केन नदी का उद्गम

30 Mar 2012
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केन नदी का उद्गम स्थल
केन नदी का उद्गम स्थल
कटनी। जिले में कई ऐसी धरोहरें हैं जिन्हें शासन-प्रशासन ने विस्मृत कर दिया है। इन्हीं धरोहरों में शामिल है देश की चुनिंदा बड़ी नदियों में से एक केन नदी का उद्गम स्थल। यह नदी कटनी जिले की रीठी तहसील से दो किलोमीटर दूर एक खेत से निकली है। जहां आज भी कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिन्हें देखकर लगता है कि मुगल काल से पहले हिन्दु चंदेल शासकों ने इसे उद्गम स्थल के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन अफसोस आज इस जगह को स्वतंत्र भारत में भुला दिया गया। जितना ही केन नदी का उद्गम स्थल अजीबो-गरीब है उतनी ही इसके उद्गम की कहानी भी आश्चर्यजनक है। रीठी के वासिंदे केन को एक देवी के रूप में पूजते हैं। तभी तो आज भी वह शव के अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां तथा राख केन की उन पहाड़ियों में डाल देते हैं जो आज भी एक रहस्य के समान है।

रीठी के पास जिस खेत से इसके निकलने को लोग मानते हैं वहां से कुछ दूरी पर ही सुनसान स्थल पर चट्टानों के बीच कई पुरातात्विक स्तंभ, मूर्तियां, अवशेष बिखरे पड़े हैं। केन जिसे कर्णवती भी कहा जाता है। यह यमुना की एक उपनदी या सहायक नदी है जो बुन्देलखंड क्षेत्र से गुजरती है। दरअसल मंदाकिनी तथा केन यमुना की अंतिम उपनदियाँ हैं क्योंकि इस के बाद यमुना गंगा से जा मिलती है। रीठी के पास केन के उद्गम स्थल को नदियों की सीमाओं की खोज करने वाली यूएसए की आन लाइन लाइब्रेरी एस्कार्ट ने अपने रिकार्ड में समावेश किया है किन्तु भारत में इस नदी के विषय में सिर्फ इतना ही कहा जाता है कि यह दमोह-जबलपुर अथवा कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं से निकली है। इसके बाद की जानकारी पर किसी को ज्यादा इत्तिफाक नहीं।

इस नदी में बेहद कीमती पत्थर शजर पाया जाता है। शजर पन्ना जनपद के अजयगढ़ कस्बे से लेकर उत्तर प्रदेश में बांदा के कनवारा गांव तक भारी मात्रा में पाया जाता है। शजर एक अनोखा पत्थर होता है। ऊपर से बदरंग दिखने वाले शजर को मशीन से तराशने पर उस पर झाड़ियों, पेड़-पौधों, पशु-पक्षियों, मानव और नदी की जलधारा के विभिन्न चमकदार रंगीन चित्र उभरते हैं। जानकारों के अनुसार पूरे विश्व में अन्य कहीं भी इस तरह का पत्थर नहीं पाया जाता। केन नदी में पाया जाने वाला शजर पत्थर ईरान में ऊंचे दामों में बिकता है, तभी तो मुम्बई के एक विशेष समुदाय के व्यापारी इसे चोरी-छिपे थोक में खरीदकर ले जाते हैं। बताया जाता है कि केन नदी के शजर को मुम्बई में मशीन से तराशकर ईरान भेजा जाता है, वहां इसकी अच्छी रकम मिलती है।

उद्गम स्थल पर मिलते हैं चंदेल वंश के प्रमाण


गोंड (जनजातीय) मूल का राजपूत वंश, जिसने उत्तर-मध्य भारत के बुंदेलखंड पर कुछ शताब्दियों तक शासन किया। प्रतिहारों के पतन के साथ ही चंदेल नौवीं शताब्दी में सत्ता में आए। उनका साम्राज्य उत्तर में यमुना नदी (जमुना) से लेकर सागर (मध्य प्रदेश, मध्य भारत) तक और धसान नदी से विंध्य पहाड़ियों तक फैला हुआ था। सुप्रसिद्ध कलिंजर का किला, खजुराहो, महोबा और अजयगढ़ उनके प्रमुख गढ़ थे। चंदेल राजा नंद या गंड ने लाहौर में तुर्कों के खिलाफ अभियान में एक अन्य राजपूत सरदार जयपाल की मदद की, लेकिन गजना (गजनी) के महमूद ने उन्हें पराजित कर दिया था। 1023 में चंदेलों का स्थान बुंदेलों ने ले लिया खजुराहो के मंदिर निर्माण के लिए ही चंदेल संभवत: सबसे अधिक विख्यात है। चंदेल वंश और केन नदी का साथ हर जगह मिलता है। चंदेलशासन केन नदी के किनारे पला बढ़ा लिहाजा इस नदी के उद्गम को लेकर स्वाभाविक तौर पर जिज्ञासा थी। इसी जिज्ञासा के परिणाम स्वरूप रीठी के समीप केन के उद्गम स्थल पर जो प्रमाण मिलते हैं वह उल्लेखित करते हैं कि इस शासन काल में केन का उद्गम एक भव्य स्वरूप में विकसित किया गया होगा।

केन के उद्गम स्थल के समीप जिस स्थान पर पुरातात्विक सामग्री बिखरी पड़ी हैं वहीं पहाड़ों के बीच दरार (खोह) को लेकर रहस्य काफी पुराना है। स्थानीय लोग बताते हैं कि चट्टानों बीच की इन दरारों की गहराई का पता नहीं। अनेक वर्षों से लोग इन दरारों में शवों के राख अस्थियां अथवा कंकड़ पत्थर डालते जा रहे हैं, लेकिन इन दरारों में भराव नहीं हुआ। दरारों के बीच डाली गई चीज अंदर पता नहीं कहां चली जाती है। लोगों का मानना है कि पहाड़ों के नीचे नदी है जिसमें यह सामग्री बह जाती है। किवदंती तो यहां यह भी है कि मुगल शासक लोगों को मौत के घाट उतार कर उन्हें इन्हीं दरारों में फेंक देते थे। जिनका बाद में कुछ भी पता नहीं चल पाता था।

केन नदी के उद्गम स्थल को लेकर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें ही हुई। कुछ वर्ष पूर्व तक जबलपुर लोकसभा के अंतर्गत आने रीठी क्षेत्र में इस उद्गम स्थल की ओर जब सांसद राकेश सिंह का ध्यान आकृष्ट कराया गया तो उन्होंने इसे पर्यटन मानचित्र में शामिल करने का भरोसा दिलाया। तत्कालीन विधायक अलका जैन डॉ. एपी सिंह और अब विधायक निशिथ पटेल के समक्ष भी उद्गम के विकास को लेकर ध्यान दिलाया जाता रहा लेकिन किसी ने भी शायद इसे गंभीरता से नहीं लिया। हां रीठी जनपद के सीईओ ने कुछ वर्ष पूर्व यहां के विकास का एक विस्तृत प्रस्ताव भेजा लेकिन वह भी स्वीकृत नहीं हो सका। जिला पंचायत उपाध्यक्ष सौरभ सिंह ने यहां एक कुंड के निर्माण की घोषणा भी की थी लेकिन उसका भी अता पता नहीं।

केन नदीकेन नदीउधर मसले पर कटनी खजुराहो लोकसभा क्षेत्र के सांसद जितेन्द्र सिंह बुन्देला का ध्यान आकृष्ट कराया गया तो उन्होंने कहा कि केन नदी के उद्गम स्थल को लेकर उनके समक्ष जो बातें ध्यान में लाई गईं हैं उस पर वह गंभीरता से विचार करते हुए इस स्थान पर विकास की पहल करेंगे। बुन्देला ने भरोसा दिलाया कि जल्द ही वह स्वयं केन के उद्गम स्थल का दौरा भी करेंगे।

कहा जाता है कि केन नदी बुंदेलखंड की जीवनदायिनी है। केन और सोन विन्ध्य कगारी प्रदेश की प्रमुख नदियाँ हैं। केन मध्यप्रदेश की एकमात्र ऐसी नदी है जो प्रदूषण मुक्त है। केन नदी मध्यप्रदेश की 15 प्रमुख नदियों में से एक है। पन्ना जिले के दक्षिणी क्षेत्र से प्रवेश करने के बाद केन नदी पन्ना और छतरपुर जिले की सरहद पर बहती हुई उत्तर प्रदेश में प्रवेश कर यमुना नदी में मिल जाती है। दमोह से पन्ना जिला के पण्डवन नामक स्थान पर इसमें तीन स्थानीय नदियाँ पटना, व्यारमा और मिढ़ासन का मनोहारी संगम होता है। संगम पन्ना और छतरपुर के सीमावर्ती स्थान पर होता है। इन तीन नदियों के मिलन बिन्दु से पण्डवन नामक नयनाभिराम जल प्रताप का निर्माण हुआ है। जल प्रवाह से यहाँ के पत्थरों में आश्चर्यजनक गोलाई आकार है।

देश की अकेली नदी सात पहाड़ों का सीना चीर कर बहती है


प्रदेश के छतरपुर जनपद में केन नदी के किनारे बसे गांव के लोग बताते हैं कि यह देश की ऐसी अकेली नदी है जो सात पहाड़ों का सीना चीरकर बह रही है। वैसे केन के उद्गम स्थल से कुछ दूरी के बाद से ही यह नदी छोटी-बड़ी पहाड़ियों में खो जाती है। जैसे-जैसे नदी आगे बढ़ती है तमाम छोटी-छोटी नदियों के मिलने के बाद इसका विशाल रूप सामने आने लगता है। पन्ना के पास तो यह पहाड़ को चीरकर बहती प्रतीत होती है। पूरे रास्ते में ऐसे सात पहाड़ों के बीच से नदी बहती है, जिसे देखकर लगता है मानों पहाड़ों ने इस नदी को बहने के लिए रास्ता दे दिया है। कहा जाता है कि यह नदी जिस पहाड़ से टकराती है वहां रंग बिरंगी आकृतियां पनपती हैं।

नदी के उद्गम से जुड़ा है प्रेम कहानी का दर्दनाक अंत


जानकार मानते हैं कि केन नदी का उद्गम मध्यप्रदेश के दमोह जनपद की पहाड़ी से हुआ शायद यह वही स्थान था जो रीठी के पास है। चूंकी तब कटनी जिला नहीं था लिहाजा इसे दमोह के पास बताया गया। यह नदी मध्य प्रदेश के पन्ना खजुराहो से होते यूपी में बांदा जनपद के बिल्हरका गांव से प्रवेश करती है। नदी का उद्गम अथवा नाम केन कैसे पड़ा इसे लेकर किंवदंतियां हैं। किंवदंती के अनुसार, इस नदी का पुराना नाम कर्णवती था। एक बुजुर्ग ने बताया कि नदी के किनारे अक्सर एक प्रेमी युगल अठखेलियां किया करता था। बाद में किसी ने युवक की हत्या कर उसके शव को खेत के मेढ़ में दफना दिया। युवक की प्रेमिका ने ईश्वर से अपने प्रेमी का शव दिखाने की प्रार्थना की। तब अचानक जोरदार बारिश हुई, खेत का मेढ़ बह गया और शव उसके सामने नजर आया। शव देखते ही लडक़ी ने भी अपने प्राण त्याग दिए। इस घटना के बाद यहां से नदी निकली और नदी का नाम कर्णवती से कन्या हो गया। कन्या का अपभ्रंश कयन और फिर केन हो गया। महाभारत में भी केन-एक कुमारी कन्या का उल्लेख मिलता है। रीठी में इस कहानी में जिस लड़की का उल्लेख किया जाता है उसका नाम किनिया बताया जाता है लोग मानते हैं कि किनिया से ही इस नदी का नाम केन पड़ा।

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