेती के लिये लोन लिया, लेकिन सूखा के कारण फसल नहीं हो सकी और अब उसे कर्ज चुकाने की चिन्ता खाये जा रही है। अन्धे बूढ़े को डर है कि कर्ज की चिन्ता में वह आत्महत्या न कर ले, क्योंकि बुन्देलखण्ड के कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं। अन्धे बूढ़े की तरह ही क्षेत्र के दूसरे किसान भी इसी चिन्ता में जी रहे हैं।

दूसरी तरफ, रणवीर शौरी एक रिकवरी एजेंट है, जो ओड़िशा के तटीय इलाके में रहता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है और उसे डर है कि उसका घर कभी भी समुद्र की आगोश में समा जाएगा। रिकवरी एजेंट लोन वसूलना चाहता है ताकि वह अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट कर सके। अन्धा बूढ़ा रिकवरी एजेंट से कर्ज माफी की गुजारिश करता है ताकि उसका बेटा आत्महत्या करने से बच जाय। शुरुआत में रिकवरी एजेंट उनकी एक न सुनता है, लेकिन धीरे-धीरे वे एक-दूसरे की मजबूरियाँ समझने लगते हैं और आपसी सहयोग से जलवायु परिवर्तन के खतरों से पंजा लड़ाते हैं।

बात चाहे सूखे की हो या ग्लोबल वार्मिंग की, एक बात तो साफ है कि इसके लिये जिम्मेवार कोई है और भुक्तभोगी कोई और। खेत में फसल उगाने वाला किसान हो या समुद्र में मछली पकड़ने वाला मछुआरा-कोई भी ग्लोबल वार्मिंग के लिये जिम्मेवार नहीं है, लेकिन झेलना इन्हें ही पड़ता है। फिल्म में इस पहलू को भी उजागर किया गया है। फिल्म हिन्दी में बनाई गई है, लेकिन अब तक यह रिलीज नहीं हुई है।

नील माधब पांडानील माधब पांडाफिल्म निर्देशक नील माधब पांडा इससे पहले पानी की किल्लत पर ‘कौन कितने पानी में’ फिल्म बना चुके हैं। दरअसल, वह जिस क्षेत्र से आते हैं, वहाँ पानी की घोर किल्लत है। यही वजह है कि पानी और पर्यावरण के मुद्दे उन्हें अपनी ओर ज्यादा खींचते हैं। उनकी पहली डॉक्यूमेंटरी फिल्म भी पर्यावरण के मुद्दे पर ही थी। पांडा कहते हैं, ‘यह फिल्म महज एक कपोल कल्पना नहीं है बल्कि यह जलवायु परिवर्तन को झेल रहे लोगों की दयनीय हालत बयाँ करता है। यह समाज के लिये वेकअप कॉल है जो जलवायु परिवर्तन के सम्भावित खतरों से निबटने के लिये तैयार नहीं हुआ है।’

फिल्म को नेशनल अवार्ड में सराहना मिलने पर उन्होंने खुशी जताई। इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, ‘फिल्म का जिक्र कर उसे सराहा गया यह उनके लिये बड़ी बात है।’ पांडा ने कहा, ‘मैं इससे अधिक उम्मीद भी नहीं करता।’

फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाले संजय मिश्रा के बारे में पांडा ने कहा, ‘वह अपने किरदार में इस कदर ढल गए कि पूरी शूटिंग के दौरान वह कभी भी पंखे के नीचे नहीं बैठे।’

बॉलीवुड में वैसे पानी, पर्यावरण के मुद्दों पर डॉक्यूमेंटरी तो कई बनीं, लेकिन फीचर फिल्मों का निर्माण बहुत कम हुआ है और हुआ भी है तो उन्हें पुरस्कार वगैरह नहीं मिले। फिल्म हिस्टोरियन शिशिर शर्मा कहते हैं, ‘पर्यावरण या पानी के मुद्दे पर बनी किसी हिन्दी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो, ऐसे मुझे ज्ञात नहीं है। अलबत्ता क्षेत्रीय भाषाओं में इन मुद्दों पर बनी फिल्म को पुरस्कार मिला हो, तो मिला हो।’ उन्होंने कहा, ‘इस तरह के मुद्दे पर फिल्म बनाना जोखिम भरा है और आजकल एक-एक फिल्म बनाने में करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। दूसरी बात यह है कि अब स्टारडम का जमाना है। ऐसे में कोई भी डायरेक्टर ऐसे विषय पर फिल्म बनाना नहीं चाहेगा, जो बहुत गम्भीर हो।’ शर्मा आगे कहते हैं, ‘आप देखिए न! सामाजिक मुद्दों पर ही कितनी फिल्में आजकल बन रही हैं?’

शर्मा ने कहा, ‘आजकल ऐसे पटकथा लेखक भी नहीं हैं जो इस तरह के मुद्दों पर रोचक पटकथा लिख सकें।’

उल्लेखनीय है कि पेयजल की किल्लत पर शेखर कपूर भी पानी नाम से फिल्म बना रहे हैं लेकिन कोई प्रोड्यूसर पैसे लगाने को तैयार नहीं है। बीते दिनों उन्होंने साफ तौर पर यह स्वीकार किया था कि प्रोड्यूसर उनकी कहानी पर पैसे खर्च नहीं करना चाहता है। पानी फिल्म का तानाबाना 2040 के कालखण्ड में बुना गया है, जब मुम्बई के एक क्षेत्र में पानी की घोर किल्लत है और दूसरे क्षेत्र में पानी है। फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म का पोस्टर पिछले साल (वर्ष 2016) में रिलीज किया गया था।

शिशिर शर्मा के नजरिए से फिल्म समीक्षक कोमल नाहटा भी इत्तेफाक रखते हैं। उनका मानना है कि हॉलीवुड और बॉलीवुड में फिल्म को पुरस्कार मिलने के बाद उस फिल्म को लेकर दर्शकों के नजरिए में फर्क होता है। उन्होंने कहा, ‘अमेरिका में अगर किसी फिल्म को पुरस्कार मिलता है, तो वहाँ के दर्शकों में उस फिल्म को लेकर उत्सुकता बढ़ जाती है जिससे फिल्म अच्छी कमाई कर लेती है। अपने देश में ऐसा नहीं है। यहाँ अवार्ड से फिल्म के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर कोई असर नहीं पड़ता है।’

कड़वी हवा को सराहना से क्या हाशिए पर पड़े पर्यावरण, पानी व जलवायु परिवर्तन के मुद्दे बॉलीवुड के केन्द्र में आएँगे? इस सवाल पर कोमल नाहटा ने कहा, ‘देखिए, अभी बॉलीवुड के 99 प्रतिशत प्रोड्यूसर पैसा कमाने के लिये पैसा लगाते हैं, प्रोत्साहन के लिये नहीं। इसलिये उम्मीद करना बेमानी है कि सराहना मिलने से इस तरह के फिल्में बनाने के प्रति रुचि बढ़ेगी।’


TAGS

Kadvi hawa gets special mention in National award.film director Nila madhav panda. Actor sanjay-mishra-Ranveer-Shourie. film on water and climate change in india. 64th-national award-best actor-akshay-kumar-kaun-kitne-pani-me-Shekhar-kapoor-Komal-nahta-history-of- national-award-film historian- history-of Indian-cinema – Kadvi-hawa-release-date-


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading