केंद्रीय पर्यावरण मंत्री को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने समझाई मुश्किलें

हरिद्वार, 25 अगस्त। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने सोमवार को राज्य से जुड़े पर्यावरण-परिस्थितिकी, विकास और रोजगार के बरक्स राज्य के सामने बढ़ीं कठिनाइयों को केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्री जयराम रमेश के सम्मुख पेश किया। इस दौरान राज्य में 36 दिनों से आमरण अनशन पर बैठे प्रोफेसर जीडी अग्रवाल, पर्यावरणविद् और साधु-संतों की बड़ी मौजूदगी थी। रमेश ने मुद्दों को गौर से सुना। उन्होंने राज्य को केंद्र सरकार की ओर से चार सौ करोड़ रुपए बतौर ‘ग्रीन बोनस’ देने की घोषणा की। उन्होंने कहा की राज्य में बंद की गई तीन पनबिजली परियोजनाओं के विकल्प की तैयारी राज्य सरकार कर सकती है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के प्रति प्रधानमंत्री के मन में खासी चिंता रही है। राज्य अंधेरे में न डूबा रहे इसके लिए अतिरिक्त बिजली देने के तौर-तरीकों पर भी राय मश्विरा हो रहा है।

प्रो. जीडी अग्रवाल का अनशन तुड़वाने मातृसदन में पहुंचे जयराम रमेश ने केंद्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी की चिट्ठी पढ़ कर सुनाई। उन्होंने उत्तरकाशी से गंगोत्री तक के 135 किमी क्षेत्र को ‘इको सेंसिटिव’ घोषित किया। साथ ही कहा कि तीन सप्ताह के अंदर राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की बैठक भी बुलाई जाएगी।

जब मुख्यमंत्री निशंक ने राज्य का पक्ष रखना शुरू किया। तभी रमेश ने उन्हें रोका और कहा कि मुख्यमंत्री मुझसे नाराज रहते हैं। मुख्यमंत्री ने अपनी नाराजगी का कारण स्पष्ट करते हुए कहा कि केंद्रीय वन राज्यमंत्री ने केंद्र की ओर से राज्य को 400 करोड़ रुपए ‘ग्रीन बोनस’ देने की बात कही है। लेकिन राज्य सरकार को ग्रीन बोनस बतौर आज तक चार पैसे भी नहीं मिले हैं। उत्तराखंड सरकार के सामने बिजली सबसे बड़ी समस्या है। राज्य में तेजी से उद्योग-कारखाने लगे हैं। अब पन-बिजली परियोजनाएं बंद होने से राज्य में बिजली का टोटा बढ़ा है। इससे रोजगार पर प्रभाव पड़ेगा।

उत्तराखंड के सीमाई व सामरिक महत्व पर उन्होंने कहा कि राज्य की सीमाएं नेपाल व चीन से घिरी हैं। चीन हमारे सिर पर है। ऐसे में यदि पहाडों के गांवों से युवक रोजगार के लिए पलायन करेंगे तो उसका विपरीत प्रभाव हमारी सुरक्षा पर पड़ेगा। इन सब मुद्दों पर हमें विचार करना है। इसीलिए जो बिजली परियोजनाएं बंद की गई हैं उससे संभावित उत्पादन की मिलने वाली बिजली के अब न मिलने की एवज में राज्य को दीर्घकालिक आधार पर केंद्र सरकार को दो हजार मेगावाट बिजली मुफ्त देनी चाहिए। यदि केंद्र इस मामले में देरी करेगा तो इससे राज्य के आर्थिक विकास व रोजगार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

उन्होंने बताया कि मैंने प्रधानमंत्री को लोहारी नागपाला जल-बिजली परियोजना बंद करने के संबंध में जो पत्र भेजा था। उसमें मैंने प्रधानमंत्री से राज्य को दो हजार मेगावाट बिजली मुफ्त देने की मांग भी की है। लेकिन अफसोस है कि केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री जयराम रमेश केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी का जो पत्र लाए हैं, उसमें इसका कोई जिक्र नहीं है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र में बैठे लोग एयर कंडीशंड कमरों में बैठ कर नीति बनाते हैं। वे पहाड़ के लोगों का दर्द क्या समझेंगे। हमने पहाड़ की पीड़ा को देखा है। उसे भुगता है जो लोग पहाड़ में गंगा और यमुना की चिंता करते हैं। उन्हें अब उत्तराखंड से आगे कानपुर इलाहाबाद और सुदूर गंगा सागर तक गंगा-यमुना के प्रवाह उसकी स्वच्छता निर्मलता व अविरलता की चिंता करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने स्पर्श-गंगा का कार्यक्रम चलाया है। गंगा के मायके में हमें उसे स्वच्छ, निर्मल व अविरल बनाने की चिंता है। उस दिशा में हम काम कर भी रहे हैं। निशंक ने कहा कि कुंभ मेला में हरिद्वार इस दफा 144 देशों के लोगों ने गंगा का स्पर्श किया। गंगा के दर्शन किए। इसीलिए गंगा अब केवल राष्ट्रीय धरोहर ही नहीं अपितु विश्व धरोहर बन गई है।

उन्होंने उन लोगों को खुली चुनौती दी जो गंगा, यमुना और पर्यावरण पारिस्थितिकी के सवाल पर उत्तराखंड की तरफ आलोचना के भाव से देखते हैं। निशंक ने कड़क अंदाज में कहा, उत्तराखंड की धरती देवभूमि है, देशभक्तों की भूमि है, पर्यावरण रक्षकों की भूमि है। गंगा भक्तों की भूमि है।

उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के बाशिंदों में देशभक्ति का गजब जज्बा है। उत्तराखंड के औसतन हर परिवार का एक व्यक्ति भारतीय फौज में देश की सीमाओं की रक्षा के जज्बे से शामिल होता है। हमारी महिलाएं और माताओं ने वनों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन का शुरुआत कर पूरी दुनिया को वनों की रक्षा करने का एक नया रास्ता, नया विचार दिया। उत्तराखंड में 14 हजार वन पंचायतें हैं। ये वनों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। हमारे प्रदेश का 68 से 70 फीसद वन क्षेत्र पूरी दुनिया को प्राण वायु देता है। हमें जो लोग पर्यावरण की रक्षा का पाठ सिखा रहे हैं, वे कृपया ऐसा करके राज्य की पर्यावरण प्रेमी जनता का अपमान न करें। उन्होंने कहा कि देश दुनिया को प्राण वायु देने के लिए उत्तराखंड पूरे प्रदेश की 70 फीसद वन संपदा की रक्षा में जुटा है उसके एवज में राज्य को नियमित आर्थिक ग्रीन बोनस दिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार वादा तो करती है परंतु फूटी कौड़ी भी नहीं देती।

उन्होंने एलान किया कि अब उत्तराखंड में गंगा नदी पर बड़े बांध नहीं बनेंगे। गंगा को अब सुरंगों से नहीं गुजरना होगा।

पर्यावरणविद् वैज्ञानिक प्रो. जीडी अग्रवाल ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना को बंद करने के लिए तुरंत ही प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। वे उत्तराखंड के पर्यावरण व गंगा की पवित्रता, निर्मलता व अविरलता को लेकर प्रभावशाली भूमिका निभा रहे हैं।

बाबा रामदेव, योग गुरू


सामाजिक और आर्थिक दायित्व में संतुलन बनाए रखा जाए। गंगा पर करोड़ों लोगों की गहन आस्था है। देश को एक लाख मेगावॉट ऊर्जा की आवश्यकता है। जो संसाधन अभी है, उसी को विकसित करना होगा। ठोस योजना की जरूरत है।

महंत रविंद्रपुरी


हरिद्वार से आगे गंगा की दुर्दशा है। यह स्वच्छ नहीं है। इसके लिए प्रयास करना होगा। सरकारों को भी चाहिए इस मामले में ठोस रणनीति बनाकर भविष्य की योजना तैयार करें। ताकि गंगा सदैव निर्मल बनी रही।

प्रो. भरत झुनझुनवाला, पूर्व प्रो. आईआईएम


श्रीनगर परियोजना 63 मीटर पर स्वीकृत हुई थी, लेकिन 112 मीटर पर काम किया जा रहा है। इससे धारी देवी का अस्तित्व खतरे में आ गया है। अगर इसे बंद नहीं किया गया तो वह डूब जाएंगी।

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